दक्षिण भारत में हिंदी के प्रचार की अनिवार्यता और आवश्यकता महसूस करके महात्मा करमचंद गांधीजी ने १९१८ में चेन्नै को मुख्य केंद्र बनाकर अपने बेटे को प्रधान प्रचारक बनाकर हिंदी प्रचार का यज्ञ शुरू किया.
भले ही तमिलनाडु के द्राविड दल हिंदी के विरोध अपने स्वार्थ के लिए कर रहे हैं,फिर भी तमिलनाडु में हिंदी का प्रचार दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रहा है.
सभा हिंदी परीक्षाओं के द्वारा लोगों में अपने लक्ष्य को सार्थक बना रही है.
सभा के हिंदी प्रचारक धन को प्रधानता न देकर यह राष्ट्रीय सेवा के कार्य में मग्न है. उनकी सेवा स्तुत्य है.
मैं से.अनन्तकृष्ण, १९६६ से अपनी १६ साल की उम्र से इस सेवा में लग रहा हूँ. उसका फल भी मेरे दायरे में मुझे आदर्श बनाया है. मैं तमिलनाडु के प्रसिद्ध हिन्दू हायर सेकंडरी स्कूल में २७ साल स्नातकोत्तर हिंदी अध्यापक रहा; प्रधान अध्यापक बनकर अवकाश प्राप्त किया;मेरे लिए यह पद स्वर्गीय आनंद और गर्व की बात हैं. क्योंकि इस पद की कुर्सी पर विश्वविख्यात सिल्वर टंग श्रीनिवास शास्त्रियर शोभित थे; मेरी योग्यता उनके पैर रज से भी गया गुजरा है; दूसरी बात है सरकारी स्कूलों में हिंदी हटाने के बाद हिंदी अध्यापक पद से दो ही प्रधान अध्यापक बने. पहले पि.एस.चंद्रसेकर,एस.एस.वि.स्कूल के; फिर मैं हिन्दू हायर सेकंडरी स्कूल में. यह तो मेरे परिश्रम के लिए ईश्वरीय देन और कृपा है.
मैं अब इस ब्लाग द्वारा सभा के परीक्षोपयोगी कुछ लिखने की चाह रखता हूँ.
पाठक अपने अमूल्य सलाह और आलोचना द्वारा इस मतिसक.ब्लॉग आर.बी.पूर , के लिए प्रोत्साहित करें.
धन्यवाद,
मेरे अन्य ब्लॉग हैं:-1.ananthako.blogspot.com (tamil) knowledge sharing.
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