श्री गणेश के नाम से करता हूँ,श्रीगणेश!
श्री की कृपा रहें! श्री विद्या की भी;
श्री शक्ति की भी;श्री शिव,श्री विष्णु की भी;
इन सब से मिश्रित एक ईश्वरीय शक्ति मिले!!
जिससे कर सकूँ, मैं जगदोद्धार!!
आगे बढूँ मैं,आगे बढ़ें संसार!
न तो ऐसी शक्ति करो उत्पन्न,
जो रोक सके तेरे नाम से लूटना’
धर्म –कर्म के बाद नाम बचें;
करोड़ों की संपत्ति,न ऐक्य हो सागर में;
मानता हूँ तेरी बड़ी शक्ति,लेकिन एक तेरी
अपमान की शक्ति जो साल पर साल
बढ़ती रहती हैं,तनाव,कलह ,मृत्यु ,मार-काट के
आतंक फैलता बढ़ता रहता है;
मुक्ति करो भक्तों को,ऐसी तेरी मूर्ती –विसर्जन के
दुष्कर्म से; बचाओ धर्म को;मिटाओ अंध-धार्मिकता को’
करता हूँ,श्री गणेश श्री गणेश के नाम से;
करो कुछ शक्ति का प्रयोग;बचें संसार!!
भक्ति तो मुक्ति का साधन है ,पर
शक्ति है संसार में धन की ;ज्ञान की ;
ज्ञानी भक्त हो जाता हैं,तो
धनी नाचता नचाता मन माना;
अतः जन का मानना है .
धनी की बात;
यह तो बात ख टकती;
जीते हैं हम लेके नाम तेरे;
रखो हम पर कृपा तेरी;
श्री गणेश करता हूं,काम;
श्रीगणेश करो कामयाबी ,
कामना मेरी!
सनातन हिन्दू धर्म सिखाते हैं बहुत;
स्वदेशे पूजिते राजा;विद्वान सर्वत्र पूजिते;
वसुदैव् कुटुब्बकम ;
मनुष्य सेवा ही महेश की सेवा;
धन न जोड़ो;दान –धर्म में लगाओ;
वही महान है,जो सब कुछ तज,
जीता है परायों के लिए;
त्याग में है सुख;
भोग में हैं दुःख!
राजकुमार सन्यासी बन्ने की कहानियाँ है
भारत में;भोगी रोगी बनता है;
प्रकृति के साथ जीने में ब्रह्म के साक्षात्कार है;
अहम् ब्रह्मासमी ;आत्मा-परमात्मा में विलीन है ;
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छात्रों और छात्राओं के लिए कहानी कला और सारांश लिखने निम्न सोपानों पर ध्यान रखना चाहिए:
१.१५ अंकों का बंटवारा:
१.लेखक परिचय संक्षेप में --३ अंक.
२.सारांश -संक्षेप में ------५ अंक.
३. कहानी कला की दृष्टी से विशेषताएं:-७ अंक.
कुल एक कहानी केलिए इस दृष्टी से पंद्रह अंक दिए जायेंगे.
२. चरित्र चित्रण:-
हर पात्र की बोली,विचार,आंगिक चेष्टाएँ ,भावाभिव्यक्ति ,काम आदि पर ध्यान देकर चरित्र चित्रण करना है.
कहानी की सफलता देश-काल -वातावरण के अनुकूल रचित पात्र पर निर्भर है. अतः चरित्र के जीवित रूप दिखाना चाहिए.
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1.नादान दोस्त--उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद. (बाल मनोविज्ञान की कहानी )
कठिन शब्दार्थ:
सुध-होश
फुरसत =समय
तसल्ली देना-सांत्वना देना
पर- पंख,लेकिन
बगैर=बिना
पेचीदा=परेशानी
जिज्ञासा=जानने की इच्छा
अधीर होना= हिम्मत खोना
अनुमान=अंदाजा.
चाव= रूचि
आँख बचाना=छिपाना
उधेड़बुन =दुविधा
हिफाज़त =सुरक्षा
लू=गरम हवा.
चेहरे का रंग उड़ जाना=डरना
ताकना=देखना
भीगी बिल्ली बनना= भयभीत होना
तरस खाना=दया दिखाना
तरस आना=रहम आना
लेखक परिचय:-जन्म स्थान,तारीख,कहानियों का केंद्र भाव,मुख्य रचनाये,वे अमर है तो मृत्यु साल..
सारांश:-
प्रेमचंद इस कहानी में सामाजिक समस्याओं से परे बाल मनोविज्ञान पर ध्यान दिया है.बच्चे नादान होते हैं.
उनको नयी बातें जानने की इच्छा होती हैं.उनके जिज्ञासुओं को जवाब देने माता-पिता को फुरसत नहीं;अतः बच्चे अपने सवालों का समाधान खुद खोजने में लग जाते हैं .परिणाम उनके सोच के विपरीत होते हैं.वे अपनी नादानी के लिए पछताते हैं.बच्चों के नादानी करतूत से माँ को हंसी आती है;पर बेटा अपनी गलती पर अफसोस होता रहता है; उसको माँ की इस बात से भी पछतावा बढ़ा होगा--केशव के सर इसका पाप पडेगा!हाय!हाय!तीन जानें ली यह दुष्ट ने! कितना मर्मस्पर्शी बाल मनोविज्ञान का जीता-जागता चित्रण.
कहानी का सार:-
केशव के घर कार्निस के ऊपर एक चिड़िये ने अंडे दिए थे. केशव और उसकी बहन श्यामा दोनों को अंडे देखने की इच्छा हुई. उनके मन में कई प्रकार के सवाल आये कि अंडे की संख्या,अंडे के रंग,बच्चे कैसे निकलेंगे ,कैसे उड़ेंगे ,पर कैसे निकलेंगे आदि.
इन सवालों को जवाब देने माता-पिता दोनों को समय नहीं. नादान बच्चे अपनेदिल को खुद ही तसल्ली दिया करते थे.
दोनों को इन अण्डों को सुरक्षित रखने की इच्छा हुई . पहले उनकी तीव्र इच्छा अण्डों को देखने की थी.
दोनों बच्चे अम्मा की आँखे बचाकर इस काम में लग गए. भाई की मदद में बहन लग गयी.अण्डों को धुप से बचाने,उसको गद्दीदार बिस्तर पर रखना,पानी की व्यवस्था सब कर चुके. उनका विचार था इतनी सुविधाओं से चिड़िये को आराम मिलेगा. अंडे से निकलते ही दाना-पानी पास ही मिल जाएगा.चिड़िये के बच्चे वहीं रहेंगे.
भाई ने ऊपर डरते हुए चढ़कर ये सब काम किये;बहन को ऊपर चढ़ने नहीं दिया;उसको डर था कि बहन के पैर फिसलकर गिर जाने पर माँ उसे चटनी कर देगी. केशव को यह भी डर था कि वह किवाड़ खोलकर घर से बाहर आया है;माँ को इसका पता चलें या बहन के कहने पर डांटेगी.
माँ आयी;डांट-डपटकर दरवाजा बंद कर दिया.गरम लू की दुपहरी में दोनों सो गए. यकायक श्यामा जाग उठी;तुरंत कार्निस देखने गयी;वहाँ के दृश्य से दुखी थी; अंडे नीचे गिरकर टूट गए.वह आहिस्ते-आहिस्ते भाई को जगाने लगी और बात बतायी कि अंडे नीचे पड़े हैं;चिड़िये के बच्चे उड़ गए.
माँ ने दोनों बच्चों को धूप में खड़ा देखकर पुकारी. केशव ने कहा कि अंडे गिर गए.माँ गुस्से में बोली-तुम लोगों ने अण्डों को छुआ होगा. श्यामा को भैये पर का तरस उड़ गया.सारी बातें बता दीं.
तभी माँ ने कहा कि तू इतना बड़ा हुआ ,तुझे अभी इतना पता नहीं कि छूने से चिड़िये के अंडे गंदे हो जाते हैं.चिड़िया फिर उन्हें नहीं सेती. आगे माँ ने कहा --केशव के सर इसका पाप पडेगा.केशव ने दुखी मन से कहा--मैंने तो सिर्फ अण्डों को गद्दी पर रख दिया था अम्माजी.!
माँ को हंसी आयी;पर केशव दुखी था.सोच-सोचकर रो रहा था.
भोले-भाले बच्चोंकी नादानी से नादान दोस्त अंडे से निकल न सके.
कहानी कला की दृष्टि से विशेषताएँ:-
"नादान दोस्त" उपन्यास सम्राट प्रेमचंद जी की कहानी है. उसकी रोचकता,प्रवाह और सुसम्बद्धता के तत्व हैं-
१.कथावस्तु२. पात्र ३.संवाद ४.देशकाल ५. शीर्षक ६.चरमसीमा ७.अंत ८..उद्देश्य ..९.भाषा शैली .इस पर अब प्रकाश डालेंगे.
१.कथावस्तु: -कहानी की बीज है.इसी से कहानी का विकास होता है;बाल मनोविज्ञान की इस कहानी में
माँ-बाप बच्चों के मन में उठनेवाले सवालों के जवाब देने तैयार नहीं है; भूलें होने के बाद डाँटते हैं.वे तो बच्चों की भूलों से खुश होते हैं. बच्चे माँ -बाप के डर के कारण अपने मन में उठनेवाले सवालों के हल में खुद लग जाते है, इसीलिये भूलें होती हैं.बच्चे अफसोस होते हैं. इस कथावस्तु के आधार पर कहानी सफल है.
२.पात्र: कहानी के प्रमुख पात्र केशव और श्यामा हैं. और गौण पात्र उसकी माँ. केशव और श्यामा अपने आप सवाल-जवाब करके अपने दिल को तसल्ली दे दिया करते थे लेखक के यह वाक्य बच्चों के प्रति माता-पिता की लापरवाही ,बच्चों के जिज्ञासु होने की प्रवृत्ति का पता लगता है. केशव अपने माँ -बाप से इतना डरता है कि दोनों को अपने माँ -बाप की आँखें बचाकर काम करना पड़ता है;भाई का बहन को डांटना,बहन माता से न कहें यों सोचना,अंडे के टूटने की खबर पहले बहन जानकर आहिस्ते-आहिस्ते भाई को जगाना,अंडे के छूने से टूट जाने से दुखी होकर भाई के अपराध को श्यामा अपनी माँ से कहना ,सच्चाई जानकर माँ का कहना -केशव के सर इसका पाप पड़ेगा;फिर माँ का खुश होना,केशव का दुखी होना ऐसे कहानी के पात्र कहानी के सफल और उद्देश्य के लिए ही सृजित हैं.
३.संवाद: कहानी को आगे बढाने में संवाद का अपना विशेष महत्त्व है.श्यामा के हर सवाल में बच्चों के जिज्ञासा का पता लगता है.बड़े भाई का समाधान भी रोचक है.
श्यामा:-क्यों भइया,बच्चे निकलकर फुर्र से उड़ जायेंगे?
केशव गर्व से - नहीं री पगली !पहले पर निकालेंगे!बगैर परों के कैसे उड़ेंगे?
केशव ने श्यामा को अंडे नहीं दिखाया। तब श्यामा ने कहा,मैं अम्माजी से कह दूँगी.
तब केशव ने कहा-अम्मा से कहेगी तो बहुत मारूंगा,कहे देता हूँ.
अंडे के छू जाने के डर से केशव ने माँ से पूछा--तो क्या चिड़िया ने अंडे गिरे दिए हैं अम्मा जी?
माँ--और क्या करती!केशव के सर इसका पाप पडेगा। हाय!हाय!तीन जानें ले लीं दुष्ट ने!
ऐसे ही कथोपकथन बाल-मनोविज्ञान के अनुकूल रोचक बन गया है.
४.देश-काल --यह एक सामाजिक कहानी है. बालमनोविज्ञान का प्रतीक है.अतः यह सफल कहानी है. बच्चे यों ही कुछ करते हैं.जानने की इच्छा रखते हैं.यह तो देश -काल वातावरण के अनुकूल है.
५.शीर्षक : कहानी का शीर्षक "नादान दोस्त",उचित है. अंडे ही नादान दोस्त हैं.बच्चे उत्पन्न भी नहीं हुए, उन अण्डों की सुरक्षा,धूप से बचाना ,गद्दी तैयार करना आदि भोले बच्चों की भोलापन है नादान बच्चों के लिए.
६.चरम सीमा:-कहानी की चरम सीमा श्यामा के अंडे टूटने देखने से हैं.तभी माता को बच्चों के बारे में पता चलता है.
७.अंत- कहानी का अंत माँ की हँसी और केशव के अफसोस के साथ होता है.नादान दोस्त टूटे अंडे के लिए भोले केशव का दुःख;शीर्षक के अनुकूल अंत.
८.उद्देश्य:-बाल मनोवैज्ञानिक और अभिभावकों की लापरवाही,बच्चों का डरना,बच्चों के मन में उठनेवाले सवालों के जवाब न देना आदि पर ध्यान दिलाना लेखक का उद्देश्य है. इसमें लेखक को सफलता मिली है.
९.भाषा शैली: भाषा सरल और मुहावरेदार हैं.कहानी सिलसिलेवार है.आँखे बचाना,उधेड़बुन में पडना,चटनी कर डालना,उलटे पाँव दौड़ना,रंग उड़ जाना,पाप पड़ना,सत्यानाश कर डालना आदि मुहावरों का सही प्रयोग मिलता है.कहानी सिलसिलेवार है.
थोड़े में कहें तो कहानी सिलसिलेवार ,रोचक और शिक्षाप्रद है. अभिभावकों को बच्चों से प्यार से रहना है. उनके सवालों के जवाब देना,शंकाओं का समाधान करना नादान बच्चों को खुश करना;और नादानी के भूलों से बचाना आदि शिक्षा मिलती हैं.
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2.कोटर और कुटीर. लेखक :-सियारामशरण गुप्त
कठिन शब्दार्थ:
कोटर==घने जंगल
कुटीर =झोम्पडी
बाट जोहना=रास्ता देखना ,प्रतीक्षा करना
परिखा=
क्षुधा=भूख
घनश्याम =बादल
पोखरी=
पुर्हरी=
अवस्था=आयु ,उम्र
खफ़ा=
निहाल हो जाना=
लेखक परिचय :-सियारामशरण गुप्त
सारांश :
मनुष्य को दूसरों की सम्पत्ती की चाह ठीक नहीं है.दूसरों से माँगना और कर्जा लेना भी स्वाभिमान के विरुद्ध है.एक कुटीर वासी ऐसे आदर्श जीवन से खुश होता है.कोटर में रहनेवाले चातक पुत्र वर्षा के पानी की प्रतीक्षा छोड़ गंगा की ओर उड़ रहा है.जब उसको गरीब बुद्धन की स्वाभिमान भरी बात में चातक का उदाहरण बताया तो चातक पुत्र का अपने खानदानी गौरव का पता चला.वह फिर गंगा की ओर जाना छोड़कर अपने कोटर की ओर लौटा. यह छोटी -सी कहानी में स्वाभिमान की आदर्श सीख मिलती है.
सार:
चातक पुत्र को अधिक प्यास लगी. उनके पिता जी से कहा कि प्यास के कारण मैं परेशान में हूँ. पिताजी ने समझाया कि हम तो वर्षा का पानी ही पीते हैं.इसी कारण से हमारे कुल का गौरव है.पुत्र ने कहा कि मनुष्य तो कुएं,तालाब ,आदि में वर्षा के पानी जमा करके कृषी करता है; तब पिता ने पोखरी का पानी पीने की सलाह दी. पुत्र ने उस गंदे पानी ,जानवर और मनुष्य का पीना,उसमें कीड़े का बिलबिलाना .आदमियों का उस पानी प्रदूषित करना; पुत्र ने वह विचार छोड़ दिया.उसे चार-पांच की दूरी पर गंगा का पानी पीने की चाह की. वह गंगा की तरफ उड़ने लगा. रास्ते में वह बुद्धन नामक गरीब बूढ़े के खपरैल के पास के नीम के पेड़ पर बैठा.
बुद्धन पचास साल का था उसका बेटा गोकुल १५-१६ साल का लड़का था.
वह काम के लिए गया और खाली हाथ लौटा. लौटने में देरी हो गयी.उसने पिताजी से देरी के कारण जो बताया,उससे उसके उच्च चरित्र का पता चलता है.उसको उस दिन की मजदूरी नहीं मिली.इंजीनियर के कहने पर ओवेर्सियर ने मजदूरी नहीं दी.सब चले गए.गोकुल को रास्ते पर एक रुपयों से भरा बटुवा मिला. गरीबी हालत में भी उसको उन रुप्योंवाले की उदासी और परेशानी का ही ध्यान आया. उसको मालूम हो गया कि वह बटुआ एक मेहता का है. तुरंत वह मेहता की तलाश में गया. मेहता का बटुवा सौंपा. मेहता बहुत खुश हुए.वे गोकुल को रूपये देने लगे. गोकुल ने उसे न लिया.
पिता जी को अपने बेटे की ईमानदारी पसंद आयी.पिताजी ने पुत्र से कहा कि तुम उधार ले सकते हो.गोकुल ने कहा कि उधार लेने की बात उस समय आयी ही नहीं.
आनंदातिरेक से वे बोल न सके.बुद्धन को लगा कि उसके क्षुधित और निर्जीव शरीर में प्राणों का संचार हो गया.वह पुत्र से बोला-अच्छा ही किया बेटा,यह उधार माँगना भी एक तरह का माँगना होता है.भगवान ने तुझे ऐसी बुद्धि दी है,मैं तो यही देखकर निहाल हो गया.दो-दिन की भूख हमारा कुछ बिगाड़ नहीं सकती.
चातक पुत्र ने यह सब सुना,बाप -बेटे की गरीबी में भी आत्मसम्मान और त्याग से उसकी आँखों से आँसू झरने लगे. वह गंगा की ओर उड़ना तजकर अपने कोटर पहुँचा . दुसरे ही दिन वर्षा हुई. उसको वर्षा के कारण चार दिन का उड़ान सात दिन हो गए.
कहानी कला की दृष्टी से कहानी की विशेषताएं:-
कथावस्तु:- ईमानदारी और आत्मसम्मान से जीना,कुल गौरव की रक्षा करना आदी सीख देना कथावस्तु है. इस कथावस्तु में लेखक ने चातक पक्षी द्वारा पोखरी के प्रढूषण,स्वार्थ आदि पर चित्रण किया है.बुद्धन और गोकुल के द्वारा गरीबी में भी उदार और ईमानदार रहने का चित्रण है.
पात्र: कहानी के पात्र हैं चातक,चातक पुत्र, बुद्धन ,गोकुल. ये सारे पात्र कहानी के लिए आवश्यक है. लेखक अपने उद्देश्य तक पहुँचने इन पात्रों का सही प्रयोग किया है.चातक -पुत्र द्वारा पानी प्रदूषण का जिक्र किया है.प्रदूषित पानी न पीकर चार मील की गंगा की ओर जाना,रास्ते में बुद्धन की झोम्पडी के पास के नींम के पेड़ पर बैठना,बुद्धन और गोकुल के संवाद सुनना,चातक पुत्र के विचार परिवर्तन आदि इन पात्रों के द्वारा सफल रूप में हुआ है.
संवाद:-चातक पुत्र और चातक की बातों से चातक पुत्र अपना खानदानी गुण और मर्यादा बदलना चाहता है. बुद्धन और गोकुल के संवाद से चातक पुत्र के बदले विचार . इस दृष्टी से संवाद सफल है.
उद्देश्य :-ईमानदारी से रहना,दूसरों से कुछ न माँगना, खानदानी आचार-विचार का पालन करना आदि सिखाना उद्देश्य है. इसमें सफलता मिली है.
शीर्षक :-कोटर और कोठरी - एक जंगल और दूसरा गरीबों की झोम्पडी; दोनों में महान गुण; इस दृष्टी से शीर्षक भी उचित है.
इस प्रकार कहानी कला की दृष्टी से कहानी सफल है.
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३. उसने कहा था कहानीकार :चंद्रधर शर्मा 'गुलेरी'
कठिन शब्दार्थ :-
मरहम लगाना=दवा लगाना
तरस खाना =दया दिखाना
सताना =तंग करना
उदासी के बादल फटना=दुःख दूर होना
चकमा देना=धोखा देना
किलकारी =खुशी की
पैरवी करना=
ख़िताब=उपाधी
नीलगाय=
लेखक परिचय :-
सारांश:
चंद्रधर शर्मा "गुलेरी" की यह कहानी उनको हिंदी कहानी साहित्य गगन में चार चाँद लगा दिये।
लहनासिंह अपनी एक पक्षीय प्रेयसी के पति और पुत्र के प्राण बचाने अपने प्राण देता है.इस कथानक को मर्मस्पर्शी ढंग से लिखकर लेखक ने पाठकों के दिल में स्थायी स्थान पा लिया।
अमृतसर के चौक की एक दूकान पर बारह साल का एक लड़का और आठ साल की लड़की अकस्मात् मिलते हैं।दोनों एक दूसरे से परिचित होने के बाद रोज़ लड़का लड़की से पूछता है कि क्या तेरी शादी हो गयी। वह रोज "धत" कहकर दौड़ जाती है। एक दिन लड़की ने 'हाँ' कहा और उसके प्रमाण में रेशम से कढ़ा हुआ सालू दिखाया और भाग गई।
लड़के के मन में उस लड़की से प्रेम था। लेखक ने उसके प्रेम को यों लिखा है ---लड़की भाग गयी,पर लड़के रस्ते में एक लड़के को मोरी में ढकेल दिया। एक छाबड़ीवाले के दिन -भर की कमाई खोयी,एक कुत्ते पर पत्थर मारा;एक गोभीवाले के ठेले में से दूध उंडेल दिया;सामने नाहकत आती हुयी किसी वैष्णवी से टकराकर अंधे की उपाधी पायी,तब कहीं घर पहुँचा। उसके एक पक्ष प्रेम को लेखक दर्शाने के बाद की कहानी पच्चीस साल के बाद शुरू होती है। यह अंतर में इतना सम्बन्ध है कि कहानी और रोचक बन जाती है. लड़के का नाम लहना सिंह है।
अमृतसर बाज़ार की उपर्युक्त घटना के बाद जर्मन की युद्ध भूमि के खंदकों में कहानी जुड़तीहै।
वहाँ लुधियाना से दस गुना जाड़ा है। वजीरा सिंह उस पलटन का विदूषक था। उसी के कारण वहाँ की उदासी खुशी में बदल जाती है।
लहनासिंह बड़ा होशियार था। वहाँ के सूबेदार वज़ीर सिंह था। उसका बेटा बोधा सिंह था। एक बार लहनासिंह छुट्टियों में सूबेदार के यहाँ गया। तभी उसको मालूम हो गया कि सूबेदारनी वह लड़की थी जिसे वह अमृतसर के बाज़ार में मिला करता था। तब सूबेदारनी ने कहा कि मेरे पति और बेटे की रक्षा करना। तब वह यह घटना भी याद दिलाती है कि अमृतसर केबाजार में एक दिन तांगेवाले का घोडा दहीवाले की दूकान के पास बिगड़ गया था। उस दिन लहनसिंह ने उस लड़की के प्राण बचाये थे। वैसे ही बचाना। तब से लहना सिंह उन दोनों की देखरेख करता था। इसको पाठक तभी समझ सकते हैं जब लहना शत्रुओं से वज़ीर सिंह और बोधसिंह को सुरक्षित भेजकर गोली खाकर मृत्यु की अवस्था में पुराणी स्मृति में अंतिम घड़ी में है। यही हृदयस्पर्शी चित्रात्मक वर्णन है।
जर्मन का एक सैनिक अफ्सर भारतीय लपटन साहब बनकर आया था। उसकी शुद्ध उर्दू से लहनासिंह को मालूम हो गया कि वह छद्मवेशी जर्मनी है। उसने सिगरेट दी ;और बताया कि नीलगाय के दो फुट सिंग थे। इन सब से सतर्क हो गया.
तुरंत वह सूबेदार को खबर दी और भेज दिया। केवल आठ ही भारतीय वीर सिपाही सत्तर से ज्यादा जर्मन
सिपाहियों को मा रने में समर्थ हुए। नकली लपटन साहब के हाथ जेब में हाथ थे। उसी की गोली से लहना घायल हो गया। फिर भी सूबेदार और बोधासिंह को अमबुलंस में सुरक्षित भेज दिया। तब उसने बोधासिंह से सूबेदारनी को खबर दी कि मुझसे उसने जो कहा था ,वह मैंने कर दिया।
इन पहली स्मृतियों और सूबेदारनी की बात पालन करके लहनासिंह चल बसा। यही उसने कहा था।
कुछ दिन पीछे लोगों ने अखबारों में पढ़ा --
फ्रांस और बेल्जियम --६८ वीं सूची --मैदान में घावों से मारा -नं ०. ७७ सिख राइफ़ल्स जमादार लहनासिंह।
वास्तविक कारण केवल लहनासिंह को ही मालूम था। अपने लड़कपन के अबोध प्रेम निभाने जान दी है। कितना बड़ा त्याग; आदर्श प्रेम में प्राण देकर सूबेदारनी की जान बचाना त्याग की चरम सीमा है.
कहानी कला की दृष्टी से कहानी की विशेषताएं:
कथानक:- चंद्रधर शर्माजी की कहानी "उसने कहा था" का कथानक बचपन के अज्ञात प्रेम के लिए प्राण त्यागना वह भी सूबेदारनी ने कहा था ; मर्मस्पर्शी कहानी है.; इस दृष्टि से कहानी सफल है.
पात्र :-लहनासिंह ,वजीर सिंह ,बोधा सिंह,सूबेदारनी ; ये चारों पात्र कहाने को सिलसिलेवार ढंग से विकास करते हैं.सूबेदारनी और लहनासिंह के प्रथम मिलन,पच्चीस साल के बाद पुनः मिलना, सूबेदारनी पुरानी बचाव की घटना याद दिलाकर अपने पति और बच्चे की सुरक्षा की प्रार्थना, ,बोधा की जान बचाना,खुद घायल होकर प्राण त्यागना कितना मर्स्पर्शी चित्रात्मक शैली. पात्रों की दृष्टि से कहानी सफल है.
कथोपकथन: कथोपकथन अत्यंत रोचक है. लहना--तेरी कुडमाई हो गयी;
लडकी =हाँ,देखो रेशम का सालू.
लड़के का तेज़ भागना,कुत्ते पर पत्थर फेंकने आमने आनेवालों पर टकराना कितना यथार्थ चित्रण.
सूबेदार और बोधा को आम्बुलंस में बिठाने के बाद लहना सूबेदारनी को सन्देश देता है:
जब घर जाओ तो कह देना कि मुझसे जो उसने कहा था , वह मैंने कर दिया.
प्राणाघात सहते हुए ---अब आप गाडी पर चढ़ जाओ! मैंने जो कहा वह लिख देना और कह भी देना.
गाडी के जाते ही लहना लेट गया! 'वजीरा,पानी पिला दे और कमरबंद खोल दे. तर हो रहा है.
कितना ह्रदय स्पर्शी संवाद.
चरम सीमा ;-पुरानी स्मृतियाँ ; और उसके कारण पाठकों को वास्तविक त्याग का पता चलना; लहना का प्राण पखेरू उड़ जाना;
शीर्षक : शीर्षर कहानी की सफलता के लिए अत्यंत उचित है. सूबेदारनी ने कहा; बोधा की जान बचाई; और खुद जान गंवा दी.
देश-काल वातावरण: अमृतसर की गली में इक्केगादिवाले की भाषा ,बचो खालसाजी,हटो भाई जी,हटो बाछा.,जीने जोगी. पंजाबी शब्द ; कुडमाई हो गयी,धत, ,और जर्मन खंदकों का सजीव चित्रण , आदिमें लेखक की शैली तारीफ के योग्य है; फिर अंतिम घड़ी में लहना की स्मृतियों का चित्रामक शैली सचमुच आदर्श कहानी है.
भाषा शैली: कहानी पंजाब की गली और बाज़ार से शुरू होती है;उसके अनुसार पंजाबी शब्द मिलते है; कान पकना,राह खोना,अंधे की उपाधी पाना,,मत्था टेकना आदि मुहावरों का प्रयोग. चित्रात्मक वर्णनात्मक शैली;
इस प्रकार गुलेरी जी की यह काहानी सभी दृष्टियों में सफल है.
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4.सिक्का बदल गया. --
४.सिक्का बदल गया----कृष्णा सोबती
कठिन शब्दार्थ :
पौ फटना---सबेरे होना
नज़र उठाना- देखना
प्रतिहिंसा =बदला
विचलित होना =लाचार होना
संकेत करना =इशारा करना
आहत=दुखी
सारांश : देश की आजादी हुयी; देश में हिन्दू -मुस्लिम कलह,हत्या आदि के बाद शरणार्थी देश छोड़कर चलने लगे. सबको अपनी संपत्ति छोड़ शरणार्थी मुकाम भेजे गए. जिसका जीवन अधिकार,सत्ता, आडम्बर पूर्ण था, वे सब खोकर शरणार्थी मुकाम में रहे. इसीका चित्रण है "सिक्का बदल गया".शासन बदल गया तो जीवल शैली ही बदल जाती है.
इस कहानी की नायिका की मनोदशा का सही चित्रण हुआ है. शाहनी खद्दर की चादर ओढ़े चनाब नदी में राम .राम करके नहाकर बहार आयी तो क्रांतिकारियों के अगणित पाँवों के निशान थे. उसको इस प्रभात की मीठी नीरवता में भयावना-सा लग रहा था. शाहजी की लम्बी चौड़ी हवेली में अकेली है.शाहनी ,शाह की पत्नी है; सबकी मदद कर रही थी; शेरा की माँ स्वर्ग सिधारी तो उसको पालने लगी; शेरो की पत्नी हसैना को बहुत चाहती है; शेरा उसके मुग़ल क्रान्तिकारियीं से मिलकर उसकी हत्या करने की स्थिति में आ गया. अब वह शरणार्थी मुकाम में पुराणी स्मृतियों में पीड़ित है. उसको पुराने शाही जीवन की यादें है, उस चनाब नदी के इलाके में उसका आदर था. अब वह अनाथिनी है. लोग जब शरणार्थी मुकाम जाने लगी ,तब दुखी हो गए. थानेदार दाऊद खान मुकाम में ले आने आया तो सोना-चांदी लेकर जल्दी निकलने को कहा. एक जमाने में वह शाहनी की सेवा करता था. शाहनी ने उसकी मदद की थी. . शाहनी अपने साथ कुछ भी लेने तैयार नहीं थी.
शाहनी ने कहा--सोना-चांदी सब तुम लोगों के लिए है. मेरा सोना तो तो एक ज़मीन में बिछा है.
सब शानी के मुकाम की ओर जाने से दुखी थे. अंत में वह मुकाम पहुँच गयी.
हिन्दू -मुस्लिम कलह देश को टुकड़े करने का प्रभाव शोक प्रद था.
रात को शाहनी जब कैम्प में पहुँचकर ज़मीन पर पडी तो लेटे-लेटे आहत मन से सोचा,"राज़ पलट गया है...सिक्का क्या बदलेगा? वह तो मैं वहीं छोड़ आयी....
शाहनी की आँखें और भी गीली हो गयी.
कलह के कारण आस-पास के हरे-हरे खेतों से . घिरे गाँवों में रात खून बरसा रही थीं. राज पलटा खा रहा था और सिक्का बदल रहा था. रूपये ,डालर,यूरो आदि.
कथानक: देश की आज़ादी की लड़ाई ,बंटवारा,हिन्दू -मुग़ल की अशांति, हत्याएं,जिसको सत्ता था ,वे सत्ता हीन. शरणार्थी कैप; गद्देदार बिस्तर पर जो सो रहे थे,वे दीनावस्था में पीड़ित ज़मीन पर सो रहे थे. इस दर्दनाक वातावरण के आधार पर कथानक सफल है.
पात्र : शाहनी विधवा,बड़े हवेली की मालकिन आज अकेली थी; उससके अधीम जो थे ,वे दूर चले गए; उससे पालित पूत शेरा मुग़ल क्रांतिकारियों से मिलकर उसकी हत्या करने की योज़ना में शामिल था. उनकी पत्नी हसैना था.थानेदार दाऊद खां उसे कैम्प ले जाने आगे आ गया. ट्रक पर वह चढी तो लीग के खूनी शेरे का दिल टूट रहा था.इस प्रकार शाहनी के जाने से सभी दुखी थे. इस प्रकार सारे पात्र सफल हैं.
कथोपकथन:--शाहनी अपने पालित पुत्र शेरा के लीग से मिलना पसंद नहीं . उसने शेरे को बुलाया. वह शेरे की पत्नी से यह बात प्रकट करती है--हसैना, यह वक्त लड़ने का है? वह पागल है तो तू ही जिगरा कर लिया कर.फिर अपने प्रेम प्रकटकर बोली ---"पगली, मुझे तो लड़के से बहू अधिक प्यारी है इस संवाद से शाहनी के स्नेह का पता चलता है.
दूसरा संवाद तब होता है ,जब थानेदार दाऊद खां सोना -चांदी बाँध लेने की बात कहता है. तब शाहनी की उदासी वाक्य--"सोना -चाँदी. वह सब तुम लोगों के लिए है.मेरा सोना तो एक ज़मीन में बिछा है.
नकदी प्यारी नहीं!यहाँ की नकदी यहीं रहेंगी. इससे शाहनी के उदार चरित्र का पता लगता है. इस दृष्टि से कहानी सफल है.
उद्देश्य : देश के बंटवारे और बेकार खून-हत्याएँ , अमीर शाही जीवन बितानेवालों की दुर्दशा आदि का चित्रण करना लेखक का उद्देश्य है. इस दृष्टि से कहानी सफल है.
शीर्षक :- सिक्का बदल गया उचित शीर्षक है.शासन के बदलते ही सिक्का भी बदल जाता है. बँटवारे के कारण सब कुछ बदल गया. हिन्दू-मुस्लिम की एकता,प्यार -मुहब्बत चला गया .
इस प्रकार कहानी कला की दृष्टि से कहानी सफल है.
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5.पुर्जे लेखक :इब्राहिम शरीफ
कठिन शब्दार्थ:
चेहरा मलिन लग्न= उदासी रहना
चल बसना =मर जाना
निदान - जांचकर पतालगाना
काबू =वश
वाकई =सचमुच
जूँ तक नहीं रेंगना =कोई असर न रहना
हौला =धीरे
लोट-पोट होना=
ज़ाहिर होना =प्रकट होना
हिम्मत हारना =धैर्य खोना
लहसन =गार्लिक பூண்டு
बेमुरव्वती -अनादर
अदना =नीच
चेहरा तमतमा आना=गुस्सा होना
क्षोब होना=दुःख होना
रफ्तार =वेग,तेज़
सारांश :
` इस कहानी में डाक्टर की लापरवाही ,निर्दयता और मध्य वर्ग की आर्थिक परेशानी,श्राद्ध का महत्त्व देना,साहित्य पढने पर नौकरी न मिलना आदि बातें सामाजिक उलझाने प्रकट करती है; इलाज के अभाव और डाक्टर का न आना माँ की मृत्यु के कारण बन जाते हैं.
भाई -बहन दोनों पढ़े लिखे हैं .बहन बी.ए डिग्री वाली थी. खूब सूरत थी; उसके योग्य वर न मिला;वर मिलने पर दहेज़ की समस्या; घर की आर्थिक दशा ख़राब थी. माँ को अनुभव हुआ बेटी को पढ़ाकर भूल हो गयी. बेटी जब अंतिम साल पढ़ रही थी ,पिता मर गए. भाई एम्.ए., साहित्य.
इसी बीच माँ के दाहिने हाथ बेकार हो गए. बहन ने डाक्टर को बुलाने का आग्रह किया. भाई डाक्टर बुलाने गया तो डाक्टर नहीं आये और कहा कि लकवा लगा होगा; लहसन का लेप करो.
घर में रूपये जो थे ,वे पिता के श्राद्ध के लिए थे. अकेले भाई के आते देख बहन चिल्लाई कि माँ की तबियत खराब होती जा रही है; डाक्टर को बुला लाओ; पर डाक्टर नहीं आये,वे एल.ऐ.एम् है. उन्होंने साफ बता दिया कि दवा नहीं है; मिलना मुश्किल है; फिर दवा का पुर्जा लिखकर दिया. घर आया तो बहन ने पुर्जे को टुकड़े -टुकड़े कर डाले.माँ की आँखों की रिक्तता चारों तरफ घिरने लग गयी थी.
डाक्टर के न आने से ,दवा समय पर नहीं मिलने से माँ चल बसी. मध्यवर्ग में ऐसा ही होता है.कहानी का सिलसिला मर्माघात है.
कहानी कला की दृष्टि से कहानी की विशेषताएं :-
कथानक: मध्य वर्ग की परेशानियां और डाक्टर की लापरवाही और निर्दयता दर्शाना कथानक है,इसको कहानी के आरम्भ से अंत तक ठीक ढंग से ले चलते है. इस दृष्टि से कथा सफल है.
पात्र : इसके चार पात्र हैं ;भाई,बहन,माँ,डाक्टर. चारों कहानी के विकास के लिए आवश्यक है. भाई और बहन माँ की बीमारी से दुखी है. डाक्टर की लापरवाही समाज का शाप है. डाक्टर को भाई लेने गया तो वे अपनी बेटी की शादी और खर्च की चिंता प्रकट करते है. शादी की दौड़-धूप करने की बात करते है. समाज में बिना रुपयों का जीना दुश्वार हो जाता है. साहित्य का स्नातकोत्तर भाई यह महसूस करता है कि मन्त्रों से ,कालिदास ,ठागुर,ग़ालिब के पढने से क्या लाभ; माँ की बीमारी दूर करने असमर्थ हूँ. मन्त्रों से माँ कैसे ठीक होगी.ये पात्र सामजिक दर्द भरी स्थिति का यथार्थ चित्रण लाने में समर्थ है.
संवाद:संवाद कहानी के कथानक को जोर देने में सफल है.
घर में श्राद्ध के पैसे हैं. उन पैसों से माँ का इलाज करना है. बेटी तैयार है तो माँ कहती है--
नहीं बेटा,भूलकर भी ऐसा मत करना.मैं मर भी जाऊँ,उसमें से एक पैसा न लेने दूँ...मरकर उन्हें क्या जवाब दूँगी.
भारतीय नारी श्राद्ध पर अपनी जान से अधिक विश्वास रखती है.
डाक्टर के बुलाने पर डाक्टर :-भई..बात यह है,लडकी की शादी है,अगले महीने ..बड़ी दौड़ धूप करनी पढ रही है. इधर मरीजों को देखने कम जा पा रहा हूँ. डाक्टर की इतनी लापरवाही; इस प्रकार कथोपकथन कहानीकार के उद्देश्य पर पहुंचाकर सफल रूप बन गया है.
भाषाशैली :-भाषा सरल और मुहावरेदार है.यथार्थ में आदर्श मिलता है. कान में जूँ न रेंगना,चेहरा तमतमा होना चेहरा मलिन होना जैसे मुहावरों का प्रयोग है.इस दृष्टी से कहानी सफल है.
शीर्षक : पुर्जे शीर्षक है. डाक्टर इलाज करने नहीं आया;केवल पुर्जे लिखकर दिया; इससे कोई फायदा नहीं. दवा नहीं दी. शीर्षक ठीक है.
अंत : माँ की मृत्यु बिना दावा के पुर्जे के कारण.धनाभाव ,उसके कारण डाक्टर का न आना ,मृत्यु;- यह अंत मर्मस्पर्शी है.
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6. गूंगे - रांघेय राघव
कठिन शब्दार्थ :
संकेत करना =इशारा करना
बासी =पुरानी
दम =पूँछ
मूक =मौन
प्रतिहिंसा =बदला
परखना =जाँचना
चुनौती देना=ललकारना
अवसाद =दुःख
सारांश :
रांगेय राघव ने "गूंगे" कहानी में एक गूंगे की व्यथा का मर्मस्पर्शी चित्रण किया है. समाज के शोषित-पीड़ित मानव के जीवन के यथार्थ मार्मिक चित्रण की कहानी है -"गूंगे "
चमेली के दो बच्चे हैं . एक लडकी और एक लड़का. नाम है शकुंतला और बसंता..
कहानी के आरम्भ में घर के काम करने एक गूंगे को बुलाते है.वह जन्म से बहरा था;इसी कारण गूंगा बन गया. चमेली उससे इशारे पर ही काम लेती.
गूँगा अनाथ था. उसके जन्म लेते ही उसके पिताजी मर गए. माताजी निर्दयी;वह भी उसे छोड़कर भाग गयी. उसको किसने पाला ,पता नहीं,पर जिसने पाला है,वे उसे बहुत मारते थे .
बेचारा गूँगा बिना थके काम करता; हलवाई के यहाँ कढ़ाई माँची;कपडे धोये;सब करने पर भी मार ही मिला. ये सब पेट के लिए सह लेता. इतनी बातें इशारे से ही गूंगे ने चमेली को समझाया.
चमेली दयालू थी;अनाथाश्रम के बच्चों के लिए रोती थी. उसने गूंगे को अपने घर में नौकर रख लिया .. चार रूपये वेतन ; गूंगा मान गया.
उसको बुआ मारती; बच्चे चिढाते; वह एक स्थान में टिकता नहीं था; जब चाहे भाग जाता और वापस आ जाता.एक दिन बसंता ने कसकर गूंगे के चपत जड़ दी. गूंगा उसे मारने हाथ उठाया,पर मालकिन के बेटे को कैसे मारता. उठे हाथ को रोक लिया. बेटे को मारने हाथ उठाना असहनीय बात थी. चमेली कुछ बोली तो वह समझ नहीं सका. चमेली को उस पर दया आ गयी. गूंगा क्रोध भरी मालकिन का हाथ पकड़ा तो चमेली को उस पर घृणा आयी; वह अपने बेटे से बलवान था, बेटे को न मारा; मारा तो उसने गूगे को गाली दी.बेचारा रोने लगा. चमेली उसे घर से निकाल दिया. चमेली की गाली सुन वह मंदिर की मूर्ती के सामान चुप खड़ा रहा.गुस्से में चमेली ने गूंगे को दरवाज़े के बाहर धकेलकर निकाल दिया.
करीब एक घंटे के बाद गूंगा वापस आ गया,गली के लड़कों के पीटने से उसका सर फट गया था. दरवाजे पर वह कुत्ते की तरह चिल्ला रहा था,
चमेली उसे चुपचाप देख रही थी; उस मूक अवसाद में युगों का हाहाकार गूँज रहा है..
वह गूंगा था.जिनके ह्रदय की प्रतिहिंसा न्याय और अन्याय को परखकर भी अत्याचार को चुनौती नहीं दे सकती,क्योंकि बोलने के लिए स्वर होकर भी -स्वर में अर्थ नहीं है.
एक गूँगे की दयनीय स्थिति का इससे अधिक कैसे चित्रण कर सकते हैं.
कहानी कला की दृष्टि से विशेषताएं:-
कथानक:-समाज के शोषित पीड़ित मानव के यथार्थ मार्मिक चित्रण कथानक है. गूँगे कठोर परिश्रमी,फिर भी समाज से घृणित दिल्लगी का पात्र. मार खाकर सिवा रोना; पेट के लिए काम करना.इसका सही चित्रण कहानी को सफल बनाता है.
पात्र : गूंगा,चमेली,उसके पति,उसकसंताने बसंता और शकुंतला. लेखक गूंगे की दर्दनाक दशा को चमेली द्वारा प्रकट करते हैं. चमेली उदार और दयालू थी; मानव स्वभाव के अनुसार मानसिक कमजोरी के कारण गूंगे पर पक्षपात. सारे पात्र कहानी को सफल बनाते है.
संवाद; चमेली बोलती है; गूंगा चुप; उसके रोने -हंसने चिल्लाने से करुणा का पात्र बनता है.
शीर्षक ; गूंगे --समाज से पीड़ित -शोषित गूंगे का मार्मिक चित्रण ही कथानक है. अतः शीर्षक उचित है.
चरमसीमा; चमेली गूंगे को जबरदस्त घर से निकालती है; यही चरम सीमा है.
अंत:गूगे का वापस आना; उसके सर पर चोट; दर्दनाक दृश्य ; अंत लेखक के उद्देश्य तक पहुंचा देता है.
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७.बदला -- आरिगपूडी
कठिन शब्दार्थ :
काले अक्षर भैंस बराबर== निरा अनपढ़
गौर =ध्यान
मिन्नत --निवेदन ,प्रार्थना
प्राण खाऊ =प्राण लेनेवाला
घूसखोरी =रिश्वत
तहकीकात =पूछताछ
बीयाबान =उजाड़ा
पोल खुलना =रहस्य प्रकट होना=भंडा फोड़ना
भेद --रहस्य
सारांश :
आरिगपूड़ी ने इसमें भ्रष्टाचारों और रिश्वत खोरों की निर्दयता का चित्रण किया है. सरकारी अस्पताल में मामूल के बिना रोगियों को सही इलाज नहीं मिलता. लेखक का उद्देश्य ग्रामीण ,पीड़ित अनपढ़ कोटय्या पर हुयी निर्दयी अत्याचार को प्रकाश में लाना था.
सारांश :
धम्म पट्टनम में एक सरकारी अस्पताल है. उसमें कदम कदम पर घूसखोरी.भ्रष्टाचार ,दिन दहाड़े "मामूल" वसूला जाता है. लोग वहाँ देने के आदि हो गए,कर्मचारी लेने के.
कोटय्या अनपढ़ गरीब किसान था. वह अपनी गर्भवती पत्नी सुशीला को इलाज के लिए अस्पताल ले आया.उसके गाँव के आसपास बीस मील तक कोई अस्पताल न था;कोई डाक्टर.
धम्मपटटनम अस्पताल में फाटक से मामूल शरू हुआ. चवन्नी देकर अन्दर गया. अस्पताल में घुसते ही पत्नी बेहोश हो गयी. अस्पताल के कोई भी कर्मचारी कोटय्या की पत्नी के इलाज की मदद करने नहीं आये. अंत में डाक्टर पद्मा वहां आयी. पद्मा ने कोटय्या की पत्नी को भरती करवा दिया. वह पत्नी के लिए प्रार्थना करने लगा.
कुछ देर बाद ,उसको बताया गया कि प्रसव के पहले ही उसकी पत्नी चल बसी. लाश के देखने पर पता चला कि इलाज नहीं किया गया. लाश उठाने किसीने मदद नहीं की.
वह अपनी मालिक की बैल गाडी से पत्नी को लेकर आया था; उसी गाडी में लाश लिटाकर वापस ले गया. उसके मन में दुःख,क्रोध,प्रतिकार,गाडी के चर्मर की तरह गुन-गुना रहे थे.
गाँव में अंतिम संस्कार करके तेरहवीं के होते ही कोटय्या धम्मपट टनम लोटा. वह अस्पताल के सामने भूख हड़ताल करने लगा.तीन दिन के बीतने पर भी किसी ने उस पर ध्यान नहीं दिया. उसके पास एक कपडे पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था --"इस अस्पताल से प्राण खाऊँ घुखोरी हटाओ."
चंद दिनों में उसके हड़ताल के समर्थन में शहर के दो -तीन नेता आये,देखते देखते शिकायतों का ढेर -सा लग गया. तहकीकात का इंतजाम हुआ. पूछ-ताछ में बहुत सी बातें प्रकाश में आयी. कई बातें डाक्टर पद्मा को मालूम नहीं थीं. पद्मा अपने बयान देने तैयार हुयी. वहां तो सब के सब भ्रष्टाचारी थे; अपने रहस्य खुलना नहीं चाहते, सब भ्रष्टाचारी मिलकर डाक्टर पद्मा की हत्या करके कोटय्या को अपराधी ठहराने में सफल हो गए. कोटय्या कैद हो गया.
पत्नी के चल बसते ही वह मरने तैयार था. समाज में कुछ करना चाहता था. वह न जानता था कि उसके हाथ पैर बांधकर .उसे धकेलने का यूँ प्रयत्न किया जाएगा.
निर्दयी संसार एक ईमानदार अनपढ़ कोटय्या को हत्यारा साबित कर दिया.
कथानक : लेखक आरिगपू डी ने भ्रष्टाचारियों के अत्याचार का भंडा फोड़ने का कथानक ले लिया. कोटय्या के द्वारा ग्रामीण अनपढ़ पर होने वाले सरकारी भ्रष्टाचारियों की निर्दयता का चित्रण किया है.
पात्र : कोटय्या ,डाक्टर पद्मा इस कहानी के पात्र हैं. अनपढ़ कोटय्या प्राण खाऊँ गुस्खोरी हटाने हड़ताल किया. भंडा फोड़ने का सैम आया तो भ्रष्टाचारियों ने डाक्टर पद्मा की हत्या करके कोटय्या को खूनी सिद्ध करने में सफल हुए.
ग्रामीण कोटय्या ने चिल्लाया कि मैं निर्दोष हूँ ,मैंने यह हत्या नहीं की है. मामूल के आदी मुलाजिम मुस्कुरा रहे थे, पर उनके मन कह रहे थे..जो उनके बारे में और भेद बता सकती ,वह डा . पद्मा जान से गयी और अपराध भी उनके सर पर न आकर,किसी गँवार के सिर पर न आकर ,किसी गँवार के सर पर मढ दिया गया था. हो भला इस कोटय्य का.
संवाद: आत्मकथन,संवाद आदि लेखक ने सफल बनाया है.अस्पताल में ... कोटय्या का आत्मकथन :
"कुछ भी हो ...सुशीला जीती रहे,बच्चे हो तो भला पर वह जिन्दा रहे,हे भगवान् ..".
कैद होते ही कोटय्या गला फाड़कर चिल्ला रहा था --मैं निर्दोष हूँ ,मैंने यह ह्त्या नहीं की है. मैं कुछ नहीं जान्त्सा,मुझ पर यह झूठ-मूठ हत्या का अपराध थोपा जा रहा है.. ऐसे संवाद कहानी को ह्रुदय्स्पर्शी बनाने में सफल है.
शीर्षक : "बदला " शीर्षक उचित है. कोटय्या भ्रष्टाचारियों से बदला लेना चाहता था.भ्रष्टाचारियों ने उससे बदला लिया है. शीर्षक उचित है.
चरम सीमा :-डाक्टर पद्मा की हत्या चरम सीमा है.
उद्देश्य : भ्रष्टाचार और उसकी निर्दयता को प्रकाश में लाना लेखक का उद्देश्य था. इसमें सफलता मिली है.
अंत : कहानी का अंत मर्म स्पर्शी और लेखक के उद्देश्य तक पहुंचाता है.
इस प्रकार कहानी कला की दृष्टि से कहानी सफल है.
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८. वापसी
लेखक :उषा प्रियंवदा
कठिन शब्दार्थ :
नज़र दौडाना =देखना
नाक -भौं चढ़ाना =नफरत से देखना
निस्पंग दृष्टि = एकटक देखना
खिन्न होना =दुखी होना
फूहड़पन = अत्यंत अनुपयोगी
ताने देना =गाली देना (मज़ाक भरे )
ठगे जाना =धोखा देना
विविध =नाना प्रकार ,कई तरह
वार्तालाप =संभाषण.
सारांश :
गजाधर बाबू पैंतीस साल की नौकरी के बाद रिटयर हो गए. उनको रेलवे क्वार्टर खाली कर ने का दुःख था. घर जाने की खुशी में भी उनको दुःख था कि एक परिचित .स्नेही,आदरमय ,सहज संसार से उनका नाता टूट रहा था. फिर भी अपने घरवालों से मिलकर रहने का आनंद आ रहा था. अपने सेवाकाल में अधिकांश समय वे अकेले ही बिता रहे थे.
घर जाने के बाद वे अपने को अकेले महसूस करने लगे. उनकी हर बात उनके घरवालों को कडुवी लगी.
उनका बेटा नरेन्द्र फ़िल्म गाना गा रहा था.उनकी बहु और बेटी वसंती हँस रही थीं. उनकी खुशी में भाग लेने गजाधर चाहते थे. पर उनके आते ही सब चले गए. वे अपने को अकेले पाये. वे उदास हुए. पत्नी पूजा करके वापस आयी. पति के अकेले बैठे देखकर पूछा तो गजाधर ने इतना ही कहा --अपने=अपने काम में लग गए.
पत्नी चौके में गयी तो देखा जूठे बर्तनों का ढेर था. वह काम में लग गयी. गजाधर को चाय और नाश्ते समय पर न मिले. उसको रेलवे के नौकर गणेश की याद आयी;वह समय पर चाय पिलाता था.
गजाधर अपनी बेटी से अपनी पत्नी को आराम देने के विचार से कहा कि शाम का खाना तुम बनाओ; सुबह का भोजन भाभी बनाएंगी. पिताजी का यह कहना वसंती को पसंद न था.
गजाधर को अपने बिस्तर की समस्या हुयी; उनको हर बात में दखल देना घरवालों को पसंद नहीं आया. गजाधर ने अनुभव किया कि वह पत्नी और बच्चों के लिए केवल धनोपार्जन के निमित मात्र है.
एक दिन नौकर के काम ठीक तरह से न करने की चर्चा हुयी तो नौकर का हिसाब कर दिया. घर की आमदनी भी कम थी. खर्च ज्यादा है.
बेटे को बहु ने इसकी सूचना दी. इस घटना के बाद नरेन्द्र,अमर,वसंती सब के सब गजाधर की आलोचना करने लगे.
पत्नी भी उनके अनुकूल बातें नहीं की.
गजाधर ने पुनः नौकरी करने का निश्चय कर लिया. उनको एक मिल में काम मिल गया.दुसरे दिन पत्नी से सीधे कहा कि मुझे सेठ रामजीमल की चीनी मिल में नौकरी मिल गयी. परसों जाना है. पत्नी तैयार नहीं हुयी. उसने कहा कि मैं चलूंगी तो क्या होगा.
वे घर से निकले तो किसीने न रोका. नरेन्द्र ने बड़ी तत्परता से बिस्तर बाँधा. वे चले गए. घरवालों ने इसकी चिंता न की.बहु ने अमर से पूछा ,"सिनेमा ले चलिए.वासंती भी तैयार थी. सिनेमा जाने. गजाधर की पत्नी चौके में चली गयी.पत्नी को भी पति की चिंता नहीं. वह कहने लगी--बाबूजी की चारपाई कमरे से निकाल दे. उसमें चलने तक को जगह नहीं है.
रिटायर होने के बाद पुरुषों की दयनीय दशा का चित्रण खूब हुआ है.
कथानक : रिटायर आदमी की मनः स्थिति और घरवालों के लापरवाही पर समाज का ध्यान दिलाना कथानक है.आरम्भ से अंत तक हर बात में गजाधर उदासीनता का ही सामना करता है. अपने बेटे.बेटी ,बहु की खुशी में भाग ले न सके. पुत्र,बहु,बेटी सब उसकी शिकायत माँ से करते हैं. वे वापस नौकरी को निकलते हैं. उनके जाते ही सिनेमा जाने की इच्छा प्रकट करते हैं. माँ पति की चारपाई निकालने का आदेश देती है. किसीको गजाधर वापस चले गए ,इसकी चिंता नहीं.
पिता तो धनोपार्जन के लिए है. इसप्रकार कथानक सफल है.
पात्र : वापसी कहानी के पात्र हैं -गजाधर,नरेन्द्र ,वसंती, गजाधर की पत्नी ,अमर की बहू आदि. यह एक पारिवारिक कहानी हैं. पिताजी गजाधर पैंतीस साल की सेवा के बाद रिटायर हो गए. उनके वापस नौकरी जाने के कारण ये पात्र हैं.
परिवार से अधिकांश अकेले रहकर रिटायर के बाद परिवार के सदस्यों से मिलकर रहने आते हैं.लेकिन उनके पुत्र ,बेटी ,बहू सब के सब उनको घर में रहना पसंद नहीं करते.इस "वापसी" शीर्षक की सफ्सलता में इन पात्रों का मुख्य भाग है.
कथोपकथन : कथोपकथन की दृष्टी से कहानी सफल है. गजाधर के बारे में अपनी मान से नरेन्द्र,वासंती,बहू सब
शिकायत करते हैं. गजाधर इनको सुनकर पुनः नौकरी जाने तैयार हो जाते हैं.
नरेंद्र ---अम्मा ,तुम बाबूजी से कहती क्यों नहीं. बैठे-बिठाए कुछ नहीं तो नौकर ही छुड़ा लिया.
वसंती-मैं कालेज भी जाऊँ, और लौटकर झाडू भी दूं?
अमर----बूढ़े आदमी है, चुपचाप पड़े रहें. हर चीज़ में दखेल क्यों देते हैं.
पत्नी: और कुछ नहीं सूझा तो तुम्हारी पत्नी को ही चौके में भेज दिया. वह गयी तो पंद्रह दिन का रेशन पांच दिन में बनाकर रख दिया.
नौकरी वापस जाने ये कथोपकथन ही चरम सीमा है.
भाषा शैली : सरल भाषा है. यथार्थ भारतीय परिवार का चित्रण है. मुहावरों का प्रयोग भी है जैसे नज़र दौडाना,नाक -भौं चढ़ाना, आदि.
शीर्षक : वापसी शीर्षक उचित है.गजाधर रिटायर होकर परिवार के सदस्यों के साथ रहने आये. फिर नौकरी करने वापस जाते हैं. सामज में पिताजी के प्रति सहानुभूति जगाने में कहानी सफल है.
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९.डिप्टी कलक्टरी लेखक :---अमरकांत.
कठिन शब्दार्थ :---
मुवक्कील =client
म्हार्रीर =मुंशी clerk
पीढा =आसन stool
तश्तरी =छोटी थाली
मुख्तार =कानूनी सलाहकार
चौका-चूल्हा चलना=भोजन चलाना
बिगड़ जाना =गुस्सा होना
खुराफात =झगडा
आरोप करना=इल्जाम लगाना
तल्लीनता =मग्नता
आघात= चोट
जेहन=बुद्धि ,याद करने की शक्ति
निहारना=देखना
दातौन करना=दांत साफ करना
झेंप जाना=लज्जित होना
ताड़ना=सजा /दंड
गुरुमुख होना ;=गुरु कृपा
जाहिर करना=प्रकट करना
इत्मीनान=विशवास
महरिन=पानी लानेवाली नौकरानी
दृष्टिगोचर होना=दिखाई पड़ना
लानत=धिक्कार
धुरंधर =उत्तम
दस्त=हाथ
दस्त पतला =loose motion
बदपरहेज़ी =असंयम / मनमाना खाना
सारांश :-
शकल दीप बाबू अपने बेटे नारायण (बबुआ) की डिप्टी कलक्टरी बनने की कामना पूरी होने पर बेहद खुश होते हैं.आरम्भ से अंत तक वात्सल्यमय पिता की मनो भावना का यथार्थ चित्रण मिलता है.
शकल दीप बाबू मुख्तार थे. उनकी पत्नी जमुना थी. उनके दो बेटे थे.बड़े का नाम नारायण था,बबुआ के नाम से पुकारा जाता था. उसकी उम्र २४ साल की थी; छोटा बारह साल का था उनका नाम टुनटुन था.
शकलदीप बाबू मुख़्तार थे. उनकी आमदनी केवल चौ के-चूल्हा चलाने काफी था.
नारायण को नौकरी नहीं मिली; वह डिप्टी कलक्टर बनना चाहता था. पिताजी को अपने बेटे पर शक था; उनपर भरोसा भी नहीं था.
नारायण दो बार डिप्टी कलक्टरी की परीक्षा में सफल नहीं हुआ. शकाल दीप बाबू का विचार था कि साधारण नौकरी भी नहीं मिली तो डिप्टी कलक्टरी कैसे ?
वात्सल्यमयी माता ने अपने पति से कहा --दो -दिन से बबुआ उदासी है. दो-तीन दिन में फीस भरना है. आपसे मांगने डरता है.
बेटे पर के अविश्वास के कारण वे पहले रूपये देने तैयार नहीं थे. फिर भी पिताजी का कर्तव्य निभाने तैयार हो गए, बाहर गए और डेढ़ सौ रुपये लाये और पत्नी से कहा कि १०० रूपये बेटे को दो और ५० रूपये घर के खर्च के लिए.
वे खुद सोचने लगे कि गलती किसीकी नहीं. सारा दोष तो मेरा है.देखो न,मैं बाप होकर कहता हूँ कि लड़का नाकाबिल है.
नहीं,नहीं,सारी खुराफात की जड़ मैं ही हूँ,और कोई नहीं. उस दिन के बाद अपने बेटे को सभी प्रकार की सुविधा करने लगे. देखा कि बीटा काफी मेहनती है. १९ घंटे पढने में तल्लीन है. बेटे को मेवा,सिगरेट आदि की भी व्यवस्था करने लगे.
बेटा इलाहाबाद में इम्तिहान देने निकला तो शकल रेलवे स्टेशन पहुंचे.रेल निकलने लगी तो पिताजी बच्चे की तरह चलती गाडी की ओर दोड़े और रूपये की पुडिया दी और आशीषें.शकल बाबू की वात्सल्यता का यथार्थ चित्रण लेखक ने किया है.
नारायणको उसके परिश्रम का फल मिल गया. वह लिखित परीक्षा में उत्तीर्ण होकर इंटरव्यू गया. शकाल्दीप बाबू की प्रार्थना सफल हुयी. इससे बीच वे राधेश्याम के भक्त बन गए.
उनका मित्र कैलाश बिहारी थे. दोनों ने अपने -ओने पुत्र की होशियारी की खूब तारीफ करके बोल रहे थे .तब शकाल्दीप बाबू ने कहा कि मेरे बेटे का नाम पन्नालाल था, एक महात्मा ने कहा कि नारायण नाम ठीक है. एक दिन राजा बनेगा. अब डिप्टी कलक्टर बन गया;एक अर्थ में राजा ही हुआ.
सब ने बेटे की बधाई दी. . इतवार के दिन रिसल्ट दस बजे निकलेगा. वे मंदिर गए. बेटे की कामना पूरी होने प्रार्थना की.तब जंगबहादुर सिंह आये और बताया डिप्टी कलक्टरी का नतीजा निकल गया. दस लड़के लिए जायेंगे; आपके लड़के सोलहवाँ सत्रहवाँ में है. कुछ लड़के मेडिकल चले जाते; पूरी उम्मीद है कि नारायण बाबू ले लिए जायेंगे.
अथिक परिश्रम और चिंता से शकल की तबीयत अस्वस्थ हो गयी. वेबेटे के कमरे में गए. बेटे को सोते देख गद-गद स्वर में पत्नी से कहा बेटा सो रहा हैं पति-पत्नी दोनों एक दुसरे की ओर देखने लगे.
इसमें चित्रित है कि माता-पिता दोनों अपने बेटे की तरर्क्की की कामना में कितने चिंतित है. कितना ध्यान रखते है.
पारिवारिक कहानी के द्वारा लेखक ने सामाजिक जिम्मेदारी का चित्रण किया है.
कथानक : लेखक की कथावस्तु एक आदर्श पिता अपने परिवार और बेटे की प्रगति के लिए कितना चितित है ,कितना दौड़ धूप करते है, माता कैसे पुत्र को साथ देती है ;आदर्श पुत्र के गुण आदि दर्शाने के लिए बनी है. इस में कहानी सफल है.
पात्र :- इस के चार पात्र हैं. शकल दीप बाबू, उनकी पत्नी जमुना,बेटा नारायण आदि; कैलाश बिहारी, जंग बिहारी आदि शकल के मित्र हैं. ये सारे पात्र कहानी के विकास और आगे ले जाने में सफल हैं. कैलाश द्वारा नारायण के गुणों की प्रशंसा ,अपने बेटे की प्रशंसा, जंग बिहारी द्वारा सांत्वना और उम्मीद दिलाना आदि शकल दीप की मनोव्यथा दूर करने के लिए आवश्यक है.
संवाद:- जमुना --दो-दिन से बबुआ बहुत उदास है....
कह रहे थे,दो दिन में फीस भेजने की तारीख बीत जायेगी.
जमुना के इस संवाद से आगे कहानी का पता लग जाता है.
पिता का आत्मचिंतन---देखो न.मैं बाप होकर कहता हूँ कि लड़का नाकाबिल है. इस चिंतन के बाद बेटे की सुविधाएं देना कितना यथार्थ और आदर्श मिलता है.
इस प्रकार संवाद सफल है.
उद्देश्य : बेटे की सफलता के लिए पिता की चिंता,परिश्रम ,,महात्मा की भविष्य वाणी द्वारा भारतीय दैविक शक्ति दर्शाना,सच्ची मित्रता,आदर्श पति.पत्नी के चरित्र दिखाना ,माता-पिता की वात्सलता आदि उद्देश्य का सही चित्रण मिलता है.
भाषा शैली : भाषा सरल और मुहावरेदार भी है. पारिवारिक यथार्थ चित्रण में आदर्श भावना है.
शीर्षक :-डिप्टी कलक्टरी शीर्षक सोलह आने सही है.काहनी के आरम्भ से अंत तक नारायण के डिप्टी कलक्टरी को लेकर ही कहानी चलती है.
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१०. पंच लाईट लेखक:- फनीश्वरनाथ 'रेणु"
कठिन शब्दार्थ :-
पुण्याह --पवित्र दिन
ताब करना=शक्ति दिखाना /बल
चेतावनी=सावधानी
अलबत्ता =बेशक
बालना -जलाना
ढिबरी =मिट्टी का दिया
बतंगड़ =अधिक बोलनेवाला,बातूनी
गरी का तेल =नारियल का तेल
मायूसी छा जाना=उदासी फैलना
पुलकित होना=खुश होना
सारांश :-
फणीश्वर' रेणु ' ने पंचलाईट कहानी में गाँवालों के आपसी फूट , ग्रामीण जनता का मिथ्या घमंड ,अज्ञानता ,साधारण पञ्च लाईट बालना भी न जाननेवाले , पंचलाईट जलाने जो जानता है,उसको सम्मान देना आदि का चित्रण किया है.
एक गाँव में आठ पंचायत,जाति की अलग -अलग 'सभा चट्टी" है. इन सब में पेट्रोमैक्स लाईट का अलग महत्त्व है. पंचायत का छडीदार पंच लाईट ताब करने का विषय है. मेले के समय पंचलाईट पर अधिक ध्यान दिया जाता है. अगनू महता जो छडीदार ढोता है ,वह लोगों को चेतावनी देता था की ज़रा दूर जा.
पूजा के सारे प्रबंध के बाद भी पंचलाइट का गप प्रधान रहा. सरदार पंचलाईट लेने गया तो चेहरा परखने वाला दूकानदार ने पांच कौड़ी में दे दिया. पंचलाईट देखकर सब खुश थे;दीप बालने किरासन का तेल भी आया.
सब प्रबंध के बाद एक बड़ी समस्या उठी. इस पंच में किसीको पेट्रोमैक्स जलाना नहीं मालूम था. गाँव भर में कोई नहीं मिला. दूसरे पंच के द्वारा लाईट जलाना बेइज्जत की बात थी.
अंत में सब को गोधन की याद आयी. वह लाईट बालना जानता है.वह दूसरे गाँव से आकर यहाँ बसा है. लेकिन पंचायत उसको दूर रखा था. उसको पंच में हुक्का बंद था. वह पंचायत से बाहर था. अब उसको ही बुलाना पड़ा. स्पिरिट नहीं था. गोधन ने नारियल के तेल से ही लाईट जलाया. वह उस दिन का हीरो बन गया. उसने सबका दिल जीत लिया.सरदार ने गोधन से कहा---"तुमने जाति की इज्ज़त रखी है. गुलरी काकी बोली ---आज रात मेरे घर में खाना गो धन. पंचलाईट के प्रकाश में सब पुलकित हो रहे थे.
कथानक: गाँवों में एकता नहीं, अपने गाँव के दूसरे पंच के लोग पंच लाईट जलना बेइज्जती समझनेवाले दुसरे गाँव से आये गोधन को इज्जत देते है. गाँव वालों के झूठे गोरव का चित्रण कथावस्तु है.ग्रामीण भोले जनता को सीख देना कथावस्तु है.
पात्र : सरदार,गाँव के लोग ,गोधन . ये पात्र कहानी के अनुकूल है.
कथोपकथन:-कीर्तन मंडली के मूलगैन :-देखो,आज पंचलैट की रोशनी में कीर्तन होगा. इस कथन से पंच लाईट को गांवाले जितना महत्त्व देते है ,
लाईट लाने के बाद बालने वाला नहीं मिला तो कहावत ---भाई रे,गाय लूँ ? तो दुहे कौन?
गांवाले की आपसी नफरत : न,न,!पंचायत की इज्ज़त का सवाल है.दूसरे टोले के लोगों से मत कहिये.
इस प्रकार कथोपकथन रोचक है.
शीर्षक : पंच लाईट शीर्षक सही है, कहानी के आरम्भ से अंत तक पंच लाईट की ही बातें चलती है. लाईट जलनेवाले गोधन इज्जत का पात्र बन जाता है.
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११. खानाबदेश लेखक :--ओमप्रकाश वाल्मीकि
कठिन शब्दार्थ:---
खानाबदेश = बेघर वाला./अस्थिर रहनेवाला
निगरानी =देखरेख
माहौल =वातावरण
भीगी बिल्ली बनना= to be very meek and submissive
सारांश :
ओमप्रकाश वाल्मीकि ने इस कहानी में दलित और शोषित वर्गों की दयनीय स्थिति ,उनकी मनोकामना पूरी न होना ,अमीर मालिक के निर्दय व्यवहार और बलात्कार आदि का दुखद चित्रण खींचा है. खानाबदेश अर्थात बे घरवाले कितना कष्ट उठाते हैं और कष्ट सहकर मूक वेदना का अनुभव करते हैं.
सुकिया और मानो दम्पति कुछ धन कमाने की इच्छा से गाँव छोड़कर भट्टे पर आ गए . असगर ठेकेदार ले आया था. भट्टा मालिक मुख्तार सिंह था.
जहां मजदूर रहते थे ,वहां रात डरावना था. कुछ धन जोड़ने की इच्छा से धीरज होता था. बस्ती में सांप-बिच्छु का डर लगा रहा था. मानो बार -बार सुकिया से कहता था -- अपने देस की सूखी रोटी भी परदेस पकवानों से अच्छी होती है.
सुकिया जवाब देती --नरक की जिन्दगी से निकलना है तो कुछ छोड़ना भी पड़ेगा. आदमी की औकात घर से बाहर कदम रखने पर ही पता चले हैं. दोनों कठोर मेहनत करते ,फिर भी मजदूरी कम ही मिलती.
मालिक मुख्तार सिंह का बेटा सूबे सिंह था. पिता की गैरहाजिरी में सूबे सिंह का रौब -दाब भट्टे का माहौल ही बदल देता था. असगर ठेकेदार भीगी बिल्ली बन जाता था. सूबे का चरित्र भी अच्छा नहीं था.
भट्टे पर काम करने किसनी और महेश नवविवाहित दम्पति आये थे. सूबे सिंह की कुदृष्टि किसनी पर पडी. वह उसे लेकर शहर जाता;वापस आते वक्त वह थकी लगती थी. वहाँ सूबे और किसनी के बारे में काना-फूसी होने लगी.
वहाँ तीसरा मजदूर था जसदेव. . वह कम उम्र वाला था. एक दिन सूबे सिंह ने असगर ठेकेदार के द्वारा सुकिया को दफ्तर में काम करने बुलाया. किसनी की तबीयत ठीक नहीं थी. सुकिया डर गयी. गुस्से और आक्रोश से नसें खिंचने लगी. जसदेव सुकिया के बदले दफ्तर के काम करने गया. सूबे सिंह अति क्रोध से उसको बहुत मारा-पीटा.
सुकिया को बहुत दुःख हुआ. जसदेव को खिलाने-पिलाने में लगी. भट्टे में दवा-दारू का इंतज़ाम नहीं था. सुकिया जसदेव से मिलने गयी. वह दर्द से कराह रहा था. मानो ने सूबे सिंह को खूब कोसा. "कमबख्त कीड़े पडके मरेगा. हाथ-पाँव टूट-टूटकर गिरेंगे ....आदमी नहीं जंगली जानवर है."
मानो को पक्की ईंट का घर निजी बनवाने की इच्छा थी. वह अपने निजी ईंट के घर में रहने का सपना देखा करता था.
सुकिया जल्दी भट्टी पर काम करने गयी. एक दिन जल्दी गयी तो देखा भट्टी उजड़ा हुआ था. सारी ईंटे टूटी-फूटी पडी थी. सब ने कहा किसीने जान-बूझकर ईंटें तोडी हैं. मानो का ह्रदय फटा जा रहा था.आगे वे वहां नहीं रह सकते. असगर ठेकेदार ने उनकी रही-सही उम्मीदों पर पानी फेर दिया.. वे खानाबदेशी बन गए. खानाबदेश जिन्दगी का एक पड़ाव था यह भट्टा. वे वहां से दुसरे पड़ाव की तलाश में निकले,एक दिशा हीन यात्रा पर. सपनों के काँच उसकी आँख में किरकिरा रहे थे.
कथानक: दलित लोगों की दयनीय दशा और मालिकों की निर्दयता चित्रण के द्वारा समाज को जागृत करना कथानक था. सुकिया,मानो किसनू ,जसदेव आदि पात्र दलित थे तो मालिक के पुत्र सूबे सिंह बलात्कारी ,निर्दयी ,चरित्रहीन था. ठेकेदार मालिक के क्रोध के भय से काम करनेवाला था. इन सब के चित्रण द्वारा कथावस्तु का विकास हुआ है.
पात्र : साक़िया,मानो,जसदेव प्रमुख पात्र हैं तो ,मालिक मुख़्तार सिंह,किसनू ,छोटा मालिक सूबे सिंह ठेकेदार आदि कहानी को सिलसिलेवार ले जाने में आवश्यक हैं. किसनू के पति महेश का नाम मात्र है. ये पात्र के द्वारा कहानी का अंत "खानाबदेश" को सार्थक बना रहे हैं.
कथोपकथन : मानो ---क्यों ,जी ...क्या हम इन पक्की ईंटों पर घर बना लेंगे?
सुकिया--"पक्की ईंटों का घर दो-चार रूपये में न बनता है. इत्ते ढेर-से-नोट लगे हैं घर बनाने में. गाँठ में नहीं है पैसे ,चले हाथी खरीदने.
इस संवाद से ही उनकी विवशता और उनकी सपना का सपना ही रहने की व्यथा साफ-साफ मालूम हो जाता है. कहानी के मूल विषय का संकेत कर देता है.
सूबे सिंह के थप्पड़ मारने से जसदेव की हालत बुरी हो जाती है. तब वह दर्द से कराहता है तब मानो की गाली उसके नफरत की सीमा पार जाता है ......"कमबख्त कीड़े पडके मरेगा. आदमी नहीं जंगली जानवर है. बलात्कारियों के प्रती ऐसी भावना प्रकट होना यथार्थ है. लेखक के भाव की गंभीरता प्रकट होती है. संवाद शैली अच्छी बन पडी है.
उद्देश्य : लेखक का उद्देश्य खानाबदेश दलित लोगों की दयनीय मार्मिक दशा को समाज के सम्मुख रखना था. इस ऊदेश्य को लेखक ने मानो और सुकिया के पात्रों के द्वारा और मालिक के बेटे सूबेसिम्ह के दुश्चरित्र के उल्लेख के द्वारा सफल बनाया है.
शीर्षक : "खानाबदेश " शीर्षक अति उत्तम है. एक घर अपने लिए बनवाने के लिए मानो और सक़िया अपने गाँव छोड़कर गए. वे अपने लक्ष्य में सफल न बने. कहानी के अंत में उनको खानाबदेशियों के सामान नौकरी की तलाश में एक दिशाहीन यात्रा पर चलना पड़ा.
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि कथा -तत्वों के अनुसार कहानी सफल है. लेखक की सृजन-कौशल सराहनीय है.
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चरित्र चित्रण
कहानी में दो प्रकार के प्रश्न किये जाते हैं.
एक प्रश्न है कहानी का सारांश लिखकर कहानी कला की से उसकी विशेषताएं लिखिए. ==१५ अंक .
दूसरा प्रश्न है चरित्र चित्रण . इस के लिए पांच अंक . तीन कहानियों के तीन पात्रों के चरित्र चित्रण लिखना चाहिए.
३*५ =१५ अंक .
१. नादान दोस्त . लेखक : प्रेमचंद
केशव का चरित्र चित्रण,
" केशव " पात्र नादान दोस्त की कहानी में है. कहानीकार है श्री मुँशी प्रेमचंद.
" केशव " कहानी का प्रमुख पात्र है. वह छोटा लड़का है. वह बड़ा जिज्ञासु है. उसके घर के कार्निस के ऊपर एक चिड़िया ने अंडे दिए. केशव और उसकी छोटी बहन श्यामा दोनों को अंडे के बारेमें कई बातें जानने की इच्छा हुई .उनके माता-पिता को उनके संदेहों का निवारण करने समय नहीं था. वे जानना चाहते कि अंडे कितने बड़े होंगे?किस रंग के होंगे?कितने होंगे?कैसे बच्चे निकलेंगे? बच्चों के पर कैसे निकलेंगे ? क्या खाते होंगे?
दोनों बच्चे अपने सवालों के जवाब ढूँढने खुद तैयार होने लगे. केशव बड़ा भाई था. इसलिए वह बहन पर अपना अधिकार जमाता था, माँ के भय से माँ की आँखें बचाकर अंडे देखने के काम में लग गए. मटके से चावल रखना,पीने का पानी , धूप से बचाने कूड़ा फेंकनेवाली टोकरी आदि की व्यवस्था में लगे.
उसमे तीन अंडे थे. श्यामा देखना चाहती थी. केशव को डर था कि वह गिरेगी तो माँ को पता चलेगा;वह गाली देगी.
वे इस काम के लिए बाहर आये. बड़ी धूप थी. माँ ने देखा तो गाली दी और सोने के लिए दोनों को बुलाया. श्यामा भाई के प्रेम और डर के कारण माँ से कुछ नहीं बताया.
भाई -बहन सो रहे थे, यकायक श्यामा उठी. तब उसने देखा कि अंडे नीचे गिरकर टूट गए. उसको दुःख हुआ. केशव को जगाया . दोनों से माँ ने पूछा कि धूप में क्या कर रहे थे. श्यामा को अंडे टूटने का दुःख था. माँ ने कहा कि अंडे के छूने से चिड़िया नहीं सेती; और अण्डों को धकेल देती है. तब श्यामा ने सारी बातें बताई; माँ ने केशव से कहा कि तुम ने बड़ा पाप किया. तीन जाने ले लीं. फिर हँस पडी.लेकिन केशव को दुःख हुआ. अपनी गलती पर रो पड़ा.
केशव नादान लड़का नादान दोस्त चिड़िये के अंडे के लिए पछताता है.
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श्यामा:
प्रेमचंदजी की कहानी "नादान दोस्त " के दो प्रमुख पात्रों में श्यामा एक थी.. वह छोटी थी. केशव की बहन है. वह अपने भाई से अधिक प्यार करती थी. उसके घर की कार्निस पर चिड़िये ने अंडे दिए . उन अण्डों के बारे में जानने की इच्छा दोनों भाई-बहन को थी. माता-पिता को इन के सवालों के जवाब देने का समय नहीं था. दोनों भाई-बहन ने चिड़िये के अंडे की सुरक्षा में लगे. भाई ने सब काम किया. उसने अंडे देख लिये. पर श्यामा को ऊपर चढ़ने नहीं दिया; उसको डर था कि वह गिर जायेगी. तो माँ अधिक मारेगी. श्यामा बचपन के स्वाभाव के अनुसार भाई डराती है कि अंडे न दिखाओगे तो माँ से कहूंगी. बड़े भाई ने डराया कि मारूंगा. अंडे टूट जाने पर दुखी श्यामा माँ से सारी बातें बता देती है. भाई के प्यार के कारण पहले माँ से नहीं कहती. इस प्रकार श्यामा में प्यार,दुःख ,और माँ के डराने पर सारी बातें बताने आदि बालक -बालिकाओं के गुण विद्यमान है.
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२. कोटर और कुटीर
लेखक : सियारामशरण गुप्त
चातक पुत्र का चरित्र चित्रण
चातक पुत्र चातक पक्षी का पुत्र है. वह अपने खानदानी गुण को बदलना चाहता है. एक दिन पिताजी से कहता है. कि प्यास के मारे प्राण चले जायेंगे. कब वर्षा होगी?तब तक सहा नहीं जाता. आदमी कृषी के लिए पानी जमा करते है.तब पोखरे के पानी पीने का विचार आया. पोखरे के पानी में कीड़े बिलबिलाते है, सब प्रकार की गन्दगी करते हैं. सोचेते ही उसको घृणा हुई. अंत में गंगा के पानी पीने निकला. रास्ते में बुद्धन की झोम्पडी के पास के नीम के पेड़ पर आराम के लिए बैठा. बुद्धन का बेटा गोकुल को गरीबी में भी दूसरों के पैसे की इच्छा नहीं हुयी; उसको मजदूरी नहीं मिली. पर रास्ते पर रुपयों से भरा बटुआ मिला. तुरंत उसको रूपये वाले की व्यथा याद आयी; बटुए वाले की तलाश में गया और बटुआ लौटाकर भूखा प्यासा खाली हाथ घर लौटा. उसके पिता बुद्धन ने उसकी ईमानदारी की तारीफ की. बुद्धन ने अपने बेटे से कहा --जिस तरह चातक अपने प्राण देकर भी मेघ के सिवा किसी दूसरे का जल नहीं लेने का व्रत नहीं तोड़ता ,उसी तरह तू भी ईमानदारी की टेक न छोडना. चातक पुत्र ने सुना तो दुःख हुआ और अपने गंगा नदी की ओर न उड़ा और अपने कोटर की ओर उड़ा . रास्ते में वर्षा आयी . उसकी चार दिन की यात्रा सात दिन में पूरी हुयी.
चातक पुत्र के मानसिक परिवर्तन हुआ; उसने अपने खानदानी गौरव को बचा लिया.
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बुद्धन का चरित्र -चित्रण
"कोटर और कोठरी" कहानी का प्रमुख पात्र है बुद्धन, वह पचास साल का आदमी था. उसका पुत्र गोकुल १-१ साल का है. वह गरीब आदमी था. पर ईमानदार आदमी था. किसी भी हालत में ईमानदारी की टेक छोड़ने तैयार नहीं था, उसीके कारण चातक पुत्र का मानसिक परिवर्तन होता है. उसका पुत्र गोकुल अपने बाप से भी बढ़कर ईमानदार था..
बुद्धन का बेटा गोकुल को गरीबी में भी दूसरों के पैसे की इच्छा नहीं हुयी; उसको मजदूरी नहीं मिली. पर रास्ते पर रुपयों से भरा बटुआ मिला. तुरंत उसको रूपये वाले की व्यथा याद आयी; बटुए वाले की तलाश में गया और बटुआ लौटाकर भूखा प्यासा खाली हाथ घर लौटा. उसके पिता बुद्धन ने उसकी ईमानदारी की तारीफ की. बुद्धन ने अपने बेटे से कहा --जिस तरह चातक अपने प्राण देकर भी मेघ के सिवा किसी दूसरे का जल नहीं लेने का व्रत नहीं तोड़ता ,उसी तरह तू भी ईमानदारी की टेक न छोडना.
चटक पुत्र उसकी झोम्पडी के पास नीम के पेड़ पर बैठा था.वह अपने कुल -मर्यादा छोड़ गंगा में पानी पीने निकला था.
उनके पिता ने समझाया कि हमारे खानदान में वर्षा का पानी पीते हैं,इसीलिये हमारा गर्व है. वह पिता की बात न मानकर घर से बाहर आया था, बुद्धन और गोकुल के संवाद सुनकर समझ गया कि चटक को वर्षा के पानी पीकर जीने में ही कुल -गौरव है.
बुद्धन का चरित्र ईमानदारी पर जोर देता है.
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3,उसने कहा था. लेखक चन्द्र धर शर्मा गुलेरी.
चरित्र चित्रण
लहनासिंह
चन्द्र धर शर्मा गुलेरी की कहानी है "उसने कहा था." इस कहानी का प्रधान पात्र है लहना सिंह. वह वीर ,साहसी और चतुर था. इन सब से बढ़कर निस्वार्थ प्रेमी था.१२ साल की उम्र में अमृतसर के बाज़ार में एक लडकी से मिला करता था. उससे रोज़ पूछता --क्या तेरी कुडुमायी हो गयी. एक दिन लडकी ने "हाँ " कहा तो उसकी व्यथा उसके व्यवहार से मालूम होती है. क्रोध में उसने कुत्ते पर पत्थर मारा. सामने आनेवालों पर टकराया. इस घटना के २५ साल बाद कहानी शुरू होती है.वाल सेना में जमादार था. आज सूबेदार का बेटा जो बीमार तो उसको अपना कम्बल ओढ़कर खुद सर्दी सह रहा था, वह जेर्मन का सामना करने खाईयों में था. एक दिन एक जेर्मन छद्मवेश में भारतीय लपटन साहब बनकर आया. लहना को उसकी शुद्ध उर्दू की बोली से पता चल गया कि वह जेर्मनी है नकली हैं. खाई में केवल आठ भारतीय थे. सूबेदार वजीरासिंह था. उन सब को सावधान देकर वह खुद नकली जेर्मन पलटन साहब पर गोली चलाया. नकली का हाथ जेब में था. उसकी गोली से लहना घायल हो गया. इतने में गोली चलाकर खाई में आये जर्मनी मारे गए. आम्बुलंस आया तो उसमे बीमार बोधसिंह को सुरक्षित भेज दिया. फिर वजीर से पानी माँगा. उसकी चोट के बंधन को वजीरा ने शिथिल किया. अंतिम साँस लेते =लेते उसको पुरानी यादें आयी. एक बार वह सूबेदार के यहाँ गया तभी मालूम हुआ कि सूबेदारनी वह लडकी है जिससे वह २५ साल पहले अमृतसर से मिला था. सूबेदारनी को भी लहना को जान गयी. तब सूबेदारनी ने कहा कि जैसे मुझे एक बार तांगे के नीचे जाने से बचाया,वैसे मेरे पति और पुत्र को बचाओ. लहनासिंह ने वादा किया था. आज वह अपने प्राण देकर उन दोनोको बचा लिया और सूबेदारनी से कहने बोधा से सन्देश दिया कि उसने जो कहा था,उसे निभाया है.
यह किसीको मालूम न था, समाचार पत्र में यही सूचना आयी जमादार लहनासिंह युद्ध क्षेत्र में मारे गए,
लहनासिंह आदर्श प्रेमी था.
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सूबेदारनी
कहानी उसने कहा था का नारी पात्र सूबेदारनी. वह कहानी की जान है. आठ वर्ष की उम्र में वह लहना से मिलती है. दुबारा मिलन पच्चीस साल के बाद. तब भी उसको पहचानती है. लड़के के प्रति उसके मन में प्रेम था. वह लड़के के प्रथम मिलन की सारी बात या द रखकर पच्चीस साल के बाद मिलने पर लहना को याद दिलाती है. बारह साल के लड़के से मिलाना,क्या तेरी कुडमाई हो गयी पूछना,बिगड़े घोड़े गाडी से उसकी जान बचाना. फिर निवेदन करती हैं जैसे तुम बिना तेरे प्राण पर ध्यान देकर मुझे बचाया,वैसे ही सूबेदार और बोधा को बचाना. लहनासिंह उस दिन से सूबेदार और बोधा सिंह
पर ध्यान करने लगा. अंत में उन दोनों को बचाकर खुद चल बसा. सूबेदारनी आदर्श पति प्रेमी और वात्सल्यमयी माता है. अपने बचपन के प्रेम को स्मरण रखकर लहनासिंह द्वारा अपने पति और पुत्र की जान बचाती है. वह चतुर नारी है.
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सिक्का बदल गया . लेखिका : कृष्णा सोबती
शाहनी का चरित्र चित्रण.
शाहनी एक विधवा अकेली रहती है. वह महात्मा गांधीजी की अनुयायी थी. खद्दर की चादर ओढती थी. वह हिन्दू थी.राम की भक्ता थी.
देश की स्वतंत्रता के बाद हिन्दू-मुस्लिम कलह हुआ था. एक दूसरे के प्राण लेने में आनंद पाते थे. शाहनी चिनाब नदी के तात पर पाकिस्तान के हिस्से में रहती थी. जब तक शाह थे,तब तक उसका जीवन आदरणीय रहा; उस इलाके में सब की मदद करते थे. अब वह अकेली है.एक दिन प्रभात नदी में स्नान करके आयी तब लीग के आदमियों के वहां आना पहचान गयी.
उसने शेरे को शिशु से पाला था, उसके जन्म लेते ही माँ चल बसी. शेरो की पत्नी हसैना थी. शाहनी उसे अधिक चाहती थी. आजादी के बाद शेरो लीग्वालों से मिल गया. उनकी प्रेरणा से वह शाहनी की जान लेने तैयार था. इतने में शरणार्थी कैम्प में शाहनी को ले जाने थानेदार दाऊद खां आ गे आ गया. यह वही दाऊद था,जो शाह के लिए खेमे लगवा दिया करता था.अब सारा माहौल बदल गया. शाहनी . सारी संपत्ति,नकद सब उस इलाके के लोगों के लिए छोड़कर ट्रक में बैठ गयी. सब के दिल में उदासी छा गयी.
आडम्बर और सट्टे पर जीवन बिताई शाहनी, आज अकेले कैम्प में ज़मीन पर पडी सोचते रही ==राज पलट गया.--सिक्का बदल गया.
उस रात हिन्दू=मुस्लिम कलह से आसपास के गांवों में खून बह रहा था.
देश के बंटवारे के बाद की दशा का चित्रण शाहनी पात्र द्वारा मिलता है.
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शेरा
शाहनी का पालित पुत्र शेरा लीग्वालों से मिल गया. लीग का सम्बन्ध शाहनी को पसंद नहीं था. पर वह नहीं मानता था. उस दिन लीग्वाले कलह करने वाले थे. उनकी प्रेरणा से शेरा निर्दयी बन गया. शाहनी की हत्या की तत्परता में था.; फिर भी शाहनी की हालत पर दुखी था.वह शाहनी से उसकी जान के खतरे की बात कहना चाहता था.जबलपुर में आग लगने की बात उसे मालूम था. वह विवश था. शानी के प्रति स्नेह था. दुखी मन से उसे ट्रक में जाते हुए देखता है.देश का बंटवारा हिन्दू-मुस्लिम के भाईचारे भाव को नष्ट कर दिया. इसका नमूना है शेरा पात्र.
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पुर्जे --इब्राहिम शरीफ
भाई का चरित्र चित्रण
भाई पुर्जे कहानी का प्रमुख पात्र है. उसके एक बहन थी; पिता मर गए. साहित्य में एम्.ए हैं. माँ बीमार्पद गयी. बहन के अनुरोध से डाक्टर को बुलाने गया. निर्दयी डाक्टर नहीं आया.डाक्टर ने बताया कि लकवा लग गया होगा': लहसन का रस लेपना. वह दुखी मन से वापस आ गया. माँ की हालत बिगड़ गई तो फिर डाक्टर से मिलने गया.डाक्टर की लापरवाही से सोचने लगा कि साहित्य में एम्.ए. करके क्या लाभ. डाक्टर ने कहा कि मेरी बेटी की शादी की व्यवस्था में लगे है. दावा यहाँ नहीं मिलती;फिर एक पुर्जे में दावा लिखकर दी.भाई को उसकी असमर्थता पर क्षोब हो रहा था. वह तेज़ी से घर गया. बहन ने पुर्जे को टुकड़े-टुकड़े कर दिया. माँ चल बसी.
एक मध्यवर्ग परिवार के बेकार युवक और डाक्टर की निर्दयता पूर्ण व्यवहार के दृश्य भाई पात्र के द्वारा सामने आ जाता है. ऐसे परिवार का दयनीय दशा का यथार्थ चित्रण द्वारा समाज में दया भाव उत्पन्न होना चाहिए.
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डाक्टर
पुर्जे कहानी का डाक्टर एल.ई.एम् है. वह निर्दयी है. बिना रोगी को देखे दवा बताता है और लिखकर भी देता है.
उसको अपनी बेटी की शादी की चिंता है. उसीकी लापरवाही से एक नारी चल बसी. भाई डाक्टर को घर बुलाता है.तब स्वार्थी डाक्टर अपनी बातें करता है---बेटी की शादी में बहुत रूपये खर्च करना पड़ेगा.लड़का बड़े खानदान का है.उसकी डिमैन्ड्स
पूरी करनी है. ऐसे निर्दयी डाक्टर चरित्र निदनीय है. ऐसे डाक्टरों के कारण समाज में डाक्टर अविस्वसनीय बन जाते है.
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गूंगे --लेखक --- रांगेयराघव
गूंगा
गूंगे कहानी में गूंगा पात्र अत्यंत दयनीय पात्र है, वह जन से अनाथ है. पिता और माता दोनों भाग गए. जिन्होंने उसको पाला था,वे निर्दयी थे.अधिक मारते-पीटते थे. वह बहुत मेहनत करता था. सेठ के यहाँ बर्तन माँजना,कपडे धोना आदि सब काम .केवल पेट भरने के लिए.
चमेली दयालू औरत थी. उसके यहाँ गूंगा नौकरी करने गया तो चमेली से ये सब बातें इशारे से ही बता दी.
चमेली के पुत्र -पुत्री गूंगे को न चाहकर भी चाहते थे. एक दिन किसी बात पर उसके पुत्र ने गूंगे को मारा. गूंगा उसे मारने हाथ उठाया,पर मालिक के बेटे को न मारा. इससे नाराज होकर चमेली उसे घर से भगा देती है. वह थोड़ी देर में रोते हुए वापस आ गया.उसके सर पर चोट लगी थी खून बह रहा था. वह दरवाजे पर कुत्ते के सामान खड़े होकर रो रहा था. गली के शरारत लड़कों ने उसको मारा था.
चमेली देखती रही. उस मूक अवसाद में युगों का हाहाकार भरकर गूँज रहा था.
गूँगा समाज का पूरा न्याय,अन्याय.अत्याचार जानता-समझता था. वह गूंगा था. बोलने की शक्ति न थी. इस एक कमी के कारण समाज की यातनाएं सहता था, सिवा रोना ही उसके सारे मनोभाव प्रकट करता था. गूंगे के पात्र के चित्रण के द्वारा समाज में गूंगों के प्रति दया भाव और सनुभूति उत्पन्न करना लेखक का उद्देश्य था.
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चमेली
गूंगे कहानी का आदर्श पात्र चमेली थी. घरवाले न चाहने पर भी गूगे को घर में नौकरी देती है. इशारे से ही गूंगे के जीवन चरिता सामने लाती है. वह गूंगों की भाषा समझती है. गूंगे से काम लेने के लिए घरवालों को समझाती है---
कच्चा दूध लाने के लिए ,थान काढने का इशारा कीजिये. साग मंगाना हो गोलमोल कीजिये.बाच्चों ने गूंगे को नौकरी देना मना किया तो चमेली कहती है--मुझे तो दया आती है बेचारे पर.
एक दिन गूंगा बेटे वसंता को मारने हाथ उठाया तो उसके बलिष्ट हाथ हाथ देखकर उसे घर से भगा देती है. वात्सल्यमयी माता ऐसे ही करेगी. वह थोड़ी देर में गली के लड़कों से मार खाकर खून से लतपत वापस आया . दरवाजे पर सर रखकर कुत्ते की तरह चिल्ला रहा था. उसे चमेली देखती रही.
चमेली को आदर्श गृहणी.वात्सल्यमयी माता, समाज के दुखी असहाय लोगों पर दया और सहानुभूति दिखनेवाली आदर्श नारी के रूप में देखते हैं.
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बदला - लेखक :आरिगपूडी
कोटय्या
"कोटय्या" गरीब किसान था. उसकी भूमि नदी के बाढ़ में गायब हो गयी. तब से मजदूरी करके कष्टमय जीवन बिताता था. वह अपने गर्भवती पत्नी को अपने मालिक की बैल-गाडी में लिटाकर इलाज के लिए धम्म्पट्टनाम सरकारी अस्पताल ले गया. अस्पताल के द्वार से ही मामूल शुरू गो गया. अस्पताल में सब के सब रिश्वत लेते थे. कोटय्या की पत्नी को इलाज की मदद किसीने नहीं की. डाक्टर पद्मा आयी तो कोतय्या की पत्नी को अन्दर ले गए. थोड़ी देर में कहने लगे कि उसकी पत्नी मर गयी. लाश देखते ही कोतय्या को मालूम हो गया कि इलाज़ नहीं किया गया. किसीने इस बेचारे की मदद नहीं की. उसी गाडी में पत्नी को अपने गाँव ले गया. दाह संस्कार क्रिया के बाद वह बदला लेने अस्पताल आ गया, वह अनशन के लिए बैठ गया. उसने एक कपडे पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा पताका था --अस्पताल से प्राण खाऊ घुस खोरी हटाओ .पहले किसीने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया. पद्मा के कहने पर उसने अस्पताल के सामने बैठकर सत्याग्रह आरम्भ किया . स्थानीय नेता उससे मिले. समाचार पत्रों में खबरें आयी.पूछ-ताछ करने लगे. अस्पताल के भ्रष्टाचार पर शिकायतों के ढेर आ गए. डाक्टर पद्मा को अपना बयान देना था. भ्रष्टाचारियों ने पद्मा की हत्या की और कोतय्या को खूनी सिद्ध करने का इंतजाम हो गया. कोतय्या कैद होगया. वह बहुत चिल्लाया -चीखा कि वह निर्दोष है. उसकी आवाज़ पर किसीने ध्यान नहीं दिया.
वह बदला लेने गया,भ्रष्टाचारियों ने उसी को बली देकर बदला ले लिया.
कोटय्या का पात्र दयनीय शोषित पीड़ित गरीब का प्रतीक है. सरकार अस्पताल के भ्रष्टाचार का भंडा फोड़कर समाज में क्रान्ति लाना लेखक का उद्देश्य था. कोटयया पात्र के चित्रण द्वारा अपने उद्देश्य पर लेखक सफल हो गए.
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डाक्टर पद्मा
डाक्टर पद्मा अपना कर्तव्य करना चाहती थी;पर अस्पताल में रिश्वत का बोलबाला था; इसमें सब सम्मिलित थे. अत; वह लाचारी बन गयी. उसकी दया से ही कोटय्या के पत्नी को लिटाने की जगह मिली;पर बिना इलाज के मर गयी.
कोटय्या अस्पताल के सामने भ्रष्टाचार और घूसखोरी के विरुद्ध अनशन रखा तो पूछ-ताछ शुरू हुई. पद्मा के बयान से कई लोगों की नौकरी चली जायेगी. पूछ-ताछ में सुरंग के सामान कई अपराध बाहर आ गए. सब के सब परेशान थे.
पहले पद्मा छुट्टी पर जाना चाहती थी; यह असंभव हुआ तो सब बातें छिपा न सकी. बयान देने के बाद दूरे दिन पद्मा को किसीने मार डाला. अपराध भोले-भाले निर्दोष कोटय्या के सर पर पड़ा.
दयालू ईमानदार डाक्टर को रिश्वतखोरों ने मार डाला.
पद्मा एक दयालू आदर्श डाक्टर थी.
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लेखिका::--उषा प्रियंवदा
वापसी
लेखिका :उषा प्रियंवदा
गजाधर का चरित्रचित्रण.,
गजाधर पैंतीस वर्ष रेलवे में नौकरी करके रिटायर हो गए.वे दुखी थे कि दफ्तर के आत्मीय मित्रों को बिछुड़ रहे हैं. वे खुशी थे कि कई साल अकेले रहने के बाद अपने परिवारवालों के साथ खुशी से रहनेवाले है. पर परिवारवालों से उतना स्नेह,आदर ०सम्मान नहीं मिला. उनको अकेला रहना पड़ता.उनके घर में रहना,उपदेश देना,बहु और बेटे से कोई न कोई काम कहना आदि ने उनको नफरत का पात्र बना दिया.
गजाधर को अपने बिस्तर की समस्या हुयी; उनको हर बात में दखल देना घरवालों को पसंद नहीं आया. गजाधर ने अनुभव किया कि वह पत्नी और बच्चों के लिए केवल धनोपार्जन के निमित मात्र है.
एक दिन नौकर के काम ठीक तरह से न करने की चर्चा हुयी तो नौकर का हिसाब कर दिया. घर की आमदनी भी कम थी. खर्च ज्यादा है.
बेटे को बहु ने इसकी सूचना दी. इस घटना के बाद नरेन्द्र,अमर,वसंती सब के सब गजाधर की आलोचना करने लगे.
पत्नी भी उनके अनुकूल बातें नहीं की.
गजाधर ने पुनः नौकरी करने का निश्चय कर लिया. उनको एक मिल में काम मिल गया.दुसरे दिन पत्नी से सीधे कहा कि मुझे सेठ रामजीमल की चीनी मिल में नौकरी मिल गयी. परसों जाना है. पत्नी तैयार नहीं हुयी. उसने कहा कि मैं चलूंगी तो क्या होगा.
वे घर से निकले तो किसीने न रोका. नरेन्द्र ने बड़ी तत्परता से बिस्तर बाँधा. वे चले गए. घरवालों ने इसकी चिंता न की.बहु ने अमर से पूछा ,"सिनेमा ले चलिए.वासंती भी तैयार थी. सिनेमा जाने. गजाधर की पत्नी चौके में चली गयी.पत्नी को भी पति की चिंता नहीं. वह कहने लगी--बाबूजी की चारपाई कमरे से निकाल दे. उसमें चलने तक को जगह नहीं है.
रिटायर होने के बाद पुरुषों की दयनीय दशा का चित्रण खूब हुआ है.
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श्रीमती गजेंधर बाबू
वापसी कहानी के नायक गजाधर की पत्नी है .उसको रिटायर पति की सेवा से अपने बड़े परिवार की चिंता थी. वे अपने बच्चों से प्यार करती है.अपने पति के साथ जाना उसको पसंद नहीं था. एक आदर्श माँ थी. उसमें असीम सहन शक्ति थी.
वह सभी काम चुपचाप करती थी और अपने आप बोलती थी ---सारे में जूठे बर्तन पड़े हैं. इस घर में धरम-करम कुछ नहीं.पूजा करके सीधे चौके में घुसो. पत्नी की परेशानी देखकर गजाधर रात के भोजन की जिम्मेदारी सौंपी. बहु से भी कुछ जिम्मेदारियां. पर श्रीमती को पतिदेव का दखल देना पसंद नहीं. बच्चे-बहु सब अपने पिताजी की शिकायत करते थे. गजाधर बाबू घर की परिस्थिति से ऊब गए. वे पुनः सेठ रामजीमल की चीनी मिल में नौकरी करने निकले. उन्होंने श्रीमती को बुलाया. तब श्रीमती ने कहा--"मैं चलूंगी तो यहाँ का क्या होगा? इतनी बड़ी गृहस्थी,
उसको बूढ़े पति का वापसी जाना खुश ही था. उनके जाने के बाद बच्चे भी खुश थे, वे सिनेमा जाना चाहते थे. श्रीमती गजाधर ने अपने बेटे से कहा --अरे नरेंद् , बाबूजी की चारपाई कमरे से निकाल दे! उसमें चलने तक को जगह नहीं है.
श्रीमती अपने पति से बढ़कर बच्चो से अधिक प्यार करती है.
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डिप्टी कलक्टरी लेखक : अमरकांत
शकल दीप बाबू -चरित्र चित्रण:
सारांश :-
शकल दीप बाबू अपने बेटे नारायण (बबुआ) की डिप्टी कलक्टरी बनने की कामना पूरी होने पर बेहद खुश होते हैं.आरम्भ से अंत तक वात्सल्यमय पिता की मनो भावना का यथार्थ चित्रण मिलता है.
शकल दीप बाबू मुख्तार थे. उनकी पत्नी जमुना थी. उनके दो बेटे थे.बड़े का नाम नारायण था,बबुआ के नाम से पुकारा जाता था. उसकी उम्र २४ साल की थी; छोटा बारह साल का था उनका नाम टुनटुन था.
शकलदीप बाबू मुख़्तार थे. उनकी आमदनी केवल चौ के-चूल्हा चलाने काफी था.
नारायण को नौकरी नहीं मिली; वह डिप्टी कलक्टर बनना चाहता था. पिताजी को अपने बेटे पर शक था; उनपर भरोसा भी नहीं था.
नारायण दो बार डिप्टी कलक्टरी की परीक्षा में सफल नहीं हुआ. शकाल दीप बाबू का विचार था कि साधारण नौकरी भी नहीं मिली तो डिप्टी कलक्टरी कैसे ?
वात्सल्यमयी माता ने अपने पति से कहा --दो -दिन से बबुआ उदासी है. दो-तीन दिन में फीस भरना है. आपसे मांगने डरता है.
बेटे पर के अविश्वास के कारण वे पहले रूपये देने तैयार नहीं थे. फिर भी पिताजी का कर्तव्य निभाने तैयार हो गए, बाहर गए और डेढ़ सौ रुपये लाये और पत्नी से कहा कि १०० रूपये बेटे को दो और ५० रूपये घर के खर्च के लिए.
वे खुद सोचने लगे कि गलती किसीकी नहीं. सारा दोष तो मेरा है.देखो न,मैं बाप होकर कहता हूँ कि लड़का नाकाबिल है.
नहीं,नहीं,सारी खुराफात की जड़ मैं ही हूँ,और कोई नहीं. उस दिन के बाद अपने बेटे को सभी प्रकार की सुविधा करने लगे. देखा कि बीटा काफी मेहनती है. १९ घंटे पढने में तल्लीन है. बेटे को मेवा,सिगरेट आदि की भी व्यवस्था करने लगे.
बेटा इलाहाबाद में इम्तिहान देने निकला तो शकल रेलवे स्टेशन पहुंचे.रेल निकलने लगी तो पिताजी बच्चे की तरह चलती गाडी की ओर दोड़े और रूपये की पुडिया दी और आशीषें.शकल बाबू की वात्सल्यता का यथार्थ चित्रण लेखक ने किया है.
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जमुना
डिप्टी कलक्टरी कहानी के प्रमुख पात्र शकल दीप बाबू की धर्म पत्नी जमुना थी. वह वात्सल्यमयी माता थी. कहानी के आरम्भ में ही जमुना अपने बेटे के बारे में पति से कहती है---"दो दिन से बबुआ बहुत उदास है.वही बेटे की ओर से डिप्टी कलक्टर की परीक्षा शुल्क माँगती है. उसको अपनी बेटी पर बड़ा विशवास था. पति क्रोधित हुए तो वह चुप रहती थी; पति के स्वभाव से परिचित थी; अत; वह आदर्श गृहस्थी थी.
पति नारायण बबुआ पर क्रोध प्रकट करते तो बताती ---ऐसी कुभाषा मुँह से प्रकट कानी नहीं चाहिए. हमारे लड़के में दोष ही कौन-सा है? लाखों में एक है. बेटा हमेशा उदास है. न मालूम मेरे लाडले को क्या हो गया है.?
वह आदर्श पत्नी भी थी. एक दिन पति ने जल्दी स्नान किया तो डरती थी कि बीमार न पड़े. शकलदेव ईश्वर भक्त हो गए.राधास्वामी के. पति -पत्नी में हँसी -भरे मजाक भी होता था.. अपने बेटे के लिए पिताजी सिगरेट लेकर आते हैं श्री मति के पूछने पर कहते हैं --तेरे लिए? श्रीमती कहती है--कभी सिगरेट पी भी है कि आज पिऊँगी.
बबुआ के लिए जो लाये तो उसका छोटा बेटा टुनटुन खाता है. तब शकल गुस्से होते है और उसे पीटते है, तब वात्सल्यमयी माता उदास हो जाती है.
थोड़े में कहें तो जमुना आदर्श पत्नी और वात्सल्यमयी माँ थी.
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पंच लाईट
लेखक :--फनीश्वरनाथ "रेणु
सरदार
पञ्च लाईट में सरदार देहात आदमी है. वहाँ पंच लाईट एक गौरव की बात है.सरदार पंच लाईट लाया. लोग बहुत खुश थे.
पंच लाईट के बारे में सरदार गर्व से कहता है --दुकानदार ने पहले सुनाया,पूरे पाँच कौड़ी पाँच रूपये. मैंने कहा--दुकानदार साहब, यह मत समझिये कि हम एकदम देहाती है. बहुत-बहुत पञ्च लाईट देखे हैं. दूकानदार बोले --आप जाति के सरदार है. आप सरदार होकर पंचलाईट खरीदने आये हैं, पूरे पाँच कोडी में देता हूँ. सरदार देहाती अपने घमंड दिखाने लगे.
जब पंच लाईट जलाने की समस्या उठी, तब सरदार की बुद्धि पर अविश्वास प्रकट करने लगे. गाँव के अन्य सरदार के द्वारा लाईट बालना अगौरव था. अंत में पंच से निकाले पास के गाँव के गोधन की लाईट जलाता है. सब खुश होते हैं.
सरदार में घमंड,नादाने, अन्य गाँव के सरदारों के सामने अपनी इज्जत बनाए रखना आदि गुणों से सरदार सफल देहाती सरदार है.
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गोधन
गोधन पंच लाईट कहानी का साधारण पंच के दंड के पात्र का आदमी था. उसको पंच में हुक्का पीना बंद था. वह पंचायत से बाहर है.पंचों की निगाह पर गोधन बहुत दिन से चढ़ा हुआ था. अचानक उसकी जरूरत पञ्च को आ गयी. कार है वही पञ्च लाईट जलाना जानता था. अब पंच उनकी मदद लेने विवश थे. सलीमा का गीत गाकर आँख का इशारा मारनेवाला गोधन से गाँव भर के लोग नाराज थे. अंत में पंचायत वाले गोधन को बुलाने मान गए. वह होशियार था. वहां स्पिरिट नहीं था. गोधन गरी का तेल माँगा. दीप जलाने लगा. गोधन कभी मुँह से फूँकता ,कभी पंच लाईट की चाबी घुमाता.थोड़ी देर में पंचलाईट से सनसनाहट की आवाज़ निकलने लगी और रोशनी बढ़ती गयी साथ ही गोधन की प्रशंसा भी. सरदार ने गोधन से प्यार से कहा--तुमने जाति की इज्ज़त रख ली;खूब गाओ सलीमा का गाना.
गोधन के पंचलाईट जलाने की कला ने उसको हीरो बना दिया.
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खानापदेश
लेखक : ओमप्रकाश वाल्मीकि
सुकिया
ख्नाबदेश कहानी का प्रधान पात्र है सुकिया. वह अपने पति मानो के साथ धन कमाने अपने गाँव छोड़ जाती है.
सुकिया और मानो दम्पति कुछ धन कमाने की इच्छा से गाँव छोड़कर भट्टे पर आ गए . असगर ठेकेदार ले आया था. भट्टा मालिक मुख्तार सिंह था.
जहां मजदूर रहते थे ,वहां रात डरावना था. कुछ धन जोड़ने की इच्छा से धीरज होता था. बस्ती में सांप-बिच्छु का डर लगा रहा था. मानो बार -बार सुकिया से कहता था -- अपने देस की सूखी रोटी भी परदेस पकवानों से अच्छी होती है.
सुकिया जवाब देती --नरक की जिन्दगी से निकलना है तो कुछ छोड़ना भी पड़ेगा. आदमी की औकात घर से बाहर कदम रखने पर ही पता चले हैं. दोनों कठोर मेहनत करते ,फिर भी मजदूरी कम ही मिलती.
मालिक मुख्तार सिंह का बेटा सूबे सिंह था. पिता की गैरहाजिरी में सूबे सिंह का रौब -दाब भट्टे का माहौल ही बदल देता था. असगर ठेकेदार भीगी बिल्ली बन जाता था. सूबे का चरित्र भी अच्छा नहीं था.
भट्टे पर काम करने किसनी और महेश नवविवाहित दम्पति आये थे. सूबे सिंह की कुदृष्टि किसनी पर पडी. वह उसे लेकर शहर जाता;वापस आते वक्त वह थकी लगती थी. वहाँ सूबे और किसनी के बारे में काना-फूसी होने लगी.
वहाँ तीसरा मजदूर था जसदेव. . वह कम उम्र वाला था. एक दिन सूबे सिंह ने असगर ठेकेदार के द्वारा सुकिया को दफ्तर में काम करने बुलाया. किसनी की तबीयत ठीक नहीं थी. सुकिया डर गयी. गुस्से और आक्रोश से नसें खिंचने लगी. जसदेव सुकिया के बदले दफ्तर के काम करने गया. सूबे सिंह अति क्रोध से उसको बहुत मारा-पीटा.
सुकिया को बहुत दुःख हुआ. जसदेव को खिलाने-पिलाने में लगी. भट्टे में दवा-दारू का इंतज़ाम नहीं था. सुकिया जसदेव से मिलने गयी. वह दर्द से कराह रहा था. मानो ने सूबे सिंह को खूब कोसा. "कमबख्त कीड़े पडके मरेगा. हाथ-पाँव टूट-टूटकर गिरेंगे ....आदमी नहीं जंगली जानवर है."
मानो को पक्की ईंट का घर निजी बनवाने की इच्छा थी. वह अपने निजी ईंट के घर में रहने का सपना देखा करता था.
सुकिया जल्दी भट्टी पर काम करने गयी. एक दिन जल्दी गयी तो देखा भट्टी उजड़ा हुआ था. सारी ईंटे टूटी-फूटी पडी थी. सब ने कहा किसीने जान-बूझकर ईंटें तोडी हैं. मानो का ह्रदय फटा जा रहा था.आगे वे वहां नहीं रह सकते. असगर ठेकेदार ने उनकी रही-सही उम्मीदों पर पानी फेर दिया.. वे खानाबदेशी बन गए. खानाबदेश जिन्दगी का एक पड़ाव था यह भट्टा. वे वहां से दुसरे पड़ाव की तलाश में निकले,एक दिशा हीन यात्रा पर. सपनों के काँच उसकी आँख में किरकिरा रहे थे.
सुकिया शोषित दलित वर्ग की प्रतिनिधी है. केवल परिश्रम करनेवाली है.साथ ही साहसी है.चतुर है.
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मानो
खानाबदेश कहानी का प्रमुख पात्र है मानो. सुकिया के पति. कठोर मेहनती. उसकी एक मात्र चाह थी पक्की ईंट का घर बनाना. इस के लिए पत्नी सुकिया की बात मानकर भट्टी में काम करने गया. कठोर मेहनत के बाद भी अधिक रूपये ज़माना मुश्किल हो गया. सुकिया उसको धीरज बांधती रहती. वहाँ ठहरने की सुविधा नहीं थी.सांप-बिच्छुओं का डर था.
फिर भी अपने ईंट के घर के स्वप्न को साकार बनाने सब कुछ सह लेता. वहाँ दवा की सुविधा नहीं थी.
ऐसी परिस्थिति में उनको सूबे सिंह के रूप में आपत्ति आ गयी. वह भट्टे के मालिक का बेटा था. उसकी कुदृष्टि सुकिया पर पडी.तीसरा मजदूर जसदेव उसकी रक्षा के लिए मार खाया.चोट लगी. इस घटना के चंद दिन में किसीने भट्टे को जबरदस्त तोड़ दिया. मानो दुखी था. वह बे घर का हो गया.खानाबदेश .सुकिया और मानो नौकरी की तलाश में निकल पड़े.
मानो शोषित दलित वर्ग का पात्र है. ऐसे लोगों के करुण कथा के द्वारा दलित वर्ग में जागरण लाना लेखक का उद्देय था.
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सूबे सिंह
ख्नाबदेश कहानी का खलनायक था सूबे सिंह. भट्टे के मालिक का बेटा था. वह स्वभाव से कुटिल और निर्दयी था.
वह पिता की अनुपस्थिति में भट्टे की देखरेख करने आया. पहले किसनू नामक मजदूरिन जो महेश की पत्नी है,उसको अपनी वासना का शिकार बना दिया. उसकी तबीयत ख़राब हो गयी. फिरउसकी कुदृष्टि सुकिया पर पडी.जसदेव ने सुकिया को बचा लिया. पर सूबे ने उसको इतना मारा कि वह शय्याशायी हो गया. वह दवा-दारु की व्यवस्था नहीं थी. अंत में भट्टी को ही उजाड़ दिया.
सूबे सिंह जैसे अमीर वर्ग बलात्कारी होते है. वह कहानी का निंदनीय पात्र है.
श्री की कृपा रहें! श्री विद्या की भी;
श्री शक्ति की भी;श्री शिव,श्री विष्णु की भी;
इन सब से मिश्रित एक ईश्वरीय शक्ति मिले!!
जिससे कर सकूँ, मैं जगदोद्धार!!
आगे बढूँ मैं,आगे बढ़ें संसार!
न तो ऐसी शक्ति करो उत्पन्न,
जो रोक सके तेरे नाम से लूटना’
धर्म –कर्म के बाद नाम बचें;
करोड़ों की संपत्ति,न ऐक्य हो सागर में;
मानता हूँ तेरी बड़ी शक्ति,लेकिन एक तेरी
अपमान की शक्ति जो साल पर साल
बढ़ती रहती हैं,तनाव,कलह ,मृत्यु ,मार-काट के
आतंक फैलता बढ़ता रहता है;
मुक्ति करो भक्तों को,ऐसी तेरी मूर्ती –विसर्जन के
दुष्कर्म से; बचाओ धर्म को;मिटाओ अंध-धार्मिकता को’
करता हूँ,श्री गणेश श्री गणेश के नाम से;
करो कुछ शक्ति का प्रयोग;बचें संसार!!
भक्ति तो मुक्ति का साधन है ,पर
शक्ति है संसार में धन की ;ज्ञान की ;
ज्ञानी भक्त हो जाता हैं,तो
धनी नाचता नचाता मन माना;
अतः जन का मानना है .
धनी की बात;
यह तो बात ख टकती;
जीते हैं हम लेके नाम तेरे;
रखो हम पर कृपा तेरी;
श्री गणेश करता हूं,काम;
श्रीगणेश करो कामयाबी ,
कामना मेरी!
सनातन हिन्दू धर्म सिखाते हैं बहुत;
स्वदेशे पूजिते राजा;विद्वान सर्वत्र पूजिते;
वसुदैव् कुटुब्बकम ;
मनुष्य सेवा ही महेश की सेवा;
धन न जोड़ो;दान –धर्म में लगाओ;
वही महान है,जो सब कुछ तज,
जीता है परायों के लिए;
त्याग में है सुख;
भोग में हैं दुःख!
राजकुमार सन्यासी बन्ने की कहानियाँ है
भारत में;भोगी रोगी बनता है;
प्रकृति के साथ जीने में ब्रह्म के साक्षात्कार है;
अहम् ब्रह्मासमी ;आत्मा-परमात्मा में विलीन है ;
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छात्रों और छात्राओं के लिए कहानी कला और सारांश लिखने निम्न सोपानों पर ध्यान रखना चाहिए:
१.१५ अंकों का बंटवारा:
१.लेखक परिचय संक्षेप में --३ अंक.
२.सारांश -संक्षेप में ------५ अंक.
३. कहानी कला की दृष्टी से विशेषताएं:-७ अंक.
कुल एक कहानी केलिए इस दृष्टी से पंद्रह अंक दिए जायेंगे.
२. चरित्र चित्रण:-
हर पात्र की बोली,विचार,आंगिक चेष्टाएँ ,भावाभिव्यक्ति ,काम आदि पर ध्यान देकर चरित्र चित्रण करना है.
कहानी की सफलता देश-काल -वातावरण के अनुकूल रचित पात्र पर निर्भर है. अतः चरित्र के जीवित रूप दिखाना चाहिए.
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1.नादान दोस्त--उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद. (बाल मनोविज्ञान की कहानी )
कठिन शब्दार्थ:
सुध-होश
फुरसत =समय
तसल्ली देना-सांत्वना देना
पर- पंख,लेकिन
बगैर=बिना
पेचीदा=परेशानी
जिज्ञासा=जानने की इच्छा
अधीर होना= हिम्मत खोना
अनुमान=अंदाजा.
चाव= रूचि
आँख बचाना=छिपाना
उधेड़बुन =दुविधा
हिफाज़त =सुरक्षा
लू=गरम हवा.
चेहरे का रंग उड़ जाना=डरना
ताकना=देखना
भीगी बिल्ली बनना= भयभीत होना
तरस खाना=दया दिखाना
तरस आना=रहम आना
लेखक परिचय:-जन्म स्थान,तारीख,कहानियों का केंद्र भाव,मुख्य रचनाये,वे अमर है तो मृत्यु साल..
सारांश:-
प्रेमचंद इस कहानी में सामाजिक समस्याओं से परे बाल मनोविज्ञान पर ध्यान दिया है.बच्चे नादान होते हैं.
उनको नयी बातें जानने की इच्छा होती हैं.उनके जिज्ञासुओं को जवाब देने माता-पिता को फुरसत नहीं;अतः बच्चे अपने सवालों का समाधान खुद खोजने में लग जाते हैं .परिणाम उनके सोच के विपरीत होते हैं.वे अपनी नादानी के लिए पछताते हैं.बच्चों के नादानी करतूत से माँ को हंसी आती है;पर बेटा अपनी गलती पर अफसोस होता रहता है; उसको माँ की इस बात से भी पछतावा बढ़ा होगा--केशव के सर इसका पाप पडेगा!हाय!हाय!तीन जानें ली यह दुष्ट ने! कितना मर्मस्पर्शी बाल मनोविज्ञान का जीता-जागता चित्रण.
कहानी का सार:-
केशव के घर कार्निस के ऊपर एक चिड़िये ने अंडे दिए थे. केशव और उसकी बहन श्यामा दोनों को अंडे देखने की इच्छा हुई. उनके मन में कई प्रकार के सवाल आये कि अंडे की संख्या,अंडे के रंग,बच्चे कैसे निकलेंगे ,कैसे उड़ेंगे ,पर कैसे निकलेंगे आदि.
इन सवालों को जवाब देने माता-पिता दोनों को समय नहीं. नादान बच्चे अपनेदिल को खुद ही तसल्ली दिया करते थे.
दोनों को इन अण्डों को सुरक्षित रखने की इच्छा हुई . पहले उनकी तीव्र इच्छा अण्डों को देखने की थी.
दोनों बच्चे अम्मा की आँखे बचाकर इस काम में लग गए. भाई की मदद में बहन लग गयी.अण्डों को धुप से बचाने,उसको गद्दीदार बिस्तर पर रखना,पानी की व्यवस्था सब कर चुके. उनका विचार था इतनी सुविधाओं से चिड़िये को आराम मिलेगा. अंडे से निकलते ही दाना-पानी पास ही मिल जाएगा.चिड़िये के बच्चे वहीं रहेंगे.
भाई ने ऊपर डरते हुए चढ़कर ये सब काम किये;बहन को ऊपर चढ़ने नहीं दिया;उसको डर था कि बहन के पैर फिसलकर गिर जाने पर माँ उसे चटनी कर देगी. केशव को यह भी डर था कि वह किवाड़ खोलकर घर से बाहर आया है;माँ को इसका पता चलें या बहन के कहने पर डांटेगी.
माँ आयी;डांट-डपटकर दरवाजा बंद कर दिया.गरम लू की दुपहरी में दोनों सो गए. यकायक श्यामा जाग उठी;तुरंत कार्निस देखने गयी;वहाँ के दृश्य से दुखी थी; अंडे नीचे गिरकर टूट गए.वह आहिस्ते-आहिस्ते भाई को जगाने लगी और बात बतायी कि अंडे नीचे पड़े हैं;चिड़िये के बच्चे उड़ गए.
माँ ने दोनों बच्चों को धूप में खड़ा देखकर पुकारी. केशव ने कहा कि अंडे गिर गए.माँ गुस्से में बोली-तुम लोगों ने अण्डों को छुआ होगा. श्यामा को भैये पर का तरस उड़ गया.सारी बातें बता दीं.
तभी माँ ने कहा कि तू इतना बड़ा हुआ ,तुझे अभी इतना पता नहीं कि छूने से चिड़िये के अंडे गंदे हो जाते हैं.चिड़िया फिर उन्हें नहीं सेती. आगे माँ ने कहा --केशव के सर इसका पाप पडेगा.केशव ने दुखी मन से कहा--मैंने तो सिर्फ अण्डों को गद्दी पर रख दिया था अम्माजी.!
माँ को हंसी आयी;पर केशव दुखी था.सोच-सोचकर रो रहा था.
भोले-भाले बच्चोंकी नादानी से नादान दोस्त अंडे से निकल न सके.
कहानी कला की दृष्टि से विशेषताएँ:-
"नादान दोस्त" उपन्यास सम्राट प्रेमचंद जी की कहानी है. उसकी रोचकता,प्रवाह और सुसम्बद्धता के तत्व हैं-
१.कथावस्तु२. पात्र ३.संवाद ४.देशकाल ५. शीर्षक ६.चरमसीमा ७.अंत ८..उद्देश्य ..९.भाषा शैली .इस पर अब प्रकाश डालेंगे.
१.कथावस्तु: -कहानी की बीज है.इसी से कहानी का विकास होता है;बाल मनोविज्ञान की इस कहानी में
माँ-बाप बच्चों के मन में उठनेवाले सवालों के जवाब देने तैयार नहीं है; भूलें होने के बाद डाँटते हैं.वे तो बच्चों की भूलों से खुश होते हैं. बच्चे माँ -बाप के डर के कारण अपने मन में उठनेवाले सवालों के हल में खुद लग जाते है, इसीलिये भूलें होती हैं.बच्चे अफसोस होते हैं. इस कथावस्तु के आधार पर कहानी सफल है.
२.पात्र: कहानी के प्रमुख पात्र केशव और श्यामा हैं. और गौण पात्र उसकी माँ. केशव और श्यामा अपने आप सवाल-जवाब करके अपने दिल को तसल्ली दे दिया करते थे लेखक के यह वाक्य बच्चों के प्रति माता-पिता की लापरवाही ,बच्चों के जिज्ञासु होने की प्रवृत्ति का पता लगता है. केशव अपने माँ -बाप से इतना डरता है कि दोनों को अपने माँ -बाप की आँखें बचाकर काम करना पड़ता है;भाई का बहन को डांटना,बहन माता से न कहें यों सोचना,अंडे के टूटने की खबर पहले बहन जानकर आहिस्ते-आहिस्ते भाई को जगाना,अंडे के छूने से टूट जाने से दुखी होकर भाई के अपराध को श्यामा अपनी माँ से कहना ,सच्चाई जानकर माँ का कहना -केशव के सर इसका पाप पड़ेगा;फिर माँ का खुश होना,केशव का दुखी होना ऐसे कहानी के पात्र कहानी के सफल और उद्देश्य के लिए ही सृजित हैं.
३.संवाद: कहानी को आगे बढाने में संवाद का अपना विशेष महत्त्व है.श्यामा के हर सवाल में बच्चों के जिज्ञासा का पता लगता है.बड़े भाई का समाधान भी रोचक है.
श्यामा:-क्यों भइया,बच्चे निकलकर फुर्र से उड़ जायेंगे?
केशव गर्व से - नहीं री पगली !पहले पर निकालेंगे!बगैर परों के कैसे उड़ेंगे?
केशव ने श्यामा को अंडे नहीं दिखाया। तब श्यामा ने कहा,मैं अम्माजी से कह दूँगी.
तब केशव ने कहा-अम्मा से कहेगी तो बहुत मारूंगा,कहे देता हूँ.
अंडे के छू जाने के डर से केशव ने माँ से पूछा--तो क्या चिड़िया ने अंडे गिरे दिए हैं अम्मा जी?
माँ--और क्या करती!केशव के सर इसका पाप पडेगा। हाय!हाय!तीन जानें ले लीं दुष्ट ने!
ऐसे ही कथोपकथन बाल-मनोविज्ञान के अनुकूल रोचक बन गया है.
४.देश-काल --यह एक सामाजिक कहानी है. बालमनोविज्ञान का प्रतीक है.अतः यह सफल कहानी है. बच्चे यों ही कुछ करते हैं.जानने की इच्छा रखते हैं.यह तो देश -काल वातावरण के अनुकूल है.
५.शीर्षक : कहानी का शीर्षक "नादान दोस्त",उचित है. अंडे ही नादान दोस्त हैं.बच्चे उत्पन्न भी नहीं हुए, उन अण्डों की सुरक्षा,धूप से बचाना ,गद्दी तैयार करना आदि भोले बच्चों की भोलापन है नादान बच्चों के लिए.
६.चरम सीमा:-कहानी की चरम सीमा श्यामा के अंडे टूटने देखने से हैं.तभी माता को बच्चों के बारे में पता चलता है.
७.अंत- कहानी का अंत माँ की हँसी और केशव के अफसोस के साथ होता है.नादान दोस्त टूटे अंडे के लिए भोले केशव का दुःख;शीर्षक के अनुकूल अंत.
८.उद्देश्य:-बाल मनोवैज्ञानिक और अभिभावकों की लापरवाही,बच्चों का डरना,बच्चों के मन में उठनेवाले सवालों के जवाब न देना आदि पर ध्यान दिलाना लेखक का उद्देश्य है. इसमें लेखक को सफलता मिली है.
९.भाषा शैली: भाषा सरल और मुहावरेदार हैं.कहानी सिलसिलेवार है.आँखे बचाना,उधेड़बुन में पडना,चटनी कर डालना,उलटे पाँव दौड़ना,रंग उड़ जाना,पाप पड़ना,सत्यानाश कर डालना आदि मुहावरों का सही प्रयोग मिलता है.कहानी सिलसिलेवार है.
थोड़े में कहें तो कहानी सिलसिलेवार ,रोचक और शिक्षाप्रद है. अभिभावकों को बच्चों से प्यार से रहना है. उनके सवालों के जवाब देना,शंकाओं का समाधान करना नादान बच्चों को खुश करना;और नादानी के भूलों से बचाना आदि शिक्षा मिलती हैं.
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2.कोटर और कुटीर. लेखक :-सियारामशरण गुप्त
कठिन शब्दार्थ:
कोटर==घने जंगल
कुटीर =झोम्पडी
बाट जोहना=रास्ता देखना ,प्रतीक्षा करना
परिखा=
क्षुधा=भूख
घनश्याम =बादल
पोखरी=
पुर्हरी=
अवस्था=आयु ,उम्र
खफ़ा=
निहाल हो जाना=
लेखक परिचय :-सियारामशरण गुप्त
सारांश :
मनुष्य को दूसरों की सम्पत्ती की चाह ठीक नहीं है.दूसरों से माँगना और कर्जा लेना भी स्वाभिमान के विरुद्ध है.एक कुटीर वासी ऐसे आदर्श जीवन से खुश होता है.कोटर में रहनेवाले चातक पुत्र वर्षा के पानी की प्रतीक्षा छोड़ गंगा की ओर उड़ रहा है.जब उसको गरीब बुद्धन की स्वाभिमान भरी बात में चातक का उदाहरण बताया तो चातक पुत्र का अपने खानदानी गौरव का पता चला.वह फिर गंगा की ओर जाना छोड़कर अपने कोटर की ओर लौटा. यह छोटी -सी कहानी में स्वाभिमान की आदर्श सीख मिलती है.
सार:
चातक पुत्र को अधिक प्यास लगी. उनके पिता जी से कहा कि प्यास के कारण मैं परेशान में हूँ. पिताजी ने समझाया कि हम तो वर्षा का पानी ही पीते हैं.इसी कारण से हमारे कुल का गौरव है.पुत्र ने कहा कि मनुष्य तो कुएं,तालाब ,आदि में वर्षा के पानी जमा करके कृषी करता है; तब पिता ने पोखरी का पानी पीने की सलाह दी. पुत्र ने उस गंदे पानी ,जानवर और मनुष्य का पीना,उसमें कीड़े का बिलबिलाना .आदमियों का उस पानी प्रदूषित करना; पुत्र ने वह विचार छोड़ दिया.उसे चार-पांच की दूरी पर गंगा का पानी पीने की चाह की. वह गंगा की तरफ उड़ने लगा. रास्ते में वह बुद्धन नामक गरीब बूढ़े के खपरैल के पास के नीम के पेड़ पर बैठा.
बुद्धन पचास साल का था उसका बेटा गोकुल १५-१६ साल का लड़का था.
वह काम के लिए गया और खाली हाथ लौटा. लौटने में देरी हो गयी.उसने पिताजी से देरी के कारण जो बताया,उससे उसके उच्च चरित्र का पता चलता है.उसको उस दिन की मजदूरी नहीं मिली.इंजीनियर के कहने पर ओवेर्सियर ने मजदूरी नहीं दी.सब चले गए.गोकुल को रास्ते पर एक रुपयों से भरा बटुवा मिला. गरीबी हालत में भी उसको उन रुप्योंवाले की उदासी और परेशानी का ही ध्यान आया. उसको मालूम हो गया कि वह बटुआ एक मेहता का है. तुरंत वह मेहता की तलाश में गया. मेहता का बटुवा सौंपा. मेहता बहुत खुश हुए.वे गोकुल को रूपये देने लगे. गोकुल ने उसे न लिया.
पिता जी को अपने बेटे की ईमानदारी पसंद आयी.पिताजी ने पुत्र से कहा कि तुम उधार ले सकते हो.गोकुल ने कहा कि उधार लेने की बात उस समय आयी ही नहीं.
आनंदातिरेक से वे बोल न सके.बुद्धन को लगा कि उसके क्षुधित और निर्जीव शरीर में प्राणों का संचार हो गया.वह पुत्र से बोला-अच्छा ही किया बेटा,यह उधार माँगना भी एक तरह का माँगना होता है.भगवान ने तुझे ऐसी बुद्धि दी है,मैं तो यही देखकर निहाल हो गया.दो-दिन की भूख हमारा कुछ बिगाड़ नहीं सकती.
चातक पुत्र ने यह सब सुना,बाप -बेटे की गरीबी में भी आत्मसम्मान और त्याग से उसकी आँखों से आँसू झरने लगे. वह गंगा की ओर उड़ना तजकर अपने कोटर पहुँचा . दुसरे ही दिन वर्षा हुई. उसको वर्षा के कारण चार दिन का उड़ान सात दिन हो गए.
कहानी कला की दृष्टी से कहानी की विशेषताएं:-
कथावस्तु:- ईमानदारी और आत्मसम्मान से जीना,कुल गौरव की रक्षा करना आदी सीख देना कथावस्तु है. इस कथावस्तु में लेखक ने चातक पक्षी द्वारा पोखरी के प्रढूषण,स्वार्थ आदि पर चित्रण किया है.बुद्धन और गोकुल के द्वारा गरीबी में भी उदार और ईमानदार रहने का चित्रण है.
पात्र: कहानी के पात्र हैं चातक,चातक पुत्र, बुद्धन ,गोकुल. ये सारे पात्र कहानी के लिए आवश्यक है. लेखक अपने उद्देश्य तक पहुँचने इन पात्रों का सही प्रयोग किया है.चातक -पुत्र द्वारा पानी प्रदूषण का जिक्र किया है.प्रदूषित पानी न पीकर चार मील की गंगा की ओर जाना,रास्ते में बुद्धन की झोम्पडी के पास के नींम के पेड़ पर बैठना,बुद्धन और गोकुल के संवाद सुनना,चातक पुत्र के विचार परिवर्तन आदि इन पात्रों के द्वारा सफल रूप में हुआ है.
संवाद:-चातक पुत्र और चातक की बातों से चातक पुत्र अपना खानदानी गुण और मर्यादा बदलना चाहता है. बुद्धन और गोकुल के संवाद से चातक पुत्र के बदले विचार . इस दृष्टी से संवाद सफल है.
उद्देश्य :-ईमानदारी से रहना,दूसरों से कुछ न माँगना, खानदानी आचार-विचार का पालन करना आदि सिखाना उद्देश्य है. इसमें सफलता मिली है.
शीर्षक :-कोटर और कोठरी - एक जंगल और दूसरा गरीबों की झोम्पडी; दोनों में महान गुण; इस दृष्टी से शीर्षक भी उचित है.
इस प्रकार कहानी कला की दृष्टी से कहानी सफल है.
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३. उसने कहा था कहानीकार :चंद्रधर शर्मा 'गुलेरी'
कठिन शब्दार्थ :-
मरहम लगाना=दवा लगाना
तरस खाना =दया दिखाना
सताना =तंग करना
उदासी के बादल फटना=दुःख दूर होना
चकमा देना=धोखा देना
किलकारी =खुशी की
पैरवी करना=
ख़िताब=उपाधी
नीलगाय=
लेखक परिचय :-
सारांश:
चंद्रधर शर्मा "गुलेरी" की यह कहानी उनको हिंदी कहानी साहित्य गगन में चार चाँद लगा दिये।
लहनासिंह अपनी एक पक्षीय प्रेयसी के पति और पुत्र के प्राण बचाने अपने प्राण देता है.इस कथानक को मर्मस्पर्शी ढंग से लिखकर लेखक ने पाठकों के दिल में स्थायी स्थान पा लिया।
अमृतसर के चौक की एक दूकान पर बारह साल का एक लड़का और आठ साल की लड़की अकस्मात् मिलते हैं।दोनों एक दूसरे से परिचित होने के बाद रोज़ लड़का लड़की से पूछता है कि क्या तेरी शादी हो गयी। वह रोज "धत" कहकर दौड़ जाती है। एक दिन लड़की ने 'हाँ' कहा और उसके प्रमाण में रेशम से कढ़ा हुआ सालू दिखाया और भाग गई।
लड़के के मन में उस लड़की से प्रेम था। लेखक ने उसके प्रेम को यों लिखा है ---लड़की भाग गयी,पर लड़के रस्ते में एक लड़के को मोरी में ढकेल दिया। एक छाबड़ीवाले के दिन -भर की कमाई खोयी,एक कुत्ते पर पत्थर मारा;एक गोभीवाले के ठेले में से दूध उंडेल दिया;सामने नाहकत आती हुयी किसी वैष्णवी से टकराकर अंधे की उपाधी पायी,तब कहीं घर पहुँचा। उसके एक पक्ष प्रेम को लेखक दर्शाने के बाद की कहानी पच्चीस साल के बाद शुरू होती है। यह अंतर में इतना सम्बन्ध है कि कहानी और रोचक बन जाती है. लड़के का नाम लहना सिंह है।
अमृतसर बाज़ार की उपर्युक्त घटना के बाद जर्मन की युद्ध भूमि के खंदकों में कहानी जुड़तीहै।
वहाँ लुधियाना से दस गुना जाड़ा है। वजीरा सिंह उस पलटन का विदूषक था। उसी के कारण वहाँ की उदासी खुशी में बदल जाती है।
लहनासिंह बड़ा होशियार था। वहाँ के सूबेदार वज़ीर सिंह था। उसका बेटा बोधा सिंह था। एक बार लहनासिंह छुट्टियों में सूबेदार के यहाँ गया। तभी उसको मालूम हो गया कि सूबेदारनी वह लड़की थी जिसे वह अमृतसर के बाज़ार में मिला करता था। तब सूबेदारनी ने कहा कि मेरे पति और बेटे की रक्षा करना। तब वह यह घटना भी याद दिलाती है कि अमृतसर केबाजार में एक दिन तांगेवाले का घोडा दहीवाले की दूकान के पास बिगड़ गया था। उस दिन लहनसिंह ने उस लड़की के प्राण बचाये थे। वैसे ही बचाना। तब से लहना सिंह उन दोनों की देखरेख करता था। इसको पाठक तभी समझ सकते हैं जब लहना शत्रुओं से वज़ीर सिंह और बोधसिंह को सुरक्षित भेजकर गोली खाकर मृत्यु की अवस्था में पुराणी स्मृति में अंतिम घड़ी में है। यही हृदयस्पर्शी चित्रात्मक वर्णन है।
जर्मन का एक सैनिक अफ्सर भारतीय लपटन साहब बनकर आया था। उसकी शुद्ध उर्दू से लहनासिंह को मालूम हो गया कि वह छद्मवेशी जर्मनी है। उसने सिगरेट दी ;और बताया कि नीलगाय के दो फुट सिंग थे। इन सब से सतर्क हो गया.
तुरंत वह सूबेदार को खबर दी और भेज दिया। केवल आठ ही भारतीय वीर सिपाही सत्तर से ज्यादा जर्मन
सिपाहियों को मा रने में समर्थ हुए। नकली लपटन साहब के हाथ जेब में हाथ थे। उसी की गोली से लहना घायल हो गया। फिर भी सूबेदार और बोधासिंह को अमबुलंस में सुरक्षित भेज दिया। तब उसने बोधासिंह से सूबेदारनी को खबर दी कि मुझसे उसने जो कहा था ,वह मैंने कर दिया।
इन पहली स्मृतियों और सूबेदारनी की बात पालन करके लहनासिंह चल बसा। यही उसने कहा था।
कुछ दिन पीछे लोगों ने अखबारों में पढ़ा --
फ्रांस और बेल्जियम --६८ वीं सूची --मैदान में घावों से मारा -नं ०. ७७ सिख राइफ़ल्स जमादार लहनासिंह।
वास्तविक कारण केवल लहनासिंह को ही मालूम था। अपने लड़कपन के अबोध प्रेम निभाने जान दी है। कितना बड़ा त्याग; आदर्श प्रेम में प्राण देकर सूबेदारनी की जान बचाना त्याग की चरम सीमा है.
कहानी कला की दृष्टी से कहानी की विशेषताएं:
कथानक:- चंद्रधर शर्माजी की कहानी "उसने कहा था" का कथानक बचपन के अज्ञात प्रेम के लिए प्राण त्यागना वह भी सूबेदारनी ने कहा था ; मर्मस्पर्शी कहानी है.; इस दृष्टि से कहानी सफल है.
पात्र :-लहनासिंह ,वजीर सिंह ,बोधा सिंह,सूबेदारनी ; ये चारों पात्र कहाने को सिलसिलेवार ढंग से विकास करते हैं.सूबेदारनी और लहनासिंह के प्रथम मिलन,पच्चीस साल के बाद पुनः मिलना, सूबेदारनी पुरानी बचाव की घटना याद दिलाकर अपने पति और बच्चे की सुरक्षा की प्रार्थना, ,बोधा की जान बचाना,खुद घायल होकर प्राण त्यागना कितना मर्स्पर्शी चित्रात्मक शैली. पात्रों की दृष्टि से कहानी सफल है.
कथोपकथन: कथोपकथन अत्यंत रोचक है. लहना--तेरी कुडमाई हो गयी;
लडकी =हाँ,देखो रेशम का सालू.
लड़के का तेज़ भागना,कुत्ते पर पत्थर फेंकने आमने आनेवालों पर टकराना कितना यथार्थ चित्रण.
सूबेदार और बोधा को आम्बुलंस में बिठाने के बाद लहना सूबेदारनी को सन्देश देता है:
जब घर जाओ तो कह देना कि मुझसे जो उसने कहा था , वह मैंने कर दिया.
प्राणाघात सहते हुए ---अब आप गाडी पर चढ़ जाओ! मैंने जो कहा वह लिख देना और कह भी देना.
गाडी के जाते ही लहना लेट गया! 'वजीरा,पानी पिला दे और कमरबंद खोल दे. तर हो रहा है.
कितना ह्रदय स्पर्शी संवाद.
चरम सीमा ;-पुरानी स्मृतियाँ ; और उसके कारण पाठकों को वास्तविक त्याग का पता चलना; लहना का प्राण पखेरू उड़ जाना;
शीर्षक : शीर्षर कहानी की सफलता के लिए अत्यंत उचित है. सूबेदारनी ने कहा; बोधा की जान बचाई; और खुद जान गंवा दी.
देश-काल वातावरण: अमृतसर की गली में इक्केगादिवाले की भाषा ,बचो खालसाजी,हटो भाई जी,हटो बाछा.,जीने जोगी. पंजाबी शब्द ; कुडमाई हो गयी,धत, ,और जर्मन खंदकों का सजीव चित्रण , आदिमें लेखक की शैली तारीफ के योग्य है; फिर अंतिम घड़ी में लहना की स्मृतियों का चित्रामक शैली सचमुच आदर्श कहानी है.
भाषा शैली: कहानी पंजाब की गली और बाज़ार से शुरू होती है;उसके अनुसार पंजाबी शब्द मिलते है; कान पकना,राह खोना,अंधे की उपाधी पाना,,मत्था टेकना आदि मुहावरों का प्रयोग. चित्रात्मक वर्णनात्मक शैली;
इस प्रकार गुलेरी जी की यह काहानी सभी दृष्टियों में सफल है.
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4.सिक्का बदल गया. --
४.सिक्का बदल गया----कृष्णा सोबती
कठिन शब्दार्थ :
पौ फटना---सबेरे होना
नज़र उठाना- देखना
प्रतिहिंसा =बदला
विचलित होना =लाचार होना
संकेत करना =इशारा करना
आहत=दुखी
सारांश : देश की आजादी हुयी; देश में हिन्दू -मुस्लिम कलह,हत्या आदि के बाद शरणार्थी देश छोड़कर चलने लगे. सबको अपनी संपत्ति छोड़ शरणार्थी मुकाम भेजे गए. जिसका जीवन अधिकार,सत्ता, आडम्बर पूर्ण था, वे सब खोकर शरणार्थी मुकाम में रहे. इसीका चित्रण है "सिक्का बदल गया".शासन बदल गया तो जीवल शैली ही बदल जाती है.
इस कहानी की नायिका की मनोदशा का सही चित्रण हुआ है. शाहनी खद्दर की चादर ओढ़े चनाब नदी में राम .राम करके नहाकर बहार आयी तो क्रांतिकारियों के अगणित पाँवों के निशान थे. उसको इस प्रभात की मीठी नीरवता में भयावना-सा लग रहा था. शाहजी की लम्बी चौड़ी हवेली में अकेली है.शाहनी ,शाह की पत्नी है; सबकी मदद कर रही थी; शेरा की माँ स्वर्ग सिधारी तो उसको पालने लगी; शेरो की पत्नी हसैना को बहुत चाहती है; शेरा उसके मुग़ल क्रान्तिकारियीं से मिलकर उसकी हत्या करने की स्थिति में आ गया. अब वह शरणार्थी मुकाम में पुराणी स्मृतियों में पीड़ित है. उसको पुराने शाही जीवन की यादें है, उस चनाब नदी के इलाके में उसका आदर था. अब वह अनाथिनी है. लोग जब शरणार्थी मुकाम जाने लगी ,तब दुखी हो गए. थानेदार दाऊद खान मुकाम में ले आने आया तो सोना-चांदी लेकर जल्दी निकलने को कहा. एक जमाने में वह शाहनी की सेवा करता था. शाहनी ने उसकी मदद की थी. . शाहनी अपने साथ कुछ भी लेने तैयार नहीं थी.
शाहनी ने कहा--सोना-चांदी सब तुम लोगों के लिए है. मेरा सोना तो तो एक ज़मीन में बिछा है.
सब शानी के मुकाम की ओर जाने से दुखी थे. अंत में वह मुकाम पहुँच गयी.
हिन्दू -मुस्लिम कलह देश को टुकड़े करने का प्रभाव शोक प्रद था.
रात को शाहनी जब कैम्प में पहुँचकर ज़मीन पर पडी तो लेटे-लेटे आहत मन से सोचा,"राज़ पलट गया है...सिक्का क्या बदलेगा? वह तो मैं वहीं छोड़ आयी....
शाहनी की आँखें और भी गीली हो गयी.
कलह के कारण आस-पास के हरे-हरे खेतों से . घिरे गाँवों में रात खून बरसा रही थीं. राज पलटा खा रहा था और सिक्का बदल रहा था. रूपये ,डालर,यूरो आदि.
कथानक: देश की आज़ादी की लड़ाई ,बंटवारा,हिन्दू -मुग़ल की अशांति, हत्याएं,जिसको सत्ता था ,वे सत्ता हीन. शरणार्थी कैप; गद्देदार बिस्तर पर जो सो रहे थे,वे दीनावस्था में पीड़ित ज़मीन पर सो रहे थे. इस दर्दनाक वातावरण के आधार पर कथानक सफल है.
पात्र : शाहनी विधवा,बड़े हवेली की मालकिन आज अकेली थी; उससके अधीम जो थे ,वे दूर चले गए; उससे पालित पूत शेरा मुग़ल क्रांतिकारियों से मिलकर उसकी हत्या करने की योज़ना में शामिल था. उनकी पत्नी हसैना था.थानेदार दाऊद खां उसे कैम्प ले जाने आगे आ गया. ट्रक पर वह चढी तो लीग के खूनी शेरे का दिल टूट रहा था.इस प्रकार शाहनी के जाने से सभी दुखी थे. इस प्रकार सारे पात्र सफल हैं.
कथोपकथन:--शाहनी अपने पालित पुत्र शेरा के लीग से मिलना पसंद नहीं . उसने शेरे को बुलाया. वह शेरे की पत्नी से यह बात प्रकट करती है--हसैना, यह वक्त लड़ने का है? वह पागल है तो तू ही जिगरा कर लिया कर.फिर अपने प्रेम प्रकटकर बोली ---"पगली, मुझे तो लड़के से बहू अधिक प्यारी है इस संवाद से शाहनी के स्नेह का पता चलता है.
दूसरा संवाद तब होता है ,जब थानेदार दाऊद खां सोना -चांदी बाँध लेने की बात कहता है. तब शाहनी की उदासी वाक्य--"सोना -चाँदी. वह सब तुम लोगों के लिए है.मेरा सोना तो एक ज़मीन में बिछा है.
नकदी प्यारी नहीं!यहाँ की नकदी यहीं रहेंगी. इससे शाहनी के उदार चरित्र का पता लगता है. इस दृष्टि से कहानी सफल है.
उद्देश्य : देश के बंटवारे और बेकार खून-हत्याएँ , अमीर शाही जीवन बितानेवालों की दुर्दशा आदि का चित्रण करना लेखक का उद्देश्य है. इस दृष्टि से कहानी सफल है.
शीर्षक :- सिक्का बदल गया उचित शीर्षक है.शासन के बदलते ही सिक्का भी बदल जाता है. बँटवारे के कारण सब कुछ बदल गया. हिन्दू-मुस्लिम की एकता,प्यार -मुहब्बत चला गया .
इस प्रकार कहानी कला की दृष्टि से कहानी सफल है.
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5.पुर्जे लेखक :इब्राहिम शरीफ
कठिन शब्दार्थ:
चेहरा मलिन लग्न= उदासी रहना
चल बसना =मर जाना
निदान - जांचकर पतालगाना
काबू =वश
वाकई =सचमुच
जूँ तक नहीं रेंगना =कोई असर न रहना
हौला =धीरे
लोट-पोट होना=
ज़ाहिर होना =प्रकट होना
हिम्मत हारना =धैर्य खोना
लहसन =गार्लिक பூண்டு
बेमुरव्वती -अनादर
अदना =नीच
चेहरा तमतमा आना=गुस्सा होना
क्षोब होना=दुःख होना
रफ्तार =वेग,तेज़
सारांश :
` इस कहानी में डाक्टर की लापरवाही ,निर्दयता और मध्य वर्ग की आर्थिक परेशानी,श्राद्ध का महत्त्व देना,साहित्य पढने पर नौकरी न मिलना आदि बातें सामाजिक उलझाने प्रकट करती है; इलाज के अभाव और डाक्टर का न आना माँ की मृत्यु के कारण बन जाते हैं.
भाई -बहन दोनों पढ़े लिखे हैं .बहन बी.ए डिग्री वाली थी. खूब सूरत थी; उसके योग्य वर न मिला;वर मिलने पर दहेज़ की समस्या; घर की आर्थिक दशा ख़राब थी. माँ को अनुभव हुआ बेटी को पढ़ाकर भूल हो गयी. बेटी जब अंतिम साल पढ़ रही थी ,पिता मर गए. भाई एम्.ए., साहित्य.
इसी बीच माँ के दाहिने हाथ बेकार हो गए. बहन ने डाक्टर को बुलाने का आग्रह किया. भाई डाक्टर बुलाने गया तो डाक्टर नहीं आये और कहा कि लकवा लगा होगा; लहसन का लेप करो.
घर में रूपये जो थे ,वे पिता के श्राद्ध के लिए थे. अकेले भाई के आते देख बहन चिल्लाई कि माँ की तबियत खराब होती जा रही है; डाक्टर को बुला लाओ; पर डाक्टर नहीं आये,वे एल.ऐ.एम् है. उन्होंने साफ बता दिया कि दवा नहीं है; मिलना मुश्किल है; फिर दवा का पुर्जा लिखकर दिया. घर आया तो बहन ने पुर्जे को टुकड़े -टुकड़े कर डाले.माँ की आँखों की रिक्तता चारों तरफ घिरने लग गयी थी.
डाक्टर के न आने से ,दवा समय पर नहीं मिलने से माँ चल बसी. मध्यवर्ग में ऐसा ही होता है.कहानी का सिलसिला मर्माघात है.
कहानी कला की दृष्टि से कहानी की विशेषताएं :-
कथानक: मध्य वर्ग की परेशानियां और डाक्टर की लापरवाही और निर्दयता दर्शाना कथानक है,इसको कहानी के आरम्भ से अंत तक ठीक ढंग से ले चलते है. इस दृष्टि से कथा सफल है.
पात्र : इसके चार पात्र हैं ;भाई,बहन,माँ,डाक्टर. चारों कहानी के विकास के लिए आवश्यक है. भाई और बहन माँ की बीमारी से दुखी है. डाक्टर की लापरवाही समाज का शाप है. डाक्टर को भाई लेने गया तो वे अपनी बेटी की शादी और खर्च की चिंता प्रकट करते है. शादी की दौड़-धूप करने की बात करते है. समाज में बिना रुपयों का जीना दुश्वार हो जाता है. साहित्य का स्नातकोत्तर भाई यह महसूस करता है कि मन्त्रों से ,कालिदास ,ठागुर,ग़ालिब के पढने से क्या लाभ; माँ की बीमारी दूर करने असमर्थ हूँ. मन्त्रों से माँ कैसे ठीक होगी.ये पात्र सामजिक दर्द भरी स्थिति का यथार्थ चित्रण लाने में समर्थ है.
संवाद:संवाद कहानी के कथानक को जोर देने में सफल है.
घर में श्राद्ध के पैसे हैं. उन पैसों से माँ का इलाज करना है. बेटी तैयार है तो माँ कहती है--
नहीं बेटा,भूलकर भी ऐसा मत करना.मैं मर भी जाऊँ,उसमें से एक पैसा न लेने दूँ...मरकर उन्हें क्या जवाब दूँगी.
भारतीय नारी श्राद्ध पर अपनी जान से अधिक विश्वास रखती है.
डाक्टर के बुलाने पर डाक्टर :-भई..बात यह है,लडकी की शादी है,अगले महीने ..बड़ी दौड़ धूप करनी पढ रही है. इधर मरीजों को देखने कम जा पा रहा हूँ. डाक्टर की इतनी लापरवाही; इस प्रकार कथोपकथन कहानीकार के उद्देश्य पर पहुंचाकर सफल रूप बन गया है.
भाषाशैली :-भाषा सरल और मुहावरेदार है.यथार्थ में आदर्श मिलता है. कान में जूँ न रेंगना,चेहरा तमतमा होना चेहरा मलिन होना जैसे मुहावरों का प्रयोग है.इस दृष्टी से कहानी सफल है.
शीर्षक : पुर्जे शीर्षक है. डाक्टर इलाज करने नहीं आया;केवल पुर्जे लिखकर दिया; इससे कोई फायदा नहीं. दवा नहीं दी. शीर्षक ठीक है.
अंत : माँ की मृत्यु बिना दावा के पुर्जे के कारण.धनाभाव ,उसके कारण डाक्टर का न आना ,मृत्यु;- यह अंत मर्मस्पर्शी है.
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6. गूंगे - रांघेय राघव
कठिन शब्दार्थ :
संकेत करना =इशारा करना
बासी =पुरानी
दम =पूँछ
मूक =मौन
प्रतिहिंसा =बदला
परखना =जाँचना
चुनौती देना=ललकारना
अवसाद =दुःख
सारांश :
रांगेय राघव ने "गूंगे" कहानी में एक गूंगे की व्यथा का मर्मस्पर्शी चित्रण किया है. समाज के शोषित-पीड़ित मानव के जीवन के यथार्थ मार्मिक चित्रण की कहानी है -"गूंगे "
चमेली के दो बच्चे हैं . एक लडकी और एक लड़का. नाम है शकुंतला और बसंता..
कहानी के आरम्भ में घर के काम करने एक गूंगे को बुलाते है.वह जन्म से बहरा था;इसी कारण गूंगा बन गया. चमेली उससे इशारे पर ही काम लेती.
गूँगा अनाथ था. उसके जन्म लेते ही उसके पिताजी मर गए. माताजी निर्दयी;वह भी उसे छोड़कर भाग गयी. उसको किसने पाला ,पता नहीं,पर जिसने पाला है,वे उसे बहुत मारते थे .
बेचारा गूँगा बिना थके काम करता; हलवाई के यहाँ कढ़ाई माँची;कपडे धोये;सब करने पर भी मार ही मिला. ये सब पेट के लिए सह लेता. इतनी बातें इशारे से ही गूंगे ने चमेली को समझाया.
चमेली दयालू थी;अनाथाश्रम के बच्चों के लिए रोती थी. उसने गूंगे को अपने घर में नौकर रख लिया .. चार रूपये वेतन ; गूंगा मान गया.
उसको बुआ मारती; बच्चे चिढाते; वह एक स्थान में टिकता नहीं था; जब चाहे भाग जाता और वापस आ जाता.एक दिन बसंता ने कसकर गूंगे के चपत जड़ दी. गूंगा उसे मारने हाथ उठाया,पर मालकिन के बेटे को कैसे मारता. उठे हाथ को रोक लिया. बेटे को मारने हाथ उठाना असहनीय बात थी. चमेली कुछ बोली तो वह समझ नहीं सका. चमेली को उस पर दया आ गयी. गूंगा क्रोध भरी मालकिन का हाथ पकड़ा तो चमेली को उस पर घृणा आयी; वह अपने बेटे से बलवान था, बेटे को न मारा; मारा तो उसने गूगे को गाली दी.बेचारा रोने लगा. चमेली उसे घर से निकाल दिया. चमेली की गाली सुन वह मंदिर की मूर्ती के सामान चुप खड़ा रहा.गुस्से में चमेली ने गूंगे को दरवाज़े के बाहर धकेलकर निकाल दिया.
करीब एक घंटे के बाद गूंगा वापस आ गया,गली के लड़कों के पीटने से उसका सर फट गया था. दरवाजे पर वह कुत्ते की तरह चिल्ला रहा था,
चमेली उसे चुपचाप देख रही थी; उस मूक अवसाद में युगों का हाहाकार गूँज रहा है..
वह गूंगा था.जिनके ह्रदय की प्रतिहिंसा न्याय और अन्याय को परखकर भी अत्याचार को चुनौती नहीं दे सकती,क्योंकि बोलने के लिए स्वर होकर भी -स्वर में अर्थ नहीं है.
एक गूँगे की दयनीय स्थिति का इससे अधिक कैसे चित्रण कर सकते हैं.
कहानी कला की दृष्टि से विशेषताएं:-
कथानक:-समाज के शोषित पीड़ित मानव के यथार्थ मार्मिक चित्रण कथानक है. गूँगे कठोर परिश्रमी,फिर भी समाज से घृणित दिल्लगी का पात्र. मार खाकर सिवा रोना; पेट के लिए काम करना.इसका सही चित्रण कहानी को सफल बनाता है.
पात्र : गूंगा,चमेली,उसके पति,उसकसंताने बसंता और शकुंतला. लेखक गूंगे की दर्दनाक दशा को चमेली द्वारा प्रकट करते हैं. चमेली उदार और दयालू थी; मानव स्वभाव के अनुसार मानसिक कमजोरी के कारण गूंगे पर पक्षपात. सारे पात्र कहानी को सफल बनाते है.
संवाद; चमेली बोलती है; गूंगा चुप; उसके रोने -हंसने चिल्लाने से करुणा का पात्र बनता है.
शीर्षक ; गूंगे --समाज से पीड़ित -शोषित गूंगे का मार्मिक चित्रण ही कथानक है. अतः शीर्षक उचित है.
चरमसीमा; चमेली गूंगे को जबरदस्त घर से निकालती है; यही चरम सीमा है.
अंत:गूगे का वापस आना; उसके सर पर चोट; दर्दनाक दृश्य ; अंत लेखक के उद्देश्य तक पहुंचा देता है.
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७.बदला -- आरिगपूडी
कठिन शब्दार्थ :
काले अक्षर भैंस बराबर== निरा अनपढ़
गौर =ध्यान
मिन्नत --निवेदन ,प्रार्थना
प्राण खाऊ =प्राण लेनेवाला
घूसखोरी =रिश्वत
तहकीकात =पूछताछ
बीयाबान =उजाड़ा
पोल खुलना =रहस्य प्रकट होना=भंडा फोड़ना
भेद --रहस्य
सारांश :
आरिगपूड़ी ने इसमें भ्रष्टाचारों और रिश्वत खोरों की निर्दयता का चित्रण किया है. सरकारी अस्पताल में मामूल के बिना रोगियों को सही इलाज नहीं मिलता. लेखक का उद्देश्य ग्रामीण ,पीड़ित अनपढ़ कोटय्या पर हुयी निर्दयी अत्याचार को प्रकाश में लाना था.
सारांश :
धम्म पट्टनम में एक सरकारी अस्पताल है. उसमें कदम कदम पर घूसखोरी.भ्रष्टाचार ,दिन दहाड़े "मामूल" वसूला जाता है. लोग वहाँ देने के आदि हो गए,कर्मचारी लेने के.
कोटय्या अनपढ़ गरीब किसान था. वह अपनी गर्भवती पत्नी सुशीला को इलाज के लिए अस्पताल ले आया.उसके गाँव के आसपास बीस मील तक कोई अस्पताल न था;कोई डाक्टर.
धम्मपटटनम अस्पताल में फाटक से मामूल शरू हुआ. चवन्नी देकर अन्दर गया. अस्पताल में घुसते ही पत्नी बेहोश हो गयी. अस्पताल के कोई भी कर्मचारी कोटय्या की पत्नी के इलाज की मदद करने नहीं आये. अंत में डाक्टर पद्मा वहां आयी. पद्मा ने कोटय्या की पत्नी को भरती करवा दिया. वह पत्नी के लिए प्रार्थना करने लगा.
कुछ देर बाद ,उसको बताया गया कि प्रसव के पहले ही उसकी पत्नी चल बसी. लाश के देखने पर पता चला कि इलाज नहीं किया गया. लाश उठाने किसीने मदद नहीं की.
वह अपनी मालिक की बैल गाडी से पत्नी को लेकर आया था; उसी गाडी में लाश लिटाकर वापस ले गया. उसके मन में दुःख,क्रोध,प्रतिकार,गाडी के चर्मर की तरह गुन-गुना रहे थे.
गाँव में अंतिम संस्कार करके तेरहवीं के होते ही कोटय्या धम्मपट टनम लोटा. वह अस्पताल के सामने भूख हड़ताल करने लगा.तीन दिन के बीतने पर भी किसी ने उस पर ध्यान नहीं दिया. उसके पास एक कपडे पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था --"इस अस्पताल से प्राण खाऊँ घुखोरी हटाओ."
चंद दिनों में उसके हड़ताल के समर्थन में शहर के दो -तीन नेता आये,देखते देखते शिकायतों का ढेर -सा लग गया. तहकीकात का इंतजाम हुआ. पूछ-ताछ में बहुत सी बातें प्रकाश में आयी. कई बातें डाक्टर पद्मा को मालूम नहीं थीं. पद्मा अपने बयान देने तैयार हुयी. वहां तो सब के सब भ्रष्टाचारी थे; अपने रहस्य खुलना नहीं चाहते, सब भ्रष्टाचारी मिलकर डाक्टर पद्मा की हत्या करके कोटय्या को अपराधी ठहराने में सफल हो गए. कोटय्या कैद हो गया.
पत्नी के चल बसते ही वह मरने तैयार था. समाज में कुछ करना चाहता था. वह न जानता था कि उसके हाथ पैर बांधकर .उसे धकेलने का यूँ प्रयत्न किया जाएगा.
निर्दयी संसार एक ईमानदार अनपढ़ कोटय्या को हत्यारा साबित कर दिया.
कथानक : लेखक आरिगपू डी ने भ्रष्टाचारियों के अत्याचार का भंडा फोड़ने का कथानक ले लिया. कोटय्या के द्वारा ग्रामीण अनपढ़ पर होने वाले सरकारी भ्रष्टाचारियों की निर्दयता का चित्रण किया है.
पात्र : कोटय्या ,डाक्टर पद्मा इस कहानी के पात्र हैं. अनपढ़ कोटय्या प्राण खाऊँ गुस्खोरी हटाने हड़ताल किया. भंडा फोड़ने का सैम आया तो भ्रष्टाचारियों ने डाक्टर पद्मा की हत्या करके कोटय्या को खूनी सिद्ध करने में सफल हुए.
ग्रामीण कोटय्या ने चिल्लाया कि मैं निर्दोष हूँ ,मैंने यह हत्या नहीं की है. मामूल के आदी मुलाजिम मुस्कुरा रहे थे, पर उनके मन कह रहे थे..जो उनके बारे में और भेद बता सकती ,वह डा . पद्मा जान से गयी और अपराध भी उनके सर पर न आकर,किसी गँवार के सिर पर न आकर ,किसी गँवार के सर पर मढ दिया गया था. हो भला इस कोटय्य का.
संवाद: आत्मकथन,संवाद आदि लेखक ने सफल बनाया है.अस्पताल में ... कोटय्या का आत्मकथन :
"कुछ भी हो ...सुशीला जीती रहे,बच्चे हो तो भला पर वह जिन्दा रहे,हे भगवान् ..".
कैद होते ही कोटय्या गला फाड़कर चिल्ला रहा था --मैं निर्दोष हूँ ,मैंने यह ह्त्या नहीं की है. मैं कुछ नहीं जान्त्सा,मुझ पर यह झूठ-मूठ हत्या का अपराध थोपा जा रहा है.. ऐसे संवाद कहानी को ह्रुदय्स्पर्शी बनाने में सफल है.
शीर्षक : "बदला " शीर्षक उचित है. कोटय्या भ्रष्टाचारियों से बदला लेना चाहता था.भ्रष्टाचारियों ने उससे बदला लिया है. शीर्षक उचित है.
चरम सीमा :-डाक्टर पद्मा की हत्या चरम सीमा है.
उद्देश्य : भ्रष्टाचार और उसकी निर्दयता को प्रकाश में लाना लेखक का उद्देश्य था. इसमें सफलता मिली है.
अंत : कहानी का अंत मर्म स्पर्शी और लेखक के उद्देश्य तक पहुंचाता है.
इस प्रकार कहानी कला की दृष्टि से कहानी सफल है.
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८. वापसी
लेखक :उषा प्रियंवदा
कठिन शब्दार्थ :
नज़र दौडाना =देखना
नाक -भौं चढ़ाना =नफरत से देखना
निस्पंग दृष्टि = एकटक देखना
खिन्न होना =दुखी होना
फूहड़पन = अत्यंत अनुपयोगी
ताने देना =गाली देना (मज़ाक भरे )
ठगे जाना =धोखा देना
विविध =नाना प्रकार ,कई तरह
वार्तालाप =संभाषण.
सारांश :
गजाधर बाबू पैंतीस साल की नौकरी के बाद रिटयर हो गए. उनको रेलवे क्वार्टर खाली कर ने का दुःख था. घर जाने की खुशी में भी उनको दुःख था कि एक परिचित .स्नेही,आदरमय ,सहज संसार से उनका नाता टूट रहा था. फिर भी अपने घरवालों से मिलकर रहने का आनंद आ रहा था. अपने सेवाकाल में अधिकांश समय वे अकेले ही बिता रहे थे.
घर जाने के बाद वे अपने को अकेले महसूस करने लगे. उनकी हर बात उनके घरवालों को कडुवी लगी.
उनका बेटा नरेन्द्र फ़िल्म गाना गा रहा था.उनकी बहु और बेटी वसंती हँस रही थीं. उनकी खुशी में भाग लेने गजाधर चाहते थे. पर उनके आते ही सब चले गए. वे अपने को अकेले पाये. वे उदास हुए. पत्नी पूजा करके वापस आयी. पति के अकेले बैठे देखकर पूछा तो गजाधर ने इतना ही कहा --अपने=अपने काम में लग गए.
पत्नी चौके में गयी तो देखा जूठे बर्तनों का ढेर था. वह काम में लग गयी. गजाधर को चाय और नाश्ते समय पर न मिले. उसको रेलवे के नौकर गणेश की याद आयी;वह समय पर चाय पिलाता था.
गजाधर अपनी बेटी से अपनी पत्नी को आराम देने के विचार से कहा कि शाम का खाना तुम बनाओ; सुबह का भोजन भाभी बनाएंगी. पिताजी का यह कहना वसंती को पसंद न था.
गजाधर को अपने बिस्तर की समस्या हुयी; उनको हर बात में दखल देना घरवालों को पसंद नहीं आया. गजाधर ने अनुभव किया कि वह पत्नी और बच्चों के लिए केवल धनोपार्जन के निमित मात्र है.
एक दिन नौकर के काम ठीक तरह से न करने की चर्चा हुयी तो नौकर का हिसाब कर दिया. घर की आमदनी भी कम थी. खर्च ज्यादा है.
बेटे को बहु ने इसकी सूचना दी. इस घटना के बाद नरेन्द्र,अमर,वसंती सब के सब गजाधर की आलोचना करने लगे.
पत्नी भी उनके अनुकूल बातें नहीं की.
गजाधर ने पुनः नौकरी करने का निश्चय कर लिया. उनको एक मिल में काम मिल गया.दुसरे दिन पत्नी से सीधे कहा कि मुझे सेठ रामजीमल की चीनी मिल में नौकरी मिल गयी. परसों जाना है. पत्नी तैयार नहीं हुयी. उसने कहा कि मैं चलूंगी तो क्या होगा.
वे घर से निकले तो किसीने न रोका. नरेन्द्र ने बड़ी तत्परता से बिस्तर बाँधा. वे चले गए. घरवालों ने इसकी चिंता न की.बहु ने अमर से पूछा ,"सिनेमा ले चलिए.वासंती भी तैयार थी. सिनेमा जाने. गजाधर की पत्नी चौके में चली गयी.पत्नी को भी पति की चिंता नहीं. वह कहने लगी--बाबूजी की चारपाई कमरे से निकाल दे. उसमें चलने तक को जगह नहीं है.
रिटायर होने के बाद पुरुषों की दयनीय दशा का चित्रण खूब हुआ है.
कथानक : रिटायर आदमी की मनः स्थिति और घरवालों के लापरवाही पर समाज का ध्यान दिलाना कथानक है.आरम्भ से अंत तक हर बात में गजाधर उदासीनता का ही सामना करता है. अपने बेटे.बेटी ,बहु की खुशी में भाग ले न सके. पुत्र,बहु,बेटी सब उसकी शिकायत माँ से करते हैं. वे वापस नौकरी को निकलते हैं. उनके जाते ही सिनेमा जाने की इच्छा प्रकट करते हैं. माँ पति की चारपाई निकालने का आदेश देती है. किसीको गजाधर वापस चले गए ,इसकी चिंता नहीं.
पिता तो धनोपार्जन के लिए है. इसप्रकार कथानक सफल है.
पात्र : वापसी कहानी के पात्र हैं -गजाधर,नरेन्द्र ,वसंती, गजाधर की पत्नी ,अमर की बहू आदि. यह एक पारिवारिक कहानी हैं. पिताजी गजाधर पैंतीस साल की सेवा के बाद रिटायर हो गए. उनके वापस नौकरी जाने के कारण ये पात्र हैं.
परिवार से अधिकांश अकेले रहकर रिटायर के बाद परिवार के सदस्यों से मिलकर रहने आते हैं.लेकिन उनके पुत्र ,बेटी ,बहू सब के सब उनको घर में रहना पसंद नहीं करते.इस "वापसी" शीर्षक की सफ्सलता में इन पात्रों का मुख्य भाग है.
कथोपकथन : कथोपकथन की दृष्टी से कहानी सफल है. गजाधर के बारे में अपनी मान से नरेन्द्र,वासंती,बहू सब
शिकायत करते हैं. गजाधर इनको सुनकर पुनः नौकरी जाने तैयार हो जाते हैं.
नरेंद्र ---अम्मा ,तुम बाबूजी से कहती क्यों नहीं. बैठे-बिठाए कुछ नहीं तो नौकर ही छुड़ा लिया.
वसंती-मैं कालेज भी जाऊँ, और लौटकर झाडू भी दूं?
अमर----बूढ़े आदमी है, चुपचाप पड़े रहें. हर चीज़ में दखेल क्यों देते हैं.
पत्नी: और कुछ नहीं सूझा तो तुम्हारी पत्नी को ही चौके में भेज दिया. वह गयी तो पंद्रह दिन का रेशन पांच दिन में बनाकर रख दिया.
नौकरी वापस जाने ये कथोपकथन ही चरम सीमा है.
भाषा शैली : सरल भाषा है. यथार्थ भारतीय परिवार का चित्रण है. मुहावरों का प्रयोग भी है जैसे नज़र दौडाना,नाक -भौं चढ़ाना, आदि.
शीर्षक : वापसी शीर्षक उचित है.गजाधर रिटायर होकर परिवार के सदस्यों के साथ रहने आये. फिर नौकरी करने वापस जाते हैं. सामज में पिताजी के प्रति सहानुभूति जगाने में कहानी सफल है.
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९.डिप्टी कलक्टरी लेखक :---अमरकांत.
कठिन शब्दार्थ :---
मुवक्कील =client
म्हार्रीर =मुंशी clerk
पीढा =आसन stool
तश्तरी =छोटी थाली
मुख्तार =कानूनी सलाहकार
चौका-चूल्हा चलना=भोजन चलाना
बिगड़ जाना =गुस्सा होना
खुराफात =झगडा
आरोप करना=इल्जाम लगाना
तल्लीनता =मग्नता
आघात= चोट
जेहन=बुद्धि ,याद करने की शक्ति
निहारना=देखना
दातौन करना=दांत साफ करना
झेंप जाना=लज्जित होना
ताड़ना=सजा /दंड
गुरुमुख होना ;=गुरु कृपा
जाहिर करना=प्रकट करना
इत्मीनान=विशवास
महरिन=पानी लानेवाली नौकरानी
दृष्टिगोचर होना=दिखाई पड़ना
लानत=धिक्कार
धुरंधर =उत्तम
दस्त=हाथ
दस्त पतला =loose motion
बदपरहेज़ी =असंयम / मनमाना खाना
सारांश :-
शकल दीप बाबू अपने बेटे नारायण (बबुआ) की डिप्टी कलक्टरी बनने की कामना पूरी होने पर बेहद खुश होते हैं.आरम्भ से अंत तक वात्सल्यमय पिता की मनो भावना का यथार्थ चित्रण मिलता है.
शकल दीप बाबू मुख्तार थे. उनकी पत्नी जमुना थी. उनके दो बेटे थे.बड़े का नाम नारायण था,बबुआ के नाम से पुकारा जाता था. उसकी उम्र २४ साल की थी; छोटा बारह साल का था उनका नाम टुनटुन था.
शकलदीप बाबू मुख़्तार थे. उनकी आमदनी केवल चौ के-चूल्हा चलाने काफी था.
नारायण को नौकरी नहीं मिली; वह डिप्टी कलक्टर बनना चाहता था. पिताजी को अपने बेटे पर शक था; उनपर भरोसा भी नहीं था.
नारायण दो बार डिप्टी कलक्टरी की परीक्षा में सफल नहीं हुआ. शकाल दीप बाबू का विचार था कि साधारण नौकरी भी नहीं मिली तो डिप्टी कलक्टरी कैसे ?
वात्सल्यमयी माता ने अपने पति से कहा --दो -दिन से बबुआ उदासी है. दो-तीन दिन में फीस भरना है. आपसे मांगने डरता है.
बेटे पर के अविश्वास के कारण वे पहले रूपये देने तैयार नहीं थे. फिर भी पिताजी का कर्तव्य निभाने तैयार हो गए, बाहर गए और डेढ़ सौ रुपये लाये और पत्नी से कहा कि १०० रूपये बेटे को दो और ५० रूपये घर के खर्च के लिए.
वे खुद सोचने लगे कि गलती किसीकी नहीं. सारा दोष तो मेरा है.देखो न,मैं बाप होकर कहता हूँ कि लड़का नाकाबिल है.
नहीं,नहीं,सारी खुराफात की जड़ मैं ही हूँ,और कोई नहीं. उस दिन के बाद अपने बेटे को सभी प्रकार की सुविधा करने लगे. देखा कि बीटा काफी मेहनती है. १९ घंटे पढने में तल्लीन है. बेटे को मेवा,सिगरेट आदि की भी व्यवस्था करने लगे.
बेटा इलाहाबाद में इम्तिहान देने निकला तो शकल रेलवे स्टेशन पहुंचे.रेल निकलने लगी तो पिताजी बच्चे की तरह चलती गाडी की ओर दोड़े और रूपये की पुडिया दी और आशीषें.शकल बाबू की वात्सल्यता का यथार्थ चित्रण लेखक ने किया है.
नारायणको उसके परिश्रम का फल मिल गया. वह लिखित परीक्षा में उत्तीर्ण होकर इंटरव्यू गया. शकाल्दीप बाबू की प्रार्थना सफल हुयी. इससे बीच वे राधेश्याम के भक्त बन गए.
उनका मित्र कैलाश बिहारी थे. दोनों ने अपने -ओने पुत्र की होशियारी की खूब तारीफ करके बोल रहे थे .तब शकाल्दीप बाबू ने कहा कि मेरे बेटे का नाम पन्नालाल था, एक महात्मा ने कहा कि नारायण नाम ठीक है. एक दिन राजा बनेगा. अब डिप्टी कलक्टर बन गया;एक अर्थ में राजा ही हुआ.
सब ने बेटे की बधाई दी. . इतवार के दिन रिसल्ट दस बजे निकलेगा. वे मंदिर गए. बेटे की कामना पूरी होने प्रार्थना की.तब जंगबहादुर सिंह आये और बताया डिप्टी कलक्टरी का नतीजा निकल गया. दस लड़के लिए जायेंगे; आपके लड़के सोलहवाँ सत्रहवाँ में है. कुछ लड़के मेडिकल चले जाते; पूरी उम्मीद है कि नारायण बाबू ले लिए जायेंगे.
अथिक परिश्रम और चिंता से शकल की तबीयत अस्वस्थ हो गयी. वेबेटे के कमरे में गए. बेटे को सोते देख गद-गद स्वर में पत्नी से कहा बेटा सो रहा हैं पति-पत्नी दोनों एक दुसरे की ओर देखने लगे.
इसमें चित्रित है कि माता-पिता दोनों अपने बेटे की तरर्क्की की कामना में कितने चिंतित है. कितना ध्यान रखते है.
पारिवारिक कहानी के द्वारा लेखक ने सामाजिक जिम्मेदारी का चित्रण किया है.
कथानक : लेखक की कथावस्तु एक आदर्श पिता अपने परिवार और बेटे की प्रगति के लिए कितना चितित है ,कितना दौड़ धूप करते है, माता कैसे पुत्र को साथ देती है ;आदर्श पुत्र के गुण आदि दर्शाने के लिए बनी है. इस में कहानी सफल है.
पात्र :- इस के चार पात्र हैं. शकल दीप बाबू, उनकी पत्नी जमुना,बेटा नारायण आदि; कैलाश बिहारी, जंग बिहारी आदि शकल के मित्र हैं. ये सारे पात्र कहानी के विकास और आगे ले जाने में सफल हैं. कैलाश द्वारा नारायण के गुणों की प्रशंसा ,अपने बेटे की प्रशंसा, जंग बिहारी द्वारा सांत्वना और उम्मीद दिलाना आदि शकल दीप की मनोव्यथा दूर करने के लिए आवश्यक है.
संवाद:- जमुना --दो-दिन से बबुआ बहुत उदास है....
कह रहे थे,दो दिन में फीस भेजने की तारीख बीत जायेगी.
जमुना के इस संवाद से आगे कहानी का पता लग जाता है.
पिता का आत्मचिंतन---देखो न.मैं बाप होकर कहता हूँ कि लड़का नाकाबिल है. इस चिंतन के बाद बेटे की सुविधाएं देना कितना यथार्थ और आदर्श मिलता है.
इस प्रकार संवाद सफल है.
उद्देश्य : बेटे की सफलता के लिए पिता की चिंता,परिश्रम ,,महात्मा की भविष्य वाणी द्वारा भारतीय दैविक शक्ति दर्शाना,सच्ची मित्रता,आदर्श पति.पत्नी के चरित्र दिखाना ,माता-पिता की वात्सलता आदि उद्देश्य का सही चित्रण मिलता है.
भाषा शैली : भाषा सरल और मुहावरेदार भी है. पारिवारिक यथार्थ चित्रण में आदर्श भावना है.
शीर्षक :-डिप्टी कलक्टरी शीर्षक सोलह आने सही है.काहनी के आरम्भ से अंत तक नारायण के डिप्टी कलक्टरी को लेकर ही कहानी चलती है.
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१०. पंच लाईट लेखक:- फनीश्वरनाथ 'रेणु"
कठिन शब्दार्थ :-
पुण्याह --पवित्र दिन
ताब करना=शक्ति दिखाना /बल
चेतावनी=सावधानी
अलबत्ता =बेशक
बालना -जलाना
ढिबरी =मिट्टी का दिया
बतंगड़ =अधिक बोलनेवाला,बातूनी
गरी का तेल =नारियल का तेल
मायूसी छा जाना=उदासी फैलना
पुलकित होना=खुश होना
सारांश :-
फणीश्वर' रेणु ' ने पंचलाईट कहानी में गाँवालों के आपसी फूट , ग्रामीण जनता का मिथ्या घमंड ,अज्ञानता ,साधारण पञ्च लाईट बालना भी न जाननेवाले , पंचलाईट जलाने जो जानता है,उसको सम्मान देना आदि का चित्रण किया है.
एक गाँव में आठ पंचायत,जाति की अलग -अलग 'सभा चट्टी" है. इन सब में पेट्रोमैक्स लाईट का अलग महत्त्व है. पंचायत का छडीदार पंच लाईट ताब करने का विषय है. मेले के समय पंचलाईट पर अधिक ध्यान दिया जाता है. अगनू महता जो छडीदार ढोता है ,वह लोगों को चेतावनी देता था की ज़रा दूर जा.
पूजा के सारे प्रबंध के बाद भी पंचलाइट का गप प्रधान रहा. सरदार पंचलाईट लेने गया तो चेहरा परखने वाला दूकानदार ने पांच कौड़ी में दे दिया. पंचलाईट देखकर सब खुश थे;दीप बालने किरासन का तेल भी आया.
सब प्रबंध के बाद एक बड़ी समस्या उठी. इस पंच में किसीको पेट्रोमैक्स जलाना नहीं मालूम था. गाँव भर में कोई नहीं मिला. दूसरे पंच के द्वारा लाईट जलाना बेइज्जत की बात थी.
अंत में सब को गोधन की याद आयी. वह लाईट बालना जानता है.वह दूसरे गाँव से आकर यहाँ बसा है. लेकिन पंचायत उसको दूर रखा था. उसको पंच में हुक्का बंद था. वह पंचायत से बाहर था. अब उसको ही बुलाना पड़ा. स्पिरिट नहीं था. गोधन ने नारियल के तेल से ही लाईट जलाया. वह उस दिन का हीरो बन गया. उसने सबका दिल जीत लिया.सरदार ने गोधन से कहा---"तुमने जाति की इज्ज़त रखी है. गुलरी काकी बोली ---आज रात मेरे घर में खाना गो धन. पंचलाईट के प्रकाश में सब पुलकित हो रहे थे.
कथानक: गाँवों में एकता नहीं, अपने गाँव के दूसरे पंच के लोग पंच लाईट जलना बेइज्जती समझनेवाले दुसरे गाँव से आये गोधन को इज्जत देते है. गाँव वालों के झूठे गोरव का चित्रण कथावस्तु है.ग्रामीण भोले जनता को सीख देना कथावस्तु है.
पात्र : सरदार,गाँव के लोग ,गोधन . ये पात्र कहानी के अनुकूल है.
कथोपकथन:-कीर्तन मंडली के मूलगैन :-देखो,आज पंचलैट की रोशनी में कीर्तन होगा. इस कथन से पंच लाईट को गांवाले जितना महत्त्व देते है ,
लाईट लाने के बाद बालने वाला नहीं मिला तो कहावत ---भाई रे,गाय लूँ ? तो दुहे कौन?
गांवाले की आपसी नफरत : न,न,!पंचायत की इज्ज़त का सवाल है.दूसरे टोले के लोगों से मत कहिये.
इस प्रकार कथोपकथन रोचक है.
शीर्षक : पंच लाईट शीर्षक सही है, कहानी के आरम्भ से अंत तक पंच लाईट की ही बातें चलती है. लाईट जलनेवाले गोधन इज्जत का पात्र बन जाता है.
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११. खानाबदेश लेखक :--ओमप्रकाश वाल्मीकि
कठिन शब्दार्थ:---
खानाबदेश = बेघर वाला./अस्थिर रहनेवाला
निगरानी =देखरेख
माहौल =वातावरण
भीगी बिल्ली बनना= to be very meek and submissive
सारांश :
ओमप्रकाश वाल्मीकि ने इस कहानी में दलित और शोषित वर्गों की दयनीय स्थिति ,उनकी मनोकामना पूरी न होना ,अमीर मालिक के निर्दय व्यवहार और बलात्कार आदि का दुखद चित्रण खींचा है. खानाबदेश अर्थात बे घरवाले कितना कष्ट उठाते हैं और कष्ट सहकर मूक वेदना का अनुभव करते हैं.
सुकिया और मानो दम्पति कुछ धन कमाने की इच्छा से गाँव छोड़कर भट्टे पर आ गए . असगर ठेकेदार ले आया था. भट्टा मालिक मुख्तार सिंह था.
जहां मजदूर रहते थे ,वहां रात डरावना था. कुछ धन जोड़ने की इच्छा से धीरज होता था. बस्ती में सांप-बिच्छु का डर लगा रहा था. मानो बार -बार सुकिया से कहता था -- अपने देस की सूखी रोटी भी परदेस पकवानों से अच्छी होती है.
सुकिया जवाब देती --नरक की जिन्दगी से निकलना है तो कुछ छोड़ना भी पड़ेगा. आदमी की औकात घर से बाहर कदम रखने पर ही पता चले हैं. दोनों कठोर मेहनत करते ,फिर भी मजदूरी कम ही मिलती.
मालिक मुख्तार सिंह का बेटा सूबे सिंह था. पिता की गैरहाजिरी में सूबे सिंह का रौब -दाब भट्टे का माहौल ही बदल देता था. असगर ठेकेदार भीगी बिल्ली बन जाता था. सूबे का चरित्र भी अच्छा नहीं था.
भट्टे पर काम करने किसनी और महेश नवविवाहित दम्पति आये थे. सूबे सिंह की कुदृष्टि किसनी पर पडी. वह उसे लेकर शहर जाता;वापस आते वक्त वह थकी लगती थी. वहाँ सूबे और किसनी के बारे में काना-फूसी होने लगी.
वहाँ तीसरा मजदूर था जसदेव. . वह कम उम्र वाला था. एक दिन सूबे सिंह ने असगर ठेकेदार के द्वारा सुकिया को दफ्तर में काम करने बुलाया. किसनी की तबीयत ठीक नहीं थी. सुकिया डर गयी. गुस्से और आक्रोश से नसें खिंचने लगी. जसदेव सुकिया के बदले दफ्तर के काम करने गया. सूबे सिंह अति क्रोध से उसको बहुत मारा-पीटा.
सुकिया को बहुत दुःख हुआ. जसदेव को खिलाने-पिलाने में लगी. भट्टे में दवा-दारू का इंतज़ाम नहीं था. सुकिया जसदेव से मिलने गयी. वह दर्द से कराह रहा था. मानो ने सूबे सिंह को खूब कोसा. "कमबख्त कीड़े पडके मरेगा. हाथ-पाँव टूट-टूटकर गिरेंगे ....आदमी नहीं जंगली जानवर है."
मानो को पक्की ईंट का घर निजी बनवाने की इच्छा थी. वह अपने निजी ईंट के घर में रहने का सपना देखा करता था.
सुकिया जल्दी भट्टी पर काम करने गयी. एक दिन जल्दी गयी तो देखा भट्टी उजड़ा हुआ था. सारी ईंटे टूटी-फूटी पडी थी. सब ने कहा किसीने जान-बूझकर ईंटें तोडी हैं. मानो का ह्रदय फटा जा रहा था.आगे वे वहां नहीं रह सकते. असगर ठेकेदार ने उनकी रही-सही उम्मीदों पर पानी फेर दिया.. वे खानाबदेशी बन गए. खानाबदेश जिन्दगी का एक पड़ाव था यह भट्टा. वे वहां से दुसरे पड़ाव की तलाश में निकले,एक दिशा हीन यात्रा पर. सपनों के काँच उसकी आँख में किरकिरा रहे थे.
कथानक: दलित लोगों की दयनीय दशा और मालिकों की निर्दयता चित्रण के द्वारा समाज को जागृत करना कथानक था. सुकिया,मानो किसनू ,जसदेव आदि पात्र दलित थे तो मालिक के पुत्र सूबे सिंह बलात्कारी ,निर्दयी ,चरित्रहीन था. ठेकेदार मालिक के क्रोध के भय से काम करनेवाला था. इन सब के चित्रण द्वारा कथावस्तु का विकास हुआ है.
पात्र : साक़िया,मानो,जसदेव प्रमुख पात्र हैं तो ,मालिक मुख़्तार सिंह,किसनू ,छोटा मालिक सूबे सिंह ठेकेदार आदि कहानी को सिलसिलेवार ले जाने में आवश्यक हैं. किसनू के पति महेश का नाम मात्र है. ये पात्र के द्वारा कहानी का अंत "खानाबदेश" को सार्थक बना रहे हैं.
कथोपकथन : मानो ---क्यों ,जी ...क्या हम इन पक्की ईंटों पर घर बना लेंगे?
सुकिया--"पक्की ईंटों का घर दो-चार रूपये में न बनता है. इत्ते ढेर-से-नोट लगे हैं घर बनाने में. गाँठ में नहीं है पैसे ,चले हाथी खरीदने.
इस संवाद से ही उनकी विवशता और उनकी सपना का सपना ही रहने की व्यथा साफ-साफ मालूम हो जाता है. कहानी के मूल विषय का संकेत कर देता है.
सूबे सिंह के थप्पड़ मारने से जसदेव की हालत बुरी हो जाती है. तब वह दर्द से कराहता है तब मानो की गाली उसके नफरत की सीमा पार जाता है ......"कमबख्त कीड़े पडके मरेगा. आदमी नहीं जंगली जानवर है. बलात्कारियों के प्रती ऐसी भावना प्रकट होना यथार्थ है. लेखक के भाव की गंभीरता प्रकट होती है. संवाद शैली अच्छी बन पडी है.
उद्देश्य : लेखक का उद्देश्य खानाबदेश दलित लोगों की दयनीय मार्मिक दशा को समाज के सम्मुख रखना था. इस ऊदेश्य को लेखक ने मानो और सुकिया के पात्रों के द्वारा और मालिक के बेटे सूबेसिम्ह के दुश्चरित्र के उल्लेख के द्वारा सफल बनाया है.
शीर्षक : "खानाबदेश " शीर्षक अति उत्तम है. एक घर अपने लिए बनवाने के लिए मानो और सक़िया अपने गाँव छोड़कर गए. वे अपने लक्ष्य में सफल न बने. कहानी के अंत में उनको खानाबदेशियों के सामान नौकरी की तलाश में एक दिशाहीन यात्रा पर चलना पड़ा.
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि कथा -तत्वों के अनुसार कहानी सफल है. लेखक की सृजन-कौशल सराहनीय है.
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चरित्र चित्रण
कहानी में दो प्रकार के प्रश्न किये जाते हैं.
एक प्रश्न है कहानी का सारांश लिखकर कहानी कला की से उसकी विशेषताएं लिखिए. ==१५ अंक .
दूसरा प्रश्न है चरित्र चित्रण . इस के लिए पांच अंक . तीन कहानियों के तीन पात्रों के चरित्र चित्रण लिखना चाहिए.
३*५ =१५ अंक .
१. नादान दोस्त . लेखक : प्रेमचंद
केशव का चरित्र चित्रण,
" केशव " पात्र नादान दोस्त की कहानी में है. कहानीकार है श्री मुँशी प्रेमचंद.
" केशव " कहानी का प्रमुख पात्र है. वह छोटा लड़का है. वह बड़ा जिज्ञासु है. उसके घर के कार्निस के ऊपर एक चिड़िया ने अंडे दिए. केशव और उसकी छोटी बहन श्यामा दोनों को अंडे के बारेमें कई बातें जानने की इच्छा हुई .उनके माता-पिता को उनके संदेहों का निवारण करने समय नहीं था. वे जानना चाहते कि अंडे कितने बड़े होंगे?किस रंग के होंगे?कितने होंगे?कैसे बच्चे निकलेंगे? बच्चों के पर कैसे निकलेंगे ? क्या खाते होंगे?
दोनों बच्चे अपने सवालों के जवाब ढूँढने खुद तैयार होने लगे. केशव बड़ा भाई था. इसलिए वह बहन पर अपना अधिकार जमाता था, माँ के भय से माँ की आँखें बचाकर अंडे देखने के काम में लग गए. मटके से चावल रखना,पीने का पानी , धूप से बचाने कूड़ा फेंकनेवाली टोकरी आदि की व्यवस्था में लगे.
उसमे तीन अंडे थे. श्यामा देखना चाहती थी. केशव को डर था कि वह गिरेगी तो माँ को पता चलेगा;वह गाली देगी.
वे इस काम के लिए बाहर आये. बड़ी धूप थी. माँ ने देखा तो गाली दी और सोने के लिए दोनों को बुलाया. श्यामा भाई के प्रेम और डर के कारण माँ से कुछ नहीं बताया.
भाई -बहन सो रहे थे, यकायक श्यामा उठी. तब उसने देखा कि अंडे नीचे गिरकर टूट गए. उसको दुःख हुआ. केशव को जगाया . दोनों से माँ ने पूछा कि धूप में क्या कर रहे थे. श्यामा को अंडे टूटने का दुःख था. माँ ने कहा कि अंडे के छूने से चिड़िया नहीं सेती; और अण्डों को धकेल देती है. तब श्यामा ने सारी बातें बताई; माँ ने केशव से कहा कि तुम ने बड़ा पाप किया. तीन जाने ले लीं. फिर हँस पडी.लेकिन केशव को दुःख हुआ. अपनी गलती पर रो पड़ा.
केशव नादान लड़का नादान दोस्त चिड़िये के अंडे के लिए पछताता है.
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श्यामा:
प्रेमचंदजी की कहानी "नादान दोस्त " के दो प्रमुख पात्रों में श्यामा एक थी.. वह छोटी थी. केशव की बहन है. वह अपने भाई से अधिक प्यार करती थी. उसके घर की कार्निस पर चिड़िये ने अंडे दिए . उन अण्डों के बारे में जानने की इच्छा दोनों भाई-बहन को थी. माता-पिता को इन के सवालों के जवाब देने का समय नहीं था. दोनों भाई-बहन ने चिड़िये के अंडे की सुरक्षा में लगे. भाई ने सब काम किया. उसने अंडे देख लिये. पर श्यामा को ऊपर चढ़ने नहीं दिया; उसको डर था कि वह गिर जायेगी. तो माँ अधिक मारेगी. श्यामा बचपन के स्वाभाव के अनुसार भाई डराती है कि अंडे न दिखाओगे तो माँ से कहूंगी. बड़े भाई ने डराया कि मारूंगा. अंडे टूट जाने पर दुखी श्यामा माँ से सारी बातें बता देती है. भाई के प्यार के कारण पहले माँ से नहीं कहती. इस प्रकार श्यामा में प्यार,दुःख ,और माँ के डराने पर सारी बातें बताने आदि बालक -बालिकाओं के गुण विद्यमान है.
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२. कोटर और कुटीर
लेखक : सियारामशरण गुप्त
चातक पुत्र का चरित्र चित्रण
चातक पुत्र चातक पक्षी का पुत्र है. वह अपने खानदानी गुण को बदलना चाहता है. एक दिन पिताजी से कहता है. कि प्यास के मारे प्राण चले जायेंगे. कब वर्षा होगी?तब तक सहा नहीं जाता. आदमी कृषी के लिए पानी जमा करते है.तब पोखरे के पानी पीने का विचार आया. पोखरे के पानी में कीड़े बिलबिलाते है, सब प्रकार की गन्दगी करते हैं. सोचेते ही उसको घृणा हुई. अंत में गंगा के पानी पीने निकला. रास्ते में बुद्धन की झोम्पडी के पास के नीम के पेड़ पर आराम के लिए बैठा. बुद्धन का बेटा गोकुल को गरीबी में भी दूसरों के पैसे की इच्छा नहीं हुयी; उसको मजदूरी नहीं मिली. पर रास्ते पर रुपयों से भरा बटुआ मिला. तुरंत उसको रूपये वाले की व्यथा याद आयी; बटुए वाले की तलाश में गया और बटुआ लौटाकर भूखा प्यासा खाली हाथ घर लौटा. उसके पिता बुद्धन ने उसकी ईमानदारी की तारीफ की. बुद्धन ने अपने बेटे से कहा --जिस तरह चातक अपने प्राण देकर भी मेघ के सिवा किसी दूसरे का जल नहीं लेने का व्रत नहीं तोड़ता ,उसी तरह तू भी ईमानदारी की टेक न छोडना. चातक पुत्र ने सुना तो दुःख हुआ और अपने गंगा नदी की ओर न उड़ा और अपने कोटर की ओर उड़ा . रास्ते में वर्षा आयी . उसकी चार दिन की यात्रा सात दिन में पूरी हुयी.
चातक पुत्र के मानसिक परिवर्तन हुआ; उसने अपने खानदानी गौरव को बचा लिया.
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बुद्धन का चरित्र -चित्रण
"कोटर और कोठरी" कहानी का प्रमुख पात्र है बुद्धन, वह पचास साल का आदमी था. उसका पुत्र गोकुल १-१ साल का है. वह गरीब आदमी था. पर ईमानदार आदमी था. किसी भी हालत में ईमानदारी की टेक छोड़ने तैयार नहीं था, उसीके कारण चातक पुत्र का मानसिक परिवर्तन होता है. उसका पुत्र गोकुल अपने बाप से भी बढ़कर ईमानदार था..
बुद्धन का बेटा गोकुल को गरीबी में भी दूसरों के पैसे की इच्छा नहीं हुयी; उसको मजदूरी नहीं मिली. पर रास्ते पर रुपयों से भरा बटुआ मिला. तुरंत उसको रूपये वाले की व्यथा याद आयी; बटुए वाले की तलाश में गया और बटुआ लौटाकर भूखा प्यासा खाली हाथ घर लौटा. उसके पिता बुद्धन ने उसकी ईमानदारी की तारीफ की. बुद्धन ने अपने बेटे से कहा --जिस तरह चातक अपने प्राण देकर भी मेघ के सिवा किसी दूसरे का जल नहीं लेने का व्रत नहीं तोड़ता ,उसी तरह तू भी ईमानदारी की टेक न छोडना.
चटक पुत्र उसकी झोम्पडी के पास नीम के पेड़ पर बैठा था.वह अपने कुल -मर्यादा छोड़ गंगा में पानी पीने निकला था.
उनके पिता ने समझाया कि हमारे खानदान में वर्षा का पानी पीते हैं,इसीलिये हमारा गर्व है. वह पिता की बात न मानकर घर से बाहर आया था, बुद्धन और गोकुल के संवाद सुनकर समझ गया कि चटक को वर्षा के पानी पीकर जीने में ही कुल -गौरव है.
बुद्धन का चरित्र ईमानदारी पर जोर देता है.
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3,उसने कहा था. लेखक चन्द्र धर शर्मा गुलेरी.
चरित्र चित्रण
लहनासिंह
चन्द्र धर शर्मा गुलेरी की कहानी है "उसने कहा था." इस कहानी का प्रधान पात्र है लहना सिंह. वह वीर ,साहसी और चतुर था. इन सब से बढ़कर निस्वार्थ प्रेमी था.१२ साल की उम्र में अमृतसर के बाज़ार में एक लडकी से मिला करता था. उससे रोज़ पूछता --क्या तेरी कुडुमायी हो गयी. एक दिन लडकी ने "हाँ " कहा तो उसकी व्यथा उसके व्यवहार से मालूम होती है. क्रोध में उसने कुत्ते पर पत्थर मारा. सामने आनेवालों पर टकराया. इस घटना के २५ साल बाद कहानी शुरू होती है.वाल सेना में जमादार था. आज सूबेदार का बेटा जो बीमार तो उसको अपना कम्बल ओढ़कर खुद सर्दी सह रहा था, वह जेर्मन का सामना करने खाईयों में था. एक दिन एक जेर्मन छद्मवेश में भारतीय लपटन साहब बनकर आया. लहना को उसकी शुद्ध उर्दू की बोली से पता चल गया कि वह जेर्मनी है नकली हैं. खाई में केवल आठ भारतीय थे. सूबेदार वजीरासिंह था. उन सब को सावधान देकर वह खुद नकली जेर्मन पलटन साहब पर गोली चलाया. नकली का हाथ जेब में था. उसकी गोली से लहना घायल हो गया. इतने में गोली चलाकर खाई में आये जर्मनी मारे गए. आम्बुलंस आया तो उसमे बीमार बोधसिंह को सुरक्षित भेज दिया. फिर वजीर से पानी माँगा. उसकी चोट के बंधन को वजीरा ने शिथिल किया. अंतिम साँस लेते =लेते उसको पुरानी यादें आयी. एक बार वह सूबेदार के यहाँ गया तभी मालूम हुआ कि सूबेदारनी वह लडकी है जिससे वह २५ साल पहले अमृतसर से मिला था. सूबेदारनी को भी लहना को जान गयी. तब सूबेदारनी ने कहा कि जैसे मुझे एक बार तांगे के नीचे जाने से बचाया,वैसे मेरे पति और पुत्र को बचाओ. लहनासिंह ने वादा किया था. आज वह अपने प्राण देकर उन दोनोको बचा लिया और सूबेदारनी से कहने बोधा से सन्देश दिया कि उसने जो कहा था,उसे निभाया है.
यह किसीको मालूम न था, समाचार पत्र में यही सूचना आयी जमादार लहनासिंह युद्ध क्षेत्र में मारे गए,
लहनासिंह आदर्श प्रेमी था.
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सूबेदारनी
कहानी उसने कहा था का नारी पात्र सूबेदारनी. वह कहानी की जान है. आठ वर्ष की उम्र में वह लहना से मिलती है. दुबारा मिलन पच्चीस साल के बाद. तब भी उसको पहचानती है. लड़के के प्रति उसके मन में प्रेम था. वह लड़के के प्रथम मिलन की सारी बात या द रखकर पच्चीस साल के बाद मिलने पर लहना को याद दिलाती है. बारह साल के लड़के से मिलाना,क्या तेरी कुडमाई हो गयी पूछना,बिगड़े घोड़े गाडी से उसकी जान बचाना. फिर निवेदन करती हैं जैसे तुम बिना तेरे प्राण पर ध्यान देकर मुझे बचाया,वैसे ही सूबेदार और बोधा को बचाना. लहनासिंह उस दिन से सूबेदार और बोधा सिंह
पर ध्यान करने लगा. अंत में उन दोनों को बचाकर खुद चल बसा. सूबेदारनी आदर्श पति प्रेमी और वात्सल्यमयी माता है. अपने बचपन के प्रेम को स्मरण रखकर लहनासिंह द्वारा अपने पति और पुत्र की जान बचाती है. वह चतुर नारी है.
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सिक्का बदल गया . लेखिका : कृष्णा सोबती
शाहनी का चरित्र चित्रण.
शाहनी एक विधवा अकेली रहती है. वह महात्मा गांधीजी की अनुयायी थी. खद्दर की चादर ओढती थी. वह हिन्दू थी.राम की भक्ता थी.
देश की स्वतंत्रता के बाद हिन्दू-मुस्लिम कलह हुआ था. एक दूसरे के प्राण लेने में आनंद पाते थे. शाहनी चिनाब नदी के तात पर पाकिस्तान के हिस्से में रहती थी. जब तक शाह थे,तब तक उसका जीवन आदरणीय रहा; उस इलाके में सब की मदद करते थे. अब वह अकेली है.एक दिन प्रभात नदी में स्नान करके आयी तब लीग के आदमियों के वहां आना पहचान गयी.
उसने शेरे को शिशु से पाला था, उसके जन्म लेते ही माँ चल बसी. शेरो की पत्नी हसैना थी. शाहनी उसे अधिक चाहती थी. आजादी के बाद शेरो लीग्वालों से मिल गया. उनकी प्रेरणा से वह शाहनी की जान लेने तैयार था. इतने में शरणार्थी कैम्प में शाहनी को ले जाने थानेदार दाऊद खां आ गे आ गया. यह वही दाऊद था,जो शाह के लिए खेमे लगवा दिया करता था.अब सारा माहौल बदल गया. शाहनी . सारी संपत्ति,नकद सब उस इलाके के लोगों के लिए छोड़कर ट्रक में बैठ गयी. सब के दिल में उदासी छा गयी.
आडम्बर और सट्टे पर जीवन बिताई शाहनी, आज अकेले कैम्प में ज़मीन पर पडी सोचते रही ==राज पलट गया.--सिक्का बदल गया.
उस रात हिन्दू=मुस्लिम कलह से आसपास के गांवों में खून बह रहा था.
देश के बंटवारे के बाद की दशा का चित्रण शाहनी पात्र द्वारा मिलता है.
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शेरा
शाहनी का पालित पुत्र शेरा लीग्वालों से मिल गया. लीग का सम्बन्ध शाहनी को पसंद नहीं था. पर वह नहीं मानता था. उस दिन लीग्वाले कलह करने वाले थे. उनकी प्रेरणा से शेरा निर्दयी बन गया. शाहनी की हत्या की तत्परता में था.; फिर भी शाहनी की हालत पर दुखी था.वह शाहनी से उसकी जान के खतरे की बात कहना चाहता था.जबलपुर में आग लगने की बात उसे मालूम था. वह विवश था. शानी के प्रति स्नेह था. दुखी मन से उसे ट्रक में जाते हुए देखता है.देश का बंटवारा हिन्दू-मुस्लिम के भाईचारे भाव को नष्ट कर दिया. इसका नमूना है शेरा पात्र.
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पुर्जे --इब्राहिम शरीफ
भाई का चरित्र चित्रण
भाई पुर्जे कहानी का प्रमुख पात्र है. उसके एक बहन थी; पिता मर गए. साहित्य में एम्.ए हैं. माँ बीमार्पद गयी. बहन के अनुरोध से डाक्टर को बुलाने गया. निर्दयी डाक्टर नहीं आया.डाक्टर ने बताया कि लकवा लग गया होगा': लहसन का रस लेपना. वह दुखी मन से वापस आ गया. माँ की हालत बिगड़ गई तो फिर डाक्टर से मिलने गया.डाक्टर की लापरवाही से सोचने लगा कि साहित्य में एम्.ए. करके क्या लाभ. डाक्टर ने कहा कि मेरी बेटी की शादी की व्यवस्था में लगे है. दावा यहाँ नहीं मिलती;फिर एक पुर्जे में दावा लिखकर दी.भाई को उसकी असमर्थता पर क्षोब हो रहा था. वह तेज़ी से घर गया. बहन ने पुर्जे को टुकड़े-टुकड़े कर दिया. माँ चल बसी.
एक मध्यवर्ग परिवार के बेकार युवक और डाक्टर की निर्दयता पूर्ण व्यवहार के दृश्य भाई पात्र के द्वारा सामने आ जाता है. ऐसे परिवार का दयनीय दशा का यथार्थ चित्रण द्वारा समाज में दया भाव उत्पन्न होना चाहिए.
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डाक्टर
पुर्जे कहानी का डाक्टर एल.ई.एम् है. वह निर्दयी है. बिना रोगी को देखे दवा बताता है और लिखकर भी देता है.
उसको अपनी बेटी की शादी की चिंता है. उसीकी लापरवाही से एक नारी चल बसी. भाई डाक्टर को घर बुलाता है.तब स्वार्थी डाक्टर अपनी बातें करता है---बेटी की शादी में बहुत रूपये खर्च करना पड़ेगा.लड़का बड़े खानदान का है.उसकी डिमैन्ड्स
पूरी करनी है. ऐसे निर्दयी डाक्टर चरित्र निदनीय है. ऐसे डाक्टरों के कारण समाज में डाक्टर अविस्वसनीय बन जाते है.
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गूंगे --लेखक --- रांगेयराघव
गूंगा
गूंगे कहानी में गूंगा पात्र अत्यंत दयनीय पात्र है, वह जन से अनाथ है. पिता और माता दोनों भाग गए. जिन्होंने उसको पाला था,वे निर्दयी थे.अधिक मारते-पीटते थे. वह बहुत मेहनत करता था. सेठ के यहाँ बर्तन माँजना,कपडे धोना आदि सब काम .केवल पेट भरने के लिए.
चमेली दयालू औरत थी. उसके यहाँ गूंगा नौकरी करने गया तो चमेली से ये सब बातें इशारे से ही बता दी.
चमेली के पुत्र -पुत्री गूंगे को न चाहकर भी चाहते थे. एक दिन किसी बात पर उसके पुत्र ने गूंगे को मारा. गूंगा उसे मारने हाथ उठाया,पर मालिक के बेटे को न मारा. इससे नाराज होकर चमेली उसे घर से भगा देती है. वह थोड़ी देर में रोते हुए वापस आ गया.उसके सर पर चोट लगी थी खून बह रहा था. वह दरवाजे पर कुत्ते के सामान खड़े होकर रो रहा था. गली के शरारत लड़कों ने उसको मारा था.
चमेली देखती रही. उस मूक अवसाद में युगों का हाहाकार भरकर गूँज रहा था.
गूँगा समाज का पूरा न्याय,अन्याय.अत्याचार जानता-समझता था. वह गूंगा था. बोलने की शक्ति न थी. इस एक कमी के कारण समाज की यातनाएं सहता था, सिवा रोना ही उसके सारे मनोभाव प्रकट करता था. गूंगे के पात्र के चित्रण के द्वारा समाज में गूंगों के प्रति दया भाव और सनुभूति उत्पन्न करना लेखक का उद्देश्य था.
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चमेली
गूंगे कहानी का आदर्श पात्र चमेली थी. घरवाले न चाहने पर भी गूगे को घर में नौकरी देती है. इशारे से ही गूंगे के जीवन चरिता सामने लाती है. वह गूंगों की भाषा समझती है. गूंगे से काम लेने के लिए घरवालों को समझाती है---
कच्चा दूध लाने के लिए ,थान काढने का इशारा कीजिये. साग मंगाना हो गोलमोल कीजिये.बाच्चों ने गूंगे को नौकरी देना मना किया तो चमेली कहती है--मुझे तो दया आती है बेचारे पर.
एक दिन गूंगा बेटे वसंता को मारने हाथ उठाया तो उसके बलिष्ट हाथ हाथ देखकर उसे घर से भगा देती है. वात्सल्यमयी माता ऐसे ही करेगी. वह थोड़ी देर में गली के लड़कों से मार खाकर खून से लतपत वापस आया . दरवाजे पर सर रखकर कुत्ते की तरह चिल्ला रहा था. उसे चमेली देखती रही.
चमेली को आदर्श गृहणी.वात्सल्यमयी माता, समाज के दुखी असहाय लोगों पर दया और सहानुभूति दिखनेवाली आदर्श नारी के रूप में देखते हैं.
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बदला - लेखक :आरिगपूडी
कोटय्या
"कोटय्या" गरीब किसान था. उसकी भूमि नदी के बाढ़ में गायब हो गयी. तब से मजदूरी करके कष्टमय जीवन बिताता था. वह अपने गर्भवती पत्नी को अपने मालिक की बैल-गाडी में लिटाकर इलाज के लिए धम्म्पट्टनाम सरकारी अस्पताल ले गया. अस्पताल के द्वार से ही मामूल शुरू गो गया. अस्पताल में सब के सब रिश्वत लेते थे. कोटय्या की पत्नी को इलाज की मदद किसीने नहीं की. डाक्टर पद्मा आयी तो कोतय्या की पत्नी को अन्दर ले गए. थोड़ी देर में कहने लगे कि उसकी पत्नी मर गयी. लाश देखते ही कोतय्या को मालूम हो गया कि इलाज़ नहीं किया गया. किसीने इस बेचारे की मदद नहीं की. उसी गाडी में पत्नी को अपने गाँव ले गया. दाह संस्कार क्रिया के बाद वह बदला लेने अस्पताल आ गया, वह अनशन के लिए बैठ गया. उसने एक कपडे पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा पताका था --अस्पताल से प्राण खाऊ घुस खोरी हटाओ .पहले किसीने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया. पद्मा के कहने पर उसने अस्पताल के सामने बैठकर सत्याग्रह आरम्भ किया . स्थानीय नेता उससे मिले. समाचार पत्रों में खबरें आयी.पूछ-ताछ करने लगे. अस्पताल के भ्रष्टाचार पर शिकायतों के ढेर आ गए. डाक्टर पद्मा को अपना बयान देना था. भ्रष्टाचारियों ने पद्मा की हत्या की और कोतय्या को खूनी सिद्ध करने का इंतजाम हो गया. कोतय्या कैद होगया. वह बहुत चिल्लाया -चीखा कि वह निर्दोष है. उसकी आवाज़ पर किसीने ध्यान नहीं दिया.
वह बदला लेने गया,भ्रष्टाचारियों ने उसी को बली देकर बदला ले लिया.
कोटय्या का पात्र दयनीय शोषित पीड़ित गरीब का प्रतीक है. सरकार अस्पताल के भ्रष्टाचार का भंडा फोड़कर समाज में क्रान्ति लाना लेखक का उद्देश्य था. कोटयया पात्र के चित्रण द्वारा अपने उद्देश्य पर लेखक सफल हो गए.
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डाक्टर पद्मा
डाक्टर पद्मा अपना कर्तव्य करना चाहती थी;पर अस्पताल में रिश्वत का बोलबाला था; इसमें सब सम्मिलित थे. अत; वह लाचारी बन गयी. उसकी दया से ही कोटय्या के पत्नी को लिटाने की जगह मिली;पर बिना इलाज के मर गयी.
कोटय्या अस्पताल के सामने भ्रष्टाचार और घूसखोरी के विरुद्ध अनशन रखा तो पूछ-ताछ शुरू हुई. पद्मा के बयान से कई लोगों की नौकरी चली जायेगी. पूछ-ताछ में सुरंग के सामान कई अपराध बाहर आ गए. सब के सब परेशान थे.
पहले पद्मा छुट्टी पर जाना चाहती थी; यह असंभव हुआ तो सब बातें छिपा न सकी. बयान देने के बाद दूरे दिन पद्मा को किसीने मार डाला. अपराध भोले-भाले निर्दोष कोटय्या के सर पर पड़ा.
दयालू ईमानदार डाक्टर को रिश्वतखोरों ने मार डाला.
पद्मा एक दयालू आदर्श डाक्टर थी.
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लेखिका::--उषा प्रियंवदा
वापसी
लेखिका :उषा प्रियंवदा
गजाधर का चरित्रचित्रण.,
गजाधर पैंतीस वर्ष रेलवे में नौकरी करके रिटायर हो गए.वे दुखी थे कि दफ्तर के आत्मीय मित्रों को बिछुड़ रहे हैं. वे खुशी थे कि कई साल अकेले रहने के बाद अपने परिवारवालों के साथ खुशी से रहनेवाले है. पर परिवारवालों से उतना स्नेह,आदर ०सम्मान नहीं मिला. उनको अकेला रहना पड़ता.उनके घर में रहना,उपदेश देना,बहु और बेटे से कोई न कोई काम कहना आदि ने उनको नफरत का पात्र बना दिया.
गजाधर को अपने बिस्तर की समस्या हुयी; उनको हर बात में दखल देना घरवालों को पसंद नहीं आया. गजाधर ने अनुभव किया कि वह पत्नी और बच्चों के लिए केवल धनोपार्जन के निमित मात्र है.
एक दिन नौकर के काम ठीक तरह से न करने की चर्चा हुयी तो नौकर का हिसाब कर दिया. घर की आमदनी भी कम थी. खर्च ज्यादा है.
बेटे को बहु ने इसकी सूचना दी. इस घटना के बाद नरेन्द्र,अमर,वसंती सब के सब गजाधर की आलोचना करने लगे.
पत्नी भी उनके अनुकूल बातें नहीं की.
गजाधर ने पुनः नौकरी करने का निश्चय कर लिया. उनको एक मिल में काम मिल गया.दुसरे दिन पत्नी से सीधे कहा कि मुझे सेठ रामजीमल की चीनी मिल में नौकरी मिल गयी. परसों जाना है. पत्नी तैयार नहीं हुयी. उसने कहा कि मैं चलूंगी तो क्या होगा.
वे घर से निकले तो किसीने न रोका. नरेन्द्र ने बड़ी तत्परता से बिस्तर बाँधा. वे चले गए. घरवालों ने इसकी चिंता न की.बहु ने अमर से पूछा ,"सिनेमा ले चलिए.वासंती भी तैयार थी. सिनेमा जाने. गजाधर की पत्नी चौके में चली गयी.पत्नी को भी पति की चिंता नहीं. वह कहने लगी--बाबूजी की चारपाई कमरे से निकाल दे. उसमें चलने तक को जगह नहीं है.
रिटायर होने के बाद पुरुषों की दयनीय दशा का चित्रण खूब हुआ है.
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श्रीमती गजेंधर बाबू
वापसी कहानी के नायक गजाधर की पत्नी है .उसको रिटायर पति की सेवा से अपने बड़े परिवार की चिंता थी. वे अपने बच्चों से प्यार करती है.अपने पति के साथ जाना उसको पसंद नहीं था. एक आदर्श माँ थी. उसमें असीम सहन शक्ति थी.
वह सभी काम चुपचाप करती थी और अपने आप बोलती थी ---सारे में जूठे बर्तन पड़े हैं. इस घर में धरम-करम कुछ नहीं.पूजा करके सीधे चौके में घुसो. पत्नी की परेशानी देखकर गजाधर रात के भोजन की जिम्मेदारी सौंपी. बहु से भी कुछ जिम्मेदारियां. पर श्रीमती को पतिदेव का दखल देना पसंद नहीं. बच्चे-बहु सब अपने पिताजी की शिकायत करते थे. गजाधर बाबू घर की परिस्थिति से ऊब गए. वे पुनः सेठ रामजीमल की चीनी मिल में नौकरी करने निकले. उन्होंने श्रीमती को बुलाया. तब श्रीमती ने कहा--"मैं चलूंगी तो यहाँ का क्या होगा? इतनी बड़ी गृहस्थी,
उसको बूढ़े पति का वापसी जाना खुश ही था. उनके जाने के बाद बच्चे भी खुश थे, वे सिनेमा जाना चाहते थे. श्रीमती गजाधर ने अपने बेटे से कहा --अरे नरेंद् , बाबूजी की चारपाई कमरे से निकाल दे! उसमें चलने तक को जगह नहीं है.
श्रीमती अपने पति से बढ़कर बच्चो से अधिक प्यार करती है.
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डिप्टी कलक्टरी लेखक : अमरकांत
शकल दीप बाबू -चरित्र चित्रण:
सारांश :-
शकल दीप बाबू अपने बेटे नारायण (बबुआ) की डिप्टी कलक्टरी बनने की कामना पूरी होने पर बेहद खुश होते हैं.आरम्भ से अंत तक वात्सल्यमय पिता की मनो भावना का यथार्थ चित्रण मिलता है.
शकल दीप बाबू मुख्तार थे. उनकी पत्नी जमुना थी. उनके दो बेटे थे.बड़े का नाम नारायण था,बबुआ के नाम से पुकारा जाता था. उसकी उम्र २४ साल की थी; छोटा बारह साल का था उनका नाम टुनटुन था.
शकलदीप बाबू मुख़्तार थे. उनकी आमदनी केवल चौ के-चूल्हा चलाने काफी था.
नारायण को नौकरी नहीं मिली; वह डिप्टी कलक्टर बनना चाहता था. पिताजी को अपने बेटे पर शक था; उनपर भरोसा भी नहीं था.
नारायण दो बार डिप्टी कलक्टरी की परीक्षा में सफल नहीं हुआ. शकाल दीप बाबू का विचार था कि साधारण नौकरी भी नहीं मिली तो डिप्टी कलक्टरी कैसे ?
वात्सल्यमयी माता ने अपने पति से कहा --दो -दिन से बबुआ उदासी है. दो-तीन दिन में फीस भरना है. आपसे मांगने डरता है.
बेटे पर के अविश्वास के कारण वे पहले रूपये देने तैयार नहीं थे. फिर भी पिताजी का कर्तव्य निभाने तैयार हो गए, बाहर गए और डेढ़ सौ रुपये लाये और पत्नी से कहा कि १०० रूपये बेटे को दो और ५० रूपये घर के खर्च के लिए.
वे खुद सोचने लगे कि गलती किसीकी नहीं. सारा दोष तो मेरा है.देखो न,मैं बाप होकर कहता हूँ कि लड़का नाकाबिल है.
नहीं,नहीं,सारी खुराफात की जड़ मैं ही हूँ,और कोई नहीं. उस दिन के बाद अपने बेटे को सभी प्रकार की सुविधा करने लगे. देखा कि बीटा काफी मेहनती है. १९ घंटे पढने में तल्लीन है. बेटे को मेवा,सिगरेट आदि की भी व्यवस्था करने लगे.
बेटा इलाहाबाद में इम्तिहान देने निकला तो शकल रेलवे स्टेशन पहुंचे.रेल निकलने लगी तो पिताजी बच्चे की तरह चलती गाडी की ओर दोड़े और रूपये की पुडिया दी और आशीषें.शकल बाबू की वात्सल्यता का यथार्थ चित्रण लेखक ने किया है.
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जमुना
डिप्टी कलक्टरी कहानी के प्रमुख पात्र शकल दीप बाबू की धर्म पत्नी जमुना थी. वह वात्सल्यमयी माता थी. कहानी के आरम्भ में ही जमुना अपने बेटे के बारे में पति से कहती है---"दो दिन से बबुआ बहुत उदास है.वही बेटे की ओर से डिप्टी कलक्टर की परीक्षा शुल्क माँगती है. उसको अपनी बेटी पर बड़ा विशवास था. पति क्रोधित हुए तो वह चुप रहती थी; पति के स्वभाव से परिचित थी; अत; वह आदर्श गृहस्थी थी.
पति नारायण बबुआ पर क्रोध प्रकट करते तो बताती ---ऐसी कुभाषा मुँह से प्रकट कानी नहीं चाहिए. हमारे लड़के में दोष ही कौन-सा है? लाखों में एक है. बेटा हमेशा उदास है. न मालूम मेरे लाडले को क्या हो गया है.?
वह आदर्श पत्नी भी थी. एक दिन पति ने जल्दी स्नान किया तो डरती थी कि बीमार न पड़े. शकलदेव ईश्वर भक्त हो गए.राधास्वामी के. पति -पत्नी में हँसी -भरे मजाक भी होता था.. अपने बेटे के लिए पिताजी सिगरेट लेकर आते हैं श्री मति के पूछने पर कहते हैं --तेरे लिए? श्रीमती कहती है--कभी सिगरेट पी भी है कि आज पिऊँगी.
बबुआ के लिए जो लाये तो उसका छोटा बेटा टुनटुन खाता है. तब शकल गुस्से होते है और उसे पीटते है, तब वात्सल्यमयी माता उदास हो जाती है.
थोड़े में कहें तो जमुना आदर्श पत्नी और वात्सल्यमयी माँ थी.
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पंच लाईट
लेखक :--फनीश्वरनाथ "रेणु
सरदार
पञ्च लाईट में सरदार देहात आदमी है. वहाँ पंच लाईट एक गौरव की बात है.सरदार पंच लाईट लाया. लोग बहुत खुश थे.
पंच लाईट के बारे में सरदार गर्व से कहता है --दुकानदार ने पहले सुनाया,पूरे पाँच कौड़ी पाँच रूपये. मैंने कहा--दुकानदार साहब, यह मत समझिये कि हम एकदम देहाती है. बहुत-बहुत पञ्च लाईट देखे हैं. दूकानदार बोले --आप जाति के सरदार है. आप सरदार होकर पंचलाईट खरीदने आये हैं, पूरे पाँच कोडी में देता हूँ. सरदार देहाती अपने घमंड दिखाने लगे.
जब पंच लाईट जलाने की समस्या उठी, तब सरदार की बुद्धि पर अविश्वास प्रकट करने लगे. गाँव के अन्य सरदार के द्वारा लाईट बालना अगौरव था. अंत में पंच से निकाले पास के गाँव के गोधन की लाईट जलाता है. सब खुश होते हैं.
सरदार में घमंड,नादाने, अन्य गाँव के सरदारों के सामने अपनी इज्जत बनाए रखना आदि गुणों से सरदार सफल देहाती सरदार है.
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गोधन
गोधन पंच लाईट कहानी का साधारण पंच के दंड के पात्र का आदमी था. उसको पंच में हुक्का पीना बंद था. वह पंचायत से बाहर है.पंचों की निगाह पर गोधन बहुत दिन से चढ़ा हुआ था. अचानक उसकी जरूरत पञ्च को आ गयी. कार है वही पञ्च लाईट जलाना जानता था. अब पंच उनकी मदद लेने विवश थे. सलीमा का गीत गाकर आँख का इशारा मारनेवाला गोधन से गाँव भर के लोग नाराज थे. अंत में पंचायत वाले गोधन को बुलाने मान गए. वह होशियार था. वहां स्पिरिट नहीं था. गोधन गरी का तेल माँगा. दीप जलाने लगा. गोधन कभी मुँह से फूँकता ,कभी पंच लाईट की चाबी घुमाता.थोड़ी देर में पंचलाईट से सनसनाहट की आवाज़ निकलने लगी और रोशनी बढ़ती गयी साथ ही गोधन की प्रशंसा भी. सरदार ने गोधन से प्यार से कहा--तुमने जाति की इज्ज़त रख ली;खूब गाओ सलीमा का गाना.
गोधन के पंचलाईट जलाने की कला ने उसको हीरो बना दिया.
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खानापदेश
लेखक : ओमप्रकाश वाल्मीकि
सुकिया
ख्नाबदेश कहानी का प्रधान पात्र है सुकिया. वह अपने पति मानो के साथ धन कमाने अपने गाँव छोड़ जाती है.
सुकिया और मानो दम्पति कुछ धन कमाने की इच्छा से गाँव छोड़कर भट्टे पर आ गए . असगर ठेकेदार ले आया था. भट्टा मालिक मुख्तार सिंह था.
जहां मजदूर रहते थे ,वहां रात डरावना था. कुछ धन जोड़ने की इच्छा से धीरज होता था. बस्ती में सांप-बिच्छु का डर लगा रहा था. मानो बार -बार सुकिया से कहता था -- अपने देस की सूखी रोटी भी परदेस पकवानों से अच्छी होती है.
सुकिया जवाब देती --नरक की जिन्दगी से निकलना है तो कुछ छोड़ना भी पड़ेगा. आदमी की औकात घर से बाहर कदम रखने पर ही पता चले हैं. दोनों कठोर मेहनत करते ,फिर भी मजदूरी कम ही मिलती.
मालिक मुख्तार सिंह का बेटा सूबे सिंह था. पिता की गैरहाजिरी में सूबे सिंह का रौब -दाब भट्टे का माहौल ही बदल देता था. असगर ठेकेदार भीगी बिल्ली बन जाता था. सूबे का चरित्र भी अच्छा नहीं था.
भट्टे पर काम करने किसनी और महेश नवविवाहित दम्पति आये थे. सूबे सिंह की कुदृष्टि किसनी पर पडी. वह उसे लेकर शहर जाता;वापस आते वक्त वह थकी लगती थी. वहाँ सूबे और किसनी के बारे में काना-फूसी होने लगी.
वहाँ तीसरा मजदूर था जसदेव. . वह कम उम्र वाला था. एक दिन सूबे सिंह ने असगर ठेकेदार के द्वारा सुकिया को दफ्तर में काम करने बुलाया. किसनी की तबीयत ठीक नहीं थी. सुकिया डर गयी. गुस्से और आक्रोश से नसें खिंचने लगी. जसदेव सुकिया के बदले दफ्तर के काम करने गया. सूबे सिंह अति क्रोध से उसको बहुत मारा-पीटा.
सुकिया को बहुत दुःख हुआ. जसदेव को खिलाने-पिलाने में लगी. भट्टे में दवा-दारू का इंतज़ाम नहीं था. सुकिया जसदेव से मिलने गयी. वह दर्द से कराह रहा था. मानो ने सूबे सिंह को खूब कोसा. "कमबख्त कीड़े पडके मरेगा. हाथ-पाँव टूट-टूटकर गिरेंगे ....आदमी नहीं जंगली जानवर है."
मानो को पक्की ईंट का घर निजी बनवाने की इच्छा थी. वह अपने निजी ईंट के घर में रहने का सपना देखा करता था.
सुकिया जल्दी भट्टी पर काम करने गयी. एक दिन जल्दी गयी तो देखा भट्टी उजड़ा हुआ था. सारी ईंटे टूटी-फूटी पडी थी. सब ने कहा किसीने जान-बूझकर ईंटें तोडी हैं. मानो का ह्रदय फटा जा रहा था.आगे वे वहां नहीं रह सकते. असगर ठेकेदार ने उनकी रही-सही उम्मीदों पर पानी फेर दिया.. वे खानाबदेशी बन गए. खानाबदेश जिन्दगी का एक पड़ाव था यह भट्टा. वे वहां से दुसरे पड़ाव की तलाश में निकले,एक दिशा हीन यात्रा पर. सपनों के काँच उसकी आँख में किरकिरा रहे थे.
सुकिया शोषित दलित वर्ग की प्रतिनिधी है. केवल परिश्रम करनेवाली है.साथ ही साहसी है.चतुर है.
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मानो
खानाबदेश कहानी का प्रमुख पात्र है मानो. सुकिया के पति. कठोर मेहनती. उसकी एक मात्र चाह थी पक्की ईंट का घर बनाना. इस के लिए पत्नी सुकिया की बात मानकर भट्टी में काम करने गया. कठोर मेहनत के बाद भी अधिक रूपये ज़माना मुश्किल हो गया. सुकिया उसको धीरज बांधती रहती. वहाँ ठहरने की सुविधा नहीं थी.सांप-बिच्छुओं का डर था.
फिर भी अपने ईंट के घर के स्वप्न को साकार बनाने सब कुछ सह लेता. वहाँ दवा की सुविधा नहीं थी.
ऐसी परिस्थिति में उनको सूबे सिंह के रूप में आपत्ति आ गयी. वह भट्टे के मालिक का बेटा था. उसकी कुदृष्टि सुकिया पर पडी.तीसरा मजदूर जसदेव उसकी रक्षा के लिए मार खाया.चोट लगी. इस घटना के चंद दिन में किसीने भट्टे को जबरदस्त तोड़ दिया. मानो दुखी था. वह बे घर का हो गया.खानाबदेश .सुकिया और मानो नौकरी की तलाश में निकल पड़े.
मानो शोषित दलित वर्ग का पात्र है. ऐसे लोगों के करुण कथा के द्वारा दलित वर्ग में जागरण लाना लेखक का उद्देय था.
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सूबे सिंह
ख्नाबदेश कहानी का खलनायक था सूबे सिंह. भट्टे के मालिक का बेटा था. वह स्वभाव से कुटिल और निर्दयी था.
वह पिता की अनुपस्थिति में भट्टे की देखरेख करने आया. पहले किसनू नामक मजदूरिन जो महेश की पत्नी है,उसको अपनी वासना का शिकार बना दिया. उसकी तबीयत ख़राब हो गयी. फिरउसकी कुदृष्टि सुकिया पर पडी.जसदेव ने सुकिया को बचा लिया. पर सूबे ने उसको इतना मारा कि वह शय्याशायी हो गया. वह दवा-दारु की व्यवस्था नहीं थी. अंत में भट्टी को ही उजाड़ दिया.
सूबे सिंह जैसे अमीर वर्ग बलात्कारी होते है. वह कहानी का निंदनीय पात्र है.
श्री गणेश के नाम से करता हूँ,श्रीगणेश!
श्री की कृपा रहें! श्री विद्या की भी;
श्री शक्ति की भी;श्री शिव,श्री विष्णु की भी;
इन सब से मिश्रित एक ईश्वरीय शक्ति मिले!!
जिससे कर सकूँ, मैं जगदोद्धार!!
आगे बढूँ मैं,आगे बढ़ें संसार!
न तो ऐसी शक्ति करो उत्पन्न,
जो रोक सके तेरे नाम से लूटना’
धर्म –कर्म के बाद नाम बचें;
करोड़ों की संपत्ति,न ऐक्य हो सागर में;
मानता हूँ तेरी बड़ी शक्ति,लेकिन एक तेरी
अपमान की शक्ति जो साल पर साल
बढ़ती रहती हैं,तनाव,कलह ,मृत्यु ,मार-काट के
आतंक फैलता बढ़ता रहता है;
मुक्ति करो भक्तों को,ऐसी तेरी मूर्ती –विसर्जन के
दुष्कर्म से; बचाओ धर्म को;मिटाओ अंध-धार्मिकता को’
करता हूँ,श्री गणेश श्री गणेश के नाम से;
करो कुछ शक्ति का प्रयोग;बचें संसार!!
भक्ति तो मुक्ति का साधन है ,पर
शक्ति है संसार में धन की ;ज्ञान की ;
ज्ञानी भक्त हो जाता हैं,तो
धनी नाचता नचाता मन माना;
अतः जन का मानना है .
धनी की बात;
यह तो बात ख टकती;
जीते हैं हम लेके नाम तेरे;
रखो हम पर कृपा तेरी;
श्री गणेश करता हूं,काम;
श्रीगणेश करो कामयाबी ,
कामना मेरी!
सनातन हिन्दू धर्म सिखाते हैं बहुत;
स्वदेशे पूजिते राजा;विद्वान सर्वत्र पूजिते;
वसुदैव् कुटुब्बकम ;
मनुष्य सेवा ही महेश की सेवा;
धन न जोड़ो;दान –धर्म में लगाओ;
वही महान है,जो सब कुछ तज,
जीता है परायों के लिए;
त्याग में है सुख;
भोग में हैं दुःख!
राजकुमार सन्यासी बन्ने की कहानियाँ है
भारत में;भोगी रोगी बनता है;
प्रकृति के साथ जीने में ब्रह्म के साक्षात्कार है;
अहम् ब्रह्मासमी ;आत्मा-परमात्मा में विलीन है ;
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छात्रों और छात्राओं के लिए कहानी कला और सारांश लिखने निम्न सोपानों पर ध्यान रखना चाहिए:
१.१५ अंकों का बंटवारा:
१.लेखक परिचय संक्षेप में --३ अंक.
२.सारांश -संक्षेप में ------५ अंक.
३. कहानी कला की दृष्टी से विशेषताएं:-७ अंक.
कुल एक कहानी केलिए इस दृष्टी से पंद्रह अंक दिए जायेंगे.
२. चरित्र चित्रण:-
हर पात्र की बोली,विचार,आंगिक चेष्टाएँ ,भावाभिव्यक्ति ,काम आदि पर ध्यान देकर चरित्र चित्रण करना है.
कहानी की सफलता देश-काल -वातावरण के अनुकूल रचित पात्र पर निर्भर है. अतः चरित्र के जीवित रूप दिखाना चाहिए.
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1.नादान दोस्त--उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद. (बाल मनोविज्ञान की कहानी )
कठिन शब्दार्थ:
सुध-होश
फुरसत =समय
तसल्ली देना-सांत्वना देना
पर- पंख,लेकिन
बगैर=बिना
पेचीदा=परेशानी
जिज्ञासा=जानने की इच्छा
अधीर होना= हिम्मत खोना
अनुमान=अंदाजा.
चाव= रूचि
आँख बचाना=छिपाना
उधेड़बुन =दुविधा
हिफाज़त =सुरक्षा
लू=गरम हवा.
चेहरे का रंग उड़ जाना=डरना
ताकना=देखना
भीगी बिल्ली बनना= भयभीत होना
तरस खाना=दया दिखाना
तरस आना=रहम आना
लेखक परिचय:-जन्म स्थान,तारीख,कहानियों का केंद्र भाव,मुख्य रचनाये,वे अमर है तो मृत्यु साल..
सारांश:-
प्रेमचंद इस कहानी में सामाजिक समस्याओं से परे बाल मनोविज्ञान पर ध्यान दिया है.बच्चे नादान होते हैं.
उनको नयी बातें जानने की इच्छा होती हैं.उनके जिज्ञासुओं को जवाब देने माता-पिता को फुरसत नहीं;अतः बच्चे अपने सवालों का समाधान खुद खोजने में लग जाते हैं .परिणाम उनके सोच के विपरीत होते हैं.वे अपनी नादानी के लिए पछताते हैं.बच्चों के नादानी करतूत से माँ को हंसी आती है;पर बेटा अपनी गलती पर अफसोस होता रहता है; उसको माँ की इस बात से भी पछतावा बढ़ा होगा--केशव के सर इसका पाप पडेगा!हाय!हाय!तीन जानें ली यह दुष्ट ने! कितना मर्मस्पर्शी बाल मनोविज्ञान का जीता-जागता चित्रण.
कहानी का सार:-
केशव के घर कार्निस के ऊपर एक चिड़िये ने अंडे दिए थे. केशव और उसकी बहन श्यामा दोनों को अंडे देखने की इच्छा हुई. उनके मन में कई प्रकार के सवाल आये कि अंडे की संख्या,अंडे के रंग,बच्चे कैसे निकलेंगे ,कैसे उड़ेंगे ,पर कैसे निकलेंगे आदि.
इन सवालों को जवाब देने माता-पिता दोनों को समय नहीं. नादान बच्चे अपनेदिल को खुद ही तसल्ली दिया करते थे.
दोनों को इन अण्डों को सुरक्षित रखने की इच्छा हुई . पहले उनकी तीव्र इच्छा अण्डों को देखने की थी.
दोनों बच्चे अम्मा की आँखे बचाकर इस काम में लग गए. भाई की मदद में बहन लग गयी.अण्डों को धुप से बचाने,उसको गद्दीदार बिस्तर पर रखना,पानी की व्यवस्था सब कर चुके. उनका विचार था इतनी सुविधाओं से चिड़िये को आराम मिलेगा. अंडे से निकलते ही दाना-पानी पास ही मिल जाएगा.चिड़िये के बच्चे वहीं रहेंगे.
भाई ने ऊपर डरते हुए चढ़कर ये सब काम किये;बहन को ऊपर चढ़ने नहीं दिया;उसको डर था कि बहन के पैर फिसलकर गिर जाने पर माँ उसे चटनी कर देगी. केशव को यह भी डर था कि वह किवाड़ खोलकर घर से बाहर आया है;माँ को इसका पता चलें या बहन के कहने पर डांटेगी.
माँ आयी;डांट-डपटकर दरवाजा बंद कर दिया.गरम लू की दुपहरी में दोनों सो गए. यकायक श्यामा जाग उठी;तुरंत कार्निस देखने गयी;वहाँ के दृश्य से दुखी थी; अंडे नीचे गिरकर टूट गए.वह आहिस्ते-आहिस्ते भाई को जगाने लगी और बात बतायी कि अंडे नीचे पड़े हैं;चिड़िये के बच्चे उड़ गए.
माँ ने दोनों बच्चों को धूप में खड़ा देखकर पुकारी. केशव ने कहा कि अंडे गिर गए.माँ गुस्से में बोली-तुम लोगों ने अण्डों को छुआ होगा. श्यामा को भैये पर का तरस उड़ गया.सारी बातें बता दीं.
तभी माँ ने कहा कि तू इतना बड़ा हुआ ,तुझे अभी इतना पता नहीं कि छूने से चिड़िये के अंडे गंदे हो जाते हैं.चिड़िया फिर उन्हें नहीं सेती. आगे माँ ने कहा --केशव के सर इसका पाप पडेगा.केशव ने दुखी मन से कहा--मैंने तो सिर्फ अण्डों को गद्दी पर रख दिया था अम्माजी.!
माँ को हंसी आयी;पर केशव दुखी था.सोच-सोचकर रो रहा था.
भोले-भाले बच्चोंकी नादानी से नादान दोस्त अंडे से निकल न सके.
कहानी कला की दृष्टि से विशेषताएँ:-
"नादान दोस्त" उपन्यास सम्राट प्रेमचंद जी की कहानी है. उसकी रोचकता,प्रवाह और सुसम्बद्धता के तत्व हैं-
१.कथावस्तु२. पात्र ३.संवाद ४.देशकाल ५. शीर्षक ६.चरमसीमा ७.अंत ८..उद्देश्य ..९.भाषा शैली .इस पर अब प्रकाश डालेंगे.
१.कथावस्तु: -कहानी की बीज है.इसी से कहानी का विकास होता है;बाल मनोविज्ञान की इस कहानी में
माँ-बाप बच्चों के मन में उठनेवाले सवालों के जवाब देने तैयार नहीं है; भूलें होने के बाद डाँटते हैं.वे तो बच्चों की भूलों से खुश होते हैं. बच्चे माँ -बाप के डर के कारण अपने मन में उठनेवाले सवालों के हल में खुद लग जाते है, इसीलिये भूलें होती हैं.बच्चे अफसोस होते हैं. इस कथावस्तु के आधार पर कहानी सफल है.
२.पात्र: कहानी के प्रमुख पात्र केशव और श्यामा हैं. और गौण पात्र उसकी माँ. केशव और श्यामा अपने आप सवाल-जवाब करके अपने दिल को तसल्ली दे दिया करते थे लेखक के यह वाक्य बच्चों के प्रति माता-पिता की लापरवाही ,बच्चों के जिज्ञासु होने की प्रवृत्ति का पता लगता है. केशव अपने माँ -बाप से इतना डरता है कि दोनों को अपने माँ -बाप की आँखें बचाकर काम करना पड़ता है;भाई का बहन को डांटना,बहन माता से न कहें यों सोचना,अंडे के टूटने की खबर पहले बहन जानकर आहिस्ते-आहिस्ते भाई को जगाना,अंडे के छूने से टूट जाने से दुखी होकर भाई के अपराध को श्यामा अपनी माँ से कहना ,सच्चाई जानकर माँ का कहना -केशव के सर इसका पाप पड़ेगा;फिर माँ का खुश होना,केशव का दुखी होना ऐसे कहानी के पात्र कहानी के सफल और उद्देश्य के लिए ही सृजित हैं.
३.संवाद: कहानी को आगे बढाने में संवाद का अपना विशेष महत्त्व है.श्यामा के हर सवाल में बच्चों के जिज्ञासा का पता लगता है.बड़े भाई का समाधान भी रोचक है.
श्यामा:-क्यों भइया,बच्चे निकलकर फुर्र से उड़ जायेंगे?
केशव गर्व से - नहीं री पगली !पहले पर निकालेंगे!बगैर परों के कैसे उड़ेंगे?
केशव ने श्यामा को अंडे नहीं दिखाया। तब श्यामा ने कहा,मैं अम्माजी से कह दूँगी.
तब केशव ने कहा-अम्मा से कहेगी तो बहुत मारूंगा,कहे देता हूँ.
अंडे के छू जाने के डर से केशव ने माँ से पूछा--तो क्या चिड़िया ने अंडे गिरे दिए हैं अम्मा जी?
माँ--और क्या करती!केशव के सर इसका पाप पडेगा। हाय!हाय!तीन जानें ले लीं दुष्ट ने!
ऐसे ही कथोपकथन बाल-मनोविज्ञान के अनुकूल रोचक बन गया है.
४.देश-काल --यह एक सामाजिक कहानी है. बालमनोविज्ञान का प्रतीक है.अतः यह सफल कहानी है. बच्चे यों ही कुछ करते हैं.जानने की इच्छा रखते हैं.यह तो देश -काल वातावरण के अनुकूल है.
५.शीर्षक : कहानी का शीर्षक "नादान दोस्त",उचित है. अंडे ही नादान दोस्त हैं.बच्चे उत्पन्न भी नहीं हुए, उन अण्डों की सुरक्षा,धूप से बचाना ,गद्दी तैयार करना आदि भोले बच्चों की भोलापन है नादान बच्चों के लिए.
६.चरम सीमा:-कहानी की चरम सीमा श्यामा के अंडे टूटने देखने से हैं.तभी माता को बच्चों के बारे में पता चलता है.
७.अंत- कहानी का अंत माँ की हँसी और केशव के अफसोस के साथ होता है.नादान दोस्त टूटे अंडे के लिए भोले केशव का दुःख;शीर्षक के अनुकूल अंत.
८.उद्देश्य:-बाल मनोवैज्ञानिक और अभिभावकों की लापरवाही,बच्चों का डरना,बच्चों के मन में उठनेवाले सवालों के जवाब न देना आदि पर ध्यान दिलाना लेखक का उद्देश्य है. इसमें लेखक को सफलता मिली है.
९.भाषा शैली: भाषा सरल और मुहावरेदार हैं.कहानी सिलसिलेवार है.आँखे बचाना,उधेड़बुन में पडना,चटनी कर डालना,उलटे पाँव दौड़ना,रंग उड़ जाना,पाप पड़ना,सत्यानाश कर डालना आदि मुहावरों का सही प्रयोग मिलता है.कहानी सिलसिलेवार है.
थोड़े में कहें तो कहानी सिलसिलेवार ,रोचक और शिक्षाप्रद है. अभिभावकों को बच्चों से प्यार से रहना है. उनके सवालों के जवाब देना,शंकाओं का समाधान करना नादान बच्चों को खुश करना;और नादानी के भूलों से बचाना आदि शिक्षा मिलती हैं.
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2.कोटर और कुटीर. लेखक :-सियारामशरण गुप्त
कठिन शब्दार्थ:
कोटर==घने जंगल
कुटीर =झोम्पडी
बाट जोहना=रास्ता देखना ,प्रतीक्षा करना
परिखा=
क्षुधा=भूख
घनश्याम =बादल
पोखरी=
पुर्हरी=
अवस्था=आयु ,उम्र
खफ़ा=
निहाल हो जाना=
लेखक परिचय :-सियारामशरण गुप्त
सारांश :
मनुष्य को दूसरों की सम्पत्ती की चाह ठीक नहीं है.दूसरों से माँगना और कर्जा लेना भी स्वाभिमान के विरुद्ध है.एक कुटीर वासी ऐसे आदर्श जीवन से खुश होता है.कोटर में रहनेवाले चातक पुत्र वर्षा के पानी की प्रतीक्षा छोड़ गंगा की ओर उड़ रहा है.जब उसको गरीब बुद्धन की स्वाभिमान भरी बात में चातक का उदाहरण बताया तो चातक पुत्र का अपने खानदानी गौरव का पता चला.वह फिर गंगा की ओर जाना छोड़कर अपने कोटर की ओर लौटा. यह छोटी -सी कहानी में स्वाभिमान की आदर्श सीख मिलती है.
सार:
चातक पुत्र को अधिक प्यास लगी. उनके पिता जी से कहा कि प्यास के कारण मैं परेशान में हूँ. पिताजी ने समझाया कि हम तो वर्षा का पानी ही पीते हैं.इसी कारण से हमारे कुल का गौरव है.पुत्र ने कहा कि मनुष्य तो कुएं,तालाब ,आदि में वर्षा के पानी जमा करके कृषी करता है; तब पिता ने पोखरी का पानी पीने की सलाह दी. पुत्र ने उस गंदे पानी ,जानवर और मनुष्य का पीना,उसमें कीड़े का बिलबिलाना .आदमियों का उस पानी प्रदूषित करना; पुत्र ने वह विचार छोड़ दिया.उसे चार-पांच की दूरी पर गंगा का पानी पीने की चाह की. वह गंगा की तरफ उड़ने लगा. रास्ते में वह बुद्धन नामक गरीब बूढ़े के खपरैल के पास के नीम के पेड़ पर बैठा.
बुद्धन पचास साल का था उसका बेटा गोकुल १५-१६ साल का लड़का था.
वह काम के लिए गया और खाली हाथ लौटा. लौटने में देरी हो गयी.उसने पिताजी से देरी के कारण जो बताया,उससे उसके उच्च चरित्र का पता चलता है.उसको उस दिन की मजदूरी नहीं मिली.इंजीनियर के कहने पर ओवेर्सियर ने मजदूरी नहीं दी.सब चले गए.गोकुल को रास्ते पर एक रुपयों से भरा बटुवा मिला. गरीबी हालत में भी उसको उन रुप्योंवाले की उदासी और परेशानी का ही ध्यान आया. उसको मालूम हो गया कि वह बटुआ एक मेहता का है. तुरंत वह मेहता की तलाश में गया. मेहता का बटुवा सौंपा. मेहता बहुत खुश हुए.वे गोकुल को रूपये देने लगे. गोकुल ने उसे न लिया.
पिता जी को अपने बेटे की ईमानदारी पसंद आयी.पिताजी ने पुत्र से कहा कि तुम उधार ले सकते हो.गोकुल ने कहा कि उधार लेने की बात उस समय आयी ही नहीं.
आनंदातिरेक से वे बोल न सके.बुद्धन को लगा कि उसके क्षुधित और निर्जीव शरीर में प्राणों का संचार हो गया.वह पुत्र से बोला-अच्छा ही किया बेटा,यह उधार माँगना भी एक तरह का माँगना होता है.भगवान ने तुझे ऐसी बुद्धि दी है,मैं तो यही देखकर निहाल हो गया.दो-दिन की भूख हमारा कुछ बिगाड़ नहीं सकती.
चातक पुत्र ने यह सब सुना,बाप -बेटे की गरीबी में भी आत्मसम्मान और त्याग से उसकी आँखों से आँसू झरने लगे. वह गंगा की ओर उड़ना तजकर अपने कोटर पहुँचा . दुसरे ही दिन वर्षा हुई. उसको वर्षा के कारण चार दिन का उड़ान सात दिन हो गए.
कहानी कला की दृष्टी से कहानी की विशेषताएं:-
कथावस्तु:- ईमानदारी और आत्मसम्मान से जीना,कुल गौरव की रक्षा करना आदी सीख देना कथावस्तु है. इस कथावस्तु में लेखक ने चातक पक्षी द्वारा पोखरी के प्रढूषण,स्वार्थ आदि पर चित्रण किया है.बुद्धन और गोकुल के द्वारा गरीबी में भी उदार और ईमानदार रहने का चित्रण है.
पात्र: कहानी के पात्र हैं चातक,चातक पुत्र, बुद्धन ,गोकुल. ये सारे पात्र कहानी के लिए आवश्यक है. लेखक अपने उद्देश्य तक पहुँचने इन पात्रों का सही प्रयोग किया है.चातक -पुत्र द्वारा पानी प्रदूषण का जिक्र किया है.प्रदूषित पानी न पीकर चार मील की गंगा की ओर जाना,रास्ते में बुद्धन की झोम्पडी के पास के नींम के पेड़ पर बैठना,बुद्धन और गोकुल के संवाद सुनना,चातक पुत्र के विचार परिवर्तन आदि इन पात्रों के द्वारा सफल रूप में हुआ है.
संवाद:-चातक पुत्र और चातक की बातों से चातक पुत्र अपना खानदानी गुण और मर्यादा बदलना चाहता है. बुद्धन और गोकुल के संवाद से चातक पुत्र के बदले विचार . इस दृष्टी से संवाद सफल है.
उद्देश्य :-ईमानदारी से रहना,दूसरों से कुछ न माँगना, खानदानी आचार-विचार का पालन करना आदि सिखाना उद्देश्य है. इसमें सफलता मिली है.
शीर्षक :-कोटर और कोठरी - एक जंगल और दूसरा गरीबों की झोम्पडी; दोनों में महान गुण; इस दृष्टी से शीर्षक भी उचित है.
इस प्रकार कहानी कला की दृष्टी से कहानी सफल है.
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३. उसने कहा था कहानीकार :चंद्रधर शर्मा 'गुलेरी'
कठिन शब्दार्थ :-
मरहम लगाना=दवा लगाना
तरस खाना =दया दिखाना
सताना =तंग करना
उदासी के बादल फटना=दुःख दूर होना
चकमा देना=धोखा देना
किलकारी =खुशी की
पैरवी करना=
ख़िताब=उपाधी
नीलगाय=
लेखक परिचय :-
सारांश:
चंद्रधर शर्मा "गुलेरी" की यह कहानी उनको हिंदी कहानी साहित्य गगन में चार चाँद लगा दिये।
लहनासिंह अपनी एक पक्षीय प्रेयसी के पति और पुत्र के प्राण बचाने अपने प्राण देता है.इस कथानक को मर्मस्पर्शी ढंग से लिखकर लेखक ने पाठकों के दिल में स्थायी स्थान पा लिया।
अमृतसर के चौक की एक दूकान पर बारह साल का एक लड़का और आठ साल की लड़की अकस्मात् मिलते हैं।दोनों एक दूसरे से परिचित होने के बाद रोज़ लड़का लड़की से पूछता है कि क्या तेरी शादी हो गयी। वह रोज "धत" कहकर दौड़ जाती है। एक दिन लड़की ने 'हाँ' कहा और उसके प्रमाण में रेशम से कढ़ा हुआ सालू दिखाया और भाग गई।
लड़के के मन में उस लड़की से प्रेम था। लेखक ने उसके प्रेम को यों लिखा है ---लड़की भाग गयी,पर लड़के रस्ते में एक लड़के को मोरी में ढकेल दिया। एक छाबड़ीवाले के दिन -भर की कमाई खोयी,एक कुत्ते पर पत्थर मारा;एक गोभीवाले के ठेले में से दूध उंडेल दिया;सामने नाहकत आती हुयी किसी वैष्णवी से टकराकर अंधे की उपाधी पायी,तब कहीं घर पहुँचा। उसके एक पक्ष प्रेम को लेखक दर्शाने के बाद की कहानी पच्चीस साल के बाद शुरू होती है। यह अंतर में इतना सम्बन्ध है कि कहानी और रोचक बन जाती है. लड़के का नाम लहना सिंह है।
अमृतसर बाज़ार की उपर्युक्त घटना के बाद जर्मन की युद्ध भूमि के खंदकों में कहानी जुड़तीहै।
वहाँ लुधियाना से दस गुना जाड़ा है। वजीरा सिंह उस पलटन का विदूषक था। उसी के कारण वहाँ की उदासी खुशी में बदल जाती है।
लहनासिंह बड़ा होशियार था। वहाँ के सूबेदार वज़ीर सिंह था। उसका बेटा बोधा सिंह था। एक बार लहनासिंह छुट्टियों में सूबेदार के यहाँ गया। तभी उसको मालूम हो गया कि सूबेदारनी वह लड़की थी जिसे वह अमृतसर के बाज़ार में मिला करता था। तब सूबेदारनी ने कहा कि मेरे पति और बेटे की रक्षा करना। तब वह यह घटना भी याद दिलाती है कि अमृतसर केबाजार में एक दिन तांगेवाले का घोडा दहीवाले की दूकान के पास बिगड़ गया था। उस दिन लहनसिंह ने उस लड़की के प्राण बचाये थे। वैसे ही बचाना। तब से लहना सिंह उन दोनों की देखरेख करता था। इसको पाठक तभी समझ सकते हैं जब लहना शत्रुओं से वज़ीर सिंह और बोधसिंह को सुरक्षित भेजकर गोली खाकर मृत्यु की अवस्था में पुराणी स्मृति में अंतिम घड़ी में है। यही हृदयस्पर्शी चित्रात्मक वर्णन है।
जर्मन का एक सैनिक अफ्सर भारतीय लपटन साहब बनकर आया था। उसकी शुद्ध उर्दू से लहनासिंह को मालूम हो गया कि वह छद्मवेशी जर्मनी है। उसने सिगरेट दी ;और बताया कि नीलगाय के दो फुट सिंग थे। इन सब से सतर्क हो गया.
तुरंत वह सूबेदार को खबर दी और भेज दिया। केवल आठ ही भारतीय वीर सिपाही सत्तर से ज्यादा जर्मन
सिपाहियों को मा रने में समर्थ हुए। नकली लपटन साहब के हाथ जेब में हाथ थे। उसी की गोली से लहना घायल हो गया। फिर भी सूबेदार और बोधासिंह को अमबुलंस में सुरक्षित भेज दिया। तब उसने बोधासिंह से सूबेदारनी को खबर दी कि मुझसे उसने जो कहा था ,वह मैंने कर दिया।
इन पहली स्मृतियों और सूबेदारनी की बात पालन करके लहनासिंह चल बसा। यही उसने कहा था।
कुछ दिन पीछे लोगों ने अखबारों में पढ़ा --
फ्रांस और बेल्जियम --६८ वीं सूची --मैदान में घावों से मारा -नं ०. ७७ सिख राइफ़ल्स जमादार लहनासिंह।
वास्तविक कारण केवल लहनासिंह को ही मालूम था। अपने लड़कपन के अबोध प्रेम निभाने जान दी है। कितना बड़ा त्याग; आदर्श प्रेम में प्राण देकर सूबेदारनी की जान बचाना त्याग की चरम सीमा है.
कहानी कला की दृष्टी से कहानी की विशेषताएं:
कथानक:- चंद्रधर शर्माजी की कहानी "उसने कहा था" का कथानक बचपन के अज्ञात प्रेम के लिए प्राण त्यागना वह भी सूबेदारनी ने कहा था ; मर्मस्पर्शी कहानी है.; इस दृष्टि से कहानी सफल है.
पात्र :-लहनासिंह ,वजीर सिंह ,बोधा सिंह,सूबेदारनी ; ये चारों पात्र कहाने को सिलसिलेवार ढंग से विकास करते हैं.सूबेदारनी और लहनासिंह के प्रथम मिलन,पच्चीस साल के बाद पुनः मिलना, सूबेदारनी पुरानी बचाव की घटना याद दिलाकर अपने पति और बच्चे की सुरक्षा की प्रार्थना, ,बोधा की जान बचाना,खुद घायल होकर प्राण त्यागना कितना मर्स्पर्शी चित्रात्मक शैली. पात्रों की दृष्टि से कहानी सफल है.
कथोपकथन: कथोपकथन अत्यंत रोचक है. लहना--तेरी कुडमाई हो गयी;
लडकी =हाँ,देखो रेशम का सालू.
लड़के का तेज़ भागना,कुत्ते पर पत्थर फेंकने आमने आनेवालों पर टकराना कितना यथार्थ चित्रण.
सूबेदार और बोधा को आम्बुलंस में बिठाने के बाद लहना सूबेदारनी को सन्देश देता है:
जब घर जाओ तो कह देना कि मुझसे जो उसने कहा था , वह मैंने कर दिया.
प्राणाघात सहते हुए ---अब आप गाडी पर चढ़ जाओ! मैंने जो कहा वह लिख देना और कह भी देना.
गाडी के जाते ही लहना लेट गया! 'वजीरा,पानी पिला दे और कमरबंद खोल दे. तर हो रहा है.
कितना ह्रदय स्पर्शी संवाद.
चरम सीमा ;-पुरानी स्मृतियाँ ; और उसके कारण पाठकों को वास्तविक त्याग का पता चलना; लहना का प्राण पखेरू उड़ जाना;
शीर्षक : शीर्षर कहानी की सफलता के लिए अत्यंत उचित है. सूबेदारनी ने कहा; बोधा की जान बचाई; और खुद जान गंवा दी.
देश-काल वातावरण: अमृतसर की गली में इक्केगादिवाले की भाषा ,बचो खालसाजी,हटो भाई जी,हटो बाछा.,जीने जोगी. पंजाबी शब्द ; कुडमाई हो गयी,धत, ,और जर्मन खंदकों का सजीव चित्रण , आदिमें लेखक की शैली तारीफ के योग्य है; फिर अंतिम घड़ी में लहना की स्मृतियों का चित्रामक शैली सचमुच आदर्श कहानी है.
भाषा शैली: कहानी पंजाब की गली और बाज़ार से शुरू होती है;उसके अनुसार पंजाबी शब्द मिलते है; कान पकना,राह खोना,अंधे की उपाधी पाना,,मत्था टेकना आदि मुहावरों का प्रयोग. चित्रात्मक वर्णनात्मक शैली;
इस प्रकार गुलेरी जी की यह काहानी सभी दृष्टियों में सफल है.
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4.सिक्का बदल गया. --
४.सिक्का बदल गया----कृष्णा सोबती
कठिन शब्दार्थ :
पौ फटना---सबेरे होना
नज़र उठाना- देखना
प्रतिहिंसा =बदला
विचलित होना =लाचार होना
संकेत करना =इशारा करना
आहत=दुखी
सारांश : देश की आजादी हुयी; देश में हिन्दू -मुस्लिम कलह,हत्या आदि के बाद शरणार्थी देश छोड़कर चलने लगे. सबको अपनी संपत्ति छोड़ शरणार्थी मुकाम भेजे गए. जिसका जीवन अधिकार,सत्ता, आडम्बर पूर्ण था, वे सब खोकर शरणार्थी मुकाम में रहे. इसीका चित्रण है "सिक्का बदल गया".शासन बदल गया तो जीवल शैली ही बदल जाती है.
इस कहानी की नायिका की मनोदशा का सही चित्रण हुआ है. शाहनी खद्दर की चादर ओढ़े चनाब नदी में राम .राम करके नहाकर बहार आयी तो क्रांतिकारियों के अगणित पाँवों के निशान थे. उसको इस प्रभात की मीठी नीरवता में भयावना-सा लग रहा था. शाहजी की लम्बी चौड़ी हवेली में अकेली है.शाहनी ,शाह की पत्नी है; सबकी मदद कर रही थी; शेरा की माँ स्वर्ग सिधारी तो उसको पालने लगी; शेरो की पत्नी हसैना को बहुत चाहती है; शेरा उसके मुग़ल क्रान्तिकारियीं से मिलकर उसकी हत्या करने की स्थिति में आ गया. अब वह शरणार्थी मुकाम में पुराणी स्मृतियों में पीड़ित है. उसको पुराने शाही जीवन की यादें है, उस चनाब नदी के इलाके में उसका आदर था. अब वह अनाथिनी है. लोग जब शरणार्थी मुकाम जाने लगी ,तब दुखी हो गए. थानेदार दाऊद खान मुकाम में ले आने आया तो सोना-चांदी लेकर जल्दी निकलने को कहा. एक जमाने में वह शाहनी की सेवा करता था. शाहनी ने उसकी मदद की थी. . शाहनी अपने साथ कुछ भी लेने तैयार नहीं थी.
शाहनी ने कहा--सोना-चांदी सब तुम लोगों के लिए है. मेरा सोना तो तो एक ज़मीन में बिछा है.
सब शानी के मुकाम की ओर जाने से दुखी थे. अंत में वह मुकाम पहुँच गयी.
हिन्दू -मुस्लिम कलह देश को टुकड़े करने का प्रभाव शोक प्रद था.
रात को शाहनी जब कैम्प में पहुँचकर ज़मीन पर पडी तो लेटे-लेटे आहत मन से सोचा,"राज़ पलट गया है...सिक्का क्या बदलेगा? वह तो मैं वहीं छोड़ आयी....
शाहनी की आँखें और भी गीली हो गयी.
कलह के कारण आस-पास के हरे-हरे खेतों से . घिरे गाँवों में रात खून बरसा रही थीं. राज पलटा खा रहा था और सिक्का बदल रहा था. रूपये ,डालर,यूरो आदि.
कथानक: देश की आज़ादी की लड़ाई ,बंटवारा,हिन्दू -मुग़ल की अशांति, हत्याएं,जिसको सत्ता था ,वे सत्ता हीन. शरणार्थी कैप; गद्देदार बिस्तर पर जो सो रहे थे,वे दीनावस्था में पीड़ित ज़मीन पर सो रहे थे. इस दर्दनाक वातावरण के आधार पर कथानक सफल है.
पात्र : शाहनी विधवा,बड़े हवेली की मालकिन आज अकेली थी; उससके अधीम जो थे ,वे दूर चले गए; उससे पालित पूत शेरा मुग़ल क्रांतिकारियों से मिलकर उसकी हत्या करने की योज़ना में शामिल था. उनकी पत्नी हसैना था.थानेदार दाऊद खां उसे कैम्प ले जाने आगे आ गया. ट्रक पर वह चढी तो लीग के खूनी शेरे का दिल टूट रहा था.इस प्रकार शाहनी के जाने से सभी दुखी थे. इस प्रकार सारे पात्र सफल हैं.
कथोपकथन:--शाहनी अपने पालित पुत्र शेरा के लीग से मिलना पसंद नहीं . उसने शेरे को बुलाया. वह शेरे की पत्नी से यह बात प्रकट करती है--हसैना, यह वक्त लड़ने का है? वह पागल है तो तू ही जिगरा कर लिया कर.फिर अपने प्रेम प्रकटकर बोली ---"पगली, मुझे तो लड़के से बहू अधिक प्यारी है इस संवाद से शाहनी के स्नेह का पता चलता है.
दूसरा संवाद तब होता है ,जब थानेदार दाऊद खां सोना -चांदी बाँध लेने की बात कहता है. तब शाहनी की उदासी वाक्य--"सोना -चाँदी. वह सब तुम लोगों के लिए है.मेरा सोना तो एक ज़मीन में बिछा है.
नकदी प्यारी नहीं!यहाँ की नकदी यहीं रहेंगी. इससे शाहनी के उदार चरित्र का पता लगता है. इस दृष्टि से कहानी सफल है.
उद्देश्य : देश के बंटवारे और बेकार खून-हत्याएँ , अमीर शाही जीवन बितानेवालों की दुर्दशा आदि का चित्रण करना लेखक का उद्देश्य है. इस दृष्टि से कहानी सफल है.
शीर्षक :- सिक्का बदल गया उचित शीर्षक है.शासन के बदलते ही सिक्का भी बदल जाता है. बँटवारे के कारण सब कुछ बदल गया. हिन्दू-मुस्लिम की एकता,प्यार -मुहब्बत चला गया .
इस प्रकार कहानी कला की दृष्टि से कहानी सफल है.
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5.पुर्जे लेखक :इब्राहिम शरीफ
कठिन शब्दार्थ:
चेहरा मलिन लग्न= उदासी रहना
चल बसना =मर जाना
निदान - जांचकर पतालगाना
काबू =वश
वाकई =सचमुच
जूँ तक नहीं रेंगना =कोई असर न रहना
हौला =धीरे
लोट-पोट होना=
ज़ाहिर होना =प्रकट होना
हिम्मत हारना =धैर्य खोना
लहसन =गार्लिक பூண்டு
बेमुरव्वती -अनादर
अदना =नीच
चेहरा तमतमा आना=गुस्सा होना
क्षोब होना=दुःख होना
रफ्तार =वेग,तेज़
सारांश :
` इस कहानी में डाक्टर की लापरवाही ,निर्दयता और मध्य वर्ग की आर्थिक परेशानी,श्राद्ध का महत्त्व देना,साहित्य पढने पर नौकरी न मिलना आदि बातें सामाजिक उलझाने प्रकट करती है; इलाज के अभाव और डाक्टर का न आना माँ की मृत्यु के कारण बन जाते हैं.
भाई -बहन दोनों पढ़े लिखे हैं .बहन बी.ए डिग्री वाली थी. खूब सूरत थी; उसके योग्य वर न मिला;वर मिलने पर दहेज़ की समस्या; घर की आर्थिक दशा ख़राब थी. माँ को अनुभव हुआ बेटी को पढ़ाकर भूल हो गयी. बेटी जब अंतिम साल पढ़ रही थी ,पिता मर गए. भाई एम्.ए., साहित्य.
इसी बीच माँ के दाहिने हाथ बेकार हो गए. बहन ने डाक्टर को बुलाने का आग्रह किया. भाई डाक्टर बुलाने गया तो डाक्टर नहीं आये और कहा कि लकवा लगा होगा; लहसन का लेप करो.
घर में रूपये जो थे ,वे पिता के श्राद्ध के लिए थे. अकेले भाई के आते देख बहन चिल्लाई कि माँ की तबियत खराब होती जा रही है; डाक्टर को बुला लाओ; पर डाक्टर नहीं आये,वे एल.ऐ.एम् है. उन्होंने साफ बता दिया कि दवा नहीं है; मिलना मुश्किल है; फिर दवा का पुर्जा लिखकर दिया. घर आया तो बहन ने पुर्जे को टुकड़े -टुकड़े कर डाले.माँ की आँखों की रिक्तता चारों तरफ घिरने लग गयी थी.
डाक्टर के न आने से ,दवा समय पर नहीं मिलने से माँ चल बसी. मध्यवर्ग में ऐसा ही होता है.कहानी का सिलसिला मर्माघात है.
कहानी कला की दृष्टि से कहानी की विशेषताएं :-
कथानक: मध्य वर्ग की परेशानियां और डाक्टर की लापरवाही और निर्दयता दर्शाना कथानक है,इसको कहानी के आरम्भ से अंत तक ठीक ढंग से ले चलते है. इस दृष्टि से कथा सफल है.
पात्र : इसके चार पात्र हैं ;भाई,बहन,माँ,डाक्टर. चारों कहानी के विकास के लिए आवश्यक है. भाई और बहन माँ की बीमारी से दुखी है. डाक्टर की लापरवाही समाज का शाप है. डाक्टर को भाई लेने गया तो वे अपनी बेटी की शादी और खर्च की चिंता प्रकट करते है. शादी की दौड़-धूप करने की बात करते है. समाज में बिना रुपयों का जीना दुश्वार हो जाता है. साहित्य का स्नातकोत्तर भाई यह महसूस करता है कि मन्त्रों से ,कालिदास ,ठागुर,ग़ालिब के पढने से क्या लाभ; माँ की बीमारी दूर करने असमर्थ हूँ. मन्त्रों से माँ कैसे ठीक होगी.ये पात्र सामजिक दर्द भरी स्थिति का यथार्थ चित्रण लाने में समर्थ है.
संवाद:संवाद कहानी के कथानक को जोर देने में सफल है.
घर में श्राद्ध के पैसे हैं. उन पैसों से माँ का इलाज करना है. बेटी तैयार है तो माँ कहती है--
नहीं बेटा,भूलकर भी ऐसा मत करना.मैं मर भी जाऊँ,उसमें से एक पैसा न लेने दूँ...मरकर उन्हें क्या जवाब दूँगी.
भारतीय नारी श्राद्ध पर अपनी जान से अधिक विश्वास रखती है.
डाक्टर के बुलाने पर डाक्टर :-भई..बात यह है,लडकी की शादी है,अगले महीने ..बड़ी दौड़ धूप करनी पढ रही है. इधर मरीजों को देखने कम जा पा रहा हूँ. डाक्टर की इतनी लापरवाही; इस प्रकार कथोपकथन कहानीकार के उद्देश्य पर पहुंचाकर सफल रूप बन गया है.
भाषाशैली :-भाषा सरल और मुहावरेदार है.यथार्थ में आदर्श मिलता है. कान में जूँ न रेंगना,चेहरा तमतमा होना चेहरा मलिन होना जैसे मुहावरों का प्रयोग है.इस दृष्टी से कहानी सफल है.
शीर्षक : पुर्जे शीर्षक है. डाक्टर इलाज करने नहीं आया;केवल पुर्जे लिखकर दिया; इससे कोई फायदा नहीं. दवा नहीं दी. शीर्षक ठीक है.
अंत : माँ की मृत्यु बिना दावा के पुर्जे के कारण.धनाभाव ,उसके कारण डाक्टर का न आना ,मृत्यु;- यह अंत मर्मस्पर्शी है.
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6. गूंगे - रांघेय राघव
कठिन शब्दार्थ :
संकेत करना =इशारा करना
बासी =पुरानी
दम =पूँछ
मूक =मौन
प्रतिहिंसा =बदला
परखना =जाँचना
चुनौती देना=ललकारना
अवसाद =दुःख
सारांश :
रांगेय राघव ने "गूंगे" कहानी में एक गूंगे की व्यथा का मर्मस्पर्शी चित्रण किया है. समाज के शोषित-पीड़ित मानव के जीवन के यथार्थ मार्मिक चित्रण की कहानी है -"गूंगे "
चमेली के दो बच्चे हैं . एक लडकी और एक लड़का. नाम है शकुंतला और बसंता..
कहानी के आरम्भ में घर के काम करने एक गूंगे को बुलाते है.वह जन्म से बहरा था;इसी कारण गूंगा बन गया. चमेली उससे इशारे पर ही काम लेती.
गूँगा अनाथ था. उसके जन्म लेते ही उसके पिताजी मर गए. माताजी निर्दयी;वह भी उसे छोड़कर भाग गयी. उसको किसने पाला ,पता नहीं,पर जिसने पाला है,वे उसे बहुत मारते थे .
बेचारा गूँगा बिना थके काम करता; हलवाई के यहाँ कढ़ाई माँची;कपडे धोये;सब करने पर भी मार ही मिला. ये सब पेट के लिए सह लेता. इतनी बातें इशारे से ही गूंगे ने चमेली को समझाया.
चमेली दयालू थी;अनाथाश्रम के बच्चों के लिए रोती थी. उसने गूंगे को अपने घर में नौकर रख लिया .. चार रूपये वेतन ; गूंगा मान गया.
उसको बुआ मारती; बच्चे चिढाते; वह एक स्थान में टिकता नहीं था; जब चाहे भाग जाता और वापस आ जाता.एक दिन बसंता ने कसकर गूंगे के चपत जड़ दी. गूंगा उसे मारने हाथ उठाया,पर मालकिन के बेटे को कैसे मारता. उठे हाथ को रोक लिया. बेटे को मारने हाथ उठाना असहनीय बात थी. चमेली कुछ बोली तो वह समझ नहीं सका. चमेली को उस पर दया आ गयी. गूंगा क्रोध भरी मालकिन का हाथ पकड़ा तो चमेली को उस पर घृणा आयी; वह अपने बेटे से बलवान था, बेटे को न मारा; मारा तो उसने गूगे को गाली दी.बेचारा रोने लगा. चमेली उसे घर से निकाल दिया. चमेली की गाली सुन वह मंदिर की मूर्ती के सामान चुप खड़ा रहा.गुस्से में चमेली ने गूंगे को दरवाज़े के बाहर धकेलकर निकाल दिया.
करीब एक घंटे के बाद गूंगा वापस आ गया,गली के लड़कों के पीटने से उसका सर फट गया था. दरवाजे पर वह कुत्ते की तरह चिल्ला रहा था,
चमेली उसे चुपचाप देख रही थी; उस मूक अवसाद में युगों का हाहाकार गूँज रहा है..
वह गूंगा था.जिनके ह्रदय की प्रतिहिंसा न्याय और अन्याय को परखकर भी अत्याचार को चुनौती नहीं दे सकती,क्योंकि बोलने के लिए स्वर होकर भी -स्वर में अर्थ नहीं है.
एक गूँगे की दयनीय स्थिति का इससे अधिक कैसे चित्रण कर सकते हैं.
कहानी कला की दृष्टि से विशेषताएं:-
कथानक:-समाज के शोषित पीड़ित मानव के यथार्थ मार्मिक चित्रण कथानक है. गूँगे कठोर परिश्रमी,फिर भी समाज से घृणित दिल्लगी का पात्र. मार खाकर सिवा रोना; पेट के लिए काम करना.इसका सही चित्रण कहानी को सफल बनाता है.
पात्र : गूंगा,चमेली,उसके पति,उसकसंताने बसंता और शकुंतला. लेखक गूंगे की दर्दनाक दशा को चमेली द्वारा प्रकट करते हैं. चमेली उदार और दयालू थी; मानव स्वभाव के अनुसार मानसिक कमजोरी के कारण गूंगे पर पक्षपात. सारे पात्र कहानी को सफल बनाते है.
संवाद; चमेली बोलती है; गूंगा चुप; उसके रोने -हंसने चिल्लाने से करुणा का पात्र बनता है.
शीर्षक ; गूंगे --समाज से पीड़ित -शोषित गूंगे का मार्मिक चित्रण ही कथानक है. अतः शीर्षक उचित है.
चरमसीमा; चमेली गूंगे को जबरदस्त घर से निकालती है; यही चरम सीमा है.
अंत:गूगे का वापस आना; उसके सर पर चोट; दर्दनाक दृश्य ; अंत लेखक के उद्देश्य तक पहुंचा देता है.
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७.बदला -- आरिगपूडी
कठिन शब्दार्थ :
काले अक्षर भैंस बराबर== निरा अनपढ़
गौर =ध्यान
मिन्नत --निवेदन ,प्रार्थना
प्राण खाऊ =प्राण लेनेवाला
घूसखोरी =रिश्वत
तहकीकात =पूछताछ
बीयाबान =उजाड़ा
पोल खुलना =रहस्य प्रकट होना=भंडा फोड़ना
भेद --रहस्य
सारांश :
आरिगपूड़ी ने इसमें भ्रष्टाचारों और रिश्वत खोरों की निर्दयता का चित्रण किया है. सरकारी अस्पताल में मामूल के बिना रोगियों को सही इलाज नहीं मिलता. लेखक का उद्देश्य ग्रामीण ,पीड़ित अनपढ़ कोटय्या पर हुयी निर्दयी अत्याचार को प्रकाश में लाना था.
सारांश :
धम्म पट्टनम में एक सरकारी अस्पताल है. उसमें कदम कदम पर घूसखोरी.भ्रष्टाचार ,दिन दहाड़े "मामूल" वसूला जाता है. लोग वहाँ देने के आदि हो गए,कर्मचारी लेने के.
कोटय्या अनपढ़ गरीब किसान था. वह अपनी गर्भवती पत्नी सुशीला को इलाज के लिए अस्पताल ले आया.उसके गाँव के आसपास बीस मील तक कोई अस्पताल न था;कोई डाक्टर.
धम्मपटटनम अस्पताल में फाटक से मामूल शरू हुआ. चवन्नी देकर अन्दर गया. अस्पताल में घुसते ही पत्नी बेहोश हो गयी. अस्पताल के कोई भी कर्मचारी कोटय्या की पत्नी के इलाज की मदद करने नहीं आये. अंत में डाक्टर पद्मा वहां आयी. पद्मा ने कोटय्या की पत्नी को भरती करवा दिया. वह पत्नी के लिए प्रार्थना करने लगा.
कुछ देर बाद ,उसको बताया गया कि प्रसव के पहले ही उसकी पत्नी चल बसी. लाश के देखने पर पता चला कि इलाज नहीं किया गया. लाश उठाने किसीने मदद नहीं की.
वह अपनी मालिक की बैल गाडी से पत्नी को लेकर आया था; उसी गाडी में लाश लिटाकर वापस ले गया. उसके मन में दुःख,क्रोध,प्रतिकार,गाडी के चर्मर की तरह गुन-गुना रहे थे.
गाँव में अंतिम संस्कार करके तेरहवीं के होते ही कोटय्या धम्मपट टनम लोटा. वह अस्पताल के सामने भूख हड़ताल करने लगा.तीन दिन के बीतने पर भी किसी ने उस पर ध्यान नहीं दिया. उसके पास एक कपडे पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था --"इस अस्पताल से प्राण खाऊँ घुखोरी हटाओ."
चंद दिनों में उसके हड़ताल के समर्थन में शहर के दो -तीन नेता आये,देखते देखते शिकायतों का ढेर -सा लग गया. तहकीकात का इंतजाम हुआ. पूछ-ताछ में बहुत सी बातें प्रकाश में आयी. कई बातें डाक्टर पद्मा को मालूम नहीं थीं. पद्मा अपने बयान देने तैयार हुयी. वहां तो सब के सब भ्रष्टाचारी थे; अपने रहस्य खुलना नहीं चाहते, सब भ्रष्टाचारी मिलकर डाक्टर पद्मा की हत्या करके कोटय्या को अपराधी ठहराने में सफल हो गए. कोटय्या कैद हो गया.
पत्नी के चल बसते ही वह मरने तैयार था. समाज में कुछ करना चाहता था. वह न जानता था कि उसके हाथ पैर बांधकर .उसे धकेलने का यूँ प्रयत्न किया जाएगा.
निर्दयी संसार एक ईमानदार अनपढ़ कोटय्या को हत्यारा साबित कर दिया.
कथानक : लेखक आरिगपू डी ने भ्रष्टाचारियों के अत्याचार का भंडा फोड़ने का कथानक ले लिया. कोटय्या के द्वारा ग्रामीण अनपढ़ पर होने वाले सरकारी भ्रष्टाचारियों की निर्दयता का चित्रण किया है.
पात्र : कोटय्या ,डाक्टर पद्मा इस कहानी के पात्र हैं. अनपढ़ कोटय्या प्राण खाऊँ गुस्खोरी हटाने हड़ताल किया. भंडा फोड़ने का सैम आया तो भ्रष्टाचारियों ने डाक्टर पद्मा की हत्या करके कोटय्या को खूनी सिद्ध करने में सफल हुए.
ग्रामीण कोटय्या ने चिल्लाया कि मैं निर्दोष हूँ ,मैंने यह हत्या नहीं की है. मामूल के आदी मुलाजिम मुस्कुरा रहे थे, पर उनके मन कह रहे थे..जो उनके बारे में और भेद बता सकती ,वह डा . पद्मा जान से गयी और अपराध भी उनके सर पर न आकर,किसी गँवार के सिर पर न आकर ,किसी गँवार के सर पर मढ दिया गया था. हो भला इस कोटय्य का.
संवाद: आत्मकथन,संवाद आदि लेखक ने सफल बनाया है.अस्पताल में ... कोटय्या का आत्मकथन :
"कुछ भी हो ...सुशीला जीती रहे,बच्चे हो तो भला पर वह जिन्दा रहे,हे भगवान् ..".
कैद होते ही कोटय्या गला फाड़कर चिल्ला रहा था --मैं निर्दोष हूँ ,मैंने यह ह्त्या नहीं की है. मैं कुछ नहीं जान्त्सा,मुझ पर यह झूठ-मूठ हत्या का अपराध थोपा जा रहा है.. ऐसे संवाद कहानी को ह्रुदय्स्पर्शी बनाने में सफल है.
शीर्षक : "बदला " शीर्षक उचित है. कोटय्या भ्रष्टाचारियों से बदला लेना चाहता था.भ्रष्टाचारियों ने उससे बदला लिया है. शीर्षक उचित है.
चरम सीमा :-डाक्टर पद्मा की हत्या चरम सीमा है.
उद्देश्य : भ्रष्टाचार और उसकी निर्दयता को प्रकाश में लाना लेखक का उद्देश्य था. इसमें सफलता मिली है.
अंत : कहानी का अंत मर्म स्पर्शी और लेखक के उद्देश्य तक पहुंचाता है.
इस प्रकार कहानी कला की दृष्टि से कहानी सफल है.
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८. वापसी
लेखक :उषा प्रियंवदा
कठिन शब्दार्थ :
नज़र दौडाना =देखना
नाक -भौं चढ़ाना =नफरत से देखना
निस्पंग दृष्टि = एकटक देखना
खिन्न होना =दुखी होना
फूहड़पन = अत्यंत अनुपयोगी
ताने देना =गाली देना (मज़ाक भरे )
ठगे जाना =धोखा देना
विविध =नाना प्रकार ,कई तरह
वार्तालाप =संभाषण.
सारांश :
गजाधर बाबू पैंतीस साल की नौकरी के बाद रिटयर हो गए. उनको रेलवे क्वार्टर खाली कर ने का दुःख था. घर जाने की खुशी में भी उनको दुःख था कि एक परिचित .स्नेही,आदरमय ,सहज संसार से उनका नाता टूट रहा था. फिर भी अपने घरवालों से मिलकर रहने का आनंद आ रहा था. अपने सेवाकाल में अधिकांश समय वे अकेले ही बिता रहे थे.
घर जाने के बाद वे अपने को अकेले महसूस करने लगे. उनकी हर बात उनके घरवालों को कडुवी लगी.
उनका बेटा नरेन्द्र फ़िल्म गाना गा रहा था.उनकी बहु और बेटी वसंती हँस रही थीं. उनकी खुशी में भाग लेने गजाधर चाहते थे. पर उनके आते ही सब चले गए. वे अपने को अकेले पाये. वे उदास हुए. पत्नी पूजा करके वापस आयी. पति के अकेले बैठे देखकर पूछा तो गजाधर ने इतना ही कहा --अपने=अपने काम में लग गए.
पत्नी चौके में गयी तो देखा जूठे बर्तनों का ढेर था. वह काम में लग गयी. गजाधर को चाय और नाश्ते समय पर न मिले. उसको रेलवे के नौकर गणेश की याद आयी;वह समय पर चाय पिलाता था.
गजाधर अपनी बेटी से अपनी पत्नी को आराम देने के विचार से कहा कि शाम का खाना तुम बनाओ; सुबह का भोजन भाभी बनाएंगी. पिताजी का यह कहना वसंती को पसंद न था.
गजाधर को अपने बिस्तर की समस्या हुयी; उनको हर बात में दखल देना घरवालों को पसंद नहीं आया. गजाधर ने अनुभव किया कि वह पत्नी और बच्चों के लिए केवल धनोपार्जन के निमित मात्र है.
एक दिन नौकर के काम ठीक तरह से न करने की चर्चा हुयी तो नौकर का हिसाब कर दिया. घर की आमदनी भी कम थी. खर्च ज्यादा है.
बेटे को बहु ने इसकी सूचना दी. इस घटना के बाद नरेन्द्र,अमर,वसंती सब के सब गजाधर की आलोचना करने लगे.
पत्नी भी उनके अनुकूल बातें नहीं की.
गजाधर ने पुनः नौकरी करने का निश्चय कर लिया. उनको एक मिल में काम मिल गया.दुसरे दिन पत्नी से सीधे कहा कि मुझे सेठ रामजीमल की चीनी मिल में नौकरी मिल गयी. परसों जाना है. पत्नी तैयार नहीं हुयी. उसने कहा कि मैं चलूंगी तो क्या होगा.
वे घर से निकले तो किसीने न रोका. नरेन्द्र ने बड़ी तत्परता से बिस्तर बाँधा. वे चले गए. घरवालों ने इसकी चिंता न की.बहु ने अमर से पूछा ,"सिनेमा ले चलिए.वासंती भी तैयार थी. सिनेमा जाने. गजाधर की पत्नी चौके में चली गयी.पत्नी को भी पति की चिंता नहीं. वह कहने लगी--बाबूजी की चारपाई कमरे से निकाल दे. उसमें चलने तक को जगह नहीं है.
रिटायर होने के बाद पुरुषों की दयनीय दशा का चित्रण खूब हुआ है.
कथानक : रिटायर आदमी की मनः स्थिति और घरवालों के लापरवाही पर समाज का ध्यान दिलाना कथानक है.आरम्भ से अंत तक हर बात में गजाधर उदासीनता का ही सामना करता है. अपने बेटे.बेटी ,बहु की खुशी में भाग ले न सके. पुत्र,बहु,बेटी सब उसकी शिकायत माँ से करते हैं. वे वापस नौकरी को निकलते हैं. उनके जाते ही सिनेमा जाने की इच्छा प्रकट करते हैं. माँ पति की चारपाई निकालने का आदेश देती है. किसीको गजाधर वापस चले गए ,इसकी चिंता नहीं.
पिता तो धनोपार्जन के लिए है. इसप्रकार कथानक सफल है.
पात्र : वापसी कहानी के पात्र हैं -गजाधर,नरेन्द्र ,वसंती, गजाधर की पत्नी ,अमर की बहू आदि. यह एक पारिवारिक कहानी हैं. पिताजी गजाधर पैंतीस साल की सेवा के बाद रिटायर हो गए. उनके वापस नौकरी जाने के कारण ये पात्र हैं.
परिवार से अधिकांश अकेले रहकर रिटायर के बाद परिवार के सदस्यों से मिलकर रहने आते हैं.लेकिन उनके पुत्र ,बेटी ,बहू सब के सब उनको घर में रहना पसंद नहीं करते.इस "वापसी" शीर्षक की सफ्सलता में इन पात्रों का मुख्य भाग है.
कथोपकथन : कथोपकथन की दृष्टी से कहानी सफल है. गजाधर के बारे में अपनी मान से नरेन्द्र,वासंती,बहू सब
शिकायत करते हैं. गजाधर इनको सुनकर पुनः नौकरी जाने तैयार हो जाते हैं.
नरेंद्र ---अम्मा ,तुम बाबूजी से कहती क्यों नहीं. बैठे-बिठाए कुछ नहीं तो नौकर ही छुड़ा लिया.
वसंती-मैं कालेज भी जाऊँ, और लौटकर झाडू भी दूं?
अमर----बूढ़े आदमी है, चुपचाप पड़े रहें. हर चीज़ में दखेल क्यों देते हैं.
पत्नी: और कुछ नहीं सूझा तो तुम्हारी पत्नी को ही चौके में भेज दिया. वह गयी तो पंद्रह दिन का रेशन पांच दिन में बनाकर रख दिया.
नौकरी वापस जाने ये कथोपकथन ही चरम सीमा है.
भाषा शैली : सरल भाषा है. यथार्थ भारतीय परिवार का चित्रण है. मुहावरों का प्रयोग भी है जैसे नज़र दौडाना,नाक -भौं चढ़ाना, आदि.
शीर्षक : वापसी शीर्षक उचित है.गजाधर रिटायर होकर परिवार के सदस्यों के साथ रहने आये. फिर नौकरी करने वापस जाते हैं. सामज में पिताजी के प्रति सहानुभूति जगाने में कहानी सफल है.
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९.डिप्टी कलक्टरी लेखक :---अमरकांत.
कठिन शब्दार्थ :---
मुवक्कील =client
म्हार्रीर =मुंशी clerk
पीढा =आसन stool
तश्तरी =छोटी थाली
मुख्तार =कानूनी सलाहकार
चौका-चूल्हा चलना=भोजन चलाना
बिगड़ जाना =गुस्सा होना
खुराफात =झगडा
आरोप करना=इल्जाम लगाना
तल्लीनता =मग्नता
आघात= चोट
जेहन=बुद्धि ,याद करने की शक्ति
निहारना=देखना
दातौन करना=दांत साफ करना
झेंप जाना=लज्जित होना
ताड़ना=सजा /दंड
गुरुमुख होना ;=गुरु कृपा
जाहिर करना=प्रकट करना
इत्मीनान=विशवास
महरिन=पानी लानेवाली नौकरानी
दृष्टिगोचर होना=दिखाई पड़ना
लानत=धिक्कार
धुरंधर =उत्तम
दस्त=हाथ
दस्त पतला =loose motion
बदपरहेज़ी =असंयम / मनमाना खाना
सारांश :-
शकल दीप बाबू अपने बेटे नारायण (बबुआ) की डिप्टी कलक्टरी बनने की कामना पूरी होने पर बेहद खुश होते हैं.आरम्भ से अंत तक वात्सल्यमय पिता की मनो भावना का यथार्थ चित्रण मिलता है.
शकल दीप बाबू मुख्तार थे. उनकी पत्नी जमुना थी. उनके दो बेटे थे.बड़े का नाम नारायण था,बबुआ के नाम से पुकारा जाता था. उसकी उम्र २४ साल की थी; छोटा बारह साल का था उनका नाम टुनटुन था.
शकलदीप बाबू मुख़्तार थे. उनकी आमदनी केवल चौ के-चूल्हा चलाने काफी था.
नारायण को नौकरी नहीं मिली; वह डिप्टी कलक्टर बनना चाहता था. पिताजी को अपने बेटे पर शक था; उनपर भरोसा भी नहीं था.
नारायण दो बार डिप्टी कलक्टरी की परीक्षा में सफल नहीं हुआ. शकाल दीप बाबू का विचार था कि साधारण नौकरी भी नहीं मिली तो डिप्टी कलक्टरी कैसे ?
वात्सल्यमयी माता ने अपने पति से कहा --दो -दिन से बबुआ उदासी है. दो-तीन दिन में फीस भरना है. आपसे मांगने डरता है.
बेटे पर के अविश्वास के कारण वे पहले रूपये देने तैयार नहीं थे. फिर भी पिताजी का कर्तव्य निभाने तैयार हो गए, बाहर गए और डेढ़ सौ रुपये लाये और पत्नी से कहा कि १०० रूपये बेटे को दो और ५० रूपये घर के खर्च के लिए.
वे खुद सोचने लगे कि गलती किसीकी नहीं. सारा दोष तो मेरा है.देखो न,मैं बाप होकर कहता हूँ कि लड़का नाकाबिल है.
नहीं,नहीं,सारी खुराफात की जड़ मैं ही हूँ,और कोई नहीं. उस दिन के बाद अपने बेटे को सभी प्रकार की सुविधा करने लगे. देखा कि बीटा काफी मेहनती है. १९ घंटे पढने में तल्लीन है. बेटे को मेवा,सिगरेट आदि की भी व्यवस्था करने लगे.
बेटा इलाहाबाद में इम्तिहान देने निकला तो शकल रेलवे स्टेशन पहुंचे.रेल निकलने लगी तो पिताजी बच्चे की तरह चलती गाडी की ओर दोड़े और रूपये की पुडिया दी और आशीषें.शकल बाबू की वात्सल्यता का यथार्थ चित्रण लेखक ने किया है.
नारायणको उसके परिश्रम का फल मिल गया. वह लिखित परीक्षा में उत्तीर्ण होकर इंटरव्यू गया. शकाल्दीप बाबू की प्रार्थना सफल हुयी. इससे बीच वे राधेश्याम के भक्त बन गए.
उनका मित्र कैलाश बिहारी थे. दोनों ने अपने -ओने पुत्र की होशियारी की खूब तारीफ करके बोल रहे थे .तब शकाल्दीप बाबू ने कहा कि मेरे बेटे का नाम पन्नालाल था, एक महात्मा ने कहा कि नारायण नाम ठीक है. एक दिन राजा बनेगा. अब डिप्टी कलक्टर बन गया;एक अर्थ में राजा ही हुआ.
सब ने बेटे की बधाई दी. . इतवार के दिन रिसल्ट दस बजे निकलेगा. वे मंदिर गए. बेटे की कामना पूरी होने प्रार्थना की.तब जंगबहादुर सिंह आये और बताया डिप्टी कलक्टरी का नतीजा निकल गया. दस लड़के लिए जायेंगे; आपके लड़के सोलहवाँ सत्रहवाँ में है. कुछ लड़के मेडिकल चले जाते; पूरी उम्मीद है कि नारायण बाबू ले लिए जायेंगे.
अथिक परिश्रम और चिंता से शकल की तबीयत अस्वस्थ हो गयी. वेबेटे के कमरे में गए. बेटे को सोते देख गद-गद स्वर में पत्नी से कहा बेटा सो रहा हैं पति-पत्नी दोनों एक दुसरे की ओर देखने लगे.
इसमें चित्रित है कि माता-पिता दोनों अपने बेटे की तरर्क्की की कामना में कितने चिंतित है. कितना ध्यान रखते है.
पारिवारिक कहानी के द्वारा लेखक ने सामाजिक जिम्मेदारी का चित्रण किया है.
कथानक : लेखक की कथावस्तु एक आदर्श पिता अपने परिवार और बेटे की प्रगति के लिए कितना चितित है ,कितना दौड़ धूप करते है, माता कैसे पुत्र को साथ देती है ;आदर्श पुत्र के गुण आदि दर्शाने के लिए बनी है. इस में कहानी सफल है.
पात्र :- इस के चार पात्र हैं. शकल दीप बाबू, उनकी पत्नी जमुना,बेटा नारायण आदि; कैलाश बिहारी, जंग बिहारी आदि शकल के मित्र हैं. ये सारे पात्र कहानी के विकास और आगे ले जाने में सफल हैं. कैलाश द्वारा नारायण के गुणों की प्रशंसा ,अपने बेटे की प्रशंसा, जंग बिहारी द्वारा सांत्वना और उम्मीद दिलाना आदि शकल दीप की मनोव्यथा दूर करने के लिए आवश्यक है.
संवाद:- जमुना --दो-दिन से बबुआ बहुत उदास है....
कह रहे थे,दो दिन में फीस भेजने की तारीख बीत जायेगी.
जमुना के इस संवाद से आगे कहानी का पता लग जाता है.
पिता का आत्मचिंतन---देखो न.मैं बाप होकर कहता हूँ कि लड़का नाकाबिल है. इस चिंतन के बाद बेटे की सुविधाएं देना कितना यथार्थ और आदर्श मिलता है.
इस प्रकार संवाद सफल है.
उद्देश्य : बेटे की सफलता के लिए पिता की चिंता,परिश्रम ,,महात्मा की भविष्य वाणी द्वारा भारतीय दैविक शक्ति दर्शाना,सच्ची मित्रता,आदर्श पति.पत्नी के चरित्र दिखाना ,माता-पिता की वात्सलता आदि उद्देश्य का सही चित्रण मिलता है.
भाषा शैली : भाषा सरल और मुहावरेदार भी है. पारिवारिक यथार्थ चित्रण में आदर्श भावना है.
शीर्षक :-डिप्टी कलक्टरी शीर्षक सोलह आने सही है.काहनी के आरम्भ से अंत तक नारायण के डिप्टी कलक्टरी को लेकर ही कहानी चलती है.
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१०. पंच लाईट लेखक:- फनीश्वरनाथ 'रेणु"
कठिन शब्दार्थ :-
पुण्याह --पवित्र दिन
ताब करना=शक्ति दिखाना /बल
चेतावनी=सावधानी
अलबत्ता =बेशक
बालना -जलाना
ढिबरी =मिट्टी का दिया
बतंगड़ =अधिक बोलनेवाला,बातूनी
गरी का तेल =नारियल का तेल
मायूसी छा जाना=उदासी फैलना
पुलकित होना=खुश होना
सारांश :-
फणीश्वर' रेणु ' ने पंचलाईट कहानी में गाँवालों के आपसी फूट , ग्रामीण जनता का मिथ्या घमंड ,अज्ञानता ,साधारण पञ्च लाईट बालना भी न जाननेवाले , पंचलाईट जलाने जो जानता है,उसको सम्मान देना आदि का चित्रण किया है.
एक गाँव में आठ पंचायत,जाति की अलग -अलग 'सभा चट्टी" है. इन सब में पेट्रोमैक्स लाईट का अलग महत्त्व है. पंचायत का छडीदार पंच लाईट ताब करने का विषय है. मेले के समय पंचलाईट पर अधिक ध्यान दिया जाता है. अगनू महता जो छडीदार ढोता है ,वह लोगों को चेतावनी देता था की ज़रा दूर जा.
पूजा के सारे प्रबंध के बाद भी पंचलाइट का गप प्रधान रहा. सरदार पंचलाईट लेने गया तो चेहरा परखने वाला दूकानदार ने पांच कौड़ी में दे दिया. पंचलाईट देखकर सब खुश थे;दीप बालने किरासन का तेल भी आया.
सब प्रबंध के बाद एक बड़ी समस्या उठी. इस पंच में किसीको पेट्रोमैक्स जलाना नहीं मालूम था. गाँव भर में कोई नहीं मिला. दूसरे पंच के द्वारा लाईट जलाना बेइज्जत की बात थी.
अंत में सब को गोधन की याद आयी. वह लाईट बालना जानता है.वह दूसरे गाँव से आकर यहाँ बसा है. लेकिन पंचायत उसको दूर रखा था. उसको पंच में हुक्का बंद था. वह पंचायत से बाहर था. अब उसको ही बुलाना पड़ा. स्पिरिट नहीं था. गोधन ने नारियल के तेल से ही लाईट जलाया. वह उस दिन का हीरो बन गया. उसने सबका दिल जीत लिया.सरदार ने गोधन से कहा---"तुमने जाति की इज्ज़त रखी है. गुलरी काकी बोली ---आज रात मेरे घर में खाना गो धन. पंचलाईट के प्रकाश में सब पुलकित हो रहे थे.
कथानक: गाँवों में एकता नहीं, अपने गाँव के दूसरे पंच के लोग पंच लाईट जलना बेइज्जती समझनेवाले दुसरे गाँव से आये गोधन को इज्जत देते है. गाँव वालों के झूठे गोरव का चित्रण कथावस्तु है.ग्रामीण भोले जनता को सीख देना कथावस्तु है.
पात्र : सरदार,गाँव के लोग ,गोधन . ये पात्र कहानी के अनुकूल है.
कथोपकथन:-कीर्तन मंडली के मूलगैन :-देखो,आज पंचलैट की रोशनी में कीर्तन होगा. इस कथन से पंच लाईट को गांवाले जितना महत्त्व देते है ,
लाईट लाने के बाद बालने वाला नहीं मिला तो कहावत ---भाई रे,गाय लूँ ? तो दुहे कौन?
गांवाले की आपसी नफरत : न,न,!पंचायत की इज्ज़त का सवाल है.दूसरे टोले के लोगों से मत कहिये.
इस प्रकार कथोपकथन रोचक है.
शीर्षक : पंच लाईट शीर्षक सही है, कहानी के आरम्भ से अंत तक पंच लाईट की ही बातें चलती है. लाईट जलनेवाले गोधन इज्जत का पात्र बन जाता है.
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११. खानाबदेश लेखक :--ओमप्रकाश वाल्मीकि
कठिन शब्दार्थ:---
खानाबदेश = बेघर वाला./अस्थिर रहनेवाला
निगरानी =देखरेख
माहौल =वातावरण
भीगी बिल्ली बनना= to be very meek and submissive
सारांश :
ओमप्रकाश वाल्मीकि ने इस कहानी में दलित और शोषित वर्गों की दयनीय स्थिति ,उनकी मनोकामना पूरी न होना ,अमीर मालिक के निर्दय व्यवहार और बलात्कार आदि का दुखद चित्रण खींचा है. खानाबदेश अर्थात बे घरवाले कितना कष्ट उठाते हैं और कष्ट सहकर मूक वेदना का अनुभव करते हैं.
सुकिया और मानो दम्पति कुछ धन कमाने की इच्छा से गाँव छोड़कर भट्टे पर आ गए . असगर ठेकेदार ले आया था. भट्टा मालिक मुख्तार सिंह था.
जहां मजदूर रहते थे ,वहां रात डरावना था. कुछ धन जोड़ने की इच्छा से धीरज होता था. बस्ती में सांप-बिच्छु का डर लगा रहा था. मानो बार -बार सुकिया से कहता था -- अपने देस की सूखी रोटी भी परदेस पकवानों से अच्छी होती है.
सुकिया जवाब देती --नरक की जिन्दगी से निकलना है तो कुछ छोड़ना भी पड़ेगा. आदमी की औकात घर से बाहर कदम रखने पर ही पता चले हैं. दोनों कठोर मेहनत करते ,फिर भी मजदूरी कम ही मिलती.
मालिक मुख्तार सिंह का बेटा सूबे सिंह था. पिता की गैरहाजिरी में सूबे सिंह का रौब -दाब भट्टे का माहौल ही बदल देता था. असगर ठेकेदार भीगी बिल्ली बन जाता था. सूबे का चरित्र भी अच्छा नहीं था.
भट्टे पर काम करने किसनी और महेश नवविवाहित दम्पति आये थे. सूबे सिंह की कुदृष्टि किसनी पर पडी. वह उसे लेकर शहर जाता;वापस आते वक्त वह थकी लगती थी. वहाँ सूबे और किसनी के बारे में काना-फूसी होने लगी.
वहाँ तीसरा मजदूर था जसदेव. . वह कम उम्र वाला था. एक दिन सूबे सिंह ने असगर ठेकेदार के द्वारा सुकिया को दफ्तर में काम करने बुलाया. किसनी की तबीयत ठीक नहीं थी. सुकिया डर गयी. गुस्से और आक्रोश से नसें खिंचने लगी. जसदेव सुकिया के बदले दफ्तर के काम करने गया. सूबे सिंह अति क्रोध से उसको बहुत मारा-पीटा.
सुकिया को बहुत दुःख हुआ. जसदेव को खिलाने-पिलाने में लगी. भट्टे में दवा-दारू का इंतज़ाम नहीं था. सुकिया जसदेव से मिलने गयी. वह दर्द से कराह रहा था. मानो ने सूबे सिंह को खूब कोसा. "कमबख्त कीड़े पडके मरेगा. हाथ-पाँव टूट-टूटकर गिरेंगे ....आदमी नहीं जंगली जानवर है."
मानो को पक्की ईंट का घर निजी बनवाने की इच्छा थी. वह अपने निजी ईंट के घर में रहने का सपना देखा करता था.
सुकिया जल्दी भट्टी पर काम करने गयी. एक दिन जल्दी गयी तो देखा भट्टी उजड़ा हुआ था. सारी ईंटे टूटी-फूटी पडी थी. सब ने कहा किसीने जान-बूझकर ईंटें तोडी हैं. मानो का ह्रदय फटा जा रहा था.आगे वे वहां नहीं रह सकते. असगर ठेकेदार ने उनकी रही-सही उम्मीदों पर पानी फेर दिया.. वे खानाबदेशी बन गए. खानाबदेश जिन्दगी का एक पड़ाव था यह भट्टा. वे वहां से दुसरे पड़ाव की तलाश में निकले,एक दिशा हीन यात्रा पर. सपनों के काँच उसकी आँख में किरकिरा रहे थे.
कथानक: दलित लोगों की दयनीय दशा और मालिकों की निर्दयता चित्रण के द्वारा समाज को जागृत करना कथानक था. सुकिया,मानो किसनू ,जसदेव आदि पात्र दलित थे तो मालिक के पुत्र सूबे सिंह बलात्कारी ,निर्दयी ,चरित्रहीन था. ठेकेदार मालिक के क्रोध के भय से काम करनेवाला था. इन सब के चित्रण द्वारा कथावस्तु का विकास हुआ है.
पात्र : साक़िया,मानो,जसदेव प्रमुख पात्र हैं तो ,मालिक मुख़्तार सिंह,किसनू ,छोटा मालिक सूबे सिंह ठेकेदार आदि कहानी को सिलसिलेवार ले जाने में आवश्यक हैं. किसनू के पति महेश का नाम मात्र है. ये पात्र के द्वारा कहानी का अंत "खानाबदेश" को सार्थक बना रहे हैं.
कथोपकथन : मानो ---क्यों ,जी ...क्या हम इन पक्की ईंटों पर घर बना लेंगे?
सुकिया--"पक्की ईंटों का घर दो-चार रूपये में न बनता है. इत्ते ढेर-से-नोट लगे हैं घर बनाने में. गाँठ में नहीं है पैसे ,चले हाथी खरीदने.
इस संवाद से ही उनकी विवशता और उनकी सपना का सपना ही रहने की व्यथा साफ-साफ मालूम हो जाता है. कहानी के मूल विषय का संकेत कर देता है.
सूबे सिंह के थप्पड़ मारने से जसदेव की हालत बुरी हो जाती है. तब वह दर्द से कराहता है तब मानो की गाली उसके नफरत की सीमा पार जाता है ......"कमबख्त कीड़े पडके मरेगा. आदमी नहीं जंगली जानवर है. बलात्कारियों के प्रती ऐसी भावना प्रकट होना यथार्थ है. लेखक के भाव की गंभीरता प्रकट होती है. संवाद शैली अच्छी बन पडी है.
उद्देश्य : लेखक का उद्देश्य खानाबदेश दलित लोगों की दयनीय मार्मिक दशा को समाज के सम्मुख रखना था. इस ऊदेश्य को लेखक ने मानो और सुकिया के पात्रों के द्वारा और मालिक के बेटे सूबेसिम्ह के दुश्चरित्र के उल्लेख के द्वारा सफल बनाया है.
शीर्षक : "खानाबदेश " शीर्षक अति उत्तम है. एक घर अपने लिए बनवाने के लिए मानो और सक़िया अपने गाँव छोड़कर गए. वे अपने लक्ष्य में सफल न बने. कहानी के अंत में उनको खानाबदेशियों के सामान नौकरी की तलाश में एक दिशाहीन यात्रा पर चलना पड़ा.
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि कथा -तत्वों के अनुसार कहानी सफल है. लेखक की सृजन-कौशल सराहनीय है.
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चरित्र चित्रण
कहानी में दो प्रकार के प्रश्न किये जाते हैं.
एक प्रश्न है कहानी का सारांश लिखकर कहानी कला की से उसकी विशेषताएं लिखिए. ==१५ अंक .
दूसरा प्रश्न है चरित्र चित्रण . इस के लिए पांच अंक . तीन कहानियों के तीन पात्रों के चरित्र चित्रण लिखना चाहिए.
३*५ =१५ अंक .
१. नादान दोस्त . लेखक : प्रेमचंद
केशव का चरित्र चित्रण,
" केशव " पात्र नादान दोस्त की कहानी में है. कहानीकार है श्री मुँशी प्रेमचंद.
" केशव " कहानी का प्रमुख पात्र है. वह छोटा लड़का है. वह बड़ा जिज्ञासु है. उसके घर के कार्निस के ऊपर एक चिड़िया ने अंडे दिए. केशव और उसकी छोटी बहन श्यामा दोनों को अंडे के बारेमें कई बातें जानने की इच्छा हुई .उनके माता-पिता को उनके संदेहों का निवारण करने समय नहीं था. वे जानना चाहते कि अंडे कितने बड़े होंगे?किस रंग के होंगे?कितने होंगे?कैसे बच्चे निकलेंगे? बच्चों के पर कैसे निकलेंगे ? क्या खाते होंगे?
दोनों बच्चे अपने सवालों के जवाब ढूँढने खुद तैयार होने लगे. केशव बड़ा भाई था. इसलिए वह बहन पर अपना अधिकार जमाता था, माँ के भय से माँ की आँखें बचाकर अंडे देखने के काम में लग गए. मटके से चावल रखना,पीने का पानी , धूप से बचाने कूड़ा फेंकनेवाली टोकरी आदि की व्यवस्था में लगे.
उसमे तीन अंडे थे. श्यामा देखना चाहती थी. केशव को डर था कि वह गिरेगी तो माँ को पता चलेगा;वह गाली देगी.
वे इस काम के लिए बाहर आये. बड़ी धूप थी. माँ ने देखा तो गाली दी और सोने के लिए दोनों को बुलाया. श्यामा भाई के प्रेम और डर के कारण माँ से कुछ नहीं बताया.
भाई -बहन सो रहे थे, यकायक श्यामा उठी. तब उसने देखा कि अंडे नीचे गिरकर टूट गए. उसको दुःख हुआ. केशव को जगाया . दोनों से माँ ने पूछा कि धूप में क्या कर रहे थे. श्यामा को अंडे टूटने का दुःख था. माँ ने कहा कि अंडे के छूने से चिड़िया नहीं सेती; और अण्डों को धकेल देती है. तब श्यामा ने सारी बातें बताई; माँ ने केशव से कहा कि तुम ने बड़ा पाप किया. तीन जाने ले लीं. फिर हँस पडी.लेकिन केशव को दुःख हुआ. अपनी गलती पर रो पड़ा.
केशव नादान लड़का नादान दोस्त चिड़िये के अंडे के लिए पछताता है.
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श्यामा:
प्रेमचंदजी की कहानी "नादान दोस्त " के दो प्रमुख पात्रों में श्यामा एक थी.. वह छोटी थी. केशव की बहन है. वह अपने भाई से अधिक प्यार करती थी. उसके घर की कार्निस पर चिड़िये ने अंडे दिए . उन अण्डों के बारे में जानने की इच्छा दोनों भाई-बहन को थी. माता-पिता को इन के सवालों के जवाब देने का समय नहीं था. दोनों भाई-बहन ने चिड़िये के अंडे की सुरक्षा में लगे. भाई ने सब काम किया. उसने अंडे देख लिये. पर श्यामा को ऊपर चढ़ने नहीं दिया; उसको डर था कि वह गिर जायेगी. तो माँ अधिक मारेगी. श्यामा बचपन के स्वाभाव के अनुसार भाई डराती है कि अंडे न दिखाओगे तो माँ से कहूंगी. बड़े भाई ने डराया कि मारूंगा. अंडे टूट जाने पर दुखी श्यामा माँ से सारी बातें बता देती है. भाई के प्यार के कारण पहले माँ से नहीं कहती. इस प्रकार श्यामा में प्यार,दुःख ,और माँ के डराने पर सारी बातें बताने आदि बालक -बालिकाओं के गुण विद्यमान है.
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२. कोटर और कुटीर
लेखक : सियारामशरण गुप्त
चातक पुत्र का चरित्र चित्रण
चातक पुत्र चातक पक्षी का पुत्र है. वह अपने खानदानी गुण को बदलना चाहता है. एक दिन पिताजी से कहता है. कि प्यास के मारे प्राण चले जायेंगे. कब वर्षा होगी?तब तक सहा नहीं जाता. आदमी कृषी के लिए पानी जमा करते है.तब पोखरे के पानी पीने का विचार आया. पोखरे के पानी में कीड़े बिलबिलाते है, सब प्रकार की गन्दगी करते हैं. सोचेते ही उसको घृणा हुई. अंत में गंगा के पानी पीने निकला. रास्ते में बुद्धन की झोम्पडी के पास के नीम के पेड़ पर आराम के लिए बैठा. बुद्धन का बेटा गोकुल को गरीबी में भी दूसरों के पैसे की इच्छा नहीं हुयी; उसको मजदूरी नहीं मिली. पर रास्ते पर रुपयों से भरा बटुआ मिला. तुरंत उसको रूपये वाले की व्यथा याद आयी; बटुए वाले की तलाश में गया और बटुआ लौटाकर भूखा प्यासा खाली हाथ घर लौटा. उसके पिता बुद्धन ने उसकी ईमानदारी की तारीफ की. बुद्धन ने अपने बेटे से कहा --जिस तरह चातक अपने प्राण देकर भी मेघ के सिवा किसी दूसरे का जल नहीं लेने का व्रत नहीं तोड़ता ,उसी तरह तू भी ईमानदारी की टेक न छोडना. चातक पुत्र ने सुना तो दुःख हुआ और अपने गंगा नदी की ओर न उड़ा और अपने कोटर की ओर उड़ा . रास्ते में वर्षा आयी . उसकी चार दिन की यात्रा सात दिन में पूरी हुयी.
चातक पुत्र के मानसिक परिवर्तन हुआ; उसने अपने खानदानी गौरव को बचा लिया.
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बुद्धन का चरित्र -चित्रण
"कोटर और कोठरी" कहानी का प्रमुख पात्र है बुद्धन, वह पचास साल का आदमी था. उसका पुत्र गोकुल १-१ साल का है. वह गरीब आदमी था. पर ईमानदार आदमी था. किसी भी हालत में ईमानदारी की टेक छोड़ने तैयार नहीं था, उसीके कारण चातक पुत्र का मानसिक परिवर्तन होता है. उसका पुत्र गोकुल अपने बाप से भी बढ़कर ईमानदार था..
बुद्धन का बेटा गोकुल को गरीबी में भी दूसरों के पैसे की इच्छा नहीं हुयी; उसको मजदूरी नहीं मिली. पर रास्ते पर रुपयों से भरा बटुआ मिला. तुरंत उसको रूपये वाले की व्यथा याद आयी; बटुए वाले की तलाश में गया और बटुआ लौटाकर भूखा प्यासा खाली हाथ घर लौटा. उसके पिता बुद्धन ने उसकी ईमानदारी की तारीफ की. बुद्धन ने अपने बेटे से कहा --जिस तरह चातक अपने प्राण देकर भी मेघ के सिवा किसी दूसरे का जल नहीं लेने का व्रत नहीं तोड़ता ,उसी तरह तू भी ईमानदारी की टेक न छोडना.
चटक पुत्र उसकी झोम्पडी के पास नीम के पेड़ पर बैठा था.वह अपने कुल -मर्यादा छोड़ गंगा में पानी पीने निकला था.
उनके पिता ने समझाया कि हमारे खानदान में वर्षा का पानी पीते हैं,इसीलिये हमारा गर्व है. वह पिता की बात न मानकर घर से बाहर आया था, बुद्धन और गोकुल के संवाद सुनकर समझ गया कि चटक को वर्षा के पानी पीकर जीने में ही कुल -गौरव है.
बुद्धन का चरित्र ईमानदारी पर जोर देता है.
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3,उसने कहा था. लेखक चन्द्र धर शर्मा गुलेरी.
चरित्र चित्रण
लहनासिंह
चन्द्र धर शर्मा गुलेरी की कहानी है "उसने कहा था." इस कहानी का प्रधान पात्र है लहना सिंह. वह वीर ,साहसी और चतुर था. इन सब से बढ़कर निस्वार्थ प्रेमी था.१२ साल की उम्र में अमृतसर के बाज़ार में एक लडकी से मिला करता था. उससे रोज़ पूछता --क्या तेरी कुडुमायी हो गयी. एक दिन लडकी ने "हाँ " कहा तो उसकी व्यथा उसके व्यवहार से मालूम होती है. क्रोध में उसने कुत्ते पर पत्थर मारा. सामने आनेवालों पर टकराया. इस घटना के २५ साल बाद कहानी शुरू होती है.वाल सेना में जमादार था. आज सूबेदार का बेटा जो बीमार तो उसको अपना कम्बल ओढ़कर खुद सर्दी सह रहा था, वह जेर्मन का सामना करने खाईयों में था. एक दिन एक जेर्मन छद्मवेश में भारतीय लपटन साहब बनकर आया. लहना को उसकी शुद्ध उर्दू की बोली से पता चल गया कि वह जेर्मनी है नकली हैं. खाई में केवल आठ भारतीय थे. सूबेदार वजीरासिंह था. उन सब को सावधान देकर वह खुद नकली जेर्मन पलटन साहब पर गोली चलाया. नकली का हाथ जेब में था. उसकी गोली से लहना घायल हो गया. इतने में गोली चलाकर खाई में आये जर्मनी मारे गए. आम्बुलंस आया तो उसमे बीमार बोधसिंह को सुरक्षित भेज दिया. फिर वजीर से पानी माँगा. उसकी चोट के बंधन को वजीरा ने शिथिल किया. अंतिम साँस लेते =लेते उसको पुरानी यादें आयी. एक बार वह सूबेदार के यहाँ गया तभी मालूम हुआ कि सूबेदारनी वह लडकी है जिससे वह २५ साल पहले अमृतसर से मिला था. सूबेदारनी को भी लहना को जान गयी. तब सूबेदारनी ने कहा कि जैसे मुझे एक बार तांगे के नीचे जाने से बचाया,वैसे मेरे पति और पुत्र को बचाओ. लहनासिंह ने वादा किया था. आज वह अपने प्राण देकर उन दोनोको बचा लिया और सूबेदारनी से कहने बोधा से सन्देश दिया कि उसने जो कहा था,उसे निभाया है.
यह किसीको मालूम न था, समाचार पत्र में यही सूचना आयी जमादार लहनासिंह युद्ध क्षेत्र में मारे गए,
लहनासिंह आदर्श प्रेमी था.
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सूबेदारनी
कहानी उसने कहा था का नारी पात्र सूबेदारनी. वह कहानी की जान है. आठ वर्ष की उम्र में वह लहना से मिलती है. दुबारा मिलन पच्चीस साल के बाद. तब भी उसको पहचानती है. लड़के के प्रति उसके मन में प्रेम था. वह लड़के के प्रथम मिलन की सारी बात या द रखकर पच्चीस साल के बाद मिलने पर लहना को याद दिलाती है. बारह साल के लड़के से मिलाना,क्या तेरी कुडमाई हो गयी पूछना,बिगड़े घोड़े गाडी से उसकी जान बचाना. फिर निवेदन करती हैं जैसे तुम बिना तेरे प्राण पर ध्यान देकर मुझे बचाया,वैसे ही सूबेदार और बोधा को बचाना. लहनासिंह उस दिन से सूबेदार और बोधा सिंह
पर ध्यान करने लगा. अंत में उन दोनों को बचाकर खुद चल बसा. सूबेदारनी आदर्श पति प्रेमी और वात्सल्यमयी माता है. अपने बचपन के प्रेम को स्मरण रखकर लहनासिंह द्वारा अपने पति और पुत्र की जान बचाती है. वह चतुर नारी है.
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सिक्का बदल गया . लेखिका : कृष्णा सोबती
शाहनी का चरित्र चित्रण.
शाहनी एक विधवा अकेली रहती है. वह महात्मा गांधीजी की अनुयायी थी. खद्दर की चादर ओढती थी. वह हिन्दू थी.राम की भक्ता थी.
देश की स्वतंत्रता के बाद हिन्दू-मुस्लिम कलह हुआ था. एक दूसरे के प्राण लेने में आनंद पाते थे. शाहनी चिनाब नदी के तात पर पाकिस्तान के हिस्से में रहती थी. जब तक शाह थे,तब तक उसका जीवन आदरणीय रहा; उस इलाके में सब की मदद करते थे. अब वह अकेली है.एक दिन प्रभात नदी में स्नान करके आयी तब लीग के आदमियों के वहां आना पहचान गयी.
उसने शेरे को शिशु से पाला था, उसके जन्म लेते ही माँ चल बसी. शेरो की पत्नी हसैना थी. शाहनी उसे अधिक चाहती थी. आजादी के बाद शेरो लीग्वालों से मिल गया. उनकी प्रेरणा से वह शाहनी की जान लेने तैयार था. इतने में शरणार्थी कैम्प में शाहनी को ले जाने थानेदार दाऊद खां आ गे आ गया. यह वही दाऊद था,जो शाह के लिए खेमे लगवा दिया करता था.अब सारा माहौल बदल गया. शाहनी . सारी संपत्ति,नकद सब उस इलाके के लोगों के लिए छोड़कर ट्रक में बैठ गयी. सब के दिल में उदासी छा गयी.
आडम्बर और सट्टे पर जीवन बिताई शाहनी, आज अकेले कैम्प में ज़मीन पर पडी सोचते रही ==राज पलट गया.--सिक्का बदल गया.
उस रात हिन्दू=मुस्लिम कलह से आसपास के गांवों में खून बह रहा था.
देश के बंटवारे के बाद की दशा का चित्रण शाहनी पात्र द्वारा मिलता है.
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शेरा
शाहनी का पालित पुत्र शेरा लीग्वालों से मिल गया. लीग का सम्बन्ध शाहनी को पसंद नहीं था. पर वह नहीं मानता था. उस दिन लीग्वाले कलह करने वाले थे. उनकी प्रेरणा से शेरा निर्दयी बन गया. शाहनी की हत्या की तत्परता में था.; फिर भी शाहनी की हालत पर दुखी था.वह शाहनी से उसकी जान के खतरे की बात कहना चाहता था.जबलपुर में आग लगने की बात उसे मालूम था. वह विवश था. शानी के प्रति स्नेह था. दुखी मन से उसे ट्रक में जाते हुए देखता है.देश का बंटवारा हिन्दू-मुस्लिम के भाईचारे भाव को नष्ट कर दिया. इसका नमूना है शेरा पात्र.
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पुर्जे --इब्राहिम शरीफ
भाई का चरित्र चित्रण
भाई पुर्जे कहानी का प्रमुख पात्र है. उसके एक बहन थी; पिता मर गए. साहित्य में एम्.ए हैं. माँ बीमार्पद गयी. बहन के अनुरोध से डाक्टर को बुलाने गया. निर्दयी डाक्टर नहीं आया.डाक्टर ने बताया कि लकवा लग गया होगा': लहसन का रस लेपना. वह दुखी मन से वापस आ गया. माँ की हालत बिगड़ गई तो फिर डाक्टर से मिलने गया.डाक्टर की लापरवाही से सोचने लगा कि साहित्य में एम्.ए. करके क्या लाभ. डाक्टर ने कहा कि मेरी बेटी की शादी की व्यवस्था में लगे है. दावा यहाँ नहीं मिलती;फिर एक पुर्जे में दावा लिखकर दी.भाई को उसकी असमर्थता पर क्षोब हो रहा था. वह तेज़ी से घर गया. बहन ने पुर्जे को टुकड़े-टुकड़े कर दिया. माँ चल बसी.
एक मध्यवर्ग परिवार के बेकार युवक और डाक्टर की निर्दयता पूर्ण व्यवहार के दृश्य भाई पात्र के द्वारा सामने आ जाता है. ऐसे परिवार का दयनीय दशा का यथार्थ चित्रण द्वारा समाज में दया भाव उत्पन्न होना चाहिए.
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डाक्टर
पुर्जे कहानी का डाक्टर एल.ई.एम् है. वह निर्दयी है. बिना रोगी को देखे दवा बताता है और लिखकर भी देता है.
उसको अपनी बेटी की शादी की चिंता है. उसीकी लापरवाही से एक नारी चल बसी. भाई डाक्टर को घर बुलाता है.तब स्वार्थी डाक्टर अपनी बातें करता है---बेटी की शादी में बहुत रूपये खर्च करना पड़ेगा.लड़का बड़े खानदान का है.उसकी डिमैन्ड्स
पूरी करनी है. ऐसे निर्दयी डाक्टर चरित्र निदनीय है. ऐसे डाक्टरों के कारण समाज में डाक्टर अविस्वसनीय बन जाते है.
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गूंगे --लेखक --- रांगेयराघव
गूंगा
गूंगे कहानी में गूंगा पात्र अत्यंत दयनीय पात्र है, वह जन से अनाथ है. पिता और माता दोनों भाग गए. जिन्होंने उसको पाला था,वे निर्दयी थे.अधिक मारते-पीटते थे. वह बहुत मेहनत करता था. सेठ के यहाँ बर्तन माँजना,कपडे धोना आदि सब काम .केवल पेट भरने के लिए.
चमेली दयालू औरत थी. उसके यहाँ गूंगा नौकरी करने गया तो चमेली से ये सब बातें इशारे से ही बता दी.
चमेली के पुत्र -पुत्री गूंगे को न चाहकर भी चाहते थे. एक दिन किसी बात पर उसके पुत्र ने गूंगे को मारा. गूंगा उसे मारने हाथ उठाया,पर मालिक के बेटे को न मारा. इससे नाराज होकर चमेली उसे घर से भगा देती है. वह थोड़ी देर में रोते हुए वापस आ गया.उसके सर पर चोट लगी थी खून बह रहा था. वह दरवाजे पर कुत्ते के सामान खड़े होकर रो रहा था. गली के शरारत लड़कों ने उसको मारा था.
चमेली देखती रही. उस मूक अवसाद में युगों का हाहाकार भरकर गूँज रहा था.
गूँगा समाज का पूरा न्याय,अन्याय.अत्याचार जानता-समझता था. वह गूंगा था. बोलने की शक्ति न थी. इस एक कमी के कारण समाज की यातनाएं सहता था, सिवा रोना ही उसके सारे मनोभाव प्रकट करता था. गूंगे के पात्र के चित्रण के द्वारा समाज में गूंगों के प्रति दया भाव और सनुभूति उत्पन्न करना लेखक का उद्देश्य था.
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चमेली
गूंगे कहानी का आदर्श पात्र चमेली थी. घरवाले न चाहने पर भी गूगे को घर में नौकरी देती है. इशारे से ही गूंगे के जीवन चरिता सामने लाती है. वह गूंगों की भाषा समझती है. गूंगे से काम लेने के लिए घरवालों को समझाती है---
कच्चा दूध लाने के लिए ,थान काढने का इशारा कीजिये. साग मंगाना हो गोलमोल कीजिये.बाच्चों ने गूंगे को नौकरी देना मना किया तो चमेली कहती है--मुझे तो दया आती है बेचारे पर.
एक दिन गूंगा बेटे वसंता को मारने हाथ उठाया तो उसके बलिष्ट हाथ हाथ देखकर उसे घर से भगा देती है. वात्सल्यमयी माता ऐसे ही करेगी. वह थोड़ी देर में गली के लड़कों से मार खाकर खून से लतपत वापस आया . दरवाजे पर सर रखकर कुत्ते की तरह चिल्ला रहा था. उसे चमेली देखती रही.
चमेली को आदर्श गृहणी.वात्सल्यमयी माता, समाज के दुखी असहाय लोगों पर दया और सहानुभूति दिखनेवाली आदर्श नारी के रूप में देखते हैं.
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बदला - लेखक :आरिगपूडी
कोटय्या
"कोटय्या" गरीब किसान था. उसकी भूमि नदी के बाढ़ में गायब हो गयी. तब से मजदूरी करके कष्टमय जीवन बिताता था. वह अपने गर्भवती पत्नी को अपने मालिक की बैल-गाडी में लिटाकर इलाज के लिए धम्म्पट्टनाम सरकारी अस्पताल ले गया. अस्पताल के द्वार से ही मामूल शुरू गो गया. अस्पताल में सब के सब रिश्वत लेते थे. कोटय्या की पत्नी को इलाज की मदद किसीने नहीं की. डाक्टर पद्मा आयी तो कोतय्या की पत्नी को अन्दर ले गए. थोड़ी देर में कहने लगे कि उसकी पत्नी मर गयी. लाश देखते ही कोतय्या को मालूम हो गया कि इलाज़ नहीं किया गया. किसीने इस बेचारे की मदद नहीं की. उसी गाडी में पत्नी को अपने गाँव ले गया. दाह संस्कार क्रिया के बाद वह बदला लेने अस्पताल आ गया, वह अनशन के लिए बैठ गया. उसने एक कपडे पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा पताका था --अस्पताल से प्राण खाऊ घुस खोरी हटाओ .पहले किसीने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया. पद्मा के कहने पर उसने अस्पताल के सामने बैठकर सत्याग्रह आरम्भ किया . स्थानीय नेता उससे मिले. समाचार पत्रों में खबरें आयी.पूछ-ताछ करने लगे. अस्पताल के भ्रष्टाचार पर शिकायतों के ढेर आ गए. डाक्टर पद्मा को अपना बयान देना था. भ्रष्टाचारियों ने पद्मा की हत्या की और कोतय्या को खूनी सिद्ध करने का इंतजाम हो गया. कोतय्या कैद होगया. वह बहुत चिल्लाया -चीखा कि वह निर्दोष है. उसकी आवाज़ पर किसीने ध्यान नहीं दिया.
वह बदला लेने गया,भ्रष्टाचारियों ने उसी को बली देकर बदला ले लिया.
कोटय्या का पात्र दयनीय शोषित पीड़ित गरीब का प्रतीक है. सरकार अस्पताल के भ्रष्टाचार का भंडा फोड़कर समाज में क्रान्ति लाना लेखक का उद्देश्य था. कोटयया पात्र के चित्रण द्वारा अपने उद्देश्य पर लेखक सफल हो गए.
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डाक्टर पद्मा
डाक्टर पद्मा अपना कर्तव्य करना चाहती थी;पर अस्पताल में रिश्वत का बोलबाला था; इसमें सब सम्मिलित थे. अत; वह लाचारी बन गयी. उसकी दया से ही कोटय्या के पत्नी को लिटाने की जगह मिली;पर बिना इलाज के मर गयी.
कोटय्या अस्पताल के सामने भ्रष्टाचार और घूसखोरी के विरुद्ध अनशन रखा तो पूछ-ताछ शुरू हुई. पद्मा के बयान से कई लोगों की नौकरी चली जायेगी. पूछ-ताछ में सुरंग के सामान कई अपराध बाहर आ गए. सब के सब परेशान थे.
पहले पद्मा छुट्टी पर जाना चाहती थी; यह असंभव हुआ तो सब बातें छिपा न सकी. बयान देने के बाद दूरे दिन पद्मा को किसीने मार डाला. अपराध भोले-भाले निर्दोष कोटय्या के सर पर पड़ा.
दयालू ईमानदार डाक्टर को रिश्वतखोरों ने मार डाला.
पद्मा एक दयालू आदर्श डाक्टर थी.
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लेखिका::--उषा प्रियंवदा
वापसी
लेखिका :उषा प्रियंवदा
गजाधर का चरित्रचित्रण.,
गजाधर पैंतीस वर्ष रेलवे में नौकरी करके रिटायर हो गए.वे दुखी थे कि दफ्तर के आत्मीय मित्रों को बिछुड़ रहे हैं. वे खुशी थे कि कई साल अकेले रहने के बाद अपने परिवारवालों के साथ खुशी से रहनेवाले है. पर परिवारवालों से उतना स्नेह,आदर ०सम्मान नहीं मिला. उनको अकेला रहना पड़ता.उनके घर में रहना,उपदेश देना,बहु और बेटे से कोई न कोई काम कहना आदि ने उनको नफरत का पात्र बना दिया.
गजाधर को अपने बिस्तर की समस्या हुयी; उनको हर बात में दखल देना घरवालों को पसंद नहीं आया. गजाधर ने अनुभव किया कि वह पत्नी और बच्चों के लिए केवल धनोपार्जन के निमित मात्र है.
एक दिन नौकर के काम ठीक तरह से न करने की चर्चा हुयी तो नौकर का हिसाब कर दिया. घर की आमदनी भी कम थी. खर्च ज्यादा है.
बेटे को बहु ने इसकी सूचना दी. इस घटना के बाद नरेन्द्र,अमर,वसंती सब के सब गजाधर की आलोचना करने लगे.
पत्नी भी उनके अनुकूल बातें नहीं की.
गजाधर ने पुनः नौकरी करने का निश्चय कर लिया. उनको एक मिल में काम मिल गया.दुसरे दिन पत्नी से सीधे कहा कि मुझे सेठ रामजीमल की चीनी मिल में नौकरी मिल गयी. परसों जाना है. पत्नी तैयार नहीं हुयी. उसने कहा कि मैं चलूंगी तो क्या होगा.
वे घर से निकले तो किसीने न रोका. नरेन्द्र ने बड़ी तत्परता से बिस्तर बाँधा. वे चले गए. घरवालों ने इसकी चिंता न की.बहु ने अमर से पूछा ,"सिनेमा ले चलिए.वासंती भी तैयार थी. सिनेमा जाने. गजाधर की पत्नी चौके में चली गयी.पत्नी को भी पति की चिंता नहीं. वह कहने लगी--बाबूजी की चारपाई कमरे से निकाल दे. उसमें चलने तक को जगह नहीं है.
रिटायर होने के बाद पुरुषों की दयनीय दशा का चित्रण खूब हुआ है.
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श्रीमती गजेंधर बाबू
वापसी कहानी के नायक गजाधर की पत्नी है .उसको रिटायर पति की सेवा से अपने बड़े परिवार की चिंता थी. वे अपने बच्चों से प्यार करती है.अपने पति के साथ जाना उसको पसंद नहीं था. एक आदर्श माँ थी. उसमें असीम सहन शक्ति थी.
वह सभी काम चुपचाप करती थी और अपने आप बोलती थी ---सारे में जूठे बर्तन पड़े हैं. इस घर में धरम-करम कुछ नहीं.पूजा करके सीधे चौके में घुसो. पत्नी की परेशानी देखकर गजाधर रात के भोजन की जिम्मेदारी सौंपी. बहु से भी कुछ जिम्मेदारियां. पर श्रीमती को पतिदेव का दखल देना पसंद नहीं. बच्चे-बहु सब अपने पिताजी की शिकायत करते थे. गजाधर बाबू घर की परिस्थिति से ऊब गए. वे पुनः सेठ रामजीमल की चीनी मिल में नौकरी करने निकले. उन्होंने श्रीमती को बुलाया. तब श्रीमती ने कहा--"मैं चलूंगी तो यहाँ का क्या होगा? इतनी बड़ी गृहस्थी,
उसको बूढ़े पति का वापसी जाना खुश ही था. उनके जाने के बाद बच्चे भी खुश थे, वे सिनेमा जाना चाहते थे. श्रीमती गजाधर ने अपने बेटे से कहा --अरे नरेंद् , बाबूजी की चारपाई कमरे से निकाल दे! उसमें चलने तक को जगह नहीं है.
श्रीमती अपने पति से बढ़कर बच्चो से अधिक प्यार करती है.
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डिप्टी कलक्टरी लेखक : अमरकांत
शकल दीप बाबू -चरित्र चित्रण:
सारांश :-
शकल दीप बाबू अपने बेटे नारायण (बबुआ) की डिप्टी कलक्टरी बनने की कामना पूरी होने पर बेहद खुश होते हैं.आरम्भ से अंत तक वात्सल्यमय पिता की मनो भावना का यथार्थ चित्रण मिलता है.
शकल दीप बाबू मुख्तार थे. उनकी पत्नी जमुना थी. उनके दो बेटे थे.बड़े का नाम नारायण था,बबुआ के नाम से पुकारा जाता था. उसकी उम्र २४ साल की थी; छोटा बारह साल का था उनका नाम टुनटुन था.
शकलदीप बाबू मुख़्तार थे. उनकी आमदनी केवल चौ के-चूल्हा चलाने काफी था.
नारायण को नौकरी नहीं मिली; वह डिप्टी कलक्टर बनना चाहता था. पिताजी को अपने बेटे पर शक था; उनपर भरोसा भी नहीं था.
नारायण दो बार डिप्टी कलक्टरी की परीक्षा में सफल नहीं हुआ. शकाल दीप बाबू का विचार था कि साधारण नौकरी भी नहीं मिली तो डिप्टी कलक्टरी कैसे ?
वात्सल्यमयी माता ने अपने पति से कहा --दो -दिन से बबुआ उदासी है. दो-तीन दिन में फीस भरना है. आपसे मांगने डरता है.
बेटे पर के अविश्वास के कारण वे पहले रूपये देने तैयार नहीं थे. फिर भी पिताजी का कर्तव्य निभाने तैयार हो गए, बाहर गए और डेढ़ सौ रुपये लाये और पत्नी से कहा कि १०० रूपये बेटे को दो और ५० रूपये घर के खर्च के लिए.
वे खुद सोचने लगे कि गलती किसीकी नहीं. सारा दोष तो मेरा है.देखो न,मैं बाप होकर कहता हूँ कि लड़का नाकाबिल है.
नहीं,नहीं,सारी खुराफात की जड़ मैं ही हूँ,और कोई नहीं. उस दिन के बाद अपने बेटे को सभी प्रकार की सुविधा करने लगे. देखा कि बीटा काफी मेहनती है. १९ घंटे पढने में तल्लीन है. बेटे को मेवा,सिगरेट आदि की भी व्यवस्था करने लगे.
बेटा इलाहाबाद में इम्तिहान देने निकला तो शकल रेलवे स्टेशन पहुंचे.रेल निकलने लगी तो पिताजी बच्चे की तरह चलती गाडी की ओर दोड़े और रूपये की पुडिया दी और आशीषें.शकल बाबू की वात्सल्यता का यथार्थ चित्रण लेखक ने किया है.
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जमुना
डिप्टी कलक्टरी कहानी के प्रमुख पात्र शकल दीप बाबू की धर्म पत्नी जमुना थी. वह वात्सल्यमयी माता थी. कहानी के आरम्भ में ही जमुना अपने बेटे के बारे में पति से कहती है---"दो दिन से बबुआ बहुत उदास है.वही बेटे की ओर से डिप्टी कलक्टर की परीक्षा शुल्क माँगती है. उसको अपनी बेटी पर बड़ा विशवास था. पति क्रोधित हुए तो वह चुप रहती थी; पति के स्वभाव से परिचित थी; अत; वह आदर्श गृहस्थी थी.
पति नारायण बबुआ पर क्रोध प्रकट करते तो बताती ---ऐसी कुभाषा मुँह से प्रकट कानी नहीं चाहिए. हमारे लड़के में दोष ही कौन-सा है? लाखों में एक है. बेटा हमेशा उदास है. न मालूम मेरे लाडले को क्या हो गया है.?
वह आदर्श पत्नी भी थी. एक दिन पति ने जल्दी स्नान किया तो डरती थी कि बीमार न पड़े. शकलदेव ईश्वर भक्त हो गए.राधास्वामी के. पति -पत्नी में हँसी -भरे मजाक भी होता था.. अपने बेटे के लिए पिताजी सिगरेट लेकर आते हैं श्री मति के पूछने पर कहते हैं --तेरे लिए? श्रीमती कहती है--कभी सिगरेट पी भी है कि आज पिऊँगी.
बबुआ के लिए जो लाये तो उसका छोटा बेटा टुनटुन खाता है. तब शकल गुस्से होते है और उसे पीटते है, तब वात्सल्यमयी माता उदास हो जाती है.
थोड़े में कहें तो जमुना आदर्श पत्नी और वात्सल्यमयी माँ थी.
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पंच लाईट
लेखक :--फनीश्वरनाथ "रेणु
सरदार
पञ्च लाईट में सरदार देहात आदमी है. वहाँ पंच लाईट एक गौरव की बात है.सरदार पंच लाईट लाया. लोग बहुत खुश थे.
पंच लाईट के बारे में सरदार गर्व से कहता है --दुकानदार ने पहले सुनाया,पूरे पाँच कौड़ी पाँच रूपये. मैंने कहा--दुकानदार साहब, यह मत समझिये कि हम एकदम देहाती है. बहुत-बहुत पञ्च लाईट देखे हैं. दूकानदार बोले --आप जाति के सरदार है. आप सरदार होकर पंचलाईट खरीदने आये हैं, पूरे पाँच कोडी में देता हूँ. सरदार देहाती अपने घमंड दिखाने लगे.
जब पंच लाईट जलाने की समस्या उठी, तब सरदार की बुद्धि पर अविश्वास प्रकट करने लगे. गाँव के अन्य सरदार के द्वारा लाईट बालना अगौरव था. अंत में पंच से निकाले पास के गाँव के गोधन की लाईट जलाता है. सब खुश होते हैं.
सरदार में घमंड,नादाने, अन्य गाँव के सरदारों के सामने अपनी इज्जत बनाए रखना आदि गुणों से सरदार सफल देहाती सरदार है.
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गोधन
गोधन पंच लाईट कहानी का साधारण पंच के दंड के पात्र का आदमी था. उसको पंच में हुक्का पीना बंद था. वह पंचायत से बाहर है.पंचों की निगाह पर गोधन बहुत दिन से चढ़ा हुआ था. अचानक उसकी जरूरत पञ्च को आ गयी. कार है वही पञ्च लाईट जलाना जानता था. अब पंच उनकी मदद लेने विवश थे. सलीमा का गीत गाकर आँख का इशारा मारनेवाला गोधन से गाँव भर के लोग नाराज थे. अंत में पंचायत वाले गोधन को बुलाने मान गए. वह होशियार था. वहां स्पिरिट नहीं था. गोधन गरी का तेल माँगा. दीप जलाने लगा. गोधन कभी मुँह से फूँकता ,कभी पंच लाईट की चाबी घुमाता.थोड़ी देर में पंचलाईट से सनसनाहट की आवाज़ निकलने लगी और रोशनी बढ़ती गयी साथ ही गोधन की प्रशंसा भी. सरदार ने गोधन से प्यार से कहा--तुमने जाति की इज्ज़त रख ली;खूब गाओ सलीमा का गाना.
गोधन के पंचलाईट जलाने की कला ने उसको हीरो बना दिया.
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खानापदेश
लेखक : ओमप्रकाश वाल्मीकि
सुकिया
ख्नाबदेश कहानी का प्रधान पात्र है सुकिया. वह अपने पति मानो के साथ धन कमाने अपने गाँव छोड़ जाती है.
सुकिया और मानो दम्पति कुछ धन कमाने की इच्छा से गाँव छोड़कर भट्टे पर आ गए . असगर ठेकेदार ले आया था. भट्टा मालिक मुख्तार सिंह था.
जहां मजदूर रहते थे ,वहां रात डरावना था. कुछ धन जोड़ने की इच्छा से धीरज होता था. बस्ती में सांप-बिच्छु का डर लगा रहा था. मानो बार -बार सुकिया से कहता था -- अपने देस की सूखी रोटी भी परदेस पकवानों से अच्छी होती है.
सुकिया जवाब देती --नरक की जिन्दगी से निकलना है तो कुछ छोड़ना भी पड़ेगा. आदमी की औकात घर से बाहर कदम रखने पर ही पता चले हैं. दोनों कठोर मेहनत करते ,फिर भी मजदूरी कम ही मिलती.
मालिक मुख्तार सिंह का बेटा सूबे सिंह था. पिता की गैरहाजिरी में सूबे सिंह का रौब -दाब भट्टे का माहौल ही बदल देता था. असगर ठेकेदार भीगी बिल्ली बन जाता था. सूबे का चरित्र भी अच्छा नहीं था.
भट्टे पर काम करने किसनी और महेश नवविवाहित दम्पति आये थे. सूबे सिंह की कुदृष्टि किसनी पर पडी. वह उसे लेकर शहर जाता;वापस आते वक्त वह थकी लगती थी. वहाँ सूबे और किसनी के बारे में काना-फूसी होने लगी.
वहाँ तीसरा मजदूर था जसदेव. . वह कम उम्र वाला था. एक दिन सूबे सिंह ने असगर ठेकेदार के द्वारा सुकिया को दफ्तर में काम करने बुलाया. किसनी की तबीयत ठीक नहीं थी. सुकिया डर गयी. गुस्से और आक्रोश से नसें खिंचने लगी. जसदेव सुकिया के बदले दफ्तर के काम करने गया. सूबे सिंह अति क्रोध से उसको बहुत मारा-पीटा.
सुकिया को बहुत दुःख हुआ. जसदेव को खिलाने-पिलाने में लगी. भट्टे में दवा-दारू का इंतज़ाम नहीं था. सुकिया जसदेव से मिलने गयी. वह दर्द से कराह रहा था. मानो ने सूबे सिंह को खूब कोसा. "कमबख्त कीड़े पडके मरेगा. हाथ-पाँव टूट-टूटकर गिरेंगे ....आदमी नहीं जंगली जानवर है."
मानो को पक्की ईंट का घर निजी बनवाने की इच्छा थी. वह अपने निजी ईंट के घर में रहने का सपना देखा करता था.
सुकिया जल्दी भट्टी पर काम करने गयी. एक दिन जल्दी गयी तो देखा भट्टी उजड़ा हुआ था. सारी ईंटे टूटी-फूटी पडी थी. सब ने कहा किसीने जान-बूझकर ईंटें तोडी हैं. मानो का ह्रदय फटा जा रहा था.आगे वे वहां नहीं रह सकते. असगर ठेकेदार ने उनकी रही-सही उम्मीदों पर पानी फेर दिया.. वे खानाबदेशी बन गए. खानाबदेश जिन्दगी का एक पड़ाव था यह भट्टा. वे वहां से दुसरे पड़ाव की तलाश में निकले,एक दिशा हीन यात्रा पर. सपनों के काँच उसकी आँख में किरकिरा रहे थे.
सुकिया शोषित दलित वर्ग की प्रतिनिधी है. केवल परिश्रम करनेवाली है.साथ ही साहसी है.चतुर है.
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मानो
खानाबदेश कहानी का प्रमुख पात्र है मानो. सुकिया के पति. कठोर मेहनती. उसकी एक मात्र चाह थी पक्की ईंट का घर बनाना. इस के लिए पत्नी सुकिया की बात मानकर भट्टी में काम करने गया. कठोर मेहनत के बाद भी अधिक रूपये ज़माना मुश्किल हो गया. सुकिया उसको धीरज बांधती रहती. वहाँ ठहरने की सुविधा नहीं थी.सांप-बिच्छुओं का डर था.
फिर भी अपने ईंट के घर के स्वप्न को साकार बनाने सब कुछ सह लेता. वहाँ दवा की सुविधा नहीं थी.
ऐसी परिस्थिति में उनको सूबे सिंह के रूप में आपत्ति आ गयी. वह भट्टे के मालिक का बेटा था. उसकी कुदृष्टि सुकिया पर पडी.तीसरा मजदूर जसदेव उसकी रक्षा के लिए मार खाया.चोट लगी. इस घटना के चंद दिन में किसीने भट्टे को जबरदस्त तोड़ दिया. मानो दुखी था. वह बे घर का हो गया.खानाबदेश .सुकिया और मानो नौकरी की तलाश में निकल पड़े.
मानो शोषित दलित वर्ग का पात्र है. ऐसे लोगों के करुण कथा के द्वारा दलित वर्ग में जागरण लाना लेखक का उद्देय था.
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सूबेश्री गणेश के नाम से करता हूँ,श्रीगणेश!
श्री की कृपा रहें! श्री विद्या की भी;
श्री शक्ति की भी;श्री शिव,श्री विष्णु की भी;
इन सब से मिश्रित एक ईश्वरीय शक्ति मिले!!
जिससे कर सकूँ, मैं जगदोद्धार!!
आगे बढूँ मैं,आगे बढ़ें संसार!
न तो ऐसी शक्ति करो उत्पन्न,
जो रोक सके तेरे नाम से लूटना’
धर्म –कर्म के बाद नाम बचें;
करोड़ों की संपत्ति,न ऐक्य हो सागर में;
मानता हूँ तेरी बड़ी शक्ति,लेकिन एक तेरी
अपमान की शक्ति जो साल पर साल
बढ़ती रहती हैं,तनाव,कलह ,मृत्यु ,मार-काट के
आतंक फैलता बढ़ता रहता है;
मुक्ति करो भक्तों को,ऐसी तेरी मूर्ती –विसर्जन के
दुष्कर्म से; बचाओ धर्म को;मिटाओ अंध-धार्मिकता को’
करता हूँ,श्री गणेश श्री गणेश के नाम से;
करो कुछ शक्ति का प्रयोग;बचें संसार!!
भक्ति तो मुक्ति का साधन है ,पर
शक्ति है संसार में धन की ;ज्ञान की ;
ज्ञानी भक्त हो जाता हैं,तो
धनी नाचता नचाता मन माना;
अतः जन का मानना है .
धनी की बात;
यह तो बात ख टकती;
जीते हैं हम लेके नाम तेरे;
रखो हम पर कृपा तेरी;
श्री गणेश करता हूं,काम;
श्रीगणेश करो कामयाबी ,
कामना मेरी!
सनातन हिन्दू धर्म सिखाते हैं बहुत;
स्वदेशे पूजिते राजा;विद्वान सर्वत्र पूजिते;
वसुदैव् कुटुब्बकम ;
मनुष्य सेवा ही महेश की सेवा;
धन न जोड़ो;दान –धर्म में लगाओ;
वही महान है,जो सब कुछ तज,
जीता है परायों के लिए;
त्याग में है सुख;
भोग में हैं दुःख!
राजकुमार सन्यासी बन्ने की कहानियाँ है
भारत में;भोगी रोगी बनता है;
प्रकृति के साथ जीने में ब्रह्म के साक्षात्कार है;
अहम् ब्रह्मासमी ;आत्मा-परमात्मा में विलीन है ;
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छात्रों और छात्राओं के लिए कहानी कला और सारांश लिखने निम्न सोपानों पर ध्यान रखना चाहिए:
१.१५ अंकों का बंटवारा:
१.लेखक परिचय संक्षेप में --३ अंक.
२.सारांश -संक्षेप में ------५ अंक.
३. कहानी कला की दृष्टी से विशेषताएं:-७ अंक.
कुल एक कहानी केलिए इस दृष्टी से पंद्रह अंक दिए जायेंगे.
२. चरित्र चित्रण:-
हर पात्र की बोली,विचार,आंगिक चेष्टाएँ ,भावाभिव्यक्ति ,काम आदि पर ध्यान देकर चरित्र चित्रण करना है.
कहानी की सफलता देश-काल -वातावरण के अनुकूल रचित पात्र पर निर्भर है. अतः चरित्र के जीवित रूप दिखाना चाहिए.
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1.नादान दोस्त--उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद. (बाल मनोविज्ञान की कहानी )
कठिन शब्दार्थ:
सुध-होश
फुरसत =समय
तसल्ली देना-सांत्वना देना
पर- पंख,लेकिन
बगैर=बिना
पेचीदा=परेशानी
जिज्ञासा=जानने की इच्छा
अधीर होना= हिम्मत खोना
अनुमान=अंदाजा.
चाव= रूचि
आँख बचाना=छिपाना
उधेड़बुन =दुविधा
हिफाज़त =सुरक्षा
लू=गरम हवा.
चेहरे का रंग उड़ जाना=डरना
ताकना=देखना
भीगी बिल्ली बनना= भयभीत होना
तरस खाना=दया दिखाना
तरस आना=रहम आना
लेखक परिचय:-जन्म स्थान,तारीख,कहानियों का केंद्र भाव,मुख्य रचनाये,वे अमर है तो मृत्यु साल..
सारांश:-
प्रेमचंद इस कहानी में सामाजिक समस्याओं से परे बाल मनोविज्ञान पर ध्यान दिया है.बच्चे नादान होते हैं.
उनको नयी बातें जानने की इच्छा होती हैं.उनके जिज्ञासुओं को जवाब देने माता-पिता को फुरसत नहीं;अतः बच्चे अपने सवालों का समाधान खुद खोजने में लग जाते हैं .परिणाम उनके सोच के विपरीत होते हैं.वे अपनी नादानी के लिए पछताते हैं.बच्चों के नादानी करतूत से माँ को हंसी आती है;पर बेटा अपनी गलती पर अफसोस होता रहता है; उसको माँ की इस बात से भी पछतावा बढ़ा होगा--केशव के सर इसका पाप पडेगा!हाय!हाय!तीन जानें ली यह दुष्ट ने! कितना मर्मस्पर्शी बाल मनोविज्ञान का जीता-जागता चित्रण.
कहानी का सार:-
केशव के घर कार्निस के ऊपर एक चिड़िये ने अंडे दिए थे. केशव और उसकी बहन श्यामा दोनों को अंडे देखने की इच्छा हुई. उनके मन में कई प्रकार के सवाल आये कि अंडे की संख्या,अंडे के रंग,बच्चे कैसे निकलेंगे ,कैसे उड़ेंगे ,पर कैसे निकलेंगे आदि.
इन सवालों को जवाब देने माता-पिता दोनों को समय नहीं. नादान बच्चे अपनेदिल को खुद ही तसल्ली दिया करते थे.
दोनों को इन अण्डों को सुरक्षित रखने की इच्छा हुई . पहले उनकी तीव्र इच्छा अण्डों को देखने की थी.
दोनों बच्चे अम्मा की आँखे बचाकर इस काम में लग गए. भाई की मदद में बहन लग गयी.अण्डों को धुप से बचाने,उसको गद्दीदार बिस्तर पर रखना,पानी की व्यवस्था सब कर चुके. उनका विचार था इतनी सुविधाओं से चिड़िये को आराम मिलेगा. अंडे से निकलते ही दाना-पानी पास ही मिल जाएगा.चिड़िये के बच्चे वहीं रहेंगे.
भाई ने ऊपर डरते हुए चढ़कर ये सब काम किये;बहन को ऊपर चढ़ने नहीं दिया;उसको डर था कि बहन के पैर फिसलकर गिर जाने पर माँ उसे चटनी कर देगी. केशव को यह भी डर था कि वह किवाड़ खोलकर घर से बाहर आया है;माँ को इसका पता चलें या बहन के कहने पर डांटेगी.
माँ आयी;डांट-डपटकर दरवाजा बंद कर दिया.गरम लू की दुपहरी में दोनों सो गए. यकायक श्यामा जाग उठी;तुरंत कार्निस देखने गयी;वहाँ के दृश्य से दुखी थी; अंडे नीचे गिरकर टूट गए.वह आहिस्ते-आहिस्ते भाई को जगाने लगी और बात बतायी कि अंडे नीचे पड़े हैं;चिड़िये के बच्चे उड़ गए.
माँ ने दोनों बच्चों को धूप में खड़ा देखकर पुकारी. केशव ने कहा कि अंडे गिर गए.माँ गुस्से में बोली-तुम लोगों ने अण्डों को छुआ होगा. श्यामा को भैये पर का तरस उड़ गया.सारी बातें बता दीं.
तभी माँ ने कहा कि तू इतना बड़ा हुआ ,तुझे अभी इतना पता नहीं कि छूने से चिड़िये के अंडे गंदे हो जाते हैं.चिड़िया फिर उन्हें नहीं सेती. आगे माँ ने कहा --केशव के सर इसका पाप पडेगा.केशव ने दुखी मन से कहा--मैंने तो सिर्फ अण्डों को गद्दी पर रख दिया था अम्माजी.!
माँ को हंसी आयी;पर केशव दुखी था.सोच-सोचकर रो रहा था.
भोले-भाले बच्चोंकी नादानी से नादान दोस्त अंडे से निकल न सके.
कहानी कला की दृष्टि से विशेषताएँ:-
"नादान दोस्त" उपन्यास सम्राट प्रेमचंद जी की कहानी है. उसकी रोचकता,प्रवाह और सुसम्बद्धता के तत्व हैं-
१.कथावस्तु२. पात्र ३.संवाद ४.देशकाल ५. शीर्षक ६.चरमसीमा ७.अंत ८..उद्देश्य ..९.भाषा शैली .इस पर अब प्रकाश डालेंगे.
१.कथावस्तु: -कहानी की बीज है.इसी से कहानी का विकास होता है;बाल मनोविज्ञान की इस कहानी में
माँ-बाप बच्चों के मन में उठनेवाले सवालों के जवाब देने तैयार नहीं है; भूलें होने के बाद डाँटते हैं.वे तो बच्चों की भूलों से खुश होते हैं. बच्चे माँ -बाप के डर के कारण अपने मन में उठनेवाले सवालों के हल में खुद लग जाते है, इसीलिये भूलें होती हैं.बच्चे अफसोस होते हैं. इस कथावस्तु के आधार पर कहानी सफल है.
२.पात्र: कहानी के प्रमुख पात्र केशव और श्यामा हैं. और गौण पात्र उसकी माँ. केशव और श्यामा अपने आप सवाल-जवाब करके अपने दिल को तसल्ली दे दिया करते थे लेखक के यह वाक्य बच्चों के प्रति माता-पिता की लापरवाही ,बच्चों के जिज्ञासु होने की प्रवृत्ति का पता लगता है. केशव अपने माँ -बाप से इतना डरता है कि दोनों को अपने माँ -बाप की आँखें बचाकर काम करना पड़ता है;भाई का बहन को डांटना,बहन माता से न कहें यों सोचना,अंडे के टूटने की खबर पहले बहन जानकर आहिस्ते-आहिस्ते भाई को जगाना,अंडे के छूने से टूट जाने से दुखी होकर भाई के अपराध को श्यामा अपनी माँ से कहना ,सच्चाई जानकर माँ का कहना -केशव के सर इसका पाप पड़ेगा;फिर माँ का खुश होना,केशव का दुखी होना ऐसे कहानी के पात्र कहानी के सफल और उद्देश्य के लिए ही सृजित हैं.
३.संवाद: कहानी को आगे बढाने में संवाद का अपना विशेष महत्त्व है.श्यामा के हर सवाल में बच्चों के जिज्ञासा का पता लगता है.बड़े भाई का समाधान भी रोचक है.
श्यामा:-क्यों भइया,बच्चे निकलकर फुर्र से उड़ जायेंगे?
केशव गर्व से - नहीं री पगली !पहले पर निकालेंगे!बगैर परों के कैसे उड़ेंगे?
केशव ने श्यामा को अंडे नहीं दिखाया। तब श्यामा ने कहा,मैं अम्माजी से कह दूँगी.
तब केशव ने कहा-अम्मा से कहेगी तो बहुत मारूंगा,कहे देता हूँ.
अंडे के छू जाने के डर से केशव ने माँ से पूछा--तो क्या चिड़िया ने अंडे गिरे दिए हैं अम्मा जी?
माँ--और क्या करती!केशव के सर इसका पाप पडेगा। हाय!हाय!तीन जानें ले लीं दुष्ट ने!
ऐसे ही कथोपकथन बाल-मनोविज्ञान के अनुकूल रोचक बन गया है.
४.देश-काल --यह एक सामाजिक कहानी है. बालमनोविज्ञान का प्रतीक है.अतः यह सफल कहानी है. बच्चे यों ही कुछ करते हैं.जानने की इच्छा रखते हैं.यह तो देश -काल वातावरण के अनुकूल है.
५.शीर्षक : कहानी का शीर्षक "नादान दोस्त",उचित है. अंडे ही नादान दोस्त हैं.बच्चे उत्पन्न भी नहीं हुए, उन अण्डों की सुरक्षा,धूप से बचाना ,गद्दी तैयार करना आदि भोले बच्चों की भोलापन है नादान बच्चों के लिए.
६.चरम सीमा:-कहानी की चरम सीमा श्यामा के अंडे टूटने देखने से हैं.तभी माता को बच्चों के बारे में पता चलता है.
७.अंत- कहानी का अंत माँ की हँसी और केशव के अफसोस के साथ होता है.नादान दोस्त टूटे अंडे के लिए भोले केशव का दुःख;शीर्षक के अनुकूल अंत.
८.उद्देश्य:-बाल मनोवैज्ञानिक और अभिभावकों की लापरवाही,बच्चों का डरना,बच्चों के मन में उठनेवाले सवालों के जवाब न देना आदि पर ध्यान दिलाना लेखक का उद्देश्य है. इसमें लेखक को सफलता मिली है.
९.भाषा शैली: भाषा सरल और मुहावरेदार हैं.कहानी सिलसिलेवार है.आँखे बचाना,उधेड़बुन में पडना,चटनी कर डालना,उलटे पाँव दौड़ना,रंग उड़ जाना,पाप पड़ना,सत्यानाश कर डालना आदि मुहावरों का सही प्रयोग मिलता है.कहानी सिलसिलेवार है.
थोड़े में कहें तो कहानी सिलसिलेवार ,रोचक और शिक्षाप्रद है. अभिभावकों को बच्चों से प्यार से रहना है. उनके सवालों के जवाब देना,शंकाओं का समाधान करना नादान बच्चों को खुश करना;और नादानी के भूलों से बचाना आदि शिक्षा मिलती हैं.
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2.कोटर और कुटीर. लेखक :-सियारामशरण गुप्त
कठिन शब्दार्थ:
कोटर==घने जंगल
कुटीर =झोम्पडी
बाट जोहना=रास्ता देखना ,प्रतीक्षा करना
परिखा=
क्षुधा=भूख
घनश्याम =बादल
पोखरी=
पुर्हरी=
अवस्था=आयु ,उम्र
खफ़ा=
निहाल हो जाना=
लेखक परिचय :-सियारामशरण गुप्त
सारांश :
मनुष्य को दूसरों की सम्पत्ती की चाह ठीक नहीं है.दूसरों से माँगना और कर्जा लेना भी स्वाभिमान के विरुद्ध है.एक कुटीर वासी ऐसे आदर्श जीवन से खुश होता है.कोटर में रहनेवाले चातक पुत्र वर्षा के पानी की प्रतीक्षा छोड़ गंगा की ओर उड़ रहा है.जब उसको गरीब बुद्धन की स्वाभिमान भरी बात में चातक का उदाहरण बताया तो चातक पुत्र का अपने खानदानी गौरव का पता चला.वह फिर गंगा की ओर जाना छोड़कर अपने कोटर की ओर लौटा. यह छोटी -सी कहानी में स्वाभिमान की आदर्श सीख मिलती है.
सार:
चातक पुत्र को अधिक प्यास लगी. उनके पिता जी से कहा कि प्यास के कारण मैं परेशान में हूँ. पिताजी ने समझाया कि हम तो वर्षा का पानी ही पीते हैं.इसी कारण से हमारे कुल का गौरव है.पुत्र ने कहा कि मनुष्य तो कुएं,तालाब ,आदि में वर्षा के पानी जमा करके कृषी करता है; तब पिता ने पोखरी का पानी पीने की सलाह दी. पुत्र ने उस गंदे पानी ,जानवर और मनुष्य का पीना,उसमें कीड़े का बिलबिलाना .आदमियों का उस पानी प्रदूषित करना; पुत्र ने वह विचार छोड़ दिया.उसे चार-पांच की दूरी पर गंगा का पानी पीने की चाह की. वह गंगा की तरफ उड़ने लगा. रास्ते में वह बुद्धन नामक गरीब बूढ़े के खपरैल के पास के नीम के पेड़ पर बैठा.
बुद्धन पचास साल का था उसका बेटा गोकुल १५-१६ साल का लड़का था.
वह काम के लिए गया और खाली हाथ लौटा. लौटने में देरी हो गयी.उसने पिताजी से देरी के कारण जो बताया,उससे उसके उच्च चरित्र का पता चलता है.उसको उस दिन की मजदूरी नहीं मिली.इंजीनियर के कहने पर ओवेर्सियर ने मजदूरी नहीं दी.सब चले गए.गोकुल को रास्ते पर एक रुपयों से भरा बटुवा मिला. गरीबी हालत में भी उसको उन रुप्योंवाले की उदासी और परेशानी का ही ध्यान आया. उसको मालूम हो गया कि वह बटुआ एक मेहता का है. तुरंत वह मेहता की तलाश में गया. मेहता का बटुवा सौंपा. मेहता बहुत खुश हुए.वे गोकुल को रूपये देने लगे. गोकुल ने उसे न लिया.
पिता जी को अपने बेटे की ईमानदारी पसंद आयी.पिताजी ने पुत्र से कहा कि तुम उधार ले सकते हो.गोकुल ने कहा कि उधार लेने की बात उस समय आयी ही नहीं.
आनंदातिरेक से वे बोल न सके.बुद्धन को लगा कि उसके क्षुधित और निर्जीव शरीर में प्राणों का संचार हो गया.वह पुत्र से बोला-अच्छा ही किया बेटा,यह उधार माँगना भी एक तरह का माँगना होता है.भगवान ने तुझे ऐसी बुद्धि दी है,मैं तो यही देखकर निहाल हो गया.दो-दिन की भूख हमारा कुछ बिगाड़ नहीं सकती.
चातक पुत्र ने यह सब सुना,बाप -बेटे की गरीबी में भी आत्मसम्मान और त्याग से उसकी आँखों से आँसू झरने लगे. वह गंगा की ओर उड़ना तजकर अपने कोटर पहुँचा . दुसरे ही दिन वर्षा हुई. उसको वर्षा के कारण चार दिन का उड़ान सात दिन हो गए.
कहानी कला की दृष्टी से कहानी की विशेषताएं:-
कथावस्तु:- ईमानदारी और आत्मसम्मान से जीना,कुल गौरव की रक्षा करना आदी सीख देना कथावस्तु है. इस कथावस्तु में लेखक ने चातक पक्षी द्वारा पोखरी के प्रढूषण,स्वार्थ आदि पर चित्रण किया है.बुद्धन और गोकुल के द्वारा गरीबी में भी उदार और ईमानदार रहने का चित्रण है.
पात्र: कहानी के पात्र हैं चातक,चातक पुत्र, बुद्धन ,गोकुल. ये सारे पात्र कहानी के लिए आवश्यक है. लेखक अपने उद्देश्य तक पहुँचने इन पात्रों का सही प्रयोग किया है.चातक -पुत्र द्वारा पानी प्रदूषण का जिक्र किया है.प्रदूषित पानी न पीकर चार मील की गंगा की ओर जाना,रास्ते में बुद्धन की झोम्पडी के पास के नींम के पेड़ पर बैठना,बुद्धन और गोकुल के संवाद सुनना,चातक पुत्र के विचार परिवर्तन आदि इन पात्रों के द्वारा सफल रूप में हुआ है.
संवाद:-चातक पुत्र और चातक की बातों से चातक पुत्र अपना खानदानी गुण और मर्यादा बदलना चाहता है. बुद्धन और गोकुल के संवाद से चातक पुत्र के बदले विचार . इस दृष्टी से संवाद सफल है.
उद्देश्य :-ईमानदारी से रहना,दूसरों से कुछ न माँगना, खानदानी आचार-विचार का पालन करना आदि सिखाना उद्देश्य है. इसमें सफलता मिली है.
शीर्षक :-कोटर और कोठरी - एक जंगल और दूसरा गरीबों की झोम्पडी; दोनों में महान गुण; इस दृष्टी से शीर्षक भी उचित है.
इस प्रकार कहानी कला की दृष्टी से कहानी सफल है.
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३. उसने कहा था कहानीकार :चंद्रधर शर्मा 'गुलेरी'
कठिन शब्दार्थ :-
मरहम लगाना=दवा लगाना
तरस खाना =दया दिखाना
सताना =तंग करना
उदासी के बादल फटना=दुःख दूर होना
चकमा देना=धोखा देना
किलकारी =खुशी की
पैरवी करना=
ख़िताब=उपाधी
नीलगाय=
लेखक परिचय :-
सारांश:
चंद्रधर शर्मा "गुलेरी" की यह कहानी उनको हिंदी कहानी साहित्य गगन में चार चाँद लगा दिये।
लहनासिंह अपनी एक पक्षीय प्रेयसी के पति और पुत्र के प्राण बचाने अपने प्राण देता है.इस कथानक को मर्मस्पर्शी ढंग से लिखकर लेखक ने पाठकों के दिल में स्थायी स्थान पा लिया।
अमृतसर के चौक की एक दूकान पर बारह साल का एक लड़का और आठ साल की लड़की अकस्मात् मिलते हैं।दोनों एक दूसरे से परिचित होने के बाद रोज़ लड़का लड़की से पूछता है कि क्या तेरी शादी हो गयी। वह रोज "धत" कहकर दौड़ जाती है। एक दिन लड़की ने 'हाँ' कहा और उसके प्रमाण में रेशम से कढ़ा हुआ सालू दिखाया और भाग गई।
लड़के के मन में उस लड़की से प्रेम था। लेखक ने उसके प्रेम को यों लिखा है ---लड़की भाग गयी,पर लड़के रस्ते में एक लड़के को मोरी में ढकेल दिया। एक छाबड़ीवाले के दिन -भर की कमाई खोयी,एक कुत्ते पर पत्थर मारा;एक गोभीवाले के ठेले में से दूध उंडेल दिया;सामने नाहकत आती हुयी किसी वैष्णवी से टकराकर अंधे की उपाधी पायी,तब कहीं घर पहुँचा। उसके एक पक्ष प्रेम को लेखक दर्शाने के बाद की कहानी पच्चीस साल के बाद शुरू होती है। यह अंतर में इतना सम्बन्ध है कि कहानी और रोचक बन जाती है. लड़के का नाम लहना सिंह है।
अमृतसर बाज़ार की उपर्युक्त घटना के बाद जर्मन की युद्ध भूमि के खंदकों में कहानी जुड़तीहै।
वहाँ लुधियाना से दस गुना जाड़ा है। वजीरा सिंह उस पलटन का विदूषक था। उसी के कारण वहाँ की उदासी खुशी में बदल जाती है।
लहनासिंह बड़ा होशियार था। वहाँ के सूबेदार वज़ीर सिंह था। उसका बेटा बोधा सिंह था। एक बार लहनासिंह छुट्टियों में सूबेदार के यहाँ गया। तभी उसको मालूम हो गया कि सूबेदारनी वह लड़की थी जिसे वह अमृतसर के बाज़ार में मिला करता था। तब सूबेदारनी ने कहा कि मेरे पति और बेटे की रक्षा करना। तब वह यह घटना भी याद दिलाती है कि अमृतसर केबाजार में एक दिन तांगेवाले का घोडा दहीवाले की दूकान के पास बिगड़ गया था। उस दिन लहनसिंह ने उस लड़की के प्राण बचाये थे। वैसे ही बचाना। तब से लहना सिंह उन दोनों की देखरेख करता था। इसको पाठक तभी समझ सकते हैं जब लहना शत्रुओं से वज़ीर सिंह और बोधसिंह को सुरक्षित भेजकर गोली खाकर मृत्यु की अवस्था में पुराणी स्मृति में अंतिम घड़ी में है। यही हृदयस्पर्शी चित्रात्मक वर्णन है।
जर्मन का एक सैनिक अफ्सर भारतीय लपटन साहब बनकर आया था। उसकी शुद्ध उर्दू से लहनासिंह को मालूम हो गया कि वह छद्मवेशी जर्मनी है। उसने सिगरेट दी ;और बताया कि नीलगाय के दो फुट सिंग थे। इन सब से सतर्क हो गया.
तुरंत वह सूबेदार को खबर दी और भेज दिया। केवल आठ ही भारतीय वीर सिपाही सत्तर से ज्यादा जर्मन
सिपाहियों को मा रने में समर्थ हुए। नकली लपटन साहब के हाथ जेब में हाथ थे। उसी की गोली से लहना घायल हो गया। फिर भी सूबेदार और बोधासिंह को अमबुलंस में सुरक्षित भेज दिया। तब उसने बोधासिंह से सूबेदारनी को खबर दी कि मुझसे उसने जो कहा था ,वह मैंने कर दिया।
इन पहली स्मृतियों और सूबेदारनी की बात पालन करके लहनासिंह चल बसा। यही उसने कहा था।
कुछ दिन पीछे लोगों ने अखबारों में पढ़ा --
फ्रांस और बेल्जियम --६८ वीं सूची --मैदान में घावों से मारा -नं ०. ७७ सिख राइफ़ल्स जमादार लहनासिंह।
वास्तविक कारण केवल लहनासिंह को ही मालूम था। अपने लड़कपन के अबोध प्रेम निभाने जान दी है। कितना बड़ा त्याग; आदर्श प्रेम में प्राण देकर सूबेदारनी की जान बचाना त्याग की चरम सीमा है.
कहानी कला की दृष्टी से कहानी की विशेषताएं:
कथानक:- चंद्रधर शर्माजी की कहानी "उसने कहा था" का कथानक बचपन के अज्ञात प्रेम के लिए प्राण त्यागना वह भी सूबेदारनी ने कहा था ; मर्मस्पर्शी कहानी है.; इस दृष्टि से कहानी सफल है.
पात्र :-लहनासिंह ,वजीर सिंह ,बोधा सिंह,सूबेदारनी ; ये चारों पात्र कहाने को सिलसिलेवार ढंग से विकास करते हैं.सूबेदारनी और लहनासिंह के प्रथम मिलन,पच्चीस साल के बाद पुनः मिलना, सूबेदारनी पुरानी बचाव की घटना याद दिलाकर अपने पति और बच्चे की सुरक्षा की प्रार्थना, ,बोधा की जान बचाना,खुद घायल होकर प्राण त्यागना कितना मर्स्पर्शी चित्रात्मक शैली. पात्रों की दृष्टि से कहानी सफल है.
कथोपकथन: कथोपकथन अत्यंत रोचक है. लहना--तेरी कुडमाई हो गयी;
लडकी =हाँ,देखो रेशम का सालू.
लड़के का तेज़ भागना,कुत्ते पर पत्थर फेंकने आमने आनेवालों पर टकराना कितना यथार्थ चित्रण.
सूबेदार और बोधा को आम्बुलंस में बिठाने के बाद लहना सूबेदारनी को सन्देश देता है:
जब घर जाओ तो कह देना कि मुझसे जो उसने कहा था , वह मैंने कर दिया.
प्राणाघात सहते हुए ---अब आप गाडी पर चढ़ जाओ! मैंने जो कहा वह लिख देना और कह भी देना.
गाडी के जाते ही लहना लेट गया! 'वजीरा,पानी पिला दे और कमरबंद खोल दे. तर हो रहा है.
कितना ह्रदय स्पर्शी संवाद.
चरम सीमा ;-पुरानी स्मृतियाँ ; और उसके कारण पाठकों को वास्तविक त्याग का पता चलना; लहना का प्राण पखेरू उड़ जाना;
शीर्षक : शीर्षर कहानी की सफलता के लिए अत्यंत उचित है. सूबेदारनी ने कहा; बोधा की जान बचाई; और खुद जान गंवा दी.
देश-काल वातावरण: अमृतसर की गली में इक्केगादिवाले की भाषा ,बचो खालसाजी,हटो भाई जी,हटो बाछा.,जीने जोगी. पंजाबी शब्द ; कुडमाई हो गयी,धत, ,और जर्मन खंदकों का सजीव चित्रण , आदिमें लेखक की शैली तारीफ के योग्य है; फिर अंतिम घड़ी में लहना की स्मृतियों का चित्रामक शैली सचमुच आदर्श कहानी है.
भाषा शैली: कहानी पंजाब की गली और बाज़ार से शुरू होती है;उसके अनुसार पंजाबी शब्द मिलते है; कान पकना,राह खोना,अंधे की उपाधी पाना,,मत्था टेकना आदि मुहावरों का प्रयोग. चित्रात्मक वर्णनात्मक शैली;
इस प्रकार गुलेरी जी की यह काहानी सभी दृष्टियों में सफल है.
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4.सिक्का बदल गया. --
४.सिक्का बदल गया----कृष्णा सोबती
कठिन शब्दार्थ :
पौ फटना---सबेरे होना
नज़र उठाना- देखना
प्रतिहिंसा =बदला
विचलित होना =लाचार होना
संकेत करना =इशारा करना
आहत=दुखी
सारांश : देश की आजादी हुयी; देश में हिन्दू -मुस्लिम कलह,हत्या आदि के बाद शरणार्थी देश छोड़कर चलने लगे. सबको अपनी संपत्ति छोड़ शरणार्थी मुकाम भेजे गए. जिसका जीवन अधिकार,सत्ता, आडम्बर पूर्ण था, वे सब खोकर शरणार्थी मुकाम में रहे. इसीका चित्रण है "सिक्का बदल गया".शासन बदल गया तो जीवल शैली ही बदल जाती है.
इस कहानी की नायिका की मनोदशा का सही चित्रण हुआ है. शाहनी खद्दर की चादर ओढ़े चनाब नदी में राम .राम करके नहाकर बहार आयी तो क्रांतिकारियों के अगणित पाँवों के निशान थे. उसको इस प्रभात की मीठी नीरवता में भयावना-सा लग रहा था. शाहजी की लम्बी चौड़ी हवेली में अकेली है.शाहनी ,शाह की पत्नी है; सबकी मदद कर रही थी; शेरा की माँ स्वर्ग सिधारी तो उसको पालने लगी; शेरो की पत्नी हसैना को बहुत चाहती है; शेरा उसके मुग़ल क्रान्तिकारियीं से मिलकर उसकी हत्या करने की स्थिति में आ गया. अब वह शरणार्थी मुकाम में पुराणी स्मृतियों में पीड़ित है. उसको पुराने शाही जीवन की यादें है, उस चनाब नदी के इलाके में उसका आदर था. अब वह अनाथिनी है. लोग जब शरणार्थी मुकाम जाने लगी ,तब दुखी हो गए. थानेदार दाऊद खान मुकाम में ले आने आया तो सोना-चांदी लेकर जल्दी निकलने को कहा. एक जमाने में वह शाहनी की सेवा करता था. शाहनी ने उसकी मदद की थी. . शाहनी अपने साथ कुछ भी लेने तैयार नहीं थी.
शाहनी ने कहा--सोना-चांदी सब तुम लोगों के लिए है. मेरा सोना तो तो एक ज़मीन में बिछा है.
सब शानी के मुकाम की ओर जाने से दुखी थे. अंत में वह मुकाम पहुँच गयी.
हिन्दू -मुस्लिम कलह देश को टुकड़े करने का प्रभाव शोक प्रद था.
रात को शाहनी जब कैम्प में पहुँचकर ज़मीन पर पडी तो लेटे-लेटे आहत मन से सोचा,"राज़ पलट गया है...सिक्का क्या बदलेगा? वह तो मैं वहीं छोड़ आयी....
शाहनी की आँखें और भी गीली हो गयी.
कलह के कारण आस-पास के हरे-हरे खेतों से . घिरे गाँवों में रात खून बरसा रही थीं. राज पलटा खा रहा था और सिक्का बदल रहा था. रूपये ,डालर,यूरो आदि.
कथानक: देश की आज़ादी की लड़ाई ,बंटवारा,हिन्दू -मुग़ल की अशांति, हत्याएं,जिसको सत्ता था ,वे सत्ता हीन. शरणार्थी कैप; गद्देदार बिस्तर पर जो सो रहे थे,वे दीनावस्था में पीड़ित ज़मीन पर सो रहे थे. इस दर्दनाक वातावरण के आधार पर कथानक सफल है.
पात्र : शाहनी विधवा,बड़े हवेली की मालकिन आज अकेली थी; उससके अधीम जो थे ,वे दूर चले गए; उससे पालित पूत शेरा मुग़ल क्रांतिकारियों से मिलकर उसकी हत्या करने की योज़ना में शामिल था. उनकी पत्नी हसैना था.थानेदार दाऊद खां उसे कैम्प ले जाने आगे आ गया. ट्रक पर वह चढी तो लीग के खूनी शेरे का दिल टूट रहा था.इस प्रकार शाहनी के जाने से सभी दुखी थे. इस प्रकार सारे पात्र सफल हैं.
कथोपकथन:--शाहनी अपने पालित पुत्र शेरा के लीग से मिलना पसंद नहीं . उसने शेरे को बुलाया. वह शेरे की पत्नी से यह बात प्रकट करती है--हसैना, यह वक्त लड़ने का है? वह पागल है तो तू ही जिगरा कर लिया कर.फिर अपने प्रेम प्रकटकर बोली ---"पगली, मुझे तो लड़के से बहू अधिक प्यारी है इस संवाद से शाहनी के स्नेह का पता चलता है.
दूसरा संवाद तब होता है ,जब थानेदार दाऊद खां सोना -चांदी बाँध लेने की बात कहता है. तब शाहनी की उदासी वाक्य--"सोना -चाँदी. वह सब तुम लोगों के लिए है.मेरा सोना तो एक ज़मीन में बिछा है.
नकदी प्यारी नहीं!यहाँ की नकदी यहीं रहेंगी. इससे शाहनी के उदार चरित्र का पता लगता है. इस दृष्टि से कहानी सफल है.
उद्देश्य : देश के बंटवारे और बेकार खून-हत्याएँ , अमीर शाही जीवन बितानेवालों की दुर्दशा आदि का चित्रण करना लेखक का उद्देश्य है. इस दृष्टि से कहानी सफल है.
शीर्षक :- सिक्का बदल गया उचित शीर्षक है.शासन के बदलते ही सिक्का भी बदल जाता है. बँटवारे के कारण सब कुछ बदल गया. हिन्दू-मुस्लिम की एकता,प्यार -मुहब्बत चला गया .
इस प्रकार कहानी कला की दृष्टि से कहानी सफल है.
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5.पुर्जे लेखक :इब्राहिम शरीफ
कठिन शब्दार्थ:
चेहरा मलिन लग्न= उदासी रहना
चल बसना =मर जाना
निदान - जांचकर पतालगाना
काबू =वश
वाकई =सचमुच
जूँ तक नहीं रेंगना =कोई असर न रहना
हौला =धीरे
लोट-पोट होना=
ज़ाहिर होना =प्रकट होना
हिम्मत हारना =धैर्य खोना
लहसन =गार्लिक பூண்டு
बेमुरव्वती -अनादर
अदना =नीच
चेहरा तमतमा आना=गुस्सा होना
क्षोब होना=दुःख होना
रफ्तार =वेग,तेज़
सारांश :
` इस कहानी में डाक्टर की लापरवाही ,निर्दयता और मध्य वर्ग की आर्थिक परेशानी,श्राद्ध का महत्त्व देना,साहित्य पढने पर नौकरी न मिलना आदि बातें सामाजिक उलझाने प्रकट करती है; इलाज के अभाव और डाक्टर का न आना माँ की मृत्यु के कारण बन जाते हैं.
भाई -बहन दोनों पढ़े लिखे हैं .बहन बी.ए डिग्री वाली थी. खूब सूरत थी; उसके योग्य वर न मिला;वर मिलने पर दहेज़ की समस्या; घर की आर्थिक दशा ख़राब थी. माँ को अनुभव हुआ बेटी को पढ़ाकर भूल हो गयी. बेटी जब अंतिम साल पढ़ रही थी ,पिता मर गए. भाई एम्.ए., साहित्य.
इसी बीच माँ के दाहिने हाथ बेकार हो गए. बहन ने डाक्टर को बुलाने का आग्रह किया. भाई डाक्टर बुलाने गया तो डाक्टर नहीं आये और कहा कि लकवा लगा होगा; लहसन का लेप करो.
घर में रूपये जो थे ,वे पिता के श्राद्ध के लिए थे. अकेले भाई के आते देख बहन चिल्लाई कि माँ की तबियत खराब होती जा रही है; डाक्टर को बुला लाओ; पर डाक्टर नहीं आये,वे एल.ऐ.एम् है. उन्होंने साफ बता दिया कि दवा नहीं है; मिलना मुश्किल है; फिर दवा का पुर्जा लिखकर दिया. घर आया तो बहन ने पुर्जे को टुकड़े -टुकड़े कर डाले.माँ की आँखों की रिक्तता चारों तरफ घिरने लग गयी थी.
डाक्टर के न आने से ,दवा समय पर नहीं मिलने से माँ चल बसी. मध्यवर्ग में ऐसा ही होता है.कहानी का सिलसिला मर्माघात है.
कहानी कला की दृष्टि से कहानी की विशेषताएं :-
कथानक: मध्य वर्ग की परेशानियां और डाक्टर की लापरवाही और निर्दयता दर्शाना कथानक है,इसको कहानी के आरम्भ से अंत तक ठीक ढंग से ले चलते है. इस दृष्टि से कथा सफल है.
पात्र : इसके चार पात्र हैं ;भाई,बहन,माँ,डाक्टर. चारों कहानी के विकास के लिए आवश्यक है. भाई और बहन माँ की बीमारी से दुखी है. डाक्टर की लापरवाही समाज का शाप है. डाक्टर को भाई लेने गया तो वे अपनी बेटी की शादी और खर्च की चिंता प्रकट करते है. शादी की दौड़-धूप करने की बात करते है. समाज में बिना रुपयों का जीना दुश्वार हो जाता है. साहित्य का स्नातकोत्तर भाई यह महसूस करता है कि मन्त्रों से ,कालिदास ,ठागुर,ग़ालिब के पढने से क्या लाभ; माँ की बीमारी दूर करने असमर्थ हूँ. मन्त्रों से माँ कैसे ठीक होगी.ये पात्र सामजिक दर्द भरी स्थिति का यथार्थ चित्रण लाने में समर्थ है.
संवाद:संवाद कहानी के कथानक को जोर देने में सफल है.
घर में श्राद्ध के पैसे हैं. उन पैसों से माँ का इलाज करना है. बेटी तैयार है तो माँ कहती है--
नहीं बेटा,भूलकर भी ऐसा मत करना.मैं मर भी जाऊँ,उसमें से एक पैसा न लेने दूँ...मरकर उन्हें क्या जवाब दूँगी.
भारतीय नारी श्राद्ध पर अपनी जान से अधिक विश्वास रखती है.
डाक्टर के बुलाने पर डाक्टर :-भई..बात यह है,लडकी की शादी है,अगले महीने ..बड़ी दौड़ धूप करनी पढ रही है. इधर मरीजों को देखने कम जा पा रहा हूँ. डाक्टर की इतनी लापरवाही; इस प्रकार कथोपकथन कहानीकार के उद्देश्य पर पहुंचाकर सफल रूप बन गया है.
भाषाशैली :-भाषा सरल और मुहावरेदार है.यथार्थ में आदर्श मिलता है. कान में जूँ न रेंगना,चेहरा तमतमा होना चेहरा मलिन होना जैसे मुहावरों का प्रयोग है.इस दृष्टी से कहानी सफल है.
शीर्षक : पुर्जे शीर्षक है. डाक्टर इलाज करने नहीं आया;केवल पुर्जे लिखकर दिया; इससे कोई फायदा नहीं. दवा नहीं दी. शीर्षक ठीक है.
अंत : माँ की मृत्यु बिना दावा के पुर्जे के कारण.धनाभाव ,उसके कारण डाक्टर का न आना ,मृत्यु;- यह अंत मर्मस्पर्शी है.
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6. गूंगे - रांघेय राघव
कठिन शब्दार्थ :
संकेत करना =इशारा करना
बासी =पुरानी
दम =पूँछ
मूक =मौन
प्रतिहिंसा =बदला
परखना =जाँचना
चुनौती देना=ललकारना
अवसाद =दुःख
सारांश :
रांगेय राघव ने "गूंगे" कहानी में एक गूंगे की व्यथा का मर्मस्पर्शी चित्रण किया है. समाज के शोषित-पीड़ित मानव के जीवन के यथार्थ मार्मिक चित्रण की कहानी है -"गूंगे "
चमेली के दो बच्चे हैं . एक लडकी और एक लड़का. नाम है शकुंतला और बसंता..
कहानी के आरम्भ में घर के काम करने एक गूंगे को बुलाते है.वह जन्म से बहरा था;इसी कारण गूंगा बन गया. चमेली उससे इशारे पर ही काम लेती.
गूँगा अनाथ था. उसके जन्म लेते ही उसके पिताजी मर गए. माताजी निर्दयी;वह भी उसे छोड़कर भाग गयी. उसको किसने पाला ,पता नहीं,पर जिसने पाला है,वे उसे बहुत मारते थे .
बेचारा गूँगा बिना थके काम करता; हलवाई के यहाँ कढ़ाई माँची;कपडे धोये;सब करने पर भी मार ही मिला. ये सब पेट के लिए सह लेता. इतनी बातें इशारे से ही गूंगे ने चमेली को समझाया.
चमेली दयालू थी;अनाथाश्रम के बच्चों के लिए रोती थी. उसने गूंगे को अपने घर में नौकर रख लिया .. चार रूपये वेतन ; गूंगा मान गया.
उसको बुआ मारती; बच्चे चिढाते; वह एक स्थान में टिकता नहीं था; जब चाहे भाग जाता और वापस आ जाता.एक दिन बसंता ने कसकर गूंगे के चपत जड़ दी. गूंगा उसे मारने हाथ उठाया,पर मालकिन के बेटे को कैसे मारता. उठे हाथ को रोक लिया. बेटे को मारने हाथ उठाना असहनीय बात थी. चमेली कुछ बोली तो वह समझ नहीं सका. चमेली को उस पर दया आ गयी. गूंगा क्रोध भरी मालकिन का हाथ पकड़ा तो चमेली को उस पर घृणा आयी; वह अपने बेटे से बलवान था, बेटे को न मारा; मारा तो उसने गूगे को गाली दी.बेचारा रोने लगा. चमेली उसे घर से निकाल दिया. चमेली की गाली सुन वह मंदिर की मूर्ती के सामान चुप खड़ा रहा.गुस्से में चमेली ने गूंगे को दरवाज़े के बाहर धकेलकर निकाल दिया.
करीब एक घंटे के बाद गूंगा वापस आ गया,गली के लड़कों के पीटने से उसका सर फट गया था. दरवाजे पर वह कुत्ते की तरह चिल्ला रहा था,
चमेली उसे चुपचाप देख रही थी; उस मूक अवसाद में युगों का हाहाकार गूँज रहा है..
वह गूंगा था.जिनके ह्रदय की प्रतिहिंसा न्याय और अन्याय को परखकर भी अत्याचार को चुनौती नहीं दे सकती,क्योंकि बोलने के लिए स्वर होकर भी -स्वर में अर्थ नहीं है.
एक गूँगे की दयनीय स्थिति का इससे अधिक कैसे चित्रण कर सकते हैं.
कहानी कला की दृष्टि से विशेषताएं:-
कथानक:-समाज के शोषित पीड़ित मानव के यथार्थ मार्मिक चित्रण कथानक है. गूँगे कठोर परिश्रमी,फिर भी समाज से घृणित दिल्लगी का पात्र. मार खाकर सिवा रोना; पेट के लिए काम करना.इसका सही चित्रण कहानी को सफल बनाता है.
पात्र : गूंगा,चमेली,उसके पति,उसकसंताने बसंता और शकुंतला. लेखक गूंगे की दर्दनाक दशा को चमेली द्वारा प्रकट करते हैं. चमेली उदार और दयालू थी; मानव स्वभाव के अनुसार मानसिक कमजोरी के कारण गूंगे पर पक्षपात. सारे पात्र कहानी को सफल बनाते है.
संवाद; चमेली बोलती है; गूंगा चुप; उसके रोने -हंसने चिल्लाने से करुणा का पात्र बनता है.
शीर्षक ; गूंगे --समाज से पीड़ित -शोषित गूंगे का मार्मिक चित्रण ही कथानक है. अतः शीर्षक उचित है.
चरमसीमा; चमेली गूंगे को जबरदस्त घर से निकालती है; यही चरम सीमा है.
अंत:गूगे का वापस आना; उसके सर पर चोट; दर्दनाक दृश्य ; अंत लेखक के उद्देश्य तक पहुंचा देता है.
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७.बदला -- आरिगपूडी
कठिन शब्दार्थ :
काले अक्षर भैंस बराबर== निरा अनपढ़
गौर =ध्यान
मिन्नत --निवेदन ,प्रार्थना
प्राण खाऊ =प्राण लेनेवाला
घूसखोरी =रिश्वत
तहकीकात =पूछताछ
बीयाबान =उजाड़ा
पोल खुलना =रहस्य प्रकट होना=भंडा फोड़ना
भेद --रहस्य
सारांश :
आरिगपूड़ी ने इसमें भ्रष्टाचारों और रिश्वत खोरों की निर्दयता का चित्रण किया है. सरकारी अस्पताल में मामूल के बिना रोगियों को सही इलाज नहीं मिलता. लेखक का उद्देश्य ग्रामीण ,पीड़ित अनपढ़ कोटय्या पर हुयी निर्दयी अत्याचार को प्रकाश में लाना था.
सारांश :
धम्म पट्टनम में एक सरकारी अस्पताल है. उसमें कदम कदम पर घूसखोरी.भ्रष्टाचार ,दिन दहाड़े "मामूल" वसूला जाता है. लोग वहाँ देने के आदि हो गए,कर्मचारी लेने के.
कोटय्या अनपढ़ गरीब किसान था. वह अपनी गर्भवती पत्नी सुशीला को इलाज के लिए अस्पताल ले आया.उसके गाँव के आसपास बीस मील तक कोई अस्पताल न था;कोई डाक्टर.
धम्मपटटनम अस्पताल में फाटक से मामूल शरू हुआ. चवन्नी देकर अन्दर गया. अस्पताल में घुसते ही पत्नी बेहोश हो गयी. अस्पताल के कोई भी कर्मचारी कोटय्या की पत्नी के इलाज की मदद करने नहीं आये. अंत में डाक्टर पद्मा वहां आयी. पद्मा ने कोटय्या की पत्नी को भरती करवा दिया. वह पत्नी के लिए प्रार्थना करने लगा.
कुछ देर बाद ,उसको बताया गया कि प्रसव के पहले ही उसकी पत्नी चल बसी. लाश के देखने पर पता चला कि इलाज नहीं किया गया. लाश उठाने किसीने मदद नहीं की.
वह अपनी मालिक की बैल गाडी से पत्नी को लेकर आया था; उसी गाडी में लाश लिटाकर वापस ले गया. उसके मन में दुःख,क्रोध,प्रतिकार,गाडी के चर्मर की तरह गुन-गुना रहे थे.
गाँव में अंतिम संस्कार करके तेरहवीं के होते ही कोटय्या धम्मपट टनम लोटा. वह अस्पताल के सामने भूख हड़ताल करने लगा.तीन दिन के बीतने पर भी किसी ने उस पर ध्यान नहीं दिया. उसके पास एक कपडे पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था --"इस अस्पताल से प्राण खाऊँ घुखोरी हटाओ."
चंद दिनों में उसके हड़ताल के समर्थन में शहर के दो -तीन नेता आये,देखते देखते शिकायतों का ढेर -सा लग गया. तहकीकात का इंतजाम हुआ. पूछ-ताछ में बहुत सी बातें प्रकाश में आयी. कई बातें डाक्टर पद्मा को मालूम नहीं थीं. पद्मा अपने बयान देने तैयार हुयी. वहां तो सब के सब भ्रष्टाचारी थे; अपने रहस्य खुलना नहीं चाहते, सब भ्रष्टाचारी मिलकर डाक्टर पद्मा की हत्या करके कोटय्या को अपराधी ठहराने में सफल हो गए. कोटय्या कैद हो गया.
पत्नी के चल बसते ही वह मरने तैयार था. समाज में कुछ करना चाहता था. वह न जानता था कि उसके हाथ पैर बांधकर .उसे धकेलने का यूँ प्रयत्न किया जाएगा.
निर्दयी संसार एक ईमानदार अनपढ़ कोटय्या को हत्यारा साबित कर दिया.
कथानक : लेखक आरिगपू डी ने भ्रष्टाचारियों के अत्याचार का भंडा फोड़ने का कथानक ले लिया. कोटय्या के द्वारा ग्रामीण अनपढ़ पर होने वाले सरकारी भ्रष्टाचारियों की निर्दयता का चित्रण किया है.
पात्र : कोटय्या ,डाक्टर पद्मा इस कहानी के पात्र हैं. अनपढ़ कोटय्या प्राण खाऊँ गुस्खोरी हटाने हड़ताल किया. भंडा फोड़ने का सैम आया तो भ्रष्टाचारियों ने डाक्टर पद्मा की हत्या करके कोटय्या को खूनी सिद्ध करने में सफल हुए.
ग्रामीण कोटय्या ने चिल्लाया कि मैं निर्दोष हूँ ,मैंने यह हत्या नहीं की है. मामूल के आदी मुलाजिम मुस्कुरा रहे थे, पर उनके मन कह रहे थे..जो उनके बारे में और भेद बता सकती ,वह डा . पद्मा जान से गयी और अपराध भी उनके सर पर न आकर,किसी गँवार के सिर पर न आकर ,किसी गँवार के सर पर मढ दिया गया था. हो भला इस कोटय्य का.
संवाद: आत्मकथन,संवाद आदि लेखक ने सफल बनाया है.अस्पताल में ... कोटय्या का आत्मकथन :
"कुछ भी हो ...सुशीला जीती रहे,बच्चे हो तो भला पर वह जिन्दा रहे,हे भगवान् ..".
कैद होते ही कोटय्या गला फाड़कर चिल्ला रहा था --मैं निर्दोष हूँ ,मैंने यह ह्त्या नहीं की है. मैं कुछ नहीं जान्त्सा,मुझ पर यह झूठ-मूठ हत्या का अपराध थोपा जा रहा है.. ऐसे संवाद कहानी को ह्रुदय्स्पर्शी बनाने में सफल है.
शीर्षक : "बदला " शीर्षक उचित है. कोटय्या भ्रष्टाचारियों से बदला लेना चाहता था.भ्रष्टाचारियों ने उससे बदला लिया है. शीर्षक उचित है.
चरम सीमा :-डाक्टर पद्मा की हत्या चरम सीमा है.
उद्देश्य : भ्रष्टाचार और उसकी निर्दयता को प्रकाश में लाना लेखक का उद्देश्य था. इसमें सफलता मिली है.
अंत : कहानी का अंत मर्म स्पर्शी और लेखक के उद्देश्य तक पहुंचाता है.
इस प्रकार कहानी कला की दृष्टि से कहानी सफल है.
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८. वापसी
लेखक :उषा प्रियंवदा
कठिन शब्दार्थ :
नज़र दौडाना =देखना
नाक -भौं चढ़ाना =नफरत से देखना
निस्पंग दृष्टि = एकटक देखना
खिन्न होना =दुखी होना
फूहड़पन = अत्यंत अनुपयोगी
ताने देना =गाली देना (मज़ाक भरे )
ठगे जाना =धोखा देना
विविध =नाना प्रकार ,कई तरह
वार्तालाप =संभाषण.
सारांश :
गजाधर बाबू पैंतीस साल की नौकरी के बाद रिटयर हो गए. उनको रेलवे क्वार्टर खाली कर ने का दुःख था. घर जाने की खुशी में भी उनको दुःख था कि एक परिचित .स्नेही,आदरमय ,सहज संसार से उनका नाता टूट रहा था. फिर भी अपने घरवालों से मिलकर रहने का आनंद आ रहा था. अपने सेवाकाल में अधिकांश समय वे अकेले ही बिता रहे थे.
घर जाने के बाद वे अपने को अकेले महसूस करने लगे. उनकी हर बात उनके घरवालों को कडुवी लगी.
उनका बेटा नरेन्द्र फ़िल्म गाना गा रहा था.उनकी बहु और बेटी वसंती हँस रही थीं. उनकी खुशी में भाग लेने गजाधर चाहते थे. पर उनके आते ही सब चले गए. वे अपने को अकेले पाये. वे उदास हुए. पत्नी पूजा करके वापस आयी. पति के अकेले बैठे देखकर पूछा तो गजाधर ने इतना ही कहा --अपने=अपने काम में लग गए.
पत्नी चौके में गयी तो देखा जूठे बर्तनों का ढेर था. वह काम में लग गयी. गजाधर को चाय और नाश्ते समय पर न मिले. उसको रेलवे के नौकर गणेश की याद आयी;वह समय पर चाय पिलाता था.
गजाधर अपनी बेटी से अपनी पत्नी को आराम देने के विचार से कहा कि शाम का खाना तुम बनाओ; सुबह का भोजन भाभी बनाएंगी. पिताजी का यह कहना वसंती को पसंद न था.
गजाधर को अपने बिस्तर की समस्या हुयी; उनको हर बात में दखल देना घरवालों को पसंद नहीं आया. गजाधर ने अनुभव किया कि वह पत्नी और बच्चों के लिए केवल धनोपार्जन के निमित मात्र है.
एक दिन नौकर के काम ठीक तरह से न करने की चर्चा हुयी तो नौकर का हिसाब कर दिया. घर की आमदनी भी कम थी. खर्च ज्यादा है.
बेटे को बहु ने इसकी सूचना दी. इस घटना के बाद नरेन्द्र,अमर,वसंती सब के सब गजाधर की आलोचना करने लगे.
पत्नी भी उनके अनुकूल बातें नहीं की.
गजाधर ने पुनः नौकरी करने का निश्चय कर लिया. उनको एक मिल में काम मिल गया.दुसरे दिन पत्नी से सीधे कहा कि मुझे सेठ रामजीमल की चीनी मिल में नौकरी मिल गयी. परसों जाना है. पत्नी तैयार नहीं हुयी. उसने कहा कि मैं चलूंगी तो क्या होगा.
वे घर से निकले तो किसीने न रोका. नरेन्द्र ने बड़ी तत्परता से बिस्तर बाँधा. वे चले गए. घरवालों ने इसकी चिंता न की.बहु ने अमर से पूछा ,"सिनेमा ले चलिए.वासंती भी तैयार थी. सिनेमा जाने. गजाधर की पत्नी चौके में चली गयी.पत्नी को भी पति की चिंता नहीं. वह कहने लगी--बाबूजी की चारपाई कमरे से निकाल दे. उसमें चलने तक को जगह नहीं है.
रिटायर होने के बाद पुरुषों की दयनीय दशा का चित्रण खूब हुआ है.
कथानक : रिटायर आदमी की मनः स्थिति और घरवालों के लापरवाही पर समाज का ध्यान दिलाना कथानक है.आरम्भ से अंत तक हर बात में गजाधर उदासीनता का ही सामना करता है. अपने बेटे.बेटी ,बहु की खुशी में भाग ले न सके. पुत्र,बहु,बेटी सब उसकी शिकायत माँ से करते हैं. वे वापस नौकरी को निकलते हैं. उनके जाते ही सिनेमा जाने की इच्छा प्रकट करते हैं. माँ पति की चारपाई निकालने का आदेश देती है. किसीको गजाधर वापस चले गए ,इसकी चिंता नहीं.
पिता तो धनोपार्जन के लिए है. इसप्रकार कथानक सफल है.
पात्र : वापसी कहानी के पात्र हैं -गजाधर,नरेन्द्र ,वसंती, गजाधर की पत्नी ,अमर की बहू आदि. यह एक पारिवारिक कहानी हैं. पिताजी गजाधर पैंतीस साल की सेवा के बाद रिटायर हो गए. उनके वापस नौकरी जाने के कारण ये पात्र हैं.
परिवार से अधिकांश अकेले रहकर रिटायर के बाद परिवार के सदस्यों से मिलकर रहने आते हैं.लेकिन उनके पुत्र ,बेटी ,बहू सब के सब उनको घर में रहना पसंद नहीं करते.इस "वापसी" शीर्षक की सफ्सलता में इन पात्रों का मुख्य भाग है.
कथोपकथन : कथोपकथन की दृष्टी से कहानी सफल है. गजाधर के बारे में अपनी मान से नरेन्द्र,वासंती,बहू सब
शिकायत करते हैं. गजाधर इनको सुनकर पुनः नौकरी जाने तैयार हो जाते हैं.
नरेंद्र ---अम्मा ,तुम बाबूजी से कहती क्यों नहीं. बैठे-बिठाए कुछ नहीं तो नौकर ही छुड़ा लिया.
वसंती-मैं कालेज भी जाऊँ, और लौटकर झाडू भी दूं?
अमर----बूढ़े आदमी है, चुपचाप पड़े रहें. हर चीज़ में दखेल क्यों देते हैं.
पत्नी: और कुछ नहीं सूझा तो तुम्हारी पत्नी को ही चौके में भेज दिया. वह गयी तो पंद्रह दिन का रेशन पांच दिन में बनाकर रख दिया.
नौकरी वापस जाने ये कथोपकथन ही चरम सीमा है.
भाषा शैली : सरल भाषा है. यथार्थ भारतीय परिवार का चित्रण है. मुहावरों का प्रयोग भी है जैसे नज़र दौडाना,नाक -भौं चढ़ाना, आदि.
शीर्षक : वापसी शीर्षक उचित है.गजाधर रिटायर होकर परिवार के सदस्यों के साथ रहने आये. फिर नौकरी करने वापस जाते हैं. सामज में पिताजी के प्रति सहानुभूति जगाने में कहानी सफल है.
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९.डिप्टी कलक्टरी लेखक :---अमरकांत.
कठिन शब्दार्थ :---
मुवक्कील =client
म्हार्रीर =मुंशी clerk
पीढा =आसन stool
तश्तरी =छोटी थाली
मुख्तार =कानूनी सलाहकार
चौका-चूल्हा चलना=भोजन चलाना
बिगड़ जाना =गुस्सा होना
खुराफात =झगडा
आरोप करना=इल्जाम लगाना
तल्लीनता =मग्नता
आघात= चोट
जेहन=बुद्धि ,याद करने की शक्ति
निहारना=देखना
दातौन करना=दांत साफ करना
झेंप जाना=लज्जित होना
ताड़ना=सजा /दंड
गुरुमुख होना ;=गुरु कृपा
जाहिर करना=प्रकट करना
इत्मीनान=विशवास
महरिन=पानी लानेवाली नौकरानी
दृष्टिगोचर होना=दिखाई पड़ना
लानत=धिक्कार
धुरंधर =उत्तम
दस्त=हाथ
दस्त पतला =loose motion
बदपरहेज़ी =असंयम / मनमाना खाना
सारांश :-
शकल दीप बाबू अपने बेटे नारायण (बबुआ) की डिप्टी कलक्टरी बनने की कामना पूरी होने पर बेहद खुश होते हैं.आरम्भ से अंत तक वात्सल्यमय पिता की मनो भावना का यथार्थ चित्रण मिलता है.
शकल दीप बाबू मुख्तार थे. उनकी पत्नी जमुना थी. उनके दो बेटे थे.बड़े का नाम नारायण था,बबुआ के नाम से पुकारा जाता था. उसकी उम्र २४ साल की थी; छोटा बारह साल का था उनका नाम टुनटुन था.
शकलदीप बाबू मुख़्तार थे. उनकी आमदनी केवल चौ के-चूल्हा चलाने काफी था.
नारायण को नौकरी नहीं मिली; वह डिप्टी कलक्टर बनना चाहता था. पिताजी को अपने बेटे पर शक था; उनपर भरोसा भी नहीं था.
नारायण दो बार डिप्टी कलक्टरी की परीक्षा में सफल नहीं हुआ. शकाल दीप बाबू का विचार था कि साधारण नौकरी भी नहीं मिली तो डिप्टी कलक्टरी कैसे ?
वात्सल्यमयी माता ने अपने पति से कहा --दो -दिन से बबुआ उदासी है. दो-तीन दिन में फीस भरना है. आपसे मांगने डरता है.
बेटे पर के अविश्वास के कारण वे पहले रूपये देने तैयार नहीं थे. फिर भी पिताजी का कर्तव्य निभाने तैयार हो गए, बाहर गए और डेढ़ सौ रुपये लाये और पत्नी से कहा कि १०० रूपये बेटे को दो और ५० रूपये घर के खर्च के लिए.
वे खुद सोचने लगे कि गलती किसीकी नहीं. सारा दोष तो मेरा है.देखो न,मैं बाप होकर कहता हूँ कि लड़का नाकाबिल है.
नहीं,नहीं,सारी खुराफात की जड़ मैं ही हूँ,और कोई नहीं. उस दिन के बाद अपने बेटे को सभी प्रकार की सुविधा करने लगे. देखा कि बीटा काफी मेहनती है. १९ घंटे पढने में तल्लीन है. बेटे को मेवा,सिगरेट आदि की भी व्यवस्था करने लगे.
बेटा इलाहाबाद में इम्तिहान देने निकला तो शकल रेलवे स्टेशन पहुंचे.रेल निकलने लगी तो पिताजी बच्चे की तरह चलती गाडी की ओर दोड़े और रूपये की पुडिया दी और आशीषें.शकल बाबू की वात्सल्यता का यथार्थ चित्रण लेखक ने किया है.
नारायणको उसके परिश्रम का फल मिल गया. वह लिखित परीक्षा में उत्तीर्ण होकर इंटरव्यू गया. शकाल्दीप बाबू की प्रार्थना सफल हुयी. इससे बीच वे राधेश्याम के भक्त बन गए.
उनका मित्र कैलाश बिहारी थे. दोनों ने अपने -ओने पुत्र की होशियारी की खूब तारीफ करके बोल रहे थे .तब शकाल्दीप बाबू ने कहा कि मेरे बेटे का नाम पन्नालाल था, एक महात्मा ने कहा कि नारायण नाम ठीक है. एक दिन राजा बनेगा. अब डिप्टी कलक्टर बन गया;एक अर्थ में राजा ही हुआ.
सब ने बेटे की बधाई दी. . इतवार के दिन रिसल्ट दस बजे निकलेगा. वे मंदिर गए. बेटे की कामना पूरी होने प्रार्थना की.तब जंगबहादुर सिंह आये और बताया डिप्टी कलक्टरी का नतीजा निकल गया. दस लड़के लिए जायेंगे; आपके लड़के सोलहवाँ सत्रहवाँ में है. कुछ लड़के मेडिकल चले जाते; पूरी उम्मीद है कि नारायण बाबू ले लिए जायेंगे.
अथिक परिश्रम और चिंता से शकल की तबीयत अस्वस्थ हो गयी. वेबेटे के कमरे में गए. बेटे को सोते देख गद-गद स्वर में पत्नी से कहा बेटा सो रहा हैं पति-पत्नी दोनों एक दुसरे की ओर देखने लगे.
इसमें चित्रित है कि माता-पिता दोनों अपने बेटे की तरर्क्की की कामना में कितने चिंतित है. कितना ध्यान रखते है.
पारिवारिक कहानी के द्वारा लेखक ने सामाजिक जिम्मेदारी का चित्रण किया है.
कथानक : लेखक की कथावस्तु एक आदर्श पिता अपने परिवार और बेटे की प्रगति के लिए कितना चितित है ,कितना दौड़ धूप करते है, माता कैसे पुत्र को साथ देती है ;आदर्श पुत्र के गुण आदि दर्शाने के लिए बनी है. इस में कहानी सफल है.
पात्र :- इस के चार पात्र हैं. शकल दीप बाबू, उनकी पत्नी जमुना,बेटा नारायण आदि; कैलाश बिहारी, जंग बिहारी आदि शकल के मित्र हैं. ये सारे पात्र कहानी के विकास और आगे ले जाने में सफल हैं. कैलाश द्वारा नारायण के गुणों की प्रशंसा ,अपने बेटे की प्रशंसा, जंग बिहारी द्वारा सांत्वना और उम्मीद दिलाना आदि शकल दीप की मनोव्यथा दूर करने के लिए आवश्यक है.
संवाद:- जमुना --दो-दिन से बबुआ बहुत उदास है....
कह रहे थे,दो दिन में फीस भेजने की तारीख बीत जायेगी.
जमुना के इस संवाद से आगे कहानी का पता लग जाता है.
पिता का आत्मचिंतन---देखो न.मैं बाप होकर कहता हूँ कि लड़का नाकाबिल है. इस चिंतन के बाद बेटे की सुविधाएं देना कितना यथार्थ और आदर्श मिलता है.
इस प्रकार संवाद सफल है.
उद्देश्य : बेटे की सफलता के लिए पिता की चिंता,परिश्रम ,,महात्मा की भविष्य वाणी द्वारा भारतीय दैविक शक्ति दर्शाना,सच्ची मित्रता,आदर्श पति.पत्नी के चरित्र दिखाना ,माता-पिता की वात्सलता आदि उद्देश्य का सही चित्रण मिलता है.
भाषा शैली : भाषा सरल और मुहावरेदार भी है. पारिवारिक यथार्थ चित्रण में आदर्श भावना है.
शीर्षक :-डिप्टी कलक्टरी शीर्षक सोलह आने सही है.काहनी के आरम्भ से अंत तक नारायण के डिप्टी कलक्टरी को लेकर ही कहानी चलती है.
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१०. पंच लाईट लेखक:- फनीश्वरनाथ 'रेणु"
कठिन शब्दार्थ :-
पुण्याह --पवित्र दिन
ताब करना=शक्ति दिखाना /बल
चेतावनी=सावधानी
अलबत्ता =बेशक
बालना -जलाना
ढिबरी =मिट्टी का दिया
बतंगड़ =अधिक बोलनेवाला,बातूनी
गरी का तेल =नारियल का तेल
मायूसी छा जाना=उदासी फैलना
पुलकित होना=खुश होना
सारांश :-
फणीश्वर' रेणु ' ने पंचलाईट कहानी में गाँवालों के आपसी फूट , ग्रामीण जनता का मिथ्या घमंड ,अज्ञानता ,साधारण पञ्च लाईट बालना भी न जाननेवाले , पंचलाईट जलाने जो जानता है,उसको सम्मान देना आदि का चित्रण किया है.
एक गाँव में आठ पंचायत,जाति की अलग -अलग 'सभा चट्टी" है. इन सब में पेट्रोमैक्स लाईट का अलग महत्त्व है. पंचायत का छडीदार पंच लाईट ताब करने का विषय है. मेले के समय पंचलाईट पर अधिक ध्यान दिया जाता है. अगनू महता जो छडीदार ढोता है ,वह लोगों को चेतावनी देता था की ज़रा दूर जा.
पूजा के सारे प्रबंध के बाद भी पंचलाइट का गप प्रधान रहा. सरदार पंचलाईट लेने गया तो चेहरा परखने वाला दूकानदार ने पांच कौड़ी में दे दिया. पंचलाईट देखकर सब खुश थे;दीप बालने किरासन का तेल भी आया.
सब प्रबंध के बाद एक बड़ी समस्या उठी. इस पंच में किसीको पेट्रोमैक्स जलाना नहीं मालूम था. गाँव भर में कोई नहीं मिला. दूसरे पंच के द्वारा लाईट जलाना बेइज्जत की बात थी.
अंत में सब को गोधन की याद आयी. वह लाईट बालना जानता है.वह दूसरे गाँव से आकर यहाँ बसा है. लेकिन पंचायत उसको दूर रखा था. उसको पंच में हुक्का बंद था. वह पंचायत से बाहर था. अब उसको ही बुलाना पड़ा. स्पिरिट नहीं था. गोधन ने नारियल के तेल से ही लाईट जलाया. वह उस दिन का हीरो बन गया. उसने सबका दिल जीत लिया.सरदार ने गोधन से कहा---"तुमने जाति की इज्ज़त रखी है. गुलरी काकी बोली ---आज रात मेरे घर में खाना गो धन. पंचलाईट के प्रकाश में सब पुलकित हो रहे थे.
कथानक: गाँवों में एकता नहीं, अपने गाँव के दूसरे पंच के लोग पंच लाईट जलना बेइज्जती समझनेवाले दुसरे गाँव से आये गोधन को इज्जत देते है. गाँव वालों के झूठे गोरव का चित्रण कथावस्तु है.ग्रामीण भोले जनता को सीख देना कथावस्तु है.
पात्र : सरदार,गाँव के लोग ,गोधन . ये पात्र कहानी के अनुकूल है.
कथोपकथन:-कीर्तन मंडली के मूलगैन :-देखो,आज पंचलैट की रोशनी में कीर्तन होगा. इस कथन से पंच लाईट को गांवाले जितना महत्त्व देते है ,
लाईट लाने के बाद बालने वाला नहीं मिला तो कहावत ---भाई रे,गाय लूँ ? तो दुहे कौन?
गांवाले की आपसी नफरत : न,न,!पंचायत की इज्ज़त का सवाल है.दूसरे टोले के लोगों से मत कहिये.
इस प्रकार कथोपकथन रोचक है.
शीर्षक : पंच लाईट शीर्षक सही है, कहानी के आरम्भ से अंत तक पंच लाईट की ही बातें चलती है. लाईट जलनेवाले गोधन इज्जत का पात्र बन जाता है.
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११. खानाबदेश लेखक :--ओमप्रकाश वाल्मीकि
कठिन शब्दार्थ:---
खानाबदेश = बेघर वाला./अस्थिर रहनेवाला
निगरानी =देखरेख
माहौल =वातावरण
भीगी बिल्ली बनना= to be very meek and submissive
सारांश :
ओमप्रकाश वाल्मीकि ने इस कहानी में दलित और शोषित वर्गों की दयनीय स्थिति ,उनकी मनोकामना पूरी न होना ,अमीर मालिक के निर्दय व्यवहार और बलात्कार आदि का दुखद चित्रण खींचा है. खानाबदेश अर्थात बे घरवाले कितना कष्ट उठाते हैं और कष्ट सहकर मूक वेदना का अनुभव करते हैं.
सुकिया और मानो दम्पति कुछ धन कमाने की इच्छा से गाँव छोड़कर भट्टे पर आ गए . असगर ठेकेदार ले आया था. भट्टा मालिक मुख्तार सिंह था.
जहां मजदूर रहते थे ,वहां रात डरावना था. कुछ धन जोड़ने की इच्छा से धीरज होता था. बस्ती में सांप-बिच्छु का डर लगा रहा था. मानो बार -बार सुकिया से कहता था -- अपने देस की सूखी रोटी भी परदेस पकवानों से अच्छी होती है.
सुकिया जवाब देती --नरक की जिन्दगी से निकलना है तो कुछ छोड़ना भी पड़ेगा. आदमी की औकात घर से बाहर कदम रखने पर ही पता चले हैं. दोनों कठोर मेहनत करते ,फिर भी मजदूरी कम ही मिलती.
मालिक मुख्तार सिंह का बेटा सूबे सिंह था. पिता की गैरहाजिरी में सूबे सिंह का रौब -दाब भट्टे का माहौल ही बदल देता था. असगर ठेकेदार भीगी बिल्ली बन जाता था. सूबे का चरित्र भी अच्छा नहीं था.
भट्टे पर काम करने किसनी और महेश नवविवाहित दम्पति आये थे. सूबे सिंह की कुदृष्टि किसनी पर पडी. वह उसे लेकर शहर जाता;वापस आते वक्त वह थकी लगती थी. वहाँ सूबे और किसनी के बारे में काना-फूसी होने लगी.
वहाँ तीसरा मजदूर था जसदेव. . वह कम उम्र वाला था. एक दिन सूबे सिंह ने असगर ठेकेदार के द्वारा सुकिया को दफ्तर में काम करने बुलाया. किसनी की तबीयत ठीक नहीं थी. सुकिया डर गयी. गुस्से और आक्रोश से नसें खिंचने लगी. जसदेव सुकिया के बदले दफ्तर के काम करने गया. सूबे सिंह अति क्रोध से उसको बहुत मारा-पीटा.
सुकिया को बहुत दुःख हुआ. जसदेव को खिलाने-पिलाने में लगी. भट्टे में दवा-दारू का इंतज़ाम नहीं था. सुकिया जसदेव से मिलने गयी. वह दर्द से कराह रहा था. मानो ने सूबे सिंह को खूब कोसा. "कमबख्त कीड़े पडके मरेगा. हाथ-पाँव टूट-टूटकर गिरेंगे ....आदमी नहीं जंगली जानवर है."
मानो को पक्की ईंट का घर निजी बनवाने की इच्छा थी. वह अपने निजी ईंट के घर में रहने का सपना देखा करता था.
सुकिया जल्दी भट्टी पर काम करने गयी. एक दिन जल्दी गयी तो देखा भट्टी उजड़ा हुआ था. सारी ईंटे टूटी-फूटी पडी थी. सब ने कहा किसीने जान-बूझकर ईंटें तोडी हैं. मानो का ह्रदय फटा जा रहा था.आगे वे वहां नहीं रह सकते. असगर ठेकेदार ने उनकी रही-सही उम्मीदों पर पानी फेर दिया.. वे खानाबदेशी बन गए. खानाबदेश जिन्दगी का एक पड़ाव था यह भट्टा. वे वहां से दुसरे पड़ाव की तलाश में निकले,एक दिशा हीन यात्रा पर. सपनों के काँच उसकी आँख में किरकिरा रहे थे.
कथानक: दलित लोगों की दयनीय दशा और मालिकों की निर्दयता चित्रण के द्वारा समाज को जागृत करना कथानक था. सुकिया,मानो किसनू ,जसदेव आदि पात्र दलित थे तो मालिक के पुत्र सूबे सिंह बलात्कारी ,निर्दयी ,चरित्रहीन था. ठेकेदार मालिक के क्रोध के भय से काम करनेवाला था. इन सब के चित्रण द्वारा कथावस्तु का विकास हुआ है.
पात्र : साक़िया,मानो,जसदेव प्रमुख पात्र हैं तो ,मालिक मुख़्तार सिंह,किसनू ,छोटा मालिक सूबे सिंह ठेकेदार आदि कहानी को सिलसिलेवार ले जाने में आवश्यक हैं. किसनू के पति महेश का नाम मात्र है. ये पात्र के द्वारा कहानी का अंत "खानाबदेश" को सार्थक बना रहे हैं.
कथोपकथन : मानो ---क्यों ,जी ...क्या हम इन पक्की ईंटों पर घर बना लेंगे?
सुकिया--"पक्की ईंटों का घर दो-चार रूपये में न बनता है. इत्ते ढेर-से-नोट लगे हैं घर बनाने में. गाँठ में नहीं है पैसे ,चले हाथी खरीदने.
इस संवाद से ही उनकी विवशता और उनकी सपना का सपना ही रहने की व्यथा साफ-साफ मालूम हो जाता है. कहानी के मूल विषय का संकेत कर देता है.
सूबे सिंह के थप्पड़ मारने से जसदेव की हालत बुरी हो जाती है. तब वह दर्द से कराहता है तब मानो की गाली उसके नफरत की सीमा पार जाता है ......"कमबख्त कीड़े पडके मरेगा. आदमी नहीं जंगली जानवर है. बलात्कारियों के प्रती ऐसी भावना प्रकट होना यथार्थ है. लेखक के भाव की गंभीरता प्रकट होती है. संवाद शैली अच्छी बन पडी है.
उद्देश्य : लेखक का उद्देश्य खानाबदेश दलित लोगों की दयनीय मार्मिक दशा को समाज के सम्मुख रखना था. इस ऊदेश्य को लेखक ने मानो और सुकिया के पात्रों के द्वारा और मालिक के बेटे सूबेसिम्ह के दुश्चरित्र के उल्लेख के द्वारा सफल बनाया है.
शीर्षक : "खानाबदेश " शीर्षक अति उत्तम है. एक घर अपने लिए बनवाने के लिए मानो और सक़िया अपने गाँव छोड़कर गए. वे अपने लक्ष्य में सफल न बने. कहानी के अंत में उनको खानाबदेशियों के सामान नौकरी की तलाश में एक दिशाहीन यात्रा पर चलना पड़ा.
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि कथा -तत्वों के अनुसार कहानी सफल है. लेखक की सृजन-कौशल सराहनीय है.
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चरित्र चित्रण
कहानी में दो प्रकार के प्रश्न किये जाते हैं.
एक प्रश्न है कहानी का सारांश लिखकर कहानी कला की से उसकी विशेषताएं लिखिए. ==१५ अंक .
दूसरा प्रश्न है चरित्र चित्रण . इस के लिए पांच अंक . तीन कहानियों के तीन पात्रों के चरित्र चित्रण लिखना चाहिए.
३*५ =१५ अंक .
१. नादान दोस्त . लेखक : प्रेमचंद
केशव का चरित्र चित्रण,
" केशव " पात्र नादान दोस्त की कहानी में है. कहानीकार है श्री मुँशी प्रेमचंद.
" केशव " कहानी का प्रमुख पात्र है. वह छोटा लड़का है. वह बड़ा जिज्ञासु है. उसके घर के कार्निस के ऊपर एक चिड़िया ने अंडे दिए. केशव और उसकी छोटी बहन श्यामा दोनों को अंडे के बारेमें कई बातें जानने की इच्छा हुई .उनके माता-पिता को उनके संदेहों का निवारण करने समय नहीं था. वे जानना चाहते कि अंडे कितने बड़े होंगे?किस रंग के होंगे?कितने होंगे?कैसे बच्चे निकलेंगे? बच्चों के पर कैसे निकलेंगे ? क्या खाते होंगे?
दोनों बच्चे अपने सवालों के जवाब ढूँढने खुद तैयार होने लगे. केशव बड़ा भाई था. इसलिए वह बहन पर अपना अधिकार जमाता था, माँ के भय से माँ की आँखें बचाकर अंडे देखने के काम में लग गए. मटके से चावल रखना,पीने का पानी , धूप से बचाने कूड़ा फेंकनेवाली टोकरी आदि की व्यवस्था में लगे.
उसमे तीन अंडे थे. श्यामा देखना चाहती थी. केशव को डर था कि वह गिरेगी तो माँ को पता चलेगा;वह गाली देगी.
वे इस काम के लिए बाहर आये. बड़ी धूप थी. माँ ने देखा तो गाली दी और सोने के लिए दोनों को बुलाया. श्यामा भाई के प्रेम और डर के कारण माँ से कुछ नहीं बताया.
भाई -बहन सो रहे थे, यकायक श्यामा उठी. तब उसने देखा कि अंडे नीचे गिरकर टूट गए. उसको दुःख हुआ. केशव को जगाया . दोनों से माँ ने पूछा कि धूप में क्या कर रहे थे. श्यामा को अंडे टूटने का दुःख था. माँ ने कहा कि अंडे के छूने से चिड़िया नहीं सेती; और अण्डों को धकेल देती है. तब श्यामा ने सारी बातें बताई; माँ ने केशव से कहा कि तुम ने बड़ा पाप किया. तीन जाने ले लीं. फिर हँस पडी.लेकिन केशव को दुःख हुआ. अपनी गलती पर रो पड़ा.
केशव नादान लड़का नादान दोस्त चिड़िये के अंडे के लिए पछताता है.
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श्यामा:
प्रेमचंदजी की कहानी "नादान दोस्त " के दो प्रमुख पात्रों में श्यामा एक थी.. वह छोटी थी. केशव की बहन है. वह अपने भाई से अधिक प्यार करती थी. उसके घर की कार्निस पर चिड़िये ने अंडे दिए . उन अण्डों के बारे में जानने की इच्छा दोनों भाई-बहन को थी. माता-पिता को इन के सवालों के जवाब देने का समय नहीं था. दोनों भाई-बहन ने चिड़िये के अंडे की सुरक्षा में लगे. भाई ने सब काम किया. उसने अंडे देख लिये. पर श्यामा को ऊपर चढ़ने नहीं दिया; उसको डर था कि वह गिर जायेगी. तो माँ अधिक मारेगी. श्यामा बचपन के स्वाभाव के अनुसार भाई डराती है कि अंडे न दिखाओगे तो माँ से कहूंगी. बड़े भाई ने डराया कि मारूंगा. अंडे टूट जाने पर दुखी श्यामा माँ से सारी बातें बता देती है. भाई के प्यार के कारण पहले माँ से नहीं कहती. इस प्रकार श्यामा में प्यार,दुःख ,और माँ के डराने पर सारी बातें बताने आदि बालक -बालिकाओं के गुण विद्यमान है.
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२. कोटर और कुटीर
लेखक : सियारामशरण गुप्त
चातक पुत्र का चरित्र चित्रण
चातक पुत्र चातक पक्षी का पुत्र है. वह अपने खानदानी गुण को बदलना चाहता है. एक दिन पिताजी से कहता है. कि प्यास के मारे प्राण चले जायेंगे. कब वर्षा होगी?तब तक सहा नहीं जाता. आदमी कृषी के लिए पानी जमा करते है.तब पोखरे के पानी पीने का विचार आया. पोखरे के पानी में कीड़े बिलबिलाते है, सब प्रकार की गन्दगी करते हैं. सोचेते ही उसको घृणा हुई. अंत में गंगा के पानी पीने निकला. रास्ते में बुद्धन की झोम्पडी के पास के नीम के पेड़ पर आराम के लिए बैठा. बुद्धन का बेटा गोकुल को गरीबी में भी दूसरों के पैसे की इच्छा नहीं हुयी; उसको मजदूरी नहीं मिली. पर रास्ते पर रुपयों से भरा बटुआ मिला. तुरंत उसको रूपये वाले की व्यथा याद आयी; बटुए वाले की तलाश में गया और बटुआ लौटाकर भूखा प्यासा खाली हाथ घर लौटा. उसके पिता बुद्धन ने उसकी ईमानदारी की तारीफ की. बुद्धन ने अपने बेटे से कहा --जिस तरह चातक अपने प्राण देकर भी मेघ के सिवा किसी दूसरे का जल नहीं लेने का व्रत नहीं तोड़ता ,उसी तरह तू भी ईमानदारी की टेक न छोडना. चातक पुत्र ने सुना तो दुःख हुआ और अपने गंगा नदी की ओर न उड़ा और अपने कोटर की ओर उड़ा . रास्ते में वर्षा आयी . उसकी चार दिन की यात्रा सात दिन में पूरी हुयी.
चातक पुत्र के मानसिक परिवर्तन हुआ; उसने अपने खानदानी गौरव को बचा लिया.
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बुद्धन का चरित्र -चित्रण
"कोटर और कोठरी" कहानी का प्रमुख पात्र है बुद्धन, वह पचास साल का आदमी था. उसका पुत्र गोकुल १-१ साल का है. वह गरीब आदमी था. पर ईमानदार आदमी था. किसी भी हालत में ईमानदारी की टेक छोड़ने तैयार नहीं था, उसीके कारण चातक पुत्र का मानसिक परिवर्तन होता है. उसका पुत्र गोकुल अपने बाप से भी बढ़कर ईमानदार था..
बुद्धन का बेटा गोकुल को गरीबी में भी दूसरों के पैसे की इच्छा नहीं हुयी; उसको मजदूरी नहीं मिली. पर रास्ते पर रुपयों से भरा बटुआ मिला. तुरंत उसको रूपये वाले की व्यथा याद आयी; बटुए वाले की तलाश में गया और बटुआ लौटाकर भूखा प्यासा खाली हाथ घर लौटा. उसके पिता बुद्धन ने उसकी ईमानदारी की तारीफ की. बुद्धन ने अपने बेटे से कहा --जिस तरह चातक अपने प्राण देकर भी मेघ के सिवा किसी दूसरे का जल नहीं लेने का व्रत नहीं तोड़ता ,उसी तरह तू भी ईमानदारी की टेक न छोडना.
चटक पुत्र उसकी झोम्पडी के पास नीम के पेड़ पर बैठा था.वह अपने कुल -मर्यादा छोड़ गंगा में पानी पीने निकला था.
उनके पिता ने समझाया कि हमारे खानदान में वर्षा का पानी पीते हैं,इसीलिये हमारा गर्व है. वह पिता की बात न मानकर घर से बाहर आया था, बुद्धन और गोकुल के संवाद सुनकर समझ गया कि चटक को वर्षा के पानी पीकर जीने में ही कुल -गौरव है.
बुद्धन का चरित्र ईमानदारी पर जोर देता है.
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3,उसने कहा था. लेखक चन्द्र धर शर्मा गुलेरी.
चरित्र चित्रण
लहनासिंह
चन्द्र धर शर्मा गुलेरी की कहानी है "उसने कहा था." इस कहानी का प्रधान पात्र है लहना सिंह. वह वीर ,साहसी और चतुर था. इन सब से बढ़कर निस्वार्थ प्रेमी था.१२ साल की उम्र में अमृतसर के बाज़ार में एक लडकी से मिला करता था. उससे रोज़ पूछता --क्या तेरी कुडुमायी हो गयी. एक दिन लडकी ने "हाँ " कहा तो उसकी व्यथा उसके व्यवहार से मालूम होती है. क्रोध में उसने कुत्ते पर पत्थर मारा. सामने आनेवालों पर टकराया. इस घटना के २५ साल बाद कहानी शुरू होती है.वाल सेना में जमादार था. आज सूबेदार का बेटा जो बीमार तो उसको अपना कम्बल ओढ़कर खुद सर्दी सह रहा था, वह जेर्मन का सामना करने खाईयों में था. एक दिन एक जेर्मन छद्मवेश में भारतीय लपटन साहब बनकर आया. लहना को उसकी शुद्ध उर्दू की बोली से पता चल गया कि वह जेर्मनी है नकली हैं. खाई में केवल आठ भारतीय थे. सूबेदार वजीरासिंह था. उन सब को सावधान देकर वह खुद नकली जेर्मन पलटन साहब पर गोली चलाया. नकली का हाथ जेब में था. उसकी गोली से लहना घायल हो गया. इतने में गोली चलाकर खाई में आये जर्मनी मारे गए. आम्बुलंस आया तो उसमे बीमार बोधसिंह को सुरक्षित भेज दिया. फिर वजीर से पानी माँगा. उसकी चोट के बंधन को वजीरा ने शिथिल किया. अंतिम साँस लेते =लेते उसको पुरानी यादें आयी. एक बार वह सूबेदार के यहाँ गया तभी मालूम हुआ कि सूबेदारनी वह लडकी है जिससे वह २५ साल पहले अमृतसर से मिला था. सूबेदारनी को भी लहना को जान गयी. तब सूबेदारनी ने कहा कि जैसे मुझे एक बार तांगे के नीचे जाने से बचाया,वैसे मेरे पति और पुत्र को बचाओ. लहनासिंह ने वादा किया था. आज वह अपने प्राण देकर उन दोनोको बचा लिया और सूबेदारनी से कहने बोधा से सन्देश दिया कि उसने जो कहा था,उसे निभाया है.
यह किसीको मालूम न था, समाचार पत्र में यही सूचना आयी जमादार लहनासिंह युद्ध क्षेत्र में मारे गए,
लहनासिंह आदर्श प्रेमी था.
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सूबेदारनी
कहानी उसने कहा था का नारी पात्र सूबेदारनी. वह कहानी की जान है. आठ वर्ष की उम्र में वह लहना से मिलती है. दुबारा मिलन पच्चीस साल के बाद. तब भी उसको पहचानती है. लड़के के प्रति उसके मन में प्रेम था. वह लड़के के प्रथम मिलन की सारी बात या द रखकर पच्चीस साल के बाद मिलने पर लहना को याद दिलाती है. बारह साल के लड़के से मिलाना,क्या तेरी कुडमाई हो गयी पूछना,बिगड़े घोड़े गाडी से उसकी जान बचाना. फिर निवेदन करती हैं जैसे तुम बिना तेरे प्राण पर ध्यान देकर मुझे बचाया,वैसे ही सूबेदार और बोधा को बचाना. लहनासिंह उस दिन से सूबेदार और बोधा सिंह
पर ध्यान करने लगा. अंत में उन दोनों को बचाकर खुद चल बसा. सूबेदारनी आदर्श पति प्रेमी और वात्सल्यमयी माता है. अपने बचपन के प्रेम को स्मरण रखकर लहनासिंह द्वारा अपने पति और पुत्र की जान बचाती है. वह चतुर नारी है.
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सिक्का बदल गया . लेखिका : कृष्णा सोबती
शाहनी का चरित्र चित्रण.
शाहनी एक विधवा अकेली रहती है. वह महात्मा गांधीजी की अनुयायी थी. खद्दर की चादर ओढती थी. वह हिन्दू थी.राम की भक्ता थी.
देश की स्वतंत्रता के बाद हिन्दू-मुस्लिम कलह हुआ था. एक दूसरे के प्राण लेने में आनंद पाते थे. शाहनी चिनाब नदी के तात पर पाकिस्तान के हिस्से में रहती थी. जब तक शाह थे,तब तक उसका जीवन आदरणीय रहा; उस इलाके में सब की मदद करते थे. अब वह अकेली है.एक दिन प्रभात नदी में स्नान करके आयी तब लीग के आदमियों के वहां आना पहचान गयी.
उसने शेरे को शिशु से पाला था, उसके जन्म लेते ही माँ चल बसी. शेरो की पत्नी हसैना थी. शाहनी उसे अधिक चाहती थी. आजादी के बाद शेरो लीग्वालों से मिल गया. उनकी प्रेरणा से वह शाहनी की जान लेने तैयार था. इतने में शरणार्थी कैम्प में शाहनी को ले जाने थानेदार दाऊद खां आ गे आ गया. यह वही दाऊद था,जो शाह के लिए खेमे लगवा दिया करता था.अब सारा माहौल बदल गया. शाहनी . सारी संपत्ति,नकद सब उस इलाके के लोगों के लिए छोड़कर ट्रक में बैठ गयी. सब के दिल में उदासी छा गयी.
आडम्बर और सट्टे पर जीवन बिताई शाहनी, आज अकेले कैम्प में ज़मीन पर पडी सोचते रही ==राज पलट गया.--सिक्का बदल गया.
उस रात हिन्दू=मुस्लिम कलह से आसपास के गांवों में खून बह रहा था.
देश के बंटवारे के बाद की दशा का चित्रण शाहनी पात्र द्वारा मिलता है.
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शेरा
शाहनी का पालित पुत्र शेरा लीग्वालों से मिल गया. लीग का सम्बन्ध शाहनी को पसंद नहीं था. पर वह नहीं मानता था. उस दिन लीग्वाले कलह करने वाले थे. उनकी प्रेरणा से शेरा निर्दयी बन गया. शाहनी की हत्या की तत्परता में था.; फिर भी शाहनी की हालत पर दुखी था.वह शाहनी से उसकी जान के खतरे की बात कहना चाहता था.जबलपुर में आग लगने की बात उसे मालूम था. वह विवश था. शानी के प्रति स्नेह था. दुखी मन से उसे ट्रक में जाते हुए देखता है.देश का बंटवारा हिन्दू-मुस्लिम के भाईचारे भाव को नष्ट कर दिया. इसका नमूना है शेरा पात्र.
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पुर्जे --इब्राहिम शरीफ
भाई का चरित्र चित्रण
भाई पुर्जे कहानी का प्रमुख पात्र है. उसके एक बहन थी; पिता मर गए. साहित्य में एम्.ए हैं. माँ बीमार्पद गयी. बहन के अनुरोध से डाक्टर को बुलाने गया. निर्दयी डाक्टर नहीं आया.डाक्टर ने बताया कि लकवा लग गया होगा': लहसन का रस लेपना. वह दुखी मन से वापस आ गया. माँ की हालत बिगड़ गई तो फिर डाक्टर से मिलने गया.डाक्टर की लापरवाही से सोचने लगा कि साहित्य में एम्.ए. करके क्या लाभ. डाक्टर ने कहा कि मेरी बेटी की शादी की व्यवस्था में लगे है. दावा यहाँ नहीं मिलती;फिर एक पुर्जे में दावा लिखकर दी.भाई को उसकी असमर्थता पर क्षोब हो रहा था. वह तेज़ी से घर गया. बहन ने पुर्जे को टुकड़े-टुकड़े कर दिया. माँ चल बसी.
एक मध्यवर्ग परिवार के बेकार युवक और डाक्टर की निर्दयता पूर्ण व्यवहार के दृश्य भाई पात्र के द्वारा सामने आ जाता है. ऐसे परिवार का दयनीय दशा का यथार्थ चित्रण द्वारा समाज में दया भाव उत्पन्न होना चाहिए.
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डाक्टर
पुर्जे कहानी का डाक्टर एल.ई.एम् है. वह निर्दयी है. बिना रोगी को देखे दवा बताता है और लिखकर भी देता है.
उसको अपनी बेटी की शादी की चिंता है. उसीकी लापरवाही से एक नारी चल बसी. भाई डाक्टर को घर बुलाता है.तब स्वार्थी डाक्टर अपनी बातें करता है---बेटी की शादी में बहुत रूपये खर्च करना पड़ेगा.लड़का बड़े खानदान का है.उसकी डिमैन्ड्स
पूरी करनी है. ऐसे निर्दयी डाक्टर चरित्र निदनीय है. ऐसे डाक्टरों के कारण समाज में डाक्टर अविस्वसनीय बन जाते है.
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गूंगे --लेखक --- रांगेयराघव
गूंगा
गूंगे कहानी में गूंगा पात्र अत्यंत दयनीय पात्र है, वह जन से अनाथ है. पिता और माता दोनों भाग गए. जिन्होंने उसको पाला था,वे निर्दयी थे.अधिक मारते-पीटते थे. वह बहुत मेहनत करता था. सेठ के यहाँ बर्तन माँजना,कपडे धोना आदि सब काम .केवल पेट भरने के लिए.
चमेली दयालू औरत थी. उसके यहाँ गूंगा नौकरी करने गया तो चमेली से ये सब बातें इशारे से ही बता दी.
चमेली के पुत्र -पुत्री गूंगे को न चाहकर भी चाहते थे. एक दिन किसी बात पर उसके पुत्र ने गूंगे को मारा. गूंगा उसे मारने हाथ उठाया,पर मालिक के बेटे को न मारा. इससे नाराज होकर चमेली उसे घर से भगा देती है. वह थोड़ी देर में रोते हुए वापस आ गया.उसके सर पर चोट लगी थी खून बह रहा था. वह दरवाजे पर कुत्ते के सामान खड़े होकर रो रहा था. गली के शरारत लड़कों ने उसको मारा था.
चमेली देखती रही. उस मूक अवसाद में युगों का हाहाकार भरकर गूँज रहा था.
गूँगा समाज का पूरा न्याय,अन्याय.अत्याचार जानता-समझता था. वह गूंगा था. बोलने की शक्ति न थी. इस एक कमी के कारण समाज की यातनाएं सहता था, सिवा रोना ही उसके सारे मनोभाव प्रकट करता था. गूंगे के पात्र के चित्रण के द्वारा समाज में गूंगों के प्रति दया भाव और सनुभूति उत्पन्न करना लेखक का उद्देश्य था.
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चमेली
गूंगे कहानी का आदर्श पात्र चमेली थी. घरवाले न चाहने पर भी गूगे को घर में नौकरी देती है. इशारे से ही गूंगे के जीवन चरिता सामने लाती है. वह गूंगों की भाषा समझती है. गूंगे से काम लेने के लिए घरवालों को समझाती है---
कच्चा दूध लाने के लिए ,थान काढने का इशारा कीजिये. साग मंगाना हो गोलमोल कीजिये.बाच्चों ने गूंगे को नौकरी देना मना किया तो चमेली कहती है--मुझे तो दया आती है बेचारे पर.
एक दिन गूंगा बेटे वसंता को मारने हाथ उठाया तो उसके बलिष्ट हाथ हाथ देखकर उसे घर से भगा देती है. वात्सल्यमयी माता ऐसे ही करेगी. वह थोड़ी देर में गली के लड़कों से मार खाकर खून से लतपत वापस आया . दरवाजे पर सर रखकर कुत्ते की तरह चिल्ला रहा था. उसे चमेली देखती रही.
चमेली को आदर्श गृहणी.वात्सल्यमयी माता, समाज के दुखी असहाय लोगों पर दया और सहानुभूति दिखनेवाली आदर्श नारी के रूप में देखते हैं.
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बदला - लेखक :आरिगपूडी
कोटय्या
"कोटय्या" गरीब किसान था. उसकी भूमि नदी के बाढ़ में गायब हो गयी. तब से मजदूरी करके कष्टमय जीवन बिताता था. वह अपने गर्भवती पत्नी को अपने मालिक की बैल-गाडी में लिटाकर इलाज के लिए धम्म्पट्टनाम सरकारी अस्पताल ले गया. अस्पताल के द्वार से ही मामूल शुरू गो गया. अस्पताल में सब के सब रिश्वत लेते थे. कोटय्या की पत्नी को इलाज की मदद किसीने नहीं की. डाक्टर पद्मा आयी तो कोतय्या की पत्नी को अन्दर ले गए. थोड़ी देर में कहने लगे कि उसकी पत्नी मर गयी. लाश देखते ही कोतय्या को मालूम हो गया कि इलाज़ नहीं किया गया. किसीने इस बेचारे की मदद नहीं की. उसी गाडी में पत्नी को अपने गाँव ले गया. दाह संस्कार क्रिया के बाद वह बदला लेने अस्पताल आ गया, वह अनशन के लिए बैठ गया. उसने एक कपडे पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा पताका था --अस्पताल से प्राण खाऊ घुस खोरी हटाओ .पहले किसीने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया. पद्मा के कहने पर उसने अस्पताल के सामने बैठकर सत्याग्रह आरम्भ किया . स्थानीय नेता उससे मिले. समाचार पत्रों में खबरें आयी.पूछ-ताछ करने लगे. अस्पताल के भ्रष्टाचार पर शिकायतों के ढेर आ गए. डाक्टर पद्मा को अपना बयान देना था. भ्रष्टाचारियों ने पद्मा की हत्या की और कोतय्या को खूनी सिद्ध करने का इंतजाम हो गया. कोतय्या कैद होगया. वह बहुत चिल्लाया -चीखा कि वह निर्दोष है. उसकी आवाज़ पर किसीने ध्यान नहीं दिया.
वह बदला लेने गया,भ्रष्टाचारियों ने उसी को बली देकर बदला ले लिया.
कोटय्या का पात्र दयनीय शोषित पीड़ित गरीब का प्रतीक है. सरकार अस्पताल के भ्रष्टाचार का भंडा फोड़कर समाज में क्रान्ति लाना लेखक का उद्देश्य था. कोटयया पात्र के चित्रण द्वारा अपने उद्देश्य पर लेखक सफल हो गए.
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डाक्टर पद्मा
डाक्टर पद्मा अपना कर्तव्य करना चाहती थी;पर अस्पताल में रिश्वत का बोलबाला था; इसमें सब सम्मिलित थे. अत; वह लाचारी बन गयी. उसकी दया से ही कोटय्या के पत्नी को लिटाने की जगह मिली;पर बिना इलाज के मर गयी.
कोटय्या अस्पताल के सामने भ्रष्टाचार और घूसखोरी के विरुद्ध अनशन रखा तो पूछ-ताछ शुरू हुई. पद्मा के बयान से कई लोगों की नौकरी चली जायेगी. पूछ-ताछ में सुरंग के सामान कई अपराध बाहर आ गए. सब के सब परेशान थे.
पहले पद्मा छुट्टी पर जाना चाहती थी; यह असंभव हुआ तो सब बातें छिपा न सकी. बयान देने के बाद दूरे दिन पद्मा को किसीने मार डाला. अपराध भोले-भाले निर्दोष कोटय्या के सर पर पड़ा.
दयालू ईमानदार डाक्टर को रिश्वतखोरों ने मार डाला.
पद्मा एक दयालू आदर्श डाक्टर थी.
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लेखिका::--उषा प्रियंवदा
वापसी
लेखिका :उषा प्रियंवदा
गजाधर का चरित्रचित्रण.,
गजाधर पैंतीस वर्ष रेलवे में नौकरी करके रिटायर हो गए.वे दुखी थे कि दफ्तर के आत्मीय मित्रों को बिछुड़ रहे हैं. वे खुशी थे कि कई साल अकेले रहने के बाद अपने परिवारवालों के साथ खुशी से रहनेवाले है. पर परिवारवालों से उतना स्नेह,आदर ०सम्मान नहीं मिला. उनको अकेला रहना पड़ता.उनके घर में रहना,उपदेश देना,बहु और बेटे से कोई न कोई काम कहना आदि ने उनको नफरत का पात्र बना दिया.
गजाधर को अपने बिस्तर की समस्या हुयी; उनको हर बात में दखल देना घरवालों को पसंद नहीं आया. गजाधर ने अनुभव किया कि वह पत्नी और बच्चों के लिए केवल धनोपार्जन के निमित मात्र है.
एक दिन नौकर के काम ठीक तरह से न करने की चर्चा हुयी तो नौकर का हिसाब कर दिया. घर की आमदनी भी कम थी. खर्च ज्यादा है.
बेटे को बहु ने इसकी सूचना दी. इस घटना के बाद नरेन्द्र,अमर,वसंती सब के सब गजाधर की आलोचना करने लगे.
पत्नी भी उनके अनुकूल बातें नहीं की.
गजाधर ने पुनः नौकरी करने का निश्चय कर लिया. उनको एक मिल में काम मिल गया.दुसरे दिन पत्नी से सीधे कहा कि मुझे सेठ रामजीमल की चीनी मिल में नौकरी मिल गयी. परसों जाना है. पत्नी तैयार नहीं हुयी. उसने कहा कि मैं चलूंगी तो क्या होगा.
वे घर से निकले तो किसीने न रोका. नरेन्द्र ने बड़ी तत्परता से बिस्तर बाँधा. वे चले गए. घरवालों ने इसकी चिंता न की.बहु ने अमर से पूछा ,"सिनेमा ले चलिए.वासंती भी तैयार थी. सिनेमा जाने. गजाधर की पत्नी चौके में चली गयी.पत्नी को भी पति की चिंता नहीं. वह कहने लगी--बाबूजी की चारपाई कमरे से निकाल दे. उसमें चलने तक को जगह नहीं है.
रिटायर होने के बाद पुरुषों की दयनीय दशा का चित्रण खूब हुआ है.
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श्रीमती गजेंधर बाबू
वापसी कहानी के नायक गजाधर की पत्नी है .उसको रिटायर पति की सेवा से अपने बड़े परिवार की चिंता थी. वे अपने बच्चों से प्यार करती है.अपने पति के साथ जाना उसको पसंद नहीं था. एक आदर्श माँ थी. उसमें असीम सहन शक्ति थी.
वह सभी काम चुपचाप करती थी और अपने आप बोलती थी ---सारे में जूठे बर्तन पड़े हैं. इस घर में धरम-करम कुछ नहीं.पूजा करके सीधे चौके में घुसो. पत्नी की परेशानी देखकर गजाधर रात के भोजन की जिम्मेदारी सौंपी. बहु से भी कुछ जिम्मेदारियां. पर श्रीमती को पतिदेव का दखल देना पसंद नहीं. बच्चे-बहु सब अपने पिताजी की शिकायत करते थे. गजाधर बाबू घर की परिस्थिति से ऊब गए. वे पुनः सेठ रामजीमल की चीनी मिल में नौकरी करने निकले. उन्होंने श्रीमती को बुलाया. तब श्रीमती ने कहा--"मैं चलूंगी तो यहाँ का क्या होगा? इतनी बड़ी गृहस्थी,
उसको बूढ़े पति का वापसी जाना खुश ही था. उनके जाने के बाद बच्चे भी खुश थे, वे सिनेमा जाना चाहते थे. श्रीमती गजाधर ने अपने बेटे से कहा --अरे नरेंद् , बाबूजी की चारपाई कमरे से निकाल दे! उसमें चलने तक को जगह नहीं है.
श्रीमती अपने पति से बढ़कर बच्चो से अधिक प्यार करती है.
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डिप्टी कलक्टरी लेखक : अमरकांत
शकल दीप बाबू -चरित्र चित्रण:
सारांश :-
शकल दीप बाबू अपने बेटे नारायण (बबुआ) की डिप्टी कलक्टरी बनने की कामना पूरी होने पर बेहद खुश होते हैं.आरम्भ से अंत तक वात्सल्यमय पिता की मनो भावना का यथार्थ चित्रण मिलता है.
शकल दीप बाबू मुख्तार थे. उनकी पत्नी जमुना थी. उनके दो बेटे थे.बड़े का नाम नारायण था,बबुआ के नाम से पुकारा जाता था. उसकी उम्र २४ साल की थी; छोटा बारह साल का था उनका नाम टुनटुन था.
शकलदीप बाबू मुख़्तार थे. उनकी आमदनी केवल चौ के-चूल्हा चलाने काफी था.
नारायण को नौकरी नहीं मिली; वह डिप्टी कलक्टर बनना चाहता था. पिताजी को अपने बेटे पर शक था; उनपर भरोसा भी नहीं था.
नारायण दो बार डिप्टी कलक्टरी की परीक्षा में सफल नहीं हुआ. शकाल दीप बाबू का विचार था कि साधारण नौकरी भी नहीं मिली तो डिप्टी कलक्टरी कैसे ?
वात्सल्यमयी माता ने अपने पति से कहा --दो -दिन से बबुआ उदासी है. दो-तीन दिन में फीस भरना है. आपसे मांगने डरता है.
बेटे पर के अविश्वास के कारण वे पहले रूपये देने तैयार नहीं थे. फिर भी पिताजी का कर्तव्य निभाने तैयार हो गए, बाहर गए और डेढ़ सौ रुपये लाये और पत्नी से कहा कि १०० रूपये बेटे को दो और ५० रूपये घर के खर्च के लिए.
वे खुद सोचने लगे कि गलती किसीकी नहीं. सारा दोष तो मेरा है.देखो न,मैं बाप होकर कहता हूँ कि लड़का नाकाबिल है.
नहीं,नहीं,सारी खुराफात की जड़ मैं ही हूँ,और कोई नहीं. उस दिन के बाद अपने बेटे को सभी प्रकार की सुविधा करने लगे. देखा कि बीटा काफी मेहनती है. १९ घंटे पढने में तल्लीन है. बेटे को मेवा,सिगरेट आदि की भी व्यवस्था करने लगे.
बेटा इलाहाबाद में इम्तिहान देने निकला तो शकल रेलवे स्टेशन पहुंचे.रेल निकलने लगी तो पिताजी बच्चे की तरह चलती गाडी की ओर दोड़े और रूपये की पुडिया दी और आशीषें.शकल बाबू की वात्सल्यता का यथार्थ चित्रण लेखक ने किया है.
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जमुना
डिप्टी कलक्टरी कहानी के प्रमुख पात्र शकल दीप बाबू की धर्म पत्नी जमुना थी. वह वात्सल्यमयी माता थी. कहानी के आरम्भ में ही जमुना अपने बेटे के बारे में पति से कहती है---"दो दिन से बबुआ बहुत उदास है.वही बेटे की ओर से डिप्टी कलक्टर की परीक्षा शुल्क माँगती है. उसको अपनी बेटी पर बड़ा विशवास था. पति क्रोधित हुए तो वह चुप रहती थी; पति के स्वभाव से परिचित थी; अत; वह आदर्श गृहस्थी थी.
पति नारायण बबुआ पर क्रोध प्रकट करते तो बताती ---ऐसी कुभाषा मुँह से प्रकट कानी नहीं चाहिए. हमारे लड़के में दोष ही कौन-सा है? लाखों में एक है. बेटा हमेशा उदास है. न मालूम मेरे लाडले को क्या हो गया है.?
वह आदर्श पत्नी भी थी. एक दिन पति ने जल्दी स्नान किया तो डरती थी कि बीमार न पड़े. शकलदेव ईश्वर भक्त हो गए.राधास्वामी के. पति -पत्नी में हँसी -भरे मजाक भी होता था.. अपने बेटे के लिए पिताजी सिगरेट लेकर आते हैं श्री मति के पूछने पर कहते हैं --तेरे लिए? श्रीमती कहती है--कभी सिगरेट पी भी है कि आज पिऊँगी.
बबुआ के लिए जो लाये तो उसका छोटा बेटा टुनटुन खाता है. तब शकल गुस्से होते है और उसे पीटते है, तब वात्सल्यमयी माता उदास हो जाती है.
थोड़े में कहें तो जमुना आदर्श पत्नी और वात्सल्यमयी माँ थी.
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पंच लाईट
लेखक :--फनीश्वरनाथ "रेणु
सरदार
पञ्च लाईट में सरदार देहात आदमी है. वहाँ पंच लाईट एक गौरव की बात है.सरदार पंच लाईट लाया. लोग बहुत खुश थे.
पंच लाईट के बारे में सरदार गर्व से कहता है --दुकानदार ने पहले सुनाया,पूरे पाँच कौड़ी पाँच रूपये. मैंने कहा--दुकानदार साहब, यह मत समझिये कि हम एकदम देहाती है. बहुत-बहुत पञ्च लाईट देखे हैं. दूकानदार बोले --आप जाति के सरदार है. आप सरदार होकर पंचलाईट खरीदने आये हैं, पूरे पाँच कोडी में देता हूँ. सरदार देहाती अपने घमंड दिखाने लगे.
जब पंच लाईट जलाने की समस्या उठी, तब सरदार की बुद्धि पर अविश्वास प्रकट करने लगे. गाँव के अन्य सरदार के द्वारा लाईट बालना अगौरव था. अंत में पंच से निकाले पास के गाँव के गोधन की लाईट जलाता है. सब खुश होते हैं.
सरदार में घमंड,नादाने, अन्य गाँव के सरदारों के सामने अपनी इज्जत बनाए रखना आदि गुणों से सरदार सफल देहाती सरदार है.
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गोधन
गोधन पंच लाईट कहानी का साधारण पंच के दंड के पात्र का आदमी था. उसको पंच में हुक्का पीना बंद था. वह पंचायत से बाहर है.पंचों की निगाह पर गोधन बहुत दिन से चढ़ा हुआ था. अचानक उसकी जरूरत पञ्च को आ गयी. कार है वही पञ्च लाईट जलाना जानता था. अब पंच उनकी मदद लेने विवश थे. सलीमा का गीत गाकर आँख का इशारा मारनेवाला गोधन से गाँव भर के लोग नाराज थे. अंत में पंचायत वाले गोधन को बुलाने मान गए. वह होशियार था. वहां स्पिरिट नहीं था. गोधन गरी का तेल माँगा. दीप जलाने लगा. गोधन कभी मुँह से फूँकता ,कभी पंच लाईट की चाबी घुमाता.थोड़ी देर में पंचलाईट से सनसनाहट की आवाज़ निकलने लगी और रोशनी बढ़ती गयी साथ ही गोधन की प्रशंसा भी. सरदार ने गोधन से प्यार से कहा--तुमने जाति की इज्ज़त रख ली;खूब गाओ सलीमा का गाना.
गोधन के पंचलाईट जलाने की कला ने उसको हीरो बना दिया.
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खानापदेश
लेखक : ओमप्रकाश वाल्मीकि
सुकिया
ख्नाबदेश कहानी का प्रधान पात्र है सुकिया. वह अपने पति मानो के साथ धन कमाने अपने गाँव छोड़ जाती है.
सुकिया और मानो दम्पति कुछ धन कमाने की इच्छा से गाँव छोड़कर भट्टे पर आ गए . असगर ठेकेदार ले आया था. भट्टा मालिक मुख्तार सिंह था.
जहां मजदूर रहते थे ,वहां रात डरावना था. कुछ धन जोड़ने की इच्छा से धीरज होता था. बस्ती में सांप-बिच्छु का डर लगा रहा था. मानो बार -बार सुकिया से कहता था -- अपने देस की सूखी रोटी भी परदेस पकवानों से अच्छी होती है.
सुकिया जवाब देती --नरक की जिन्दगी से निकलना है तो कुछ छोड़ना भी पड़ेगा. आदमी की औकात घर से बाहर कदम रखने पर ही पता चले हैं. दोनों कठोर मेहनत करते ,फिर भी मजदूरी कम ही मिलती.
मालिक मुख्तार सिंह का बेटा सूबे सिंह था. पिता की गैरहाजिरी में सूबे सिंह का रौब -दाब भट्टे का माहौल ही बदल देता था. असगर ठेकेदार भीगी बिल्ली बन जाता था. सूबे का चरित्र भी अच्छा नहीं था.
भट्टे पर काम करने किसनी और महेश नवविवाहित दम्पति आये थे. सूबे सिंह की कुदृष्टि किसनी पर पडी. वह उसे लेकर शहर जाता;वापस आते वक्त वह थकी लगती थी. वहाँ सूबे और किसनी के बारे में काना-फूसी होने लगी.
वहाँ तीसरा मजदूर था जसदेव. . वह कम उम्र वाला था. एक दिन सूबे सिंह ने असगर ठेकेदार के द्वारा सुकिया को दफ्तर में काम करने बुलाया. किसनी की तबीयत ठीक नहीं थी. सुकिया डर गयी. गुस्से और आक्रोश से नसें खिंचने लगी. जसदेव सुकिया के बदले दफ्तर के काम करने गया. सूबे सिंह अति क्रोध से उसको बहुत मारा-पीटा.
सुकिया को बहुत दुःख हुआ. जसदेव को खिलाने-पिलाने में लगी. भट्टे में दवा-दारू का इंतज़ाम नहीं था. सुकिया जसदेव से मिलने गयी. वह दर्द से कराह रहा था. मानो ने सूबे सिंह को खूब कोसा. "कमबख्त कीड़े पडके मरेगा. हाथ-पाँव टूट-टूटकर गिरेंगे ....आदमी नहीं जंगली जानवर है."
मानो को पक्की ईंट का घर निजी बनवाने की इच्छा थी. वह अपने निजी ईंट के घर में रहने का सपना देखा करता था.
सुकिया जल्दी भट्टी पर काम करने गयी. एक दिन जल्दी गयी तो देखा भट्टी उजड़ा हुआ था. सारी ईंटे टूटी-फूटी पडी थी. सब ने कहा किसीने जान-बूझकर ईंटें तोडी हैं. मानो का ह्रदय फटा जा रहा था.आगे वे वहां नहीं रह सकते. असगर ठेकेदार ने उनकी रही-सही उम्मीदों पर पानी फेर दिया.. वे खानाबदेशी बन गए. खानाबदेश जिन्दगी का एक पड़ाव था यह भट्टा. वे वहां से दुसरे पड़ाव की तलाश में निकले,एक दिशा हीन यात्रा पर. सपनों के काँच उसकी आँख में किरकिरा रहे थे.
सुकिया शोषित दलित वर्ग की प्रतिनिधी है. केवल परिश्रम करनेवाली है.साथ ही साहसी है.चतुर है.
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मानो
खानाबदेश कहानी का प्रमुख पात्र है मानो. सुकिया के पति. कठोर मेहनती. उसकी एक मात्र चाह थी पक्की ईंट का घर बनाना. इस के लिए पत्नी सुकिया की बात मानकर भट्टी में काम करने गया. कठोर मेहनत के बाद भी अधिक रूपये ज़माना मुश्किल हो गया. सुकिया उसको धीरज बांधती रहती. वहाँ ठहरने की सुविधा नहीं थी.सांप-बिच्छुओं का डर था.
फिर भी अपने ईंट के घर के स्वप्न को साकार बनाने सब कुछ सह लेता. वहाँ दवा की सुविधा नहीं थी.
ऐसी परिस्थिति में उनको सूबे सिंह के रूप में आपत्ति आ गयी. वह भट्टे के मालिक का बेटा था. उसकी कुदृष्टि सुकिया पर पडी.तीसरा मजदूर जसदेव उसकी रक्षा के लिए मार खाया.चोट लगी. इस घटना के चंद दिन में किसीने भट्टे को जबरदस्त तोड़ दिया. मानो दुखी था. वह बे घर का हो गया.खानाबदेश .सुकिया और मानो नौकरी की तलाश में निकल पड़े.
मानो शोषित दलित वर्ग का पात्र है. ऐसे लोगों के करुण कथा के द्वारा दलित वर्ग में जागरण लाना लेखक का उद्देय था.
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सूबे सिंह
ख्नाबदेश कहानी का खलनायक था सूबे सिंह. भट्टे के मालिक का बेटा था. वह स्वभाव से कुटिल और निर्दयी था.
वह पिता की अनुपस्थिति में भट्टे की देखरेख करने आया. पहले किसनू नामक मजदूरिन जो महेश की पत्नी है,उसको अपनी वासना का शिकार बना दिया. उसकी तबीयत ख़राब हो गयी. फिरउसकी कुदृष्टि सुकिया पर पडी.जसदेव ने सुकिया को बचा लिया. पर सूबे ने उसको इतना मारा कि वह शय्याशायी हो गया. वह दवा-दारु की व्यवस्था नहीं थी. अंत में भट्टी को ही उजाड़ दिया.
सूबे सिंह जैसे अमीर वर्ग बलात्कारी होते है. वह कहानी का निंदनीय पात्र है.
सिंह
ख्नाबदेश कहानी का खलनायक था सूबे सिंह. भट्टे के मालिक का बेटा था. वह स्वभाव से कुटिल और निर्दयी था.
वह पिता की अनुपस्थिति में भट्टे की देखरेख करने आया. पहले किसनू नामक मजदूरिन जो महेश की पत्नी है,उसको अपनी वासना का शिकार बना दिया. उसकी तबीयत ख़राब हो गयी. फिरउसकी कुदृष्टि सुकिया पर पडी.जसदेव ने सुकिया को बचा लिया. पर सूबे ने उसको इतना मारा कि वह शय्याशायी हो गया. वह दवा-दारु की व्यवस्था नहीं थी. अंत में भट्टी को ही उजाड़ दिया.
सूबे सिंह जैसे अमीर वर्ग बलात्कारी होते है. वह कहानी का निंदनीय पात्र है.